Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.३ सू०४ द्रव्यार्थत्वेन प्रदेशनिरूपणम् ६१ 'सिय कडजुम्पसमयटिइए जाव कलिभोगसमयदिइए' स्यात्-कृतयुग्मसमयस्थितिकम् यावत्-कल्योजसमयस्थितिकम् । अत्र यावत्पदेन स्यात्व्योजसमयस्थितिक स्यात् द्वापमयुग्मसमयस्थितिक मित्यनयोः संग्रहः। "एवं जाव आयए' एवम्परिमण्डलसंस्थानव देव वृत्तसंस्थानादारभ्याऽऽयतान्तसंस्थानपर्यन्तं स्यात्-कृतयुग्म समय स्थितिकं यावत् स्यात् कल्पोजसमयस्थितिकमिति । अयं भावः-परिमण्डलादि संस्थानेन परिणतस्कन्धानां कृतयुग्मादि सर्वसमयस्थितिकत्वं भवतीति ।
'परिमंडला गं भंते ! संठाणा' परिमण्डलानि खलु भदन्त ! संस्थानानि कि कडजुम्मसमष्ट्रिइया पुच्छा' किं कृतयुग्मसमयस्थितिकानि इति पृच्छा। हे होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु श्री कहते हैं 'गोयमा सिय कडजुम्म समयटिइए जाव कलिओगसमयष्ठिहए' हे गौतम ! परिमंडल संस्थान कदाचित् कृतयुग्म समय की स्थितिवाला है और यावत् वह कदाचित् कल्पोज समय की स्थिति वाला भी है। यहां यावत्पद से 'स्यात् व्योज समयस्थितिकं स्थात् द्वापरयुग्म समयस्थितिकम्' इस पाठ का संग्रह हुआ है । 'एवं जाव आयए' परिमंडल संस्थान के जैसे ही वृत्तसंस्थान से लेकर आयत संस्थान तक सब संस्थान कृतयुग्म समय की स्थिति वाले भी हैं । यावत् कल्योज समय की स्थितिवाले भी हैं। तात्पर्य यही है कि परिमंडल आदि संस्थान से परिणत स्कन्धों में कृतयुग्म आदि सर्व समय की स्थिति रूपता है।
'परिमंडला ण भंते ! संठाणा' हे भदन्त ! समस्त परिमंडलसंस्थान 'किं कडजुम्मसमयट्ठिया पुच्छा' क्या कृतयुग्म समय की स्थिति वाले छ ? मा प्रश्नना उत्तरमा प्रभुश्री छे 3-'गोयमा' सिय कडजुम्भसमयदिइए जाव कलिओगसमयटिइए' 3 गौतम परिम सथान आ पा२ त युभ समयनी स्थिति वाणु डाय छे. मीयां यावत पहथी 'स्यात् योजसमय स्थितिकं स्यात् द्वापरयुग्मसमयस्थितिकम्' ते पा२ व्य. समयनी સ્થિતિવાળું હોય છે અને કઈ વાર દ્વાપરયુગ્મ સમયની સ્થિતિવાળું હોય છે मा पाइने। स यह था छे. 'एवं जाव आयए' परिभ सथानना ४थन પ્રમાણે વૃત્ત સંસ્થાનથી લઈને આયત સંસ્થાન સુધીના સઘળા સંસ્થાને કૃત યુગ્મ સમયની સ્થિતિ વાળા છે. યાવત્ કાજ સમયની સ્થિતિવાળા પણ છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે પરિમંડલ વિગેરે સંસ્થાનોથી પરિણત થયેલા સકમાં કૃતયુગ્મ વિગેરે તમામ સમયની સ્થિતિ રૂપતા છે.
'परिमंडला ण भंते ! संठाणा' है सपन सा परिभस सस्थाना किं कडजुम्भसमयद्विइया पुच्छा' शु तयुभ समयनी स्थिति छ ? अथवा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫