Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीमत्रे
'से जहन्नेणं तिपएसिए तिपएसोगाढे' तत् ओजपदेशिक श्रेण्यायतं ० ० ० जघन्येन त्रिप्रदेशिक त्रिप्रदेशावगाढं च, अस्य च स्थापनैवम् आ.नं. १४ 'उकोसेणं अणतपएसिए तं चेत्र' उत्कर्षेणाऽनन्तपदेशिकं तथा तदेव असंख्यात. प्रदेशावगाढ़ चेत्यर्थः। 'तस्थ णं जे से जुम्भपरसिए से जहन्नेणं दुपएसिए दुपए. सोगाढे पमत्ते' तत्र खलु यत् तत् युग्मपदेशिकं श्रेण्यायतम् तत् जघन्येन द्विमदेशिकं द्विमदेशादगाढ च, तच्चैवं युग्ममदेशिक-द्विप्रदेशिकम् ० ० 'उकोसेणं अगंतपएसिए तहेव' उत्कर्षेणाऽनन्तमदेशिक तथैव असं आ.नं. १५ ख्यात प्रदेशावगाढं चेत्यर्थः, 'तस्थ णं जे से पयरायए से दुविहे पन्नत्त' तब सिए' इनमें जो ओजप्रदेशिक आयत है वह 'जहन्नेणं तिपएसिए तिपः एसोगाढे' जघन्य से तीन प्रदेशों वाला होता है और तीन आकाश प्रदेशों में उसका अवगाढ होता है। इसका आकार सं. टोकामें आ. नं.१४से दिया है। 'उकोसेणं अणंतपएसिए तं चेव' यह ओजप्रदेशिक श्रेण्यायत उत्कृष्ट से अनन्त प्रदेशों वाला होता है और आकाश के असंख्यात प्रदेशों में उसका अवगाढ होता है। 'तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं दुपएसिए दुपएसोगाढे' उनमें जो युग्मप्रदेशिक श्रेण्यायत होता है वह जघन्य से दो प्रदेशों वाला होता है और आकाश के दो प्रदेशों में अवगाढ होता है। इसका आकार सं. टीकामें आ० नं. १५ से दिया है। तथा यह 'उकोसेगं अगंतपएसिए तहेव' उत्कृष्ट से वह अनन्त प्रदेशों वाला होता है और आकाश के असं. ख्यात प्रदेशों में अवगाढ होता है। 'तत्य णं जे से पयरायए से दुविहे प्रदेशवाणु अायत संस्थान छ ते 'जहन्नेण तिपएसिए तिपएसोगाढे' न्यथा ત્રણ પ્રદેશેવાળું હોય છે. અને ત્રણ આકાશ પ્રદેશોમાં તેને અવગાઢ હોય છે. तन मा२ स.टीमा मा. न. १४ थी मतावेस छ. 'उक्को नेणं अणंतपएसिए तंचेव' मा सो प्रदेशवाणु श्रेष्यात संस्थान थी सन प्रदेश पाय छे. मन माना असभ्यात प्रदेशमा तेनी मादाय छे. 'तत्थ गंजे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं दुपएसिए दुपएसोगादे' मने तमा २ युम प्रशવાળું આયત સંસ્થાન હોય છે, તે જઘન્યથી બે આકાશ પ્રદેશવાળું હોય છે. અને આકાશના બે પ્રદેશમાં તેને અવગાઢ હોય છે તેને આકાર स भा मा. न. १५थी मतावस छ. तथा मा 'उकोसेणं अणंतपएसिए तहेव' geeी ते मन त प्रशोiyाय छे. अने माना असण्यात प्रदेशमा त सपाट हाय छे. 'तत्थ णं जे से पयरायए से दुविहे पन्नत्ते'
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫