Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.२ सू०४ स्थितास्थितद्रव्यग्रहणनिरूपणम् ५८७ शरीरस्य औदारिकशरीरप्रकरणे यथा कथितं तथैव इहापि ज्ञातव्यमिति भावः । 'जीवे णं भंते !' जीवः खलु भदन्त ! 'जाई दबाई सोइंदियत्ताए गेण्हइ ताई कि ठियाई गेण्हई' यानि द्रव्याणि श्रोत्रेन्द्रियतया गृहणाति तानि किं स्थितानि गृहगाति अस्थितानि वा द्रव्याणि गृहगातीति प्रश्नः । उत्तरमाह-'जहा' इत्यादि, 'जहा वेउबियसरीरं यथा वैक्रियशरीरम्, यथा बैंक्रियशरीरनिष्पत्यर्थ स्थितास्थितद्रव्यग्रहणं नियमात् षदिडिपयकं तथा श्रोत्रेन्द्रियद्रव्यग्रहणमपीति, श्रोत्रेन्द्रियद्रव्य ग्रहणं हि नाडीमध्ये एव भवति तत्र च 'सिय तिदिसि' इत्यादि नास्ति व्याघाता. भावात् तत्र च नियमाव पदिशम् इत्येव वक्तव्यम्, ‘एवं जाव निभिदियत्ताए' रस्स' ऐसा सूत्रपाठ कहा है अर्थात् औदारिक शरीर के प्रकरण में जैसा कहा गया हैं वैसा ही यहां पर जानना चाहिये। अब गौतम पुनः प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'जीवे णं भंते ! जाई दवाइं सोइंदियत्ताए गेहह, ताई किं ठियाइं गेण्हई' हे भदन्त ! जीव जिनद्रव्यों को श्रोत्रेन्द्रिय रूप से ग्रहण करता है सो क्या वह स्थित हुए उन्हें ग्रहण करता है ? अथवा अस्थित हुए उन्हें ग्रहण करता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'जहा वेउब्वियसरीरं' हे गौतम! जिस प्रकार वैकिय शरीर की निष्पत्ति के लिये जीव स्थित अस्थित द्रव्यों का ग्रहण नियम से छहों दिशाओं में से करता है उसी प्रकार से वह श्रोत्रेन्द्रिय की निष्पत्तिके लिये पुद्गलद्रव्य का ग्रहण छहों दिशाओं में से करता है क्योंकि श्रोत्रेन्द्रिय द्रव्य का ग्रहण सनाडी के मध्य में ही होता है वहां 'सिय तिदिसिं' इत्यादि पाठ नहीं कहा गया है। व्याघात का अभाव होने के कारण वह नियम से छहों दिशाओं से आये हुए पुद्गलों का પાઠ કહેલ છે. અર્થાત્ ઔદારિક શરીરના પ્રકરણમાં જે પ્રમાણે કહેલ છે. એજ પ્રમાણેનું કથન અહિયાં પણ સમજવું જોઈએ.
शथी गीतभावामी प्रसुने ये पूछे छे -'जीवे णं भंते ! जाई दव्वाइ सोइंदियत्ताए गिहा ताई कि ठियाई' गेण्हई' सावन १२ દ્રવ્યોને શ્રોત્ર ઈન્દ્રિય પણાથી ગ્રહણ કરે છે, તે શું તે સ્થિત રહેલા તેને ગ્રહણ કરે છે? કે અસ્થિત થયેલા તેને ગ્રહણ કરે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્ત
मां प्रभु ४ छ -'जहा वेउब्वियसरीर" गौतम! २ शत ठिय શરીરની પ્રાપ્તિ માટે જીવ સ્થિત અને અસ્થિત દ્રવ્યનું ગ્રહણ નિયમથી એ દિશાએથી કરે છે, એ જ પ્રમાણે તે શ્રોત્રેન્દ્રિયની પ્રાપ્તિ માટે એ દિશાઓ એથી પુદ્ગલ દ્રવ્યોનું ગ્રહણ કરે છે. કેમકે શ્રોત્રેન્દ્રિય દ્રવ્યનું ગ્રહણ નાડીની मध्यमा १ थाय छे. त्या 'सिय तिदिसि' त्यादि 8 अपामा मान्य नयी.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫