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सुप्रभ बलदेव के विषय में कहा गया है कि उन्होंने इक्यावन हजार वर्ष की परम आयु का पालन किया। इसके पश्चात् वे सिद्ध-बुद्ध हुए, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त तथा सर्व दुःखों से रहित हुए ।
In respect of Suprabh Baldeva it has been said that he spent a supreme life of fifty one thousand years. After that he attained salvation. He got liberation from all his karmas and attained Parinirvana. Eventually he annihilated all his miseries and sufferings.
२८३ - दंसणावरण-नामाणं दोन्हं कम्माणं एकावन्नं उत्तरकम्मपगडीओ पण्णत्ताओ। दर्शनावरण कर्म और नामकर्म इन दोनों कर्मों की इक्यावन उत्तर प्रकृतियाँ कही गई हैं जिनमें दर्शनावरण कर्म की नौ और नामकर्म की बयालीस उत्तर प्रकृतियाँ हैं ।
In all fifty one Uttar tendencies of perception obscuring karmas and physique determining karmas have been said out of which there are forty two tendencies of physique determining karmas and nine of perception obscuring karmas.
।। इक्यावनवां समवाय समाप्त ।। (The End of Fifty First Samvaya)
बावनवां समवाय
The Fifty Second Samvaya
२८४ - मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स वावन्नं नामधेज्जा पण्णत्ता । तं जहा- कोहे कोवे रोसे दोसे अखमा संजलणे कलहे चंडिक्के भंडणे विव़ाए १०, माणे मदे दप्पे थंभे अत्तक्कोसे गव्वे परपरिवाए अवक्कोसे (परिभवे ) उन्नए २०, उन्नामे माया उवही नियडी वलए गहणे णूमे कक्के कुरुए दंभे ३०, कूडे जिम्हे किव्विसे अणायरणया गृहणया वंचणया पलिकुंचणया सातिजोगे लोभे इच्छा ४०; मुच्छा कंसा गेही तिन्हा भिज्जा अभिज्जा कामासा भोगासा जीवियासा मरणासा ५०, नन्दी रागे ५२ ।
मोहनीय कर्म के बावन नाम प्रतिपादित हैं । यथा - १. क्रोध, २. कोप, ३. रोष, ४. द्वेष, ५. अक्षमा, ६. संज्वलन, ७. कलह, ८. चंडिक्य, ९. भण्डन, १०. विवाद - ये दश क्रोध कषाय के नाम हैं।
११. मान, १२. मद, १३. दर्प, १४. स्तम्भ, १५. आत्मोत्कर्ष, १६. गर्व, १७. परपरिवाद, १८. अपकर्ष, (१९. परिभव), २०. उन्नत, २१. उन्नाम- ये ग्यारह नाम मान कषाय के हैं । २२. माया, २३. उपाधि, २४.
बावनवां समवाय
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Samvayang Sutra
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