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के सभी जीवों को शरण देने वाले, जन्म-मरण के चक्र से मुक्त कराने वाले, सम्यक् बोधिप्रदान करने
वाले, दुर्गतियों में गिरते हुए जीवों को बचाने वाले तथा सद्धर्म का उपदेश देने वाले शरणदाता, अक्षय * जीवनदाता, बोधिप्रदाता, धर्म-दाता तथा धर्मोपदेशक व धर्मनायक हैं। भगवान महावीर धर्म रूपी रथ | के सारथी हैं तथा धर्मवर चातुरन्त चक्रवर्ती हैं अर्थात् धर्मरूपी रथ के चारों दिशाओं-गतियों के प्रवर्तक हैं। वे प्रतिघात रहित निरावरण श्रेष्ठ केवलज्ञान-दर्शन के धारक हैं। वे व्यावृत्त छद्म (सर्वथा निर्दोष) हैं अर्थात् छद्म (आवरण) और छल-प्रपंच से सर्वथा मुक्त या निवृत्त हैं। वे जिन (विषय-कषायों को जीतने वाले) हैं, ज्ञापक (दूसरों के भी विषय-कषायों को छुड़ाने वाले) हैं और जय-प्रापक (विषयकषायों पर विजय प्राप्त कराने का मार्ग बताने वाले) हैं। वे संसार-सागर से स्वयं उत्तीर्ण हैं और दूसरों को उत्तीर्ण कराने वाले हैं। वे बुद्ध हैं, बोधक हैं तथा कर्मों से मुक्त हैं, मोचक हैं अर्थात् स्वयं बोध को * प्राप्त होने वाले, दूसरों को बोध देने वाले तथा स्व कर्मों से मुक्ति पाने वाले, दूसरों को भी कर्मों से मुक्ति दिलाने वाले हैं। वे सर्वज्ञ (समस्त जगत को जानने वाले) और सर्वदर्शी (समस्त लोक के द्रष्टा) हैं। वे अचल, अरुज (रोग-रहित) अनन्त, अक्षय, अव्याबाध (बाधाओं से रहित) और आवागमन से
रहित सिद्ध-गति नामक स्थान को प्राप्त करने वाले हैं। ऐसे विशिष्ट गुणों से युक्त उन महावीर भगवान I ने द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक कहा है। वह इस प्रकार है
१. आचारांग-इसमें ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य – पांच प्रकार के आचार धर्म का निरूपण
२. सूत्रकृतांग-इसमें विविध मतों का विवेचन तथा जीवादि नौ पदार्थों का निरूपण है। ३. स्थानाङ्ग-इसमें एक से लेकर दश स्थानों के द्वारा एक-एक, दो-दो आदि की संख्या वाले
स्थानों या पदार्थों का निरूपण है। समवायाङ्ग-इसमें एक, दो आदि संख्या वाले पदार्थों से लेकर सहस्रों पदार्थों के समुदाय का विवरण है। व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग-इसमें गणधर देव के द्वारा पूछे गए छत्तीस हजार प्रश्नों का और भगवान
महावीर के द्वारा दिए गए उत्तरों का संकलन है। ६. ज्ञाताधर्मकथाङ्ग-इसमें परीषह-उपसर्ग विजेता पुरुषों के अर्थ-गर्भित दृष्टान्त एवं धार्मिक पुरुषों
के कथानकों का वर्णन है। ७. उपासकदशाङ्ग-इसमें श्रावकों के परम धर्म व दश महा श्रावकों के चरित्रों आदि का निरूपण
है। ८. अंतकृद्दशाङ्ग-इसमें उसी भव में मोक्षगामी नब्बे अनगारों के चरित्रों का वर्णन है। ९. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्ग-इसमें पाँच अनुत्तर महा विमानों में उत्पन्न होने वाले अनगारों का
वर्णन है।
पहला समवाय
Samvayang Sutra