Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 290
________________ 出卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐出 छियासीवां समवाय The Eighty Sixth Samvaya ४०३ - सुविहिस्स णं पुप्फदंतस्स अरहओ छलसीई गणा छलसीई गणहरा होत्था । सुपासस्स णं अरहओ छलसीई वाइसया होत्था । सुविधि पुष्पदन्त अर्हत् के गणों और गणधरों की संख्या छियासी - छियासी बतायी गई है। सुपार्श्व अर्हत् के छियासी सौ वादी मुनि थे । The numbers of the ascetic groups and the heads of the ascetic groups of Arihant Suvidhi Pushpdant has been told eighty six, eighty six respectively. There were eighty six monks of Arihant Suparshva Nath expert in discussions. ४०४ - दोच्चाए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभागाओ दोच्चस्स घणोदहिस्स हेट्ठिल्ले चरमंते एस छलसीई जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । दूसरी पृथ्वी यानि शर्करा पृथ्वी, जिसकी मोटाई एक लाख बत्तीस हजार योजन है, के मध्य भाग से दूसरे घनोदधिवात का अधस्तन - चरमान्त भाग यानि अन्तिम भाग छियासी हजार योजन के अन्तर वाला कहा गया है। The second hell i.e. the pebble (sharkara) hell. Its thickness is eighty six thousand yojanas, from its middle part to the lower extreme end part it, its means the lastest part has been said of the distance of eighty six thousand yojanas. छियासीवां समवाय ।। छियासीवां समवाय समाप्त ।। (The End of Eighty Sixth Samvaya) सत्तासीवां समवाय The Eighty Seventh Samvaya ४०५ - मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरमंताओ गोथूभस्स आवासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । मंदरस्स णं पव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ चरमंताओ दगभासस्स आवासपव्वयस्स उत्तरिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीइं जोयण - सहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । एवं मंदरस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरमंताओ 220 Samvayang Sutra 新生 卐卐 筆 蛋蛋蛋蛋蛋蛋蛋蛋卐5

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