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(12) सम्यग्दृष्टिता-सम्यक्त्व की विशुद्धि। (13) समाधि-मानसिक स्वास्थ्य एवं एकाग्रता। (14) आचारोपगत-पंचविध आचार का निरतिचार पालन करना। (15) विनयोपगत-विनम्रभाव धारण करना। (16) धृति-मति-धैर्य रखना। (17) संवेग-मोक्ष की अभिलाषा रखना। (18) प्रणिधि-माया का त्याग करना। (19) सुविधि-श्रेष्ठ अनुष्ठान में संलग्न रहना। (20) संवर-आस्रव-द्वारों को रोकना। (21) आत्मदोषोपसंहार-अपने दोषों का उपसंहार करना। (22) सर्वकाम विरक्तता-काम-भोगों से विरक्त होना। (23) प्रत्याख्यान-मूल गुणों की शुद्ध आराधना करना। (24) प्रत्याख्यान-उत्तरगुणों की शुद्ध आराधना करना। (25) व्युत्सर्ग-शारीरिक ममता का त्याग करना। (26) अप्रमाद-प्रमाद नहीं करना। (27) लवालव-समाचारी के पालन में सतत सावधान रहना। (28) ध्यान संवरयोग-धर्म-शुक्ल रूप शुभ ध्यानों की आराधना करना। (29) उदए मारणन्तिए-मारणान्तिक कष्ट के समय भी अधीर न होना। (30) संग-त्याग-संग का त्याग करना। (31) प्रायश्चित्त करण-दोषों की निवृत्ति के लिए प्रायश्चित्त लेना। (32) आराहणा य मरणंते-शारीरिक और काषायिक क्षीणता के लिए संलेखना करना।
The number of yoga samgrah has been said twenty two. The correct/right activity/business of mind, body and speech of a seeker of moksha/liberation is called yoga samgrah. The practice of liberation/moksha could be completed through yoga samgrah as :
1.
Confession: To confess voluntarily before the head of the order
बत्तीसवां समवाय
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Samvayang Sutra