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% %%%% %%% %% %% ६४७- बत्तीसं धणुयाई चेइ यरुक्खो य वद्धमाणस्स।
णिच्चोउगो असोगे ओच्छण्णे सालक्खेणं॥३७॥ तिण्णेव गाउआई चेइयरुक्खो जिणस्स उसभस्स। सेणाणं पुण रुक्खा सरीरओ वारस गुणा उ।।३८।। सच्छत्ता सपडागा सवेइ या तोरणे हिं उववेया।
सुर-असुर-गरुलमहिआ चेइयरुक्खा जिणवराणं॥३९॥ इन चौबीस तीर्थंकरों के जो चैत्यवृक्ष थे उनकी ऊँचाई आदि के बारे में कहा गया है कि वर्धमान भगवान का चैत्यवृक्ष बत्तीस धनुष ऊँचा था। वह नित्य-ऋतुक था अर्थात् प्रत्येक ऋतु में वह वृक्ष सदा पत्र-पुष्पों से समृद्ध रहता था। अशोकवृक्ष सालवृक्ष से सदा आच्छन्न अर्थात् ढंका हुआ था।।।37।।
ऋषभ जिन का चैत्यवृक्ष तीन गव्यूति अर्थात् तीन कोश ऊँचा था। शेष तीर्थंकरों के चैत्यवृक्षों की ऊँचाई उनके शरीर की ऊँचाई से बारह गुनी ऊँची थी।।38।।
जिनवरों के ये सभी चैत्यवृक्ष छत्र-युक्त, ध्वजा-पताका सहित, वेदिका सहित, तोरणों से सुशोभित और सुरों, असुरों तथा गरुडदेवों से पूजित थे।।39।।
There were Chaitya tree of the twenty four Fordmaker, about the height of these trees it has been said that the Chaitya tree belongs to Lord Vardhaman was thirty two (Dhanush) bow high. It was evergreen and was full of flowers fruits and leaves in every season The tree of Ashoka was always covered by Sal tree.
The height of the Chaitya tree of Lord Rishabh Dev was three Kosha (three Gavyuti). The heights of Chaitya trees of the remaining other Fordmakers were equal to twelve into the height of their own bodies.
That all the Chaitya trees of the Jinvaras were endowed with umbrellas, flags, platforms, Arches and were worshiped by gods, demons and eagle gods. ___६४८-एएसिं चउव्वीसाए तित्थगराणं चउव्वीसं पढमसीसा होत्था। तं जहा
पढमेत्थ उसभसेणे बीइए पुण होई सीहसेणे य। चारु य वज्जणाभे चमरे तह सुव्वय विदब्भे य।।४।। दिण्णे य वराहे पुण आणंदे गोथुभे सुहम्मे य। मंदर जसे अरिढे चक्काह सयंभु कुंभे य।।४१।। इंदे कुंभे य सुभे वरदत्ते दिण्ण इंदभूई य। उदितोदित-कुलवंसा विसुद्धवंसा गुणेहिं उववेया।।४२।। तित्थप्पवत्तयाणं पढमा सिस्सा जिणवराणं।
महापुरुष
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Samvayang Sutra