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(bondage of Karmas to the soul) has been said of four kinds as :- 1.Prakriti (nature of) Bandh, 2. Stithi (duration) Bandh, 3. Anubhav (potency) Bandh, 4. Pradeshik (space points) Bandh. One Yojan is measured equal to four Kos (four gayuti).
२१-अणुराहानक्खत्ते चउत्तारे पन्नत्ते, पुव्वासाढानक्खत्ते चउत्तारे पन्नत्ते। उत्तरासाढानक्खत्ते । चउत्तारे पन्नत्ते।
तीन नक्षत्र–अनुराधा, पूर्वाषाढा और उत्तराषाढा, चार-चार तारों वाले कहे गए हैं।
Three constellations namely of Anuradha, Purvashadha and Uttrashadha | have been said of four stars each.
२२-इमीसेणं रयणप्पभाए पुढवीए अत्यंगइयाणं नेरइयाणं चत्तारि पलिओवमाई विई ॐ पन्नत्ता। तच्चाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चत्तारि सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं देवाणं अत्यंगइयाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
रत्नप्रभा पृथ्वी में और बालुकाप्रभा पृथ्वी में नारकों की स्थिति क्रमशः चार पल्योपम और चार | || सागरोपम कही गयी है। असुरकुमार देव चार पल्योपम की स्थिति के कहे गए हैं और सौधर्म-ईशान कल्पों में देवों की स्थिति चार पल्योपम की है।
The life span of the hellish beings of Rattan Prabha (hell) and Balukuprabha (hell) has been described of four Palyopama and four Sagropama duration respectively. The duration of life of Asur Kumar (fiendish) gods is said to be four Palyopama and the celestial beings of Sodharmik and Ishan Kalpahave the age of four Palyopama.
२३-सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। * जे देवा किढिं सुकिलुि किट्ठियावत्तं किट्ठिप्पभं किट्ठिजुत्तं किट्ठिवण्णं किट्ठिले किट्ठिज्झयं किट्ठिसिंग किट्ठिसिटुं किट्ठिकूडं किट्टत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसिं णं देवाणं | उक्कोसेण चत्तारि सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। ते णं देवा चउण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा, ऊससंति वा नीससंति वा। तेसिं देवाणं चउहि वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पजइ।
सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्पों के देव चार सागरोपम वाली स्थिति के कहे गए हैं। कृष्टि, सुकृष्टि, ॐ कृष्टि-आवर्त, कृष्टिप्रभ, कृष्टियुक्त, कृष्टिवर्ण, कृष्टिलेश्य, कृष्टिध्वज, कृष्टि श्रृंग, कृष्टि सृष्ट, कृष्टिकूट और ,
कृष्टि-उत्तरावतंसक विमानों के देवों की उत्कृष्ट स्थिति चार सागरोपम से अभिव्यक्त है। वे चार अर्धमासों के अर्थात् दो मास के अन्तराल में आन-प्राण अथवा उच्छ्वास-निःश्वास की क्रिया करते हैं। वे देव चार
हजार वर्ष में आहार लेने की इच्छा रखते हैं। ॐ चौथा समवाय )
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Samvayang Sutra % % %% %% % %% %% % %% % %% % %% % %%% %% %% %% %