Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०५ मनुष्यजीवानामुत्पत्तिनिरूपणम्
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'पंच इंदिया' पञ्चेन्द्रियाणि श्रोत्रचक्षुत्रगरसस्पर्शनाख्यानि १३ । 'पंच समु घाया' पञ्च समुद्धाताः वेदनायारभ्य तेनसान्ताः पञ्च १४ । 'वेयणा दुविधा वि' वेदना द्विविधा साताsसाताख्या १५ । 'इथिवे गा वि पुरिसवेयगा वि' स्त्रीवेदका अपि पुरुषवेदका अपि ते जीवा भवन्ति वेदकद्वयवन्त एव भवन्ति ' णो णपुंसगवेगा' नो नपुंसक वेदका भवन्तीति १६ । ठिई जहन् नेणं दस वाससहरसाई' स्थितिर्जघन्येन दशवर्षसहस्त्राणि, 'उक्कोसेगं साइरेगं सागरोपमं' उत्कर्षेण सातिरेकं सागरोपमं : जघन्योतकृष्टाभ्यां दशवर्षसहस्र सातिरेकसागरोपमात्मिका स्थितिभवतीति । १७ । 'अज्झत्रसाणा असंखेज्जा पसत्था वि अपसत्था वि' अध्यवसायाः असंख्येयाः प्रशस्ताः - शुभाः, अप्रशस्ताः - अशुभाश्च भवन्तीति १८ । 'अणुवंधो जहा में ये 'पंचिंदिया' पांचों इन्द्रियों वाले होते हैं । समुद्घातद्वार में इनके सात समुद्घातों में से 'पंच समुग्धाया' पांच समुद्घात होते हैं, वेदना, कषाय, मारणान्तिक आदि तैजसान्त पर्यन्त वेदना द्वार में 'वेपणा दुविहा वि' इनके साता और असातारूप दोनों प्रकार की वेदना होती है, वेदद्वार में-ये इत्थवेयगा वि पुरिसवेयगा वि' स्त्रीवेद वाले भी होते हैं और पुरुष वेद वाले भी होते हैं । 'णो णपुंसगवेयगा' पर ये नपुंसक वेद वाले नहीं होते हैं । स्थिति द्वार में 'ठिई जहन्नेणं दसवाससहस्साई उक्कोसेणं साइरेगं सागरोत्रमं' इनकी स्थिति जघन्य से तो दश हजार वर्ष की होती है और उत्कृष्ट से वह कुछ अधिक एक सागरोपम की होती है । 'अज्झबसाणा असंखेज्जा पसत्था वि अपसस्था वि' अध्यव साथ इनके असंख्यात होते हैं और ये शुभ रूप भी होते हैं और छद्रिया वाणा होय छे सभुद्द्धात द्वारभां तेयाने सात समुद्द्धात पैडी 'पंचसमुग्धाया' यन्थि सभुद्द्धात होय छे. भेटले ! वेदना, उषाय, भारयान्ति, मने तैक्स सुधीना यांय समुद्घाती होय छे. 'वेयणा दुबिहा वि' तेयोने સાતા અને અસાતા રૂપ અને પ્રકારની વેદના હાય છે. વેદદ્વારમાં તેઓ 'इत्थवेयगा वि पुरिवेयगा वि' स्त्रीदेहवाना पशु होय छे भने यु३ष वेबाजा पशु होय छे. 'णो णपु'सगवेयगा' परंतु तेथे। नपुंसः देहवाना होता नथी. स्थितिद्वारभां 'ठिई जहन्नेणं दसवास सहरलाई उक्केासेणं साइरेग सागरेवमं ' तेभनी स्थिति धन्यथी इस डेन्नर वर्षांनी होय छे भने सृष्टी
ॐ६ॐ वधारे मे सागरोपमनी होय छे. 'अज्ावसाणा असंखेज्जो पसत्था वि अपसंस्था वि' तेमाने मध्यवसाय असण्यात होय छे भने ते शुल ३५
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫