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१९८-एगमेगे णं अहोरत्ते तीसमुहुत्ते मुहुत्तग्गेणं पण्णत्ते। एएसिंणं तीसाए मुहुत्ताणं तीसं * नामधेजा पण्णत्ता, तं जहा-रोहे सत्ते मित्ते वाऊ सुपीए ५, अभिचंदे माहिदे पलंबे बंभे सच्चे || १०, आणंदे विजए विस्ससेणे पायावच्चे उवसमे १५, ईसाणे तटे भाविअप्पा वेसमणे वरुणे
२०, सतरिसभे गंधव्वे अग्गिवेसायणे आतवे आवत्ते २५, तट्ठवे भूमहे रिसभे सव्वट्ठसिद्धे रक्खसे ३०।
एक-एक अहोरात्र यानि दिन-रात तीस मुहूर्त का कहा गया है। यह तीस मुहूर्त, मुहूर्त-गणना की अपेक्षा से है। इन तीस मुहूर्तों के तीस नाम इस प्रकार हैं, यथा - १. रौद्र, २. शक्त, ३. मित्र, ४. वायु, ५. सुपीत, ६. अभिचन्द्र, ७. माहेन्द्र, ८. प्रलम्ब, ९. ब्रह्मा, १०. सत्य, ११. आनन्द, १२. विजय,
१३. शिवसेन, १४. प्राजापत्य, १५. उपशम, १६. ईशान, १७. तष्ट, १८. भावितात्मा, १९. वैश्रमण, 5 २०. वरुण, २१. शत ऋषभ, २२. गन्धर्व, २३. अग्निवैशायन, २४. आतप, २५. आवर्त, २६. तष्टवान, | | २७. भूमह (महान), २८. ऋषभ, २९. सर्वार्थसिद्ध, ३०. राक्षस।
The duration of day and night has been said of thirty (muhurat). This counting of muhurat is with regard today of thirty muhurats. The names of these thirty muhurats are as follows :- 1. Rudra, 2. Shakt, 3. Mitra, 4. Vayu, 5. Supit, 6. Abhichandra, 7. Mahendra, 8. Pralamb, 9. Brahma, 10. Satya, 11. Anand, 12. Vijay, 13. Shivsen, 14. Prajapatya, 15.Upsham, 16. Ishan, 17. Tashat, 18. Bhavitatma, 19. Vaishraman, 20. Varun, 21. Shat Rishabh, 22. Gandharva, 23. Agnivaishyan, 24. Atap, 25. Avart, 26. Tashtvan, 27. Bhumah (Mahan), 28. Rishabh, 29. Sarvarthsidh, 30. Rakshas.
१९९-अरे णं अरहा तीसं धणूइं उठें उच्चत्तेणं होत्था। अठारहवें अर अर्हन् के बारे में कहा गया है कि वे तीस धनुष ऊँचे थे।
It has been said that the height of the eighteenth Lord (Arihant) Shri Arhanath was equal to thirty bows.
२००-सहस्सारस्स णं देविंदस्स देवरण्णो तीसं सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। सहस्रार देवेन्द्र देवराज के विषय में कहा गया है कि उनके तीस हजार सामानिक देव हैं।
It has been said in respect of the head celestial being of sahasrar celestial vehicle that the number of the Samanik gods are thirty thousand.
२०१-पासे णं अरहा तीसं वासाइं अगारवासमझे वसित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए। समणे णं भगवं महावीरे तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए।
तीर्थंकर भ० पार्श्वनाथ अर्थात् पार्श्व अर्हन् तीस वर्ष तक अगार अवस्था अर्थात् गृह-वास में रहे। 5 इसके उपरान्त वे अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए।
समवायांग सूत्र
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30th Samvaya