Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ममेयचन्द्रिका टीका २०२४ उ.२३ सू०१ ज्योतिष्केषु जीवानामुत्पत्तिः ४४५ धोत्पद्यन्ते नाधिकेषु इति पूर्व प्रदर्शितमेव । 'उको सेणं तिनि पलिश्रोचमाई उत्कर्षण श्रीणि पल्योपमानि पल्योपमत्रयामागा उत्कृष्टतः स्थितिर्भवतीत्यर्थः । 'एवं अणुपंधो वि' एवं स्थितिवदेव जयन्येनोत्कृष्टाभ्यामनुसन्धोऽपि ज्ञातव्य इति । कायसंवे. धस्तु 'कालादेसेणं जहन्नेणं दो पलिश्रोत्रमाइं दोहिं बासमयसहस्सेहिं अमहियाई कालादेशेन जघन्येन द्वे पल्योपमे द्वाभ्यां वर्षशतसहस्राभ्यामभ्यधिके लया 'उकोसेण चत्वारि पलि प्रोवमाई वाससयसहस्समभहियाई उत्कृष्टतश्चत्वारि पल्योपमाणि वर्षशतसहस्राभ्यधिकानि इति ३ । १ पल्योपम की है और 'उक्कोसेणं' उत्कृष्ट से 'तिन्नि पलि भोवमाई' तीन पल्योपम की है। यद्यपि असंख्यात वर्ष की आयुवाले जीवों की स्थिति जघन्य से सातिरेक पूर्वकोटि की होती है। परन्तु यहां जो जघन्य स्थिति उनकी एक लाख वर्ष अधिक १ पल्यापम की कही गई है वह वर्ष लक्ष से अधिक पल्पोपम की स्थिति वाले ज्योतिष्कदेवों में उत्पन्न होने की वजह से कही गई है। क्योंकि असंख्यात वर्ष की आयुवाले जीव अपनी आयु से बृहत्तर आयुगलों में उत्पन्न नहीं होते हैं। वह तो अपनी समान आयु वालों में अथवा न्यून आयुवालो में ही उत्पन्न होते हैं यह बात पहिले कह दी गई है। 'एवं अणुबंधो वि' स्थिति के अनुसार ही यहां अनुबन्ध भी जालना चाहिये। कापसंवेव 'कालादेसेणं जहन्नेणं दो पलिभोवमोई दोहिं वामप्तय पहस्तेहिं अम हियोई' काल की अपेक्षा जयन्य से दो लाख वर्ष अधि: दो पल्योप2 am १ अधि४ १ ४ ५८या५मानी छ. मने 'उकोसेणं' (कृष्ट थी 'तिन्नि पलिओवभाइ' र ५८ये।५मनी छ. ने प्रसन्यात ११ना मायुष्य વાળા જીવોની સ્થિતિ જઘન્યથી સાતિરેક-કંઈક વધારે પૂર્વકેટિની હોય છે. પરંતુ અહિયાં તેમની જઘન્ય સ્થિતિ એક લાખ વર્ષ અધિક ૧ એક પોપમની કહી છે, તે એક લાખ વર્ષથી અધિક પલ્યોપમની સ્થિતિવાળા જ નેતિષ્ક દેવામાં ઉત્પન્ન થવાના કારણથી કહી છે, કેમકે અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળો જીવ પિતાના આયુષ્યથી વધારે આયુષ્યવાળાઓમાં ઉત્પન્ન થતા નથી તે તે પિતાના સરખા આયુષ્યવાળાઓમાં અથવા ન્યૂન આયુષ્યવાળાઓમાં ઉત્પન્ન થાય છે એ पात पडेटा ४डी छे. 'एवं अणुबंधो वि' अडियो स्थितिना ४थन प्रमाणे अनुमधन ४२ ५५५ समन्. यस 'कालादेसेणं जहन्नेणं दो पलिओवमाई, दोहिं वाससयसहस्सेहिं अभहियाई” आगनी अपेक्षा न्यथा में साम १५ मधि में पक्ष्या५मना छ भने 'उकोसेण' या त 'चत्तारि
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫