Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 401
________________ भगवन्! नारक जीव किस संस्थान वाले होते हैं? गौतम! नारक जीव हुंडक संस्थान वाले होते हैं। भगवन्! असुरकुमार देव किस संस्थान वाले कहे गए हैं? गौतम असुरकुमार समचतुरस्र संस्थान वाले कहे गए हैं। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त समस्त भवनवासी देव भी समचतुरस्र संस्थान वाले कहे गए है O Lord ! Of what structure the hellish beings are said? Gautam ! The hellish beings are stated of Hundak Structure. Bhagwan ! Of what structure the fiendish gods have been said? Gautam ! The fiendish Gods (Asur kumar) have been said of Samchaturash structure. In the same manner from Satanik Kumar onward to all the residential gods have been said of Samchaturash structure. - ६२३-पुढवी मसूरसंठाणा पन्नत्ता। आऊ थिबुयसंठाणा पन्नत्ता। तेऊ सूईकलावसंठाणा पण्णत्ता। वाऊ पडागासंठाणा पन्नत्ता। वणस्सई नाणासंठाणसंठिया पन्नत्ता। पृथ्वीकायिक जीव मसूर संस्थान वाले होते हैं। अप्कायिक जीव स्तिबुक (बिन्दु) संस्थान वाले कहे गए हैं। तेजस्कायिक जीवों में सूचीकलाप संस्थान होता है। वायुकायिक जीवों में पताका संस्थान होता है। वनस्पतिकायिक जीवों में नाना प्रकार के संस्थान होते हैं। The earthen body beings are of lentil pulse like structures. The water body beings have been said of drop (Bindoo) structures. The fiery beings have been said of suchikolap structures. The air body beings are said of flag structure. The plant and vegetable beings are said of various kinds of structure. ६२४-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदिय-सम्मुच्छिम-पंचेंदियतिरिक्खा हुंडसंठाणा पन्नत्ता। गब्भवक्वंतिया छव्विहसंठाणा (पन्नत्ता)। संमुच्छिममणुस्सा हुंडसंठाणसंठिया पन्नत्ता। || गब्भवक्कंतियाणं मणुस्साणं छव्विहा संठाणा पन्नत्ता। जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतर-जोइसियवेमाणिया वि। . जिन जीवों में हुंडक संस्थान होता है, वे जीव हैं-द्वीन्द्रिय जीव, त्रीन्द्रिय जीव, चतुरिन्द्रिय जीव 25 तथा सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय जीव। गर्भोपक्रान्तिक तिर्यंचों में छहों संस्थान कहे गए हैं। सम्मूर्छिम मनुष्य हुंडक संस्थान वाले तथा गर्भोपक्रान्तिक मनुष्य छहों संस्थान वाले होते हैं। जिस प्रकार असुरकुमार | देव समचुरस्र संस्थान वाले कहे गए हैं, उसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क तथा वैमानिक देव भी समचतुरस्र संस्थान वाले कहे गए हैं। समवायाग सूत्र 325 Various Titles %%%% %%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%

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