Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०५ मनुष्यजीवानामुत्पत्तिनिरूपणम् १३७ जे ते भवधारणिज्जा ते समचउरंससंठिया पन्नत्ता' तत्र खलु यानि तानि भवधारणी. यानि शरीराणि तानि समचतुरस्रसंस्थानसंस्थितानि प्रज्ञप्तानि । 'तस्थ णं जे से उत्तरबेउव्विया ते णाणा संठाणसंठिया पन्नता' तत्र खलु यानि तानि उत्तरवैक्रि याणि शरीराणि तानि नाना इति-अनेकमकारकसंस्थानेन संस्थितानि प्रज्ञप्तानि भवन्ति, इच्छाबलेनानेकप्रकारकसंस्थानस्य निष्पादनादिति ५ । 'लेस्साओ चत्तारि' लेश्या:-कृष्णनीलकापोततेजसाख्याश्चतस्रः ६। 'दिट्ठी तिविहा वि' दृष्टयस्त्रिविधा अपि-सम्यग्दृष्टयो मिथ्यादृष्टयो मिश्रष्टय इति ७ । 'तिनि णणा नियम' त्रीणि ज्ञानानि-मति श्रुतावधिनामकानि ज्ञानानि त्रीणि नियमतो भवदसरा उत्तरवैक्रिय, 'तत्थ णं जे ते भवधारगिज्जा ते समचउरंससंठिया. पण्णत्ता' इनमें जो भवधारणीय शरीर है वह समचतुरस्र संस्थान वाला होता है। 'तत्थ गंजे से उत्तरवेउन्धिया ते गाणास ठाणसंठिया पण्णत्ता' तथा जो उत्तर वैक्रिय शरीर होता है उसका कोई नियत आकार नहीं होता है वह तो अनेक आकारों वाला होता है, क्योंकि देव अपनी इच्छा के अनुसार अनेक आकारों वाला उसे बनालिया करते हैं । लेश्यावार में 'लेस्साओ चत्तारि' इनके चार लेश्याएँ होती हैं जो इस प्रकार से हैं-कृष्णलेश्या१ नीललेश्यार कापोतिकलेश्या३
और तैजसलेश्या दृष्टिद्वार में-'दिट्ठी तिविहा वि' इनके सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि ये तीनों दृष्टियां होती हैं। तात्पर्य यही है कि सम्यग्दृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी होते हैं और मिश्र दृष्टिवाले भी होते हैं। ज्ञानद्वार में तिन्नि णाणा नियम' इनके नियम वष्टिय 'तत्थ णं जे ते भवधारणिज्जा ते समचउरंससठिया०' तेमा रे लq. धारणीय शरी। छे. ते अभयतु संस्थान वा हाय छे. म२ 'तत्थ णं जे से उत्तरवेउव्वियो से णाणस'ठोणसंठिया०' तथा २ उत्तवयि शरी२ सय છે. તેનો કોઈ નિશ્ચિત આકાર હેત નથી. તે તે અનેક આકારવાળું હોય છે. કેમકે દેવ પિતાની ઈચ્છા અનુસાર તેને અનેક આકાર વાળું બનાવી લે છે.
श्याद्वारमा 'लेस्साओ चत्तारि' तेमाने यार श्यामा डाय छे. सेश्या १ नमश्या २ पति:२५॥ ३ तेसवेश्या ४ मा 'दिद्वी तिविहा वि० तेमाने सभ्यष्टि, मिथ्याष्टि, म भिष्टि मे ) प्र. કારની દૃષ્ટિ હોય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે તેઓ સમ્યગૂ દષ્ટિવાળા પણ હોય છે. મિથ્યાદષ્ટિવાળા પણ હોય છે. અને મિશ્રદષ્ટિવાળા પણ डाय छे. ज्ञानवारभा-'तिन्नि णाणा नियम तमान नियमथी भतिज्ञान तज्ञान
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫