Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 381
________________ 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 से गोल और भीतर से चौकोर हैं। इस प्रकार भवनवासी देवों के भवनों का जैसा वर्णन किया गया है, वैसा ही वर्णन वाणव्यन्तर देवों के भवनों का जानना चाहिए। केवल इतना वैशिष्ट्य है कि ये पताका-मालाओं से व्याप्त हैं। ये भवन सुरम्य हैं, मन को प्रसन्न करने वाले हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप - प्रतिरूप हैं। O Lord! How many number of the residences of peripatetic (Vanvayantric) gods has been narrated. O Gautam! In Ratanprahba hell there is a jewel like wing (Ratan Kand) thickness of one thousand yojans of which, going deep equal to one hundred yojans from upper side and barring one hundred yojans from the bottom, in the eight hundred yojans of middle part innumerable lacs Bhomayak residences have been said. They are spreading obliquely. These residences are round and rectangular from outside and inside. Thus the description of the residences of the residential gods has been done, even such as the description of residences of Peripatetic gods should be known. The only specialization of these residences is that they have flags-garlands. These are charming, mind pleasing, picturesque and elegant and beautiful. ५८९ - केवइया णं भंते! जोइसियाणं विमाणावासा पण्णत्ता ? गोयमा ! इमीसे गं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तनउयाइं जोयणसयाई उड्डुं उप्पइत्ता एत्थ णं दसुत्तरजोयणसयबाहल्ले तिरियं जोइसविसए जोइसियाणं देवाणं असंखेज्जा जोइसियविमाणावासा पण्णत्ता । ते णं जोइ सियविमाणावासा अब्भुग्गयमूसियपहसिया विविहमणिरयणभत्तिचित्ता वाउयविजय - वेजयंती- पडाग-छत्ताइछत्तकलिया तुंगा गगणतल मलिहंतसिहरा जालंतर - रयणपंजरुम्मिलियव्व मणिकणगथ्रुभियागा वियसिय सयपत्तपुण्डरीय-तिलय- रयणद्धचंदचित्ता अंतो वाहिं च सण्हा तवणिज्ज - वालुआ पत्थंडा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा । भगवन्! ज्योतिष्क देवों के विमानावासों की संख्या कितनी कही गयी है? गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी का बहुसम रमणीय भूमिभाग है। उससे सात सौ नब्बे योजन ऊपर एक सौ दश योजन बाहल्य वाले तिरछे ज्योतिष्क-विषयक आकाश भाग है। उस भाग में ज्योतिष्क देवों के असंख्यात विमानावास कहे गए हैं। वे विमानावास अपने में से निकलती हुई और सर्व दिशाओं में फैलती हुई प्रभा से उज्ज्वल हैं। वे अनेक प्रकार के मणि व रत्नों की चित्रकारी से मण्डित हैं। वे विमानावास वायु से उड़ती हुई विजय - वैजयन्ती पताकाओं से तथा छत्रातिछत्रों से युक्त हैं। वे गगनचुम्बी ऊँचे शिखर वाले हैं, उन विमानावासों की जालियों के भीतर रत्न लगे हुए हैं। जैसे पंजर से तत्काल निकाली वस्तु सश्रीक - चमचमाती है वैसे ही वे सश्रीक हैं। वे मणि-सुवर्ण की स्तूपिकाओं से 'युक्त हैं, समवायांग सूत्र. 305 出 Various Titles 卐卐卐卐卐卐 G

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