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gain (ksheen labhantraya), 29. Completely destroying impediment of enjoyment (ksheen bhogantraya), 30. Completely destroying impediments of re-enjoyment (ksheen upbhogantraya), 31. Completely destroying impediment of potency (ksheen virya-antraya).
२०६ - मंदरे णं पव्वए धरणितले एक्कत्तीस जोयणसहस्साइं छच्चेव तेवीसे जोयणसए किंचि देसूणे परिक्खेवेणं पण्णत्ते । जया णं सूरिए सव्वबाहिरियं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरड़, तया णं इहगयस्स मणुस्सस्स एक्त्तीसाए जोयणसहस्सेहिं अट्ठहि अ एकत्तीसेहिं जोयणसएहिं तीसाए भागे जोयणस्स सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ । अभिवड्डिए णं मासे एकत्तीसं सातिरेगाईं राइंदियाइं राइंदियग्गेणं पण्णत्ते। आइच्चे णं मासे एक्कत्तीस राइंदियाइं किंचि विसेसूणाई इंदियग्गेणं पण्णत्ते ।
धरती - तल पर मन्दर पर्वत स्थित है। यह पर्वत भूतल पर परिक्षेप यानि परिधि की अपेक्षा से इकतीस हजार छह सौ तेईस योजन से कुछ कम कहा गया है। भरत क्षेत्र में स्थित मनुष्य को इकतीस हजार आठसौ इकतीस और एक योजन के साठ भागों में से तीस भाग अर्थात् ३१८३१-३०/६० की दूरी से सूर्य दृष्टि गोचर होता है लेकिन यह स्थिति तब बनती है जब सूर्य सबसे बाहरी मण्डल में जाकर संचार (विचरण) करता है। अभिवर्धित मास में रात्रि - दिवस की गणना से कुछ अधिक इकतीस रात-दिन कहे गए हैं। इसी प्रकार रात्रि - दिवस की गणना से सूर्यमास कुछ विशेष हीन इकतीस रातदिन का कहा गया है।
On the surface of the earth the Mount Mandar is situated. The circumference of this mountain has been said of a little lesser than thirty one thousand six hundred twenty three yojanas. The sun is visible to the native human beings of the Bharat area from a distance of thirtieth part of sixty parts and thirty one thousand eight hundred and thirty one yojana but this situation occurs only when the sun moves in the out most orbit. In the increasing month with regard the counting of the days and nights, the numbers of days and nights has been said thirty one. In the same way according to the nights and days counting night and days have been said of some what less than thirty one nights and days.
२०७ - इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एकत्तीसं पलिओवमाइं ठिई * पण्णत्ता । अहे सत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एक्कत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एक्कत्तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता । सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं एक्कत्तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।
प्रभा पृथ्वी के विषय में कहा गया है कि इसमें इकतीस पल्योपम स्थिति के नारक हैं । अधस्तन सातवीं पृथ्वी में कितने ही नारक इकतीस सागरोपम स्थिति के कहे गए हैं। कितने ही असुरकुमार देव
समवायांग सूत्र
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31th Samvaya
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