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चौरानवां समवाय
The Ninety Fourth Samvaya ४२७-निसह-नीलवंतियाओ णं जीवाओ चउणउई चउणउई जोयणसहस्साई एक्कं छप्पन्नं || जोयणसयं दोन्नि य एगूणवीसइभागे जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ।
निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वतों की जीवाएँ चौरानवें हजार एक सौ छप्पन योजन तथा एक योजन के उन्नीस भागों में से दो भाग प्रमाण लम्बी कही गई हैं।
The length of the diameters of the Nishadh-Neelvant varshadhar mountain has been stated as equal to two parts out of nineteen parts of one yojanas and hay ninety fourthousand one hundred fifty six yojanas.
४२८-अजियस्स णं अरहओ चउणउई ओहिनाणिसया होत्था। अजित अर्हत् के संघ में चौरानवें सौ अवधिज्ञानी थे।
There were ninety four clairvoyant practices n the ascetic congregation of Arihant Ajit Nath.
॥चौरानवां समवाय समाप्त ॥ . . (The End of Ninety Fourth Samvaya)
पंचानवां समवाय
The Ninety Fifth Samvaya ४२९-सुपासस्स णं अरहओ पंचाणउइगणा पंचाणउइं गणहरा होत्था। सुपार्श्व अर्हत् के गणों और गणधरों की संख्या पंचानवें-पंचानवें कही गई है।
The number of the Gan (ascetic groups) and the Gandhar (Head of the ascetic groups) of Arihant Suparshva Nath has been stated as ninety five-ninety five respectively.
४३०-जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चरमंताओ चउद्दिसिं लवणसमुहं पंचाणउइं पंचाणउइं जोयण-सहस्साइं ओगाहित्ता चत्तारि महापायालकलसा पण्णत्ता, तं जहा-वलयामुहे केऊए । जूयए ईसरे। लवणसमुदस्स उभयो पासं पि पंचाणउयं पंचाणउयं पदेसाओ उव्वेहुस्सेहपरिहाणीए पण्णत्ता।
इस जम्बूद्वीप के चरमान्त भाग से चारों दिशाओं में लवण समुद्र के भीतर पंचानवें-पंचानवें हजार
__चौरनवां समवाय
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Samvayang Sutra