Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१७ सू०१ द्वीन्द्रियजीवोत्पत्त्यादिनिरूपणम् १९१
टीका-'बेदिया णं भंते ! द्वीन्द्रियाः खलु भदन्त ! 'कओहितो उववज्जति' कुत उत्पद्यन्ते 'जाव पुढवीकाइए णं भंते ! यावत्पृथिवीकायिकः खलु भदन्त ! 'जे भविए बेंदिएमु उववज्जित्तए' यो भव्यो द्वीन्द्रियेपूत्पत्तुम्, 'से णं भते ! केवइयकालटिइएमु उववज्जेज्जा' स खलु भदन्त ! कियत्कालस्थितिकेषु द्वीन्द्रियेत्पधेत । अत्र यावत्पदेन 'कि नेरहएहितो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहितो
सत्रहवें उद्देशक का प्रारंभ पृथिवीकाय से लेकर वनस्पतिकाय पर्यन्त के एकेन्द्रियजीवों के उत्पाद परिमाण आदि का विचार करके अब दो इन्द्रिय जीवों के उत्पाद आदि का विचार करने के लिए सूत्रकार इस १७ वें उद्देशक को प्रारम्भ करते हुए सूत्र का कथन करते हैं__'बेइंदिया णं भंते ! कओरितो' इत्यादि।।
टीकार्थ-गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'बेह दिया णं भंते ! कओहितो उपचति' हे भदन्त ! हीन्द्रिय जीव कहां से आकरके उत्पन्न होते हैं। 'जाव पुढवीकाइए णं भंते ! जे भविए दिएस्सु उववज्जित्तए से णं भंते ! केवइयकालटिइएप्लु उववज्जेज्जा' यावत् हे भदन्त ! जो पृथिवी. कायिक जीव द्वीन्द्रियों में उत्पन्न होने के योग्य है, वह कितने काल की स्थितिवाले द्वीन्द्रियों में उत्पन्न होता है ? यहां यावत्पद से यह पूर्वोक्त पाठ गृहीत हुआ है-'कि नेरहरहितो उववति, तिरि
સત્તરમા ઉદ્દેશાનો પ્રારંભ– પૃથ્વીકાયથી આરંભીને વનસ્પતિકાય સુધીના એક ઈદ્રિયવાળા જેના ઉત્પાત, પરિમાણુ વિગેરેને વિચાર કરીને હવે બે ઈન્દ્રિયવાળા જેના ઉત્પાત વિગેરેનો વિચાર કરવા માટે સૂત્રકાર આ ૧૭ સત્તરમા ઉદેશાનો प्रा२४ ४२ –बेइंदिया णं भंते ! कओहितो' त्यहि
टी -गौतमस्वामी प्रभुने मे ५ यु छ -'बेइंदिया णं भवे' कओहितो उववज्जति' है भगवन् मेद्रियवा यांथी मावीन पन्न थाय छ ? 'जाव पुढवीकाइए णं भंते ! जे भविए बेइदिएसु उववजित्तए' से गं भते ! केवइयकालदिइएसु उवबज्जेज्जा' यावत् सन् २ पृथ्वी यि १ मे ઇંદ્રિમાં ઉત્પન્ન થવાને યોગ્ય છે, તે કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા બે ઈંદ્રિમાં ઉત્પન્ન થાય છે? અહિયાં યાવત્પદથી આ નીચે પ્રમાણેને પહેલા ॥ अड ४ो छ, 'कि नैरइकेभ्य उत्पद्यन्ते अथवा तिर्यग्यानिकेभ्यः
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫