Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२१ सू०९ मनुष्याणामुत्पत्तिनिरूपणम् ३६५ तिर्यग्योनिकोक्तमेव परिमाणमवसेयमिति। परिमाणातिरिक्तेऽपि वैलक्षण्यं घोतयितुमाह-'जाहे' इत्यादि, 'जाहे अपणा जहन्नकालटिइभो भवई' यदा आत्मना-स्वयं जघन्यकाल स्थितिको भवति 'ताहे पढमगमए अज्झवसाणा पसत्था वि अपसस्था वि' तदा प्रथमगरके मध्यमगमानां प्रथमगमे
औधिकेप्रत्यद्यमानानामित्यर्थः अध्यवसायाः प्रशस्ताः शुमा अपि भवन्ति उत्कृष्ट स्थितिकत्वेनोत्पत्तेः' अप्रशस्ता अशुभा अपि अध्यवसाया भवन्ति जघन्यस्थितिकत्वेनोत्पत्तेः। 'बितियगमए अपसत्था' द्वितीयगमके तु जघन्यस्थितिकस्य
और अष्टम इन गमों में जघन्य और उत्कृष्ट से परिमाण कहा नहीं है -इसलिये इन गमों में वह जैसा पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों के प्रकरण में कहा गया है-वैसा जानना चाहिये। ___ 'जाहे अप्पणा जहन्नकालट्टिइओ भवई' इस सूत्र द्वारा परिमाण से अतिरिक्त द्वारों में भी जो भिन्नता है उसे प्रकट किया गया है। जब पृथिवीकायिक स्वयं जघन्य काल की स्थिति को लेकर उत्पन्न होता है 'ताहे पढमगमए अज्झवसाणा पसस्था वि अपरसत्या वि' तब उसके मध्यम तीन गमकों में के प्रथम गमक में-औधिको में उत्पद्यमानता में-अध्यवसाय प्रशस्त भी होते हैं और अप्रशस्त भी होते हैं । तात्पर्य इस कथन का ऐसा है कि जब जघन्य स्थिति वाला पृथिवीकायिक उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होने के योग्य होता है-तष उसके अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं, और जब वह जघन्य काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होने के योग्य होता है। तब उसके ગમોમાં જઘન્ય એને ઉત્કૃષ્ટથી પરિમાણ કહ્યું નથી. જેથી આ ગામમાં પંચેન્દ્રિય તિયના ગમેમાં તે જે પ્રમાણે કહેલ છે. એ જ પ્રમાણેનું કથન સમજવું.
___ 'जाहे अप्पणा जहन्नकालट्ठिइओ भवई' 41 सूत्री परिभाष शिवाથના દ્વારોમાં પણ જે જુદા પડ્યું છે, તે પ્રગટ કરેલ છે. જ્યારે પૃથ્વીકાયિક स्वय ४५न्य जनी स्थिति सधन पन्त थाय छ, 'ताहे पढमगमए अज्झवसाणा पसत्था वि अपसत्यावि' त्यारे तेन मध्यना त्र भीमाना પહેલા ગમમાં–ઔઘિકમાં ઉત્પન્ન થવાપણામાં અધ્યવસાય પ્રશસ્ત પણ હોય છે અને અપ્રશસ્ત પણ હોય છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે-જ્યારે જઘન્ય સ્થિતિવાળા પૃથ્વિકાયિક ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિવાળા મનુષ્યોમાં ઉત્પન્ન થવાને યોગ્ય હોય છે, ત્યારે તેને અધ્યવસાય પ્રશસ્ત હોય છે. અને જયારે તે જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળા મનુષ્યોમાં ઉત્પન્ન થવાને ચગ્ય હોય છે. ત્યારે તેને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫