Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टोका श०२४ ३.२३ सु०१ ज्योतिष्केषु जीवानामुत्पत्तिः ४५१ ज्योतिष्कदेवस्थिति संवेधं च भिन्नरूपेग जानीयादिति । 'सेसं तहेब निरव सेसं भाणियव्वं' शेष-स्थितिसंवेधातिरिक्तं सर्वमुत्पादपरिमाणादिद्वारजातं तथैव-असुकुमारमकरणवदेव निरवशेष सर्व भणितव्यम् इति ९।।
अथ मनुष्यान् ज्योतिष् के पूत्पादयति-'जइ मणुस्से हितो' इत्यादि। 'जह मणु: स्सेहितो उववजनि' यदि मनुष्येभ्य आगत्य उत्स्यन्ते तदा कि संज्ञिमनुष्ये. भयोऽसंज्ञिमनुष्येभ्यो वा आगत्योत्पद्यन्ते इत्यादिकं सर्व प्रश्नोत्तरादिकं संज्ञिपञ्चे. न्द्रियतिर्यग्योनिकमारणवदेव ज्ञातव्यं तदेवाह ‘भेहो तहेव जाव' भेदो विशेषः हैं यही बात 'नवरं जोइसियठिई संवेहं च जाणेज्जा' इस सूत्रपाठद्वारा प्रकट की गई है। ज्योतिष्क देवों की स्थिति और संवेध असुर कुमारों की स्थिति और संवेध से भिन्न है। यही अन्तर असुरकुमार के प्रकरण से इस प्रकरण में है। 'सेसं तहेव निरवसेसं भाणियन्वं' बाकी का स्थिति एवं संवेध से अतिरिक्त-उत्पाद परिमाण आदि को कथन-जैसा असुरकुमार के प्रकरण में किया गया है वैसा ही है। उसमें कोई अन्तर नहीं है। ____ अष सूत्रकार मनुष्यों से आकरके ज्योतिष्क देवों में उत्पन होते हैं इस का कथन करते हैं-इसमें गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है'जइ मणुस्से हितो ववज्जति' हे भदन्त ! यदि ज्योतिष्क देव मनुष्यों से आकरके उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकरके वहाँ उत्पन्न होते हैं ? अथवा असंज्ञी मनुष्यों से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-हे गौतम! इस सम्बन्ध जोइसियठिई सवेहच जाणेज्जा' मा सूत्र५।४ ६२२ प्रगट रेस छे. ज्योति દેવની સ્થિતિ અને સંવેધ અસુરકુમારોની સ્થિતિ અને સંવેધથી જુદા છે. येशुपार असुमाराना ४२६१ ४२ai मा ५४२४मा छे. 'सेस तहेव निरव सेस भाणियवं' याशिवाय माडीनु मेट , स्थिति मन सधशिवायन બીજુ તમામ ઉત્પાદ પરિમાણ વિગેરેનું કથન અસુરકુમારોના પ્રકરણમાં જે રીતે કરવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણેનું છે. તેમાં કંઈજ અંતર નથી.
હવે સરકાર મનુષ્યમાંથી આવીને જતિષ્ક દેશમાં ઉત્પન્ન થાય છે એ मताव छ. . समयमा गौतमस्वाभीमे प्रभुन से पूछयु छ -'जइ मणुस्से हितो ! उववज्जंति' ने ज्योति व मनुष्यमाथी मावीन पन्न થાય છે, તે શું તેઓ સંજ્ઞી મનુષ્યમાંથી આવીને ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે, કે અસંજ્ઞી મનુષ્યોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીને કહે છે કે-હે ગૌતમ આ સંબંધમાં પ્રશ્નોત્તર વિગેરે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫