Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२० सू०४ सं.प.ति. तो पञ्चेन्द्रियत्वेनोत्पातः २८५ 'अपजत्तसं खेज्न गासाउयसन्निचिंदियनिरिक्खनोणिरहितो उपयज्जति' अपर्याप्त संख्यातवर्षायुष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उत्पद्यते इति प्रश्नः । भगवानाह'दोमु वि' द्वाभ्यामपि हे गौतम ! पर्याप्तापर्याप्तोभयाभ्यामपि आगत्योत्पद्य ते इत्यु. त्तरम् । 'संखेज्जवासाउथ सन्निपंचिंदियतिरिक्वजोगिए णं भंते' संख्यात वर्षायुष्क संज्ञि पश्चन्द्रियतिर्यम्योनिकः खलु भदन्त ! 'जे मविर पंचिंदियतिरिकखजोणिएसु उववाजितए' यो भव्य-योग्यः संक्षिपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिके वृत्पत्तुम् 'से णं भंते' स खलु भदन्त ! 'केवइयकालट्ठिइ एसु उववज्जेन्ना' कियकालस्थिति. क्खजोणिएहितो उववज्जति' क्या वह वहां पर्याप्त संख्यातवर्षायुरुक संज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से आकर के उत्पन्न होता है ? अथवा 'अपज्जत्तसंखेज्जवासाउयन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजति' अपर्याप्त संख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों से आकरके उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-दोस वि हे गौतम! पर्याप्त अपर्याप्त दोनों संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकों से आकर के वह वहाँ उत्पन्न होता है।। ___ अब पुनः गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'संखेज्जवासाउयसभिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते !' हे भदन्त ! जो संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव 'जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणि. एसु उववज्जित्तए पश्चन्द्रियतिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, 'से णं भंते ! केवइयकालटिइएस्तु उवज्जेज्जा' तो वह कितने काल की
क्खजोणिएहितो उबवज्जति' शुत पर्यात सध्यात वषनी मायुष्यवाणा सज्ञी. पथन्द्रियतिय य योनिमाथी मावीन उत्पन्न थाय छे ? 'अपज्जनसंखे. जवासाउयसन्निपंचि दियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति' अर्यात सध्यात વર્ષની આયુષ્યવાળી સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિયચોનિકે માંથી આવીને ઉત્પન્ન याय १ ॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतमत्राभान छ-'दोस वि. ગૌતમ ! પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત બન્ને પ્રકારના સંખ્યાત વર્ષની આયુગવાળી સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યચનિકમાંથી આવીને તે જીવ ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે.
शथी गीतभस्वामी प्रसुन से पूछे छ है-'संखेज्जवासाउयसन्निपंचि दियतिरिक्खजोणिए णं भंते !' 3 साप ने सभ्यात १५ नी भायुष्यवाणे। सभी पयन्द्रिय लिय योनिपाण। १ 'जे भविए पंचि दियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए' ५यन्द्रिय तिय योनिमा उत्पन्न वान योग्य छे. 'सेणं भंते ! केवइयकालदिइएसु उववज्जेजा' mean in लियति जो पयन्द्रिय
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫