Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.३ सू०४ द्रव्यार्थत्वेन प्रदेशनिरूपणम् ५१ एकस्य वस्तुन चतुभिरपहारो न भवति-अतो न कृतयुग्मादिः- उपमा, अपितु कल्योजरूपमेव भवतीति ।
पुनः गौतमस्वामी भगवन्तं पप्रच्छ 'बट्टे णं भंते ! संठाणे दबट्ठयाए.' वृत्तं खलु भदन्त ! संस्थान द्रव्यार्थतया कि कृतयुग्म योजं द्वापरयुग्म कल्योजमिति वा इति प्रश्नः । भगवान् श्री महावीरः उत्तरमाह-'एवं चेत्र' एकमेक, वृत्तं संस्थान द्रव्यार्थतया न कृतयुग्मरूपम् न वा योजरूपम् न वा-द्वापर. युग्मम् । किन्तु-कल्योजरूपमिति परिमण्डलसंस्थानवदेव सर्वमिहापि ज्ञातकृतयुग्मरूप है न योजरूप है, न द्वापरयुग्मरूप है किन्तु कल्योजरूप ही है। क्योंकि परिमंडलसंस्थान में द्रव्यरूप से एक ही रूपता आती है। एक रूप वस्तु को चार से अपहार होता नहीं है। इसलिये कृतयुग्मादि रूपता नहीं आती है। किन्तु वह कल्योज रूप ही रहता है।
फिर से श्री गौतम स्वामी प्रभु श्री से पूछते हैं-बट्टे ॥ भंते! संठाणे दव्यपाए०' हे भदन्त ! वृत्तसंस्थान द्रव्यार्थरूप से क्या कृतयुग्म रूप है ? योजरूप है ? द्वापरयुग्म रूप है ? अथवा कल्पोज रूप है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं चेव' हे गौतम! वृत्तसंस्थान द्रव्यरूप से कृतयुग्मादि रूप नहीं है-अर्थात् वह न कृतयुग्मरूप है, न ज्यो जरूप है और न द्वापरयुग्मरूप है। किन्तु वह कल्योज रूप ही है। तात्पर्य कहने का यही है कि परिमण्डल संस्थान के जैसा ही समस्त कथन यहां पर भी समझ लेना । 'एवं जाव आयए' इसी સંબંધમાં ગૌતમ સ્વામીએ આ પ્રમાણેને પ્રશ્ન કર્યો છે. આ પ્રશ્નને ઉત્તર भा५५५ भाट प्रभु श्री गौतम २१ामान ४ छ -'गोयमा' 3 गौतम ! 'नो कहजुम्मे, नो तेओए नो दावरजुम्मे' परिभ3 सथान द्रव्यपाथी कृतयुग्म રૂપ નથી તેમ જ રૂપ નથી તથા દ્વાપર યુગ્મરૂપ પણ નથી. પરંતુ કલ્યો જ રૂપ જ છે. કેમકે પરિમંડલ સંસ્થાનમાં દ્રવ્યપણાથી એક રૂપપણું જ આવે છે. એક પણવાળી વસ્તુનો ચારથી અપહાર થતું નથી. તેથી તેમાં કૃતયુગ્મ પણું આવતું નથી. પરંતુ તે કાજ રૂપ જ રહે છે.
शथी श्री गौतम स्वामी प्रभु श्रीन पूछे छे ,-'वट्टे णं मते ! संठाणे दुव्वट्रयाए' 8 सावन् वृत्त संस्थान द्र०या ५४थी शुकृतयुगमा રૂપ છે? જ રૂપ છે? દ્વાપર યુગ્મરૂપ છે? અથવા કાજ રૂપ छ L प्रश्न उत्तरमा प्रभु श्री ४३ छे है-'एवं चेव' ३ गौतम वृत्त સંસ્થાન દ્રવ્યપણથી કૃત યુગ્માદિરૂપ નથી. અર્થાત–તે કૃતયુગ્મ રૂપ નથી. જરૂપ નથી. તેમ દ્વાપર યુગ્મ રૂપ પણ નથી. પરંતુ તે કાજ ૩૫ જ છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-પરિમંડલ સંસ્થાના પ્રમાણે જ સઘળું घन माडियां ५५ सभ७ ‘एवं जाव आयए' मा प्रभानु थन
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫