Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे लान्नकादिदेवानां जघन्यकालस्थितिकस्य तिर्यग्योनिकस्य 'तिसु वि गमएसु उप्पि लेस्साओ कायबाओ' त्रिष्वपि गमकेषु षडपि लेश्याः कारयितव्याः जघन्य कालस्थितिकतिर्यग्योनिकस्य लान्तकदेवादी समुत्पित्सोः जघन्यस्थिति सामर्याद कृष्णादीनां पञ्चलेश्यानामन्यतरस्यां स जीवः परिणतो भूत्या शुक्ललेश्यामासाद्य शियते ततः तत्रोत्पद्यते यतोऽग्रेतनभवलेश्यापरिणामे सति जीवः परभवं गच्छतीत्याममत्वादस्य षडपि लेश्या भवन्तीति । 'संघयणाई बंभलोगलंतएम पंच आदिल्लगाणि' संहननानि ब्रह्मलोकलान्तकयोः पञ्च आद्यानि, कीलिकापर्यतानि संहननानि भवन्ति, अनयोः आद्यपश्चसंहननवन्तो हि जीवाः समुत्पद्यन्ते देवलोकों में उत्पन्न होने वाले तिर्यग्योनिक जीव के जो कि जघन्यकाल की स्थितिवाले हैं 'तिसु वि गमएसु छप्पि लेस्साओ कायव्याओ' तीनों गमों में ६ छह लेश्याएं कहनी चाहिये। अर्थात् लान्तकदेव आदि में उत्पन्न होने के योग्य हुए जघन्य काल की स्थिति वाले तिर्यग्योनिक जीय का, जघन्यस्थिति के सामर्थ्य से कृष्णादि पांच लेश्याओं में से किसी एक लेश्या में परिणत होकर मरण समय में शुक्ल लेश्या को प्राप्त करके मरण होता है। इसलिये वह वहीं उत्पन्न होता है क्योंकि अगले भव की लेश्याके परिणाम होने पर ही जीव परभव को जाता है ऐसा आगम का कथन है। इसी कारण यहां ६ छहों लेश्याएं होती है ऐसा कहा गया है। 'संघयणाई बंभलोगलंतएप्सु पंच आदिल्लगाणि' ब्रह्मलोक और लान्तक में आदि के कीलिका तक के पांच संहनन वाले जीव ही उत्पन्न होते हैं। क्योंकि इन दोनों देवलोकों में आदि के पांच संहनन वाले जीव ही उत्पन्न होते हैं। छट्ठा जो सेवार्तसंहनन है तिय ययानिवार वा रेमो धन्य जनी स्थितिमा छ. 'तिसु विगमएस छप्पि लेस्साओ कायठवाओ' तना तो सभामा ६ छ सश्यामा કહેવી જોઈએ, અર્થાત્ લાન્તક દેવ વિગેરેમાં ઉત્પન્ન થવાને ગ્ય થયેલા જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળા તિર્યંચનિક જીવની જઘન્ય સ્થિતિના સામ.
થી કૃષ્ણ વિગેરે પાંચ લેશ્યાઓમાંથી કોઈ એક લેફ્સામાં પરિણત થઈને મરણ સમયમાં તેજલેશ્યાને પ્રાપ્ત કરીને મરણ થાય છે. તેથી તે ત્યાં જ ઉત્પન થાય છે. કેમકે-આગલા ભવની લશ્યાનું પરિણામ થાય ત્યારે જીવ परलभा तय छ. ये प्रमाणे भाशभनु थन छ. 'सधयणाई बंभलोगलंतएसु पंच आदिल्लगाणि' प्रहला भने सान्तमा ५९॥ सुधीना पांय સહનન હોય છે, કેમકે આ બેઉ દેવલોકોમાં આદિના પાંચ સંહનન હોય છે, કેમકે આ બેઉ દેવલોકોમાં આદિના પાંચ સંહનનવાળા છ જ ઉત્પન્ન થાય છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫