Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्र
अंगुलस्स असंखेज्जइमार्ग' उत्कर्ष तोऽङ्गलस्थासंख्येयभागम् १। 'तिभि लेस्साओ' तिस्रो लेश्याः२, 'मिच्छादिट्ठी' मिथ्यादृष्टयः३, 'दो अन्नाणा' द्वे अज्ञाने मत्यज्ञानं श्रुताज्ञानं च ४। योगद्वारे 'कायजोगी' केवलं काययोगिनो न तु मनोवाग्योगिनः ५। 'तिन्नि समुग्घाया' त्रयो-वेदना कषाय. मारणान्तिकाः समुद्वाताः ६ । ठिई जहन्नेण अंतोमुहुतं' स्थितिजघन्येनान्तBहतम् 'उकोसेण वि अंतोमुहुतं' उत्कर्षेणाऽपि स्थितिरन्तर्मुहूर्तमेव ७ । 'अप सत्या अज्झवसाणा' अप्रशस्ता अध्यवसायाः ८ । 'अणुबंधो जहा ठिई अनुबन्धो यथा स्थितिः, यथा जघन्योत्कृष्टाभ्यां स्थितिः, अन्तमुहूर्त्तमात्रप्रमाणा तथाऽनु बन्धोऽपि जयन्योत्कृष्टाभ्यामन्तर्मुहूर्तमात्र एव ९ । अत्र च नव नानात्वानि जघः भाग प्रमाण है ? और उत्कृष्ट से भी यह अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। 'तिन्नि लेस्सामो 'लेश्या द्वार में यहां तीन लेश्याएं होती हैं। २ दृष्टिद्वार में ये मियादृष्टि होते हैं। ३ 'दो अन्नाणा' मतिअज्ञान और श्रुत अज्ञान ऐसे ये दो अज्ञान वाले होते हैं । ४ योग बार में ये काययोगी ही होते हैं मनोयोगी और वाग्योगी नहीं होते हैं ।५ 'तिन्नि समुग्धाया' समुद्घातद्वार में इनके तीन समुद्घात होते हैं वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात ।६ 'टिई जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेण वि अंत.मुहुत्तं' यहां स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट से एक अन्तर्मुहूर्त की होती है ।७ 'अपसत्था अज्झवसाणा' अध्यवसाय द्वार में यहां अध्यवसाय अप्रशस्त होते हैं ।८ 'अणुबंधो जहा ठिई' स्थिति के अनुसार यहां अनुषंध जघन्य और उत्कृष्ट से
यातभा सा प्रभानी । छ. १ 'तिन्नि लेस्साओ' वेश्या बारमा मडियां કૃણ, નીલ, અને કાપેતિક એ ત્રણ વેશ્યાઓ હોય છે ૨, દષ્ટિ દ્વારમાં તેઓ मिथ्या दृष्टि डाय छे. 3 'दो अन्नाणा' ते। मति मज्ञान भने त અજ્ઞાન એ બે અજ્ઞાનવાળા હોય છે. ૪ યોગ દ્વારમાં–તેઓ કાયયેગવાળા જ लाय. मनायाशवाणा भने यन या डाता नथी. ५ 'तिन्नि समु. ग्धाया' समुद्धात द्वारमा तयाने वेदना, ४ाय मने भारत मे त्रए समुद्धात। - छ. ६ 'ठिई जहन्नेणं अंतोमुहुत्त उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त' अखियां स्थिति धन्य मने थी मे मतभुतनी हाय छे. ७ 'अप. सत्था अज्झवसाया' २५५१साय वा२मा मडिया मध्यवसाय प्रशत-शुन हाय छ. ८ 'अणुबंधो जहा ठिई' स्थितिना अथन प्रभाव मडिया भनुम धनु કથન જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી એક અંતર્મુહૂર્તનું છે. હું આ રીતે અહિયાં આ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫