Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसत्रे
अन्यदपि नवप्रदेशिकमतरद्वयं स्थाप्यते इत्येवं क्रमेण सप्तत्रिंशनिप्रादेशिक चतुरस्रं संस्थानं भवतीति । 'उकोसेणं अनंतपदसिए तहेब' उत्कर्षेणानतप्रदेशिकं तथैव असंख्यात देशावगाढं चेत्यर्थः । 'तस्थ णं जे से जुम्मपरसिए' तत्र खलु यत् तत् युग्मप्रदेशिक' ' से जहष्णेणं अट्ठपएसिए अट्ठपएसोगादे पण्णत्ते' तत् युग्मप्रदेशिकम् जघन्येनापदेशिक तथा अष्टप्रदेशावगाढं च प्रज्ञतम् आ. नं. १३ O अस्योपरि अन्यश्चतुःप्रदेशिकः प्रतरो दीयते, इत्येवं प्रकारेणाप्रदेशिको भवतीति । 'उकोसे अनंतपरसिए तहेव' उत्कर्षेणाऽनन्तप्रदेशिक नथैव असंख्यात प्रदेशावगाढं चेत्यर्थः, इति चतुरस्र सूत्रम् ।
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आ.नं. १३
प्रतर स्थापित करना चाहिये। इस क्रम से २७ सत्ताईस प्रदेशों वाला चतुरस्रसंस्थान होता है । 'उक्कोसेणं अणनपसिए तहेब' तथा उत्कृष्ट से यह अनन्त प्रदेशों वाला है और असंख्यात आकाशप्रदेशों में इसका अवगाह है। 'तत्थ णं जे से जुम्मन सिए' तथा उनमें जो युग्मप्रदेशिक चतुरस्रसंस्थान है 'से जहन्नेणं अट्ठपएसिए अट्ठपएसोगाढे' वह जघन्य से आठ प्रदेशों वाला है और ८ आठ आकाश प्रदेश में उसका अवगाह् होता है। इसका आकार सं. टीका में आ० नं. १३ से दिया है, । इस चतुष्पदेशिक प्रतर के ऊपर अन्य चार प्रदेशों वाला दूसरा प्रतर स्थापित करना चाहिये । इस प्रकार से आठ प्रदेश का युग्मप्रदेशिक घनचतुरस्र बन जाता है। 'उक्कोसेणं अनंतपएसिए तहेव' उत्कृष्ट से यह अनन्त प्रदेशों वाला होता है और आकाश के असंख्यात प्रदेशों में इसकी अवगाहना होती है।
બીજા બે અન્ય નવ પ્રદેશવાળા પ્રતા સ્થાપવા જોઈએ. આ ક્રમ પ્રમાણે २७ सत्यावीस प्रदेशीवाणुं यतुरस संस्थान थाय छे. 'उक्कोसेणं अनंतपद सिए तद्देव' तथा उत्ष्टथी ते अनंत प्रदेशोवाणु छे भने असण्यात भामाश अहेश मां तेनेो भवगड होय छे. 'तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए' तथा तेमां ने युग्भ प्रदेशवाणु यतुरस्त्र संस्थान छे, 'से जहन्नेणं તે જઘન્યથી આઠ પ્રદેશેાવાળુ' અને આઠ આકાશ होय छे, तेनेो भारस टीडामा था. नं. १३ मां मतावेस छे. या यार પ્રદેશવાળા પ્રતરની ઉપર ા ચાર પ્રદેશેાવાળું ખીજુ પ્રતર સ્થાપવું જોઇએ. या प्रारथी आहे प्रदेश युग्भ प्रदेशवाणु धन यतुरस्र जनी लय छे. 'उक्कोसैंण अणतपखिए तहेव' उत्सृष्टथी ते अनंत प्रदेशोवाणु होय छे. मने આકાશના અસંખ્યાત પ્રદેશામાં તેની અવગાહના દ્વાય છે.
अटूपरसिए अटूपएसोगाढे' પ્રદેશોમાં તેને અવગાહ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫