Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 377
________________ % %%% %% %% %% %% %%% %%%% %%% % % %% %% %% % % There are one thousand one hundred celestial vehicles of the three lower situated Graivayak heavens. The celestial vehicles of the three Gravayak heavens situated in the middle are one hundred seven and the number of celestial vehicles of all the three upper situated Graveyak heaven, is one hundred. The number of the Anuttar celestial vehicles is five. __ ५८४-दोच्चाए णं पुढवीए, तच्चाए णं पुढवीए, चउत्थीए पुढवीए, पंचमीए पुढवीए, छट्ठीए पुढवीए, सत्तमीए पुढवीए गाहाहिं भाणियव्वा। [------] .. इसी प्रकार उपर्युक्त गाथाओं के अनुसार दूसरी, तीसरी, चौथी, पाँचवीं, छठी व सातवीं पृथ्वी में नरक बिलों-नारकावासों की संख्या कहनी चाहिए। (इसी प्रकार उपर्युक्त गाथाओं के अनुसार दशों प्रकार के भवनवासी देवों के भवनों की, बारह कल्पवासी देवों के विमानों की तथा ग्रैवेयक व अनुत्तर देवों के विमानों की भी संख्या जाननी चाहिए।) Thus, according to the above mentioned verses (Gathas) the number of hellish residencies of the second, third, fourth, fifth, sixth and seventh hells should be stated. In the same way according to the above mentioned verses (Gathas) the number of the residencies of all the ten types of residential gods, the celestial vehicles of celestial beings of the twelve heavens and the numbers of the celestial vehicles of the Graivayak and Anuttar gods should be known. ५८५-सत्तमाए पुढवीए पुच्छा? गोयमा! सत्तमाए पुढवीए अट्टत्तरजोयणसयसहस्साई बाहल्लाए उवरिं अद्धतेवनं जोयणसहस्साई ओगाहेत्ता हेट्ठा वि अद्धतेवन्नं जोयणसहस्साइं वज्जित्ता मज्झे तिसु जोयणसहस्सेसु एत्थ णं सत्तमाए पुढवीए नेरइयाणं पंच अणुत्तरा महइमहालया * महानिरया पण्णत्ता, तं जहा-काले महाकाले रोरुए महारोरुए अपडदाणे नामं पंचमे। ते णं | निरया वट्टे य तंसा य। अहे खुरप्पसंठाणसंठिया जाव असुभा नरगा, असुभाओ नरएसु वेयणाओ। भगवन्! सातवीं पृथ्वी महातम:प्रभा में कितना क्षेत्र अवगाहन कर कितने नारकावास हैं? भगवान ने कहा-गौतम! सातवीं पृथ्वी महातमः प्रभा है जो एक लाख आठ हजार योजन बाहल्य वाली यानि मोटी है। इस पृथ्वी में ऊपर से साढ़े बावन हजार योजन अवगाहन कर और नीचे भी साढ़े बावन हजार योजन छोड़कर मध्यवर्ती तीन हजार योजन में सातवीं पृथ्वी के नारकों के पाँच अनुत्तर, बहुत विशाल महानरक कहे गये हैं। यथा-1. काल, 2. महाकाल, 3. रोरुक, 4. महारोरुक, 5. अप्रतिष्ठान। ये पाँचों महानरक गोल व त्रयन हैं, अर्थात् मध्यवर्ती अप्रतिष्ठान नरक गोल आकार वाला है तथा शेष चारों दिशावर्ती चारों नरक त्रिकोण आकार वाले हैं। नीचे तलभाग में वे नरक क्षुरप्र यानि खुरपा की आकृति के हैं। समवायांग सूत्र 301 Various Titles

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