Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
पुद्गला अनिष्टा अकान्ता अमनोज्ञा स्ते एव शरीरसंघातरूपेण परिणमन्वीति शरीरारम्भकपुद्गलानामिष्टत्वा निष्टत्वकान्तत्वादिवैषम्यप्रयुक्तएव भेदो भवतीत्येतदेव 'णवरं' इत्यादिना मकरणेन ध्वनितमिति । 'ओगाहणा दुबिहा पन्नत्ता' अवगाहना द्विविधा प्रज्ञप्ता पञ्चेन्द्रियतिर्यक्षु उत्पद्यमानानां रत्नप्रभा नारatri शरीरावगाहना द्विप्रकारिका भवतीत्यर्थः । प्रकारद्वयमेव दर्शपति 'तंजहा ' इत्यादिना, 'तं जहा ' तथा 'मत्रधारणिज्जा य उत्तर वेडब्बिया य' भवधारणीया च उत्तरक्रिया च 'तस्य णं जा सा मवधारणिज्जा' तत्र तयोर्द्वयो वगाहनयो मध्ये या भववारणीया गाना 'सा जहन्ने गं अंगुरुस्त असंखेज्जइभागं' सा जघन्येन वहां परिणमते हैं । परन्तु यहां रत्नप्रभा पृथिवी के नैरयिकों का भी जो कि पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होने के योग्य है शरीर संहमन रहित होता है परंतु जो पुद्गल अनिष्ट अकान्त, और अमनोज्ञ होते हैं वही पुद्गल वहां शरीरसंघात रूप से परिणमते हैं इस प्रकार असुरकुमार के कथन की अपेक्षा यहाँ के कथन में शरीरारम्भक पुद्गल की इष्टता, अनिष्टता, कान्तता, अकन्तिता आदि की विषमता को लेकर ही भेद होता है यही बात 'णवरं' इत्यादि प्रकरण द्वारा ध्वनित हुई है । 'ओगाहणा दुविहा पन्नत्ता' अवगाहना भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय रूप से दो प्रकार की कही गई है । अर्थात् पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होने योग्य रत्नप्रभा पृथिवी के नैरयिकों की शरीरावगाहना इस प्रकार से दो प्रकार की होती है - यही प्रकारद्वय 'भवधारणिज्जा व उत्तरवे उब्विया य' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट किया गया है 'तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं' इनमें जो भवधारणीय शरीरावगाहना है वह યિકામાં પશુ કે જે પૉંચેન્દ્રિય તિય ચેામાં ઉત્પન્ન થવાને ચેાગ્ય છે. તેઓના શરીરે પશુ સંહનન વિનાના હાય છે. પરંતુ જે પુદ્ગલેા અનિષ્ટ, અકાંત, અને અમનાન હોય છે. તેજ પુલે ત્યાં શરીરના સધાત રૂપે પરિણમે છે. એ રીતે અસૂરકુમારના કથન કરતાં આ કથનમાં શરીરના આરમ્ભક પુદ્ગલાના ઇષ્ટપશુા, અનિષ્ટપણા, કાન્તપણા, વગેરેના વિષમ પણાને લઈને જ ભેદો थाय छे. खेन वात 'णवर' त्यहि प्रभु द्वारा उस छे. 'ओगाहणा हुबिहा पन्नत्ता' अवधारणीय भने उत्तर वैडियना लेहथी अवगाहना मे प्रभारनी उडी છે. અર્થાત્ પંચેન્દ્રિય તિય ચામાં ઉત્પન્ન થવાને ચાગ્ય રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નૈરિયકાના શરીરની અવગાહના આ રીતે એ પ્રકારની હાય છે. આ એ પ્રકાર 'भवाणिज्जा य उत्तर वेडब्बिया य' मा सूत्रपाठ द्वारा मतावेस छे. 'तत्थ णं जा सा भवधार णिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग' तेमां ने अवधारणीय
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫