Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 366
________________ ५६८-से किं तं चूलियाओ? जण्णं आइल्लाणं चउण्हं पुव्वाणं चूलियाओ, सेसाइं पुव्वाइं । | अचूलियाई। से तं चूलियाओ। यह चूलिका क्या है? आदि के चार पूर्वो में चूलिका नामक अधिकार है। शेष दश पूर्वो में चूलिकाएँ नहीं हैं। यह चूलिका है। What is Chulika (Annexure)? In first four Poorvas the entitlement in the name of Chulika has been given. In the remaining ten poorvas there is no chulikas. This is narrated as Chulika. ५६९-दिद्विवायस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा संखेजाओ पडिवत्तीओ, संखेजाओ निजुत्तीओ, संखेज्जा सिलोगा, संखेजाओ संगहणीओ। दृष्टिवाद की परीत वाचनाएँ हैं, संख्यात अनुयोग द्वार हैं संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं, संख्यात नियुक्तियाँ हैं, संख्यात श्लोक हैं, और संख्यात संग्रहणियाँ हैं। The texts are limited of Drishtivad, Anuyogadwars are countable, Pratipattiya are countable, Niryukatiyas are countable, couplets are countable and Samgrahamyas are countable. ५७०-से णं अंगट्ठयाए बारसमे अंगे, एगे सुअक्खंधे, चउद्दस पुव्वाइं, संखेजा वत्थू, 5 संखेज्जा चूलवत्थू, संखेजा पाहुडा, संखेज्जा पाहुड-पाहुडा, संखेजाओ पाहुडियाओ, संखेजाओ ! पाहुडपाहुडियाओ, संखेजाणि पयसयसहस्साणि पयग्गेणं पण्णत्ताई। संखेजा अक्खरा, अणंता. गमा अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविनंति पण्णविनंति परूविनंति दंसिजति निदंसिजति उवदंसिजति। से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करणपरूवणया आघविजति। से तं दिट्ठिवाए। से तं दुवालसंगे गणिपिडगे। अंगरूप से यह दृष्टिवाद बारहवाँ अंग है। इस अंग में एक श्रुतस्कन्ध है, चौदह पूर्व हैं, संख्यात वस्तु हैं, संख्यात चूलिकावस्तु हैं, संख्यात प्राभृत हैं, संख्यात प्राभृत-प्राभृत हैं, संख्यात प्राभृतिकाएँ हैं, संख्यात प्राभृत-प्राभृतिकाएँ हैं। पद-गणना की अपेक्षा से संख्यात लाख पद कहे गए हैं। संख्यात अक्षर | हैं, अनन्त गम हैं, अनन्त पर्याय हैं, परीत त्रस हैं, अनन्त स्थावर हैं। ये सब शाश्वत, कृत, निबद्ध, निकाचित, जिन-प्रज्ञप्त भाव इस दृष्टिवाद मे कथित हैं, प्रज्ञापित हैं, प्ररूपित हैं, दर्शित हैं निदर्शित हैं तथा उपदर्शित हैं। इस अंग का अध्येता आत्मा ज्ञाता और विज्ञाता होता है, इस प्रकार चरण और करण की प्ररूपणा के द्वारा वस्तु के स्वरूप का कथन, प्रज्ञापन, निदर्शन व उपदर्शन किया जाता है। यह बारहवाँ दृष्टिवाद अंग है। यह द्वादशांग गणि-पिटक का वर्णन है। गणि-पिटक 292 गाण Samvayang Sutra

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