Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
-
-
-
प्रमेषचन्द्रिका टीका श०२५ उ.२० १०६ देवेभ्यः पं०तिर्यग्योनिकेयूत्पात: ३३९ त्पत्तिर्भवतीति भावः। 'जह व पोवनगवेमाणिय देवे मितो उववजनि' यदि कल्योपपन्नकवैमानिकदेवेभ्य उत्पद्यन्ते तदा-कि सौधर्मकल्पोपपन्नकवैमानिकदेवेभ्य उत्पधन्ते यावत्सहस्रारकल्पोपपन्न कवैमानिकदेवेभ्य उत्पद्यन्ते इति प्रश्नः । भगपानाह-हे गौतम ! सौधर्मकल्पोपपन्न सवैमानिकदेवेभ्य आगत्य पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु समुत्पद्यन्ते तथा-'जात्र सहस्सारकपोवनावमाणिपदेवेहितो वि उववज्जति' यावत् सहस्रारकल्पोपपन्नकवैमानिकदेवेभ्योऽपि आगस्य समुत्प. धन्ते किन्तु 'नो आणय जाव णो अच्चुयकप्पोक्वन्नगवेमाणियदेवेहितो उवाजंति' नो आनतकल्योपपन्नकवैमानिकदेवेभ आगत्य यावत् न वा अच्युत कल्पोषपन्नकवैमानिकदेवेम्प आगत्योत्पद्यन्ते अत्र यावत्पदेन प्राणतारणकल्पो.
अब पुनः गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-जा कप्पोवग वेमाणिय देवहितो उज्जति' हे भान्त ! यदि कलगेषपन्नवैमानिक देवों से आये हुए जीवों का ही संज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों में उत्पाद होता है तो क्या सौधर्मकल्योपपन्न वैमानिक देवों से आये हुए जीवों का वहां उत्पाद होता है ? अथवा यावत् अच्युत कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आये हुए जीवों का वहां उत्पाद होता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं- गोयमा' हे गौतम ! सौधर्मकल्पोपन्न वैमानिक देवों से आये हुए जीवों का भी वहां उत्पाद होता है और यावत्सहस्रार करपोपपन्न वैमानिक देवों से आये हुए जीवों का भी वहां उत्पाद होता है। परन्तु-'नो आणय जाणो अच्चुपकपोववनगवेगाणियदेवहितो उववजंति' आनत यावत् अच्युत वैमानिक देवों से आये हुए जीवों
हवे गीतमस्वामी प्रधुने शथी से पूछे छे -'जइ कप्पोवगवेमाणियदेवेहि तो उववज्जति' हे मानले ४६.५५न वैमानि माया આવેલા ને જ સંસી પંચેન્દ્રિયતિય ચ યોનિકમાં ઉત્પન્ન થાય છે, તે શું સૌધર્મ કાપનક વૈમાનિક દેવેમાંથી આવેલા જીવને ઉત્પાદ થાય છે? કે સહસ્ત્રાર કો૫૫ન્નક વૈમાનિક દેમાંથી આવેલા જીવેને ત્યાં ઉત્પાત થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રસુ ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે'गोयमा गौतम! सौधम ८५५५-४ वैमानि माया पावसा જીને પણ ત્યાં ઉત્પાદ થાય છે, અને યાવત્ સહસ્ત્ર ૨ કપ પપત્તક વૈમાનિક દેવામાંથી આવેલા ઈવેને પણ ત્યાં ઉત્પાત થાય છે. પરંતુ જો आणय जाप णो अच्चुय कप्पोववनगवेमाणियदेवेहितो उववज्जति' मानत પ્રાણુત પાવત અયુતક૯૫ના વૈમાનિક દેશમાંથી આવેલા જીવોને ત્યાં ઉત્પાત
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫