Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ममेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२१ सू०१ मनुष्याणामुत्पत्तिनिरूपणम् ३७४ संख्याता वा असंख्याता वा इत्युक्तम् इह तु संख्याता एवेति वैलक्षण्यमिति । 'उववाओ जहन्नेणं वास हुत्सद्विइएसु' उपपातो जघन्येन वर्षपृथक्त्वस्थितिकेषु मनुष्येषु सनत्कुमारादारभ्य सहस्रारान्तदेवानां भवतीति 'उक्कोसेण पुषकोडी.
उपसु उववज्जति उत्कर्षेण पूर्वकोटयायुष्केषु मनुषयेषु उत्पधन्ते सनत्कुमारा दारभ्य सहस्रारान्तदेवा इति, अयमर्थः सनत्कुमारादारभ्य सहस्रारपर्यन्तं. देवानाम् उपपातो जघन्येन वर्षयवस्थितिकेषु मनुष्येषु भवति तथोस्कृष्टतः पूर्वकोटचायुकेषु मनुष्येषु भवतीति वक्तव्यमिति भावः । 'सेसे नहेब' शेष-परिमाणोत्पातातिरिक्त सर्व संहननादिकं सर्वमपि पश्चन्द्रियतियंग्योनिकोक्तमेव अनु. हैं। पश्चेन्द्रिय प्रकरण में तो उत्कृष्ट से संख्यात अथवा असख्यात उत्पन्न होते कहे गये हैं। पर यहाँ संख्यात ही कहे गये हैं। इस प्रकार पश्चेन्द्रिय तिर्यकू प्रकरण की अपेक्षा यहां जो सनत्कुमार से लेकर सहनार तक के देव मनुष्यगति में उत्पन्न होने योग्य होते हैं वे परिमाण बार में पूर्वोक्त रूप से जघन्य और उत्कृष्ट की अपेक्षा प्रकट किये गये है-यद्यपि जघन्य परिमाण दोनों प्रकरणों में एकसो मिलता है पर उत्कृष्ट परिमाण की अपेक्षा भिन्नता आई है। जो यहां प्रकट की गई है। 'उववाओ जहन्नेणं वासपुहुट्टिइएस्सु सनत्कुमार से लेकर सहस्त्रार तक के देवों का उपपात जघन्य से वर्ष पृथक्त्व की स्थिति वाले मनुष्यों में होता है और 'उक्कोसेणं पुवकोडी आउएसु उववज्जति' उत्कृष्ट से पूर्वकोटि की आयुवाले मनुष्यों में होता है। 'सेसं तहेव' ઉત્પન્ન થાય છે, પચેન્દ્રિયતિર્યંચના પ્રકરણમાં તે ઉત્કૃષ્ટથી સંખ્યાત અથવા અસંખ્યાત ઉત્પન્ન થાય છે. તેમ કહેવામાં આવ્યું છે. પરંતુ અહિયાં સંખ્યાત જ ઉત્પન્ન થાય છે. આ રીતે પંચેન્દ્રિય તિયચના કથન કરતાં અહિયાં સનકુમારથી લઈને સહસ્ત્રાર સુઘીના જે દે મનુષ્ય ગતિમાં ઉત્પન થવાને ગ્ય હોય છે, તેઓ પરિ. માણુ દ્વારના કથનમાં પહેલા કહ્યા પ્રમાણે જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી પ્રગટ કરેલ છે. જો કે જઘન્ય પરિમાણ અને પ્રકરણમાં એક સરખુ મળે છે. પણ ઉત્કૃષ્ટ परिभाएन। ४थनमा get पा माव्यु छ. रे माया मतावेa छ. 'उब. पाओ जहन्नेण वासपुहुत्तद्विइएसु' सनभारथी बने सहसार सुचाना होना ઉપપાત જઘન્યથી વર્ષ પૃથક્વની સ્થિતિવાળા મનુષ્યોમાં થાય છે. અને 'उक्कोसेणं पुवकोडीआउएसु उववज्जति' Gष्टथी पूटिनी आयुष्यवाणा भनुष्योभा उत्पन्न थाय छ, 'सेसं तहेव' परिभाष भने पा. शिवाय मी
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫