Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.१ सू०५ प्रकारान्तरेण योगनिरूपणम् ५५३ तीति, 'तस्स चेव उकोसए जोए असंखेनगुणे८' तस्यैव च आहारकशरीरस्यैव उत्कृष्टो योग एतस्य जघन्ययोगापेक्षयाऽसंख्येयगुणोऽधिको भवनीति । 'ओरालियमीसगस्स वेउनियमीसगस्स य' औदारिकमिश्रकस्य वैक्रियमिश्रकस्य च 'एएसि णं उकोसए जोए दोण्ह वि तुल्ले असंखेज्जगुणे' एतयोः खलु औदारिकमिश्रकवैक्रियमिश्रशरीरयोः उत्कृष्टो योगः द्वयोरपि तुल्योऽसंख्येयगुणो पूर्व. योगापेक्षया औदारिकमिश्रस्य वैक्रियमिश्रस्य च द्वयोरप्युत्कृष्टो योगोऽसंख्यानगुणरवेन तुल्य:९-१० 'असच्चामोसमणजोगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे११' असत्यामृषामनोयोगस्य जघन्यो योगोऽसंख्येयगुणोऽधिको भवतीति । 'आहारमसरीरस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे१२' आहारकशरीरस्य जघन्यो योगोऽ. संख्येयगुणोऽधिको भवति पूर्वयोगापेक्षया। 'तिविहस्स मणोजोगस्स चउम्विजोए असंखेज्जगुणे ७' इसकी अपेक्षा आहारक मिश्र का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। 'तस्स चेव उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे ८' इसकी अपेक्षा आहारक शरीर को उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। 'ओरालिएमीसगस्स वेउब्वियमीसगस्त य एएसिणं उक्कोसए जोए दोण्ह वि तुल्ले
असंखेजगुणे' औदारिक मिश्र का और वैक्रिय मिश्र का अर्थात् इन दोनों शरीरों का जो उत्कृष्ट योग है वह तुल्य-समान है अर्थात् पूर्व योग की अपेक्षा इन दोनों का योग असंख्यातगुण को लेकर समान है ।९-१०। 'असच्चामोसमणजोगस्त जहन्नए जोए असंखेजगुणे ११ इसको अपेक्षा असत्यामृषा मनोयोग को जघन्य योग असंख्यात गुणा है। 'आहारगसरीरस्त जहन्मए जोए असंखेज्जगुणे' इसकी अपेक्षा आहारक शरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा अधिक है। 'तिवि. Rai मा०२४ भिश्रम धन्ययो। मस-यातगणे! छे. 'तस्स चेव उक्कासए जाए असंखेन गुणे' ८, तेना ४२ai भाडा२४ शरीरमा उत्कृष्ट योय असभ्यात भय छे. 'ओरालिय मीसगरस वेउव्वियमीसगस्स य एएसि णं उक्कोसए जोए देण्ड वि तुल्ले असंखेज्जगुणे' मोहा२ि४ मिश्रनो मन ठिय मिश्रनो मथति से અને શરીરને જે ઉત્કૃષ્ટ યંગ છે, તે પહેલાના યોગ કરતાં અસંખ્યાત
छ, अर्थात ते ५२२५२मां सर छे. ८-१०' 'असच्चामोसमणजोगस्स जहन्नए जोए असंखजगुणे' ११' तेन। ४२di असत्या भूषा मनायोगना न्ययास मसभ्यात छ, 'आहारगसरीरस्स जहन्नए जोए असंखे. ज्जगुणे' तेना ३२di भाडा२४ शरीरमा धन्यया असभ्यात । अधिर छ. 'तिविहस्स मणोजोगस्स चउव्विहस्स वइजोगस्स' त्रय प्रश्न मनाया। मन
શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૧૫