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अड़तालीसवां समवाय
The Forty Eighth Samvaya २७१-एगमेगस्स णं रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अडयालीसं पट्टणसहस्सा पण्णत्ता। प्रत्येक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा के अड़तालीस हजार पट्टण कहे गए हैं।
Forty eight thousands ports have been said of each and every supreme lord (Chakravarti).
२७२-धम्मस्स णं अरहओ अडयालीसं गणा, अडयालीसं गणहरा होत्था। धर्म अर्हत् के गण और गणधरों की संख्या अड़तालीस-अड़तालीस कही गई है।
The numbers of ascetics groups (Gan) and head of the ascetic groups (Gandhar of Arihant Dharam) had been forty eight, forty eight respectively. | २७३-सूरमंडले णं अडयालीसं एकसट्ठिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं पण्णत्ते।
सूर्यमण्डल एक योजन के इकसठ भागों में से अड़तालीस भाग-प्रमाण विस्तार वाला निरूपित
Thę orbit of the Sun has been expounded of the expansion of forty eighth parts out of sixty one parts of one yojana.
॥ अड़तालीसवां समवाय समाप्त ।। (The End of Forty Eighth Samvaya)
उनचासवां समवाय
The Forty Nineth Samvaya २७४-सत्त-सत्तमियाए णं भिक्खुपडिमाए एगूणपन्नाए राइदिएहिं छन्नउइभिक्खासएणं अहासुत्तं जाव [ अहाकप्पं अहातच्चं सम्मं काएणं फासित्ता पालित्ता सोहित्ता तीरित्ता किट्टित्ता आणाए अणुपालित्ता] आराहिया भवइ।
सप्त-सप्तमिका भिक्षु प्रतिमा (सात-सात दिन के सात सप्ताह का अभिग्रह-विशेष) उनचास रात्रिदिवसों से तथा एक सौ छियानवें भिक्षाओं से यथासूत्र यथामार्ग से (यथाकल्प से, यथा तत्त्व से, सम्यक् प्रकार काय से स्पर्शकर पालकर शोधन कर, पारकर, कीर्तन कर आज्ञा से अनुपालन कर) आराधित होती है। समवायांग सूत्र
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सत
48th Samvaya