Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 338
________________ % %% % %%%%%%%%% %%%%%%%%% %%% %%% %% IAn ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञात (उदाहरण रूप) मेघकुमार प्रभृति पुरुषों के १. नगर, २.उद्यान, ३. चैत्य, ४. वनखण्ड, ५. राजा, ६. माता-पिता, ७. समवसरण, ८. धर्माचार्य, ९. धर्मकथा, १०. इहलौकिक* पारलौकिक ऋद्धि-विशेष, ११. भोग-परित्याग, १२. प्रव्रज्या, १३. श्रुत परिग्रह, १४. तप उपधान, १५. ॐ दीक्षा पर्याय, १६. संलेखना, १७. भक्त प्रत्याख्यान, १८. पादपोपगमन, १९. देवलोक-गमन, २०. सुकुल में पुनर्जन्म, २१. पुनः बोधिलाभ, २२. अन्त क्रियाएँ कही गई हैं। इनकी प्ररूपणा की गई है। दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है। What the sixth canon of twelve canons "Gyata Dharam Katha" is? What is described in it? In Gyata Dharam Katha, about the well known persons begin with Megh Kumar has been stated, expounded, shown, instructed and displayed such as :1. Cities, 2. Garden, 3. Chaitya, 4. Forests, 5. Kings, 6. Mother-Father, 7. Religious Assembly, 8. Religious dialogue, 9. Religious discourse, 10. Extra ordinary wealth of this world and of metaphysical world, 11. Renunciation of enjoyments, 12. Conservation, 13. Shrut possessiveness, 14. Adopting the penance, 15. Ascetic mode, 16. Samlekhana, 17. Restraint of food, 18. Padopagaman (to lay down in immovable state), 19. Voyage to Devloka, 20. Re-incarnation in religious family, 21. Regain of cognition, 22. Final activities. * ५३१-नायाधम्मकहासु णं पव्वइयाणं विणय-करण-जिणसामिसासणवरे संजमपइण्णपालणधिइ-मइ-ववसायदुब्बलाणं १, तवनियम-तवोवहाण-रण-दुद्धर-भरभग्गाणिसहय-णिसिट्ठाणं २, घोर-परीसह-पराजियाणंऽसहपारद्ध-रुद्धसिद्धालय-महग्गानिग्गयाणं ३, विसयसुह-तुच्छ-आसावम-दोसमुच्छियाणं ४, विराहिय-चरित्त-नाण-दसणअइगुण-विविहप्पयार-निस्सारसुन्नयाणं ५, संसार-अपार-दुक्खदुग्गइ-भवविविह-परंपरांपवंचा ६, धीराण य जियपरिसह-कसाय-सेण्ण-धिइ-धणिय-संजम-उच्छाह-निच्छियाणं, आराहियनाण-दसण-चरित्तजोग-निस्सल्ल-सुद्धसिद्धालय-मग्गमभिमुहाणं सुरभवणविमाणसुक्खाइं अणोवमाई भुत्तूण चिरं च भोगभोगाणि ताणि दिव्वाणि महरिहाणि। ततो य कालक्कमचुयाण जह य पुणो लद्धसिद्धिमग्गाणं अंतकिरिया। चलियाण य सदेवमाणुस्सधीर-करण-कारणाणि बोधण-अणुसासणाणि गुण-दोस दरिसणाणि। दिटुंते पच्चये य सोऊण लोगमुणिणो जह य ठियासासणम्मि जर-मरण-नासणकरे आराहिअसंजमा य सुरलोगपडिनियत्ता ओवेन्ति जह सासयं सिवं सव्वदुक्खमोक्खं, एए अण्णे य एवमाइअत्था वित्थरेण य। ज्ञाताधर्मकथा में प्रव्रजित पुरुषों के विनय-करण-प्रधान, प्रवर जिन-भगवान के शासन की संयमप्रतिज्ञा के पालन करने में जिनकी धृति, मति और व्यवसाय यानि पुरुषार्थ दुर्बल हैं तपश्चरण का नियम । गणि-पिटक *264 Samvayang Sutra

Loading...

Page Navigation
1 ... 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446