Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan
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男 सीहरहे मेहरहे रुप्पी अ सुदंसणे य बोद्धव्वे । तत्तो य णंदणे खलु सीहगिरी चेव वीसइमे।।१३।। अदीणसत्तु संखे सुदंसणे नंदणे य बोद्धव्वे ।
[इमीसे ] ओसप्पिणीए एए तित्थयराणं तु पुव्वभवा।।१४।। इन चौबीस तीर्थंकरों के पूर्वभव के चौबीस नाम थे। उनका उल्लेख इस प्रकार से है-1. वज्रनाभ, 2. विमल, 3. विमलवाहन, 4. धर्मसिंह, 5. सुमित्र, 6. धर्ममित्र, 7. सुन्दरबाहु, 8. दीर्घबाहु, 9. युगबाहु, * 10. लष्ठबाहु, 11. दत्त, 12. इन्द्रदत्त, 13. सुन्दर 14. माहेन्द्र, 15. सिंहरथ, 16. मेघरथ, 17. रुक्मी, 18. सुदर्शन, 19. नन्दन, 20. सिंहगिरि, 21. अदीनशत्रु, 22. शंख, 23. सुदर्शन, 24. नन्दन। ये इसी अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्थंकरों के पूर्वभव के नाम कहे गए हैं।।11-14।।
The names of these twenty four Ford Makers of their previous births have been mentioned as follows : 1. Vajrnabha, 2. Vimal, 3. Vimalvahan, 4. Dharma Singh, 5. Sumitra, 6. Dhram-mitra, 7. Sunderbahu, 8. Dirghbahu, 9. Yugabahu, 10. Lasthbahu, 11. Dutt, 12. Inder Dutt, 13. Sunder, 14. Mahendra, 15. Singhratha, 16. Meghratha, 17. Rumi, 18. Sudarshan, 19. Nandan, 20. Singhgiri, 21. Adeenshatru, 22. Shankha, 23. Sudarshan, and 24. Nandan. The names those have been mentioned above are of twenty four Fordmakers of their previous lives. ६३७- एएसिं चउव्वीसाए तित्थयराणं चउव्वीसं सीयाओ होत्था। तं जहा
सीया सुदंसणा' सुप्पभा य सिद्धार्थ सुप्पसिद्धा य। विजया' य वेजयंती जयंती अपराजिआ चेव।।१५।।
अरुणप्पभ चंदप्पभ० सूरप्पह११ अग्गि१२ सुप्पभा३ चेव। विमला४ य पंचवण्णा'५ सागरदत्ता६ णागदत्ता य।।१६।। अभयकर णिव्वुइ करा ९ मणोरमा तह मणोहरा चेव। देवकु रु २२ उत्तरकुरा२३ विसाल चंदप्पभा२४ सीया।।१७।। एयाओ सीआओ सव्वेसिं चेव जिणवरिंदाणं।
सव्वजगवच्छलाणं सव्वोउयसुभाए छायाए।।१८।। इन चौबीस तीर्थंकरों के लिए चौबीस शिविकाएँ (पालकियाँ) थीं, जिन पर विराजमान होकर - तीर्थंकर प्रव्रज्या हेतु वन में गए। इन शिविकाओं की नामावली इस प्रकार है-1. सुदर्शना, 2. सुप्रभा, 3. सिद्धार्था, 4. सुप्रसिद्धा, 5. विजया, 6. वैजयन्ती, 7. जयन्ती, 8. अपराजिता 9. अरुण-प्रभा, | 10-चन्द्रप्रभा, 11. सूर्यप्रभा, 12. अग्नि-प्रभा, 13. सुप्रभा, 14. विमला, 15. पंचवर्णा, 16. सागरदत्ता,
महापुरुष
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Samvayang Sutra
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