Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२१ सु०१ मनुष्याणामुत्पत्तिनिरूपणम् ३६७ रणातिदेशेनाह-एवं इत्यादि। ‘एवं आउकाइयाण वि' एवं पृथिवीकायिकरदेव अकायिकानामपि उत्पादादिः पूर्वोक्तपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनि के पद्यमानाकायिकप्रकरणादेव अवगन्तव्यः । एवं वणस्सइकाइयाण वि' एवं वनस्पतिकायिकानामपि तेजोवायू त्यक्त्वा वनस्पतिकान्कैि केन्द्रियेभ्योऽपि मनुष्याणामुत्पादादिव्यवस्था एतच्छतकीयविंशाधु देशकोक्तवनस्पतिकायिकप्रकरणवदेव ज्ञातव्पेति। एवं जाव चउरिदियाण वि' एवं यावत् चतुरिन्द्रियाणामपि एवमेव यथा पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिके घृत्पद्यमानानां द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियाणां व्यवस्था कथिता तथैवेह मनुष्येषू त्पद्यमानानां द्रीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियाणामुत्पादादिक्तव्यइति । असन्निपंचिं दियसूत्रकार कहते हैं-'एवं आउक्काइयाण वि' हे-गौतम ! पृथिवीकायिक के जैसे ही अप्कायिक जीवों के भी उत्पाद आदि पूर्वोक्त पश्चेन्द्रियतिर्यग्. योनिकों में उत्पद्यमान अकायिक के प्रकरण से ही जानना चाहिये। 'एवं वणस्सइकाइयाण वि' तेजस्कायिकों एवं वायुकायिकों को छोड़कर वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियों से भी मनुष्यों के उत्पाद आदि की व्यवस्था इसी शतक के वीसवें उद्देशक में कहे गये वनस्पतिकायिक के प्रकरण के जैसी ही जाननी चाहिये। ‘एवं जाव चरिंदियाण वि' इसी प्रकार से यावत् चतुरिन्द्रियों तक जानना चाहिये । अर्थात् जिस प्रकार से पञ्चे. न्द्रिय तिर्यग्योनिकों में उत्पद्यमान बीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, और चौइन्द्रियों की व्यवस्था कही गई है उसी प्रकार से यहां मनुष्यों में उत्पद्यमान इन दीन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय जीवों के उत्पाद आदि कह लेना 'एवं आउक्काइयाण वि' 8 गौतम! शिवायॐना ४थन प्रमाले र म५1યિક જીવોને પણ ઉત્પાદ વિગેરે પૂર્વોક્ત પચેન્દ્રિય તિર્યચનિકેમાં ઉત્પન્ન थना। ३५४ायिन। ५४२ मांथा सम एवं वणस्सइकाइयाण वि. તેજસ્કાયિક અને વાયુકાયિકાને છેડીને વનસ્પતિકાયિક એક ઈન્દ્રિયવાળાએમાંથી પણ મનુષ્યના ઉત્પાદ વિગેરેની વ્યવસ્થા આ ૨૪ ચોવીસમા શતકના વીસમા ઉદ્દેશામાં કહેલ વનસ્પતિકાયિકના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે જ समनवी. 'एवं जाव चउरिदियाणा वि' मे०४ रीते यावत या धन्द्रियाना प्र४२६५ સુધી સમજવું. અર્થાત્ જે રીતે પંચેન્દ્રિય તિર્યંચનિકોમાં ઉત્પન્ન થનારા બે ઈન્દ્રિયવાળા, ત્રણ ઇંદ્રિયવાળા, એને ચાર ઈન્દ્રિયવાળાઓની વ્યવસ્થા કહેલ છે. એજ રીતે અહિયાં મનુષ્યમાં ઉત્પન્ન થનારા આ બે ઇંદ્રિયવાળા ત્રણ ઇંદ્રિયવાળા, અને ચાર ઈદ્રિયવાળા જેને ઉત્પાત વિગેરે સમજવો જોઈએ.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫