Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 333
________________ What the fourth canon of twelve canons of description has been made in it? the Samvayang is?" What kinds Swa-Samaya is made indicated in Samvayanga, Pra Samaya is indicated, Swa Samaya and Pra Samaya are indicated in it, the living beings are indicated, the non-living beings are indicated, the living beings and non-living beings are indicated in it, the cosmos ( Loka) is indicated, the trans cosmos (Aloka) is indicated, the cosmos and trans cosmos are indicated in it. ५२३- समवाएणं एकाइयाणं एगद्वाणं एगुत्तरियपरिवुड्डीए दुवालसंगस्स वि गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समणुगाइज्जइ, ठाणगसयस्स बारसविहवित्थरस्स सुयणाणस्स जगजीवहियस्स भगवओ समासेणं समोयारे आहिज्जति । तत्थ य णाणाविहप्पगारा जीवाजीवा य वण्णिया, वित्थरेण अवरे वि य बहुविहा विसेसा नरग- तिरिय- मणु-सुरगणाणं आहारुस्सास-लेसा-आवास-संखआययप्पमाण - उववाय-चवण- उग्गहणोवहि-वेयणविहाण - उपओग-जोग-इंदिय- कसाया विविहा य जीवजोणी विक्खंभुस्सेहपरिरयप्पमाणं विहिविसेसा य मंदरादीणं महीधराणं कुलगरतित्थगर - गणहराणं सम्मत्त-भरहाहिवाणचक्कीणं चेव चक्कहर - हलहराण य वासाण य निगमा यसमा एए अण्णेय एवमाइ इत्थ वित्थरेणं अत्था समाहिज्जति । समवायाङ्ग में एक, दो, तीन आदि एक-एक स्थान की परिवृद्धि करते हुए शत - सहस्र, कोटाकोटि पर्यन्त पदार्थों का तथा द्वादशांग गणिपिटक के पल्लवाग्रों (पर्यायों के प्रमाण) का कथन किया जाता है, सौ तक के स्थानों का तथा बारह अंगरूप में विस्तार को प्राप्त, जगत् के जीवों के हितकारक भगवान् श्रुतज्ञान का संक्षेप से समवतार किया जाता है। इस समवायाङ्ग में नाना प्रकार के भेद-प्रभेद वाले जीव-अजीव पदार्थों का वर्णन किया जाता है, विस्तारपूर्वक अन्य भी विविध प्रकार के विशेष तत्त्वों का, नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव - गणों के आहार, उच्छ्वास, लेश्या - आवास- संख्या, उनके आयाम-विष्कम्भ का प्रमाण, उपपात (जन्म), च्यवन (मरण), अवगाहना, उपधि, वेदना, विधान (भेद), उपयोग, योग, इन्द्रिय, कषाय, विविध प्रकार की जीव-योनियाँ, पर्वत-कूट आदि के विष्कम्भ, उत्सेध (ऊँचाई) परिरय (परिधि) के प्रमाण, मन्दर आदि महीधरों यानि पर्वतों के विविध भेद विशेष, कुलकरों, तीर्थंकरों, गणधरों समस्त भरत क्षेत्र के अधिपति (स्वामी) चक्रवर्तियों का, चक्रधर-वासुदेवों व हलधरों (बलदेवों)'का, क्षेत्रों निगमों का अर्थात् पूर्व-पूर्व क्षेत्रों से उत्तर के यानि आगे के क्षेत्रों के अधिक विस्तार का तथा इसी प्रकार के अन्य भी पदार्थों का इस समवायांग में सविस्तार वर्णन किया गया है। In Samvayanga, by increasing the Sthanak from one to hundred, thousand and millions in the number of one, two, three etc., the description of the matter and the proved Knowledge of Modes (Pallvagia) of twelve canons (ganpitak) is समवायांग सूत्र 259 Ganipittak 卐卐卐卐卐纸

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