Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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__ भगवतीस्ने एव असंक्षिपक्षेन्द्रियतिर्यग्योनिक एक उत्कृष्ट कालस्थितिकपश्चेन्द्रियनिर्यग्यो. निकेषु उत्पद्यते तदा-'जहन्नेण पुनकोडी आउएम' जघन्येन पूर्वकोट्यापुकेषु 'उक्कोसेण वि पुषकोडी आउएसु उववजई उत्कर्षेणाऽपि पूर्वकोट्यापुष्केषु उत्पद्यते, इत्यादिका 'एस चेव वत्तव्यया' एषैव-पूर्वोक्तैत्र वक्तव्यता समयापि ज्ञातव्या । विशेषस्त्वयम्-'नवरं कालादेसेणं जाणेज्जा' नवरं काला. देशेन कायसंवेधं यथायोगं पार्थक्येन जानीयादिति षष्ठोगमः ६। 'सो चेत्र यह उस उभयगति में गमनागमन करता है। ऐसा यह पांचवां गम है।
छठा गम इस प्रकार से है
'मोचेव उक्कासकालट्टिइएसु उववन्नो' वही असंज्ञी पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जब उस्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होने के योग्य होता है तब जघन्य से 'पुत्रकोडी आउएसु उपवज्जई' पूर्वकोटि की आयुवाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चों में उत्पन्न होता है और 'उकोसेणं वि पुषकोडी आउएसु उववजई' उत्कृष्ट से भी वह पूर्वकोटि की आयुवाले संज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता है। 'एस चेव वत्तब्धया' इत्यादि रूप यही पूर्वोक्त समग्र वक्तव्यता यहां पर कह लेनी चाहिये । परन्तु जो उसकी अपेक्षा यहां पर भिन्नता है वह 'नवरं कालादेसेणं जाणेज्जा' इस सूत्र द्वारा इस प्रकार से कही गई है कि यहां काल की अपेक्षा कायसंवेध में भिन्नता है। इस प्रकार से यह छठा गम हैं
સુધી એ બને ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે એ અને ગતિમાં ગામના ગમન કરે છે. એ રીતને આ પાંચમે ગમ છે.
वे छ। गमनु ४थन ७२कामा भाव छ,-'सो चेव उक्कोसकालदिइएसु उववन्नो' से असशी पयन्द्रिय तिय योनिपाणी अष्ट जनी स्थिति વાળા સંશી પચેન્દ્રિય તિર્યચનિવાળા ઓમાં ઉત્પન્ન થવાને ચગ્ય હોય છે, त्यारे ते धन्यथा 'पुवकोडी आउएसु उववजई' पूटिनी मायुध्या सशी ५न्द्रियतिय"यामा उत्पन्न याय छे. अने 'उकोसेणं वि पुठबकोड़ी आउएस उववज्जई' Gथी ५ ते पूटिनी मायुष्यवाणा सज्ञी ५ये न्द्रियतियय येनमा उत्पन्न वाय छे. 'एम चेव वत्तव्वया' विगेरे भा પહેલાં કહેલ તમામ કથન અહિયાં કહેવું જોઈએ પરંતુ પહેલાના કથન ४२i २ मा थनमा नु या छे ते 'नवर कालादेसेणं जाणेज्जा' मा સત્રપાઠ દ્વારા આ પ્રમાણે કહ્યું છે કે-અહિયાં કાયસંવેધ માં કાળની અપેક્ષાથી જુદાપણું છે. આ રીતે આ છઠ્ઠો ગમ કહ્યો છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫