Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ. २० सू०३ तिर्यग्भ्यः ति०जीवोत्पत्यादिकम्
क्षण्यं तद्दर्शयति- 'नवरं' इत्यादि । 'नवरं कालादेसेणं जद्दन्नेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुतमन्महिया' नवरम् - केवलं कालादेशेन - कालापेक्षया जघन्येन पूर्वकोटि रन्त
भ्यधिका 'उक्को से चनारि पुत्र कोडोओ चउर्हि तो मुद्दतेर्हि अमहियाओ' उत्कर्षेण चस्रः पूर्व कोटयवभिरन्तर्मुहूतैरभ्यधिकाः 'एवइयं' एतावन्तं कालं सेवेत तथा एतावन्तं कालं गमनागमने कुर्यादित्यष्टमो गमः । ' सोचेव restorage उन्नो' स एवासंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक एवं उत्कृष्ट कालस्थितिक पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु उत्पद्यते तदा - ' जहन्नेण पलिओवमस्स असं - आठवां गम सातवें गम के ही जैसा है । परन्तु जिस अश को लेकर इस गम में उस गम की अपेक्षा भिन्नता है वह 'नवरं कालादेसेणं जह नेणं पुत्रकोडो अंतोमुक्त महिया, उक्को सेणं चत्तारि पुग्वकोडीओ चाहिं अंतमुतेहिं अमहियाओ' इस सूत्र शठ द्वारा प्रकट की गई है । इसके द्वारा यह समझाया गया है कि यहाँ कायसंवेव काल की अपेक्षा जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त्त अधिक पूर्व कोटि का है और उत्कृष्ट से चार अन्तर्मुहूर्त्त अधिक चार पूर्वकोटि का है । 'एवइयं कालं. ' इस प्रकार से वह जीव इतने काल तक दोनों गतियों का सेवन करता है और इतने ही काल तक वह उन दोनों गतियों में गमनागमन करता है । ऐसा यह आठवां गम है।
नौवां गम इस प्रकार से हैं
'सो चेव उक्कोसकालट्ठिएस उववन्नो' जब यह असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों
જોઇએ. અર્થાત્ આઠમે ગમ સાતમા ગમ પ્રમાણે જ છે. પરંતુ જે શમાં सातमा गभ उरतां आईमा गभमा नुहायागु छे, ते सूत्रार 'नवरं कालादेसेण जहन्नेण पुव्वकोडी अतोमुहुत्तमन्महिया, उच्कोसेणं चत्तारि पुव्वके डीओ चउहि अतो मुहुत्ते अमहियाओ' 'या सूत्रपाठ द्वारा प्रगट उरे छे. या सूत्रयाફથી એ સમઝાળ્યું છે કે-અહિંયા કાયસ વેષ કાળની અપેક્ષાથી જધન્યથી એક અંતર્મુહૂત અધિક પૂર્વકૈાટિનું છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી ચાર અંતમું હૂત अधिक यार पूर्व मेटिने छे. 'एवइयं कालं०' मा रीते ते लव आरसा अण સુધી ખન્ને ગતિયાનું સેન કરે છે, અને એટલા જ કાળ સુધી તે એ મને ગતિયામાં ગમનાગમન કરે છે. એ રીતે આ આઠમા ગમ કહ્યો છે. ૮
हुवे नवमा गभनु' ईथन ४२वामां आवे छे. – 'सो चेव उक्केासकालट्ठिइषसु उवत्रन्ना' क्यारे या असंज्ञी यथेन्द्रिय तिर्यययोनिवाणो व उत्ष्ट
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫