Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.३ १०३ प्रदेशतोऽवगाहतश्च संस्थाननि०
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आ. नं.१२ तोवसेया 'उको सेणं अणंतपएसिए तं चेव' उत्कर्षेणाऽनन्तपदेशिक तदेव .. असंख्यातपदेशावगा चेत्यर्थः। 'तत्थ गंजे से घणचउरंसे' तत्र खलु
यत् तत् घनचतुरस्त्रं संस्थानम् ‘से दुविहे पत्ते' तत् घनचतुरखं द्विविध ० ० प्रज्ञप्तम् 'तं जहा ओयपएसिए य जुम्मपएसिए य' तघथा ओजपदेशिक आ.नं.१२ च युग्मप्रदेशिकं च । 'तत्थ ण जे से ओयपएसिए' तत्र खलु यत् तद ओज. प्रदेशिकम् 'से जहन्नेणं सत्तावीसहपएसिए सत्तावीसह पएसोगाढे' तत् जघन्येन सप्तविंशतिप्रदेशिकं सप्तविंशतिप्रदेशावगाढन एवमेतस्य नवमदेशिकमतरस्योपरि जे से जुम्मपएसिए' तथा इनमें जो युग्मपदेशिक चतुरस्त्र संस्थान है 'से जहन्नेणं च उपएसिए चउपएसोगाढे पनत्ते' वह जघन्य से चार प्रदेशों चाला होता है और आकाश के चार प्रदेशों में इसका अवगाह होता है। इसका आकार सं. टोकामें आ० नं. १२ से दिया है 'उको. सेणं अणंतपएसिए तं चेव' तथा उत्कृष्ट से यह अनन्त प्रदेशों वाला होता है और आकाश के असंख्यात प्रदेशों में इसका अवगाह रहता है। 'तस्थ णं जे से घणचउरसे' तथा उनमें जो घनचतुरस्र संस्थान होता है-से दुविहे पबत्ते' वह दो प्रकार का कहा गया है। 'ओयपएसिए जुम्मपएसिए य' जै ले-ओज प्रदेशिक और युग्म प्रदेशिक 'तस्थ णं जे से ओयपएसिए' इनमें जो ओज प्रदेशिक चतुरस्र संस्थान है वह से जहन्नेणं सत्तावीसइपएसिए' जघन्य से सत्ताईस प्रदेशों वाला होता है और 'सत्तावीसह पएसोगाढे' सत्ताईस आकाश प्रदेशों में उसका अवगाहन होता है। इस नव प्रदेशिक प्रतर के ऊपर अन्य दो दूसरे नवप्रदेशिक छ. 'से जहन्नेणं चउपएसिए चउपएसोगाढे पन्नत्ते' ते धन्यथा या२ प्रशो. વાળું હોય છે. અને ચાર પ્રદેશમાં તેને અવગાઢ હોય છે. તેને આકાર स. म. मा. न. १२ थी मता छ. 'उक्कोसेणं अणंतपएसिए त चेव' તથા ઉત્કૃષ્ટથી તે અનંત પ્રદેશોવાળું હોય છે. અને આકાશના અસખ્યાત પ્રદે. शमन असाढ २९ छे. 'तत्थ णं जे से घणचउरसे' तथा तमा २ धन यतुरसथान डाय छे. 'से दुविहे पन्नत्ते' मे प्रा२नुं छे. 'ओयपएसिए जम्मपएसिए य' या प्रशिs मनेयुभ प्रशि, 'तत्थ गंजे से ओयपएसिए' तभा प्रदेशवायरस सस्थान छ, 'से जहण्णेणं सत्तावीसह पएसिए'
धन्यथीते २७ प्रदेशवाणु हाय छे. अरे 'सत्तावीसपएसोगाढे' २७ सत्यावीस આકાશ પ્રદેશોમાં તેને અવગાહ હોય છે તેના નવ પ્રદેશવાળા પ્રતરની ઉપર
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫