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1. Bhadra, 2. Subhadra, 3. Suprabha, 4. Sudarshana, 5. Vijaya, 6. Vaijayanti, 7. Jayanti, 8. Aprajita, and 9. Rohani.
६५७ - जंबुद्दीवे णं [ दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए ] नव दसारमंडला होत्था । तं जहा - उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी छायंसी कंता सोमा सुभगा पियदंसणा सुरूवा सुहसीला सुहाभिगमा सव्वजणणयणकंता ओहबला अतिबला महाबला अनिहता अपराइया सत्तुमद्दणा रिपुसहस्समाणमहणा साणुक्कोसा अमच्छरा अचवला अचंडा मियमंजुलपलावहसिया गंभीरमधुर-पडिपुण्णसच्चवयणा अब्भुवगयवच्छला सरण्णा लक्खण-वंजणगुणोववेआ माणुम्माणपमाणपडिपुण्ण-सुजायसव्वंगसुंदरंगा ससिसोमागारकंतपियदंसणा अमरिसणा पयंडदंडप्पभारा गंभीरदरिसणिज्जा तालद्धओव्विद्ध-गरुलकेऊ, महाधणु-विकड्डया महासत्तसाअरा दुद्धरा धणुद्धरा धीरपुरिसा जुद्धकित्तिपुरिसा विउलकुलसमुब्भवा महारयणविहाडगा अद्धभरहसामी सोमा रायकुलवंसतिलया अजिया अजियरहा . हल- मुसल - कणक-पाणी संख-चक्क-गय-सत्ति- नंदगधरा पवरुज्जल- - सुकंत- विमल - गोत्थुभतिरीडधारी कुंडल - उज्जोइयाणणा पुंडरीयणयणा एकावलि-कण्ठ-लइयवच्छा सिरिवच्छसुलंछणा वरजसा सव्वोउयसुरभि - कुसुम - रचित - पलंब - सोभंत - कंत-विकसंत-विचित्तवरमालरइय-वच्छा अट्ठसय - विभत्त- लक्खण-पसत्थ- सुंदर - विरइयंगमंगा मत्तगयवरिंद - ललियविक्कम - विलसियगई सारय- नव थिणिय-महुर-गंभीर कोंच-निग्घोस-दुंदुभिसरा कडिसुत्तगनील-पीय- कोसेज्जवाससा पवरदित्ततेया नरस्सीहा नरवई नरिंदा नरवसहा मरुयवसभकप्पा * अब्भहियरायतेयलच्छीए दिप्पमाणा नीलग-पीयगवसण दुवे दुवे राम केसवा भायरो होत्था | तं जहा
इस जम्बूद्वीप में स्थित भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में नौ दशार मण्डल अर्थात् बलदेव और वासुदेव समुदाय हुए हैं । सूत्रकार उनका वर्णन इस प्रकार करते हैं
उन समस्त दशारमण्डल (बलदेव और वासुदेव ) का जन्म उत्तम कुल में हुआ और वे श्रेष्ठ पुरुष कहलाए, वे तीर्थंकरादि शलाका-पुरुषों के मध्यवर्ती होने से मध्यम पुरुष कहे गए, अथवा तीर्थंकरों के बल की अपेक्षा कम और सामान्यजनों के बल की अपेक्षा अधिक बलशाली होने से वे मध्यम पुरुष कहे गए। वे दशार - मण्डल अपने समय के पुरुषों के शौर्यादि गुणों की प्रधानता की अपेक्षा प्रधान पुरुष कहे गए। मानसिक बल से सम्पन्न होने के कारण ओजस्वी कहे गए। वे तेजस्वी थे क्योंकि वे देदीप्यमान शरीरों के धारक थे। वे शारीरिक बल से संयुक्त थे जिसके कारण वे वर्चस्वी कहे गए। उन्होंने पराक्रम के द्वारा प्रसिद्धि पायी जिसके कारण वे यशस्वी थे। वे छायावन्त थे क्योंकि उनका शरीर छाया यानि प्रभा से युक्त था। वे कान्त थे क्योंकि उनका शरीर कान्ति से युक्त था। चन्द्र के समान सौम्य मुद्रा के धारक थे। वे सर्वजनों के वल्लभ होने से सुभग या सौभाग्यशाली कहे
वे
समवायांग सूत्र
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Great Persons 编卐