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अत्थेगइयाणं नेरइयाणं जहण्णेणं वावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं । * अत्थेगइयाणं वावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं || वावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बाईस पल्योपम स्थिति के कितने ही नारक कहे गए हैं। छठी पृथ्वी तम:प्रभा है, उसमें नारक बाईस सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति के कहे गए हैं। इसके नीचे तमस्तमा नामक सातवीं | पृथ्वी है। इसमें नारकों की जघन्य स्थिति बाईस सागरोपम कही गई है। कितने ही असुरकुमार देव || बाईस पल्योपम स्थिति के कहे गए हैं। सौधर्म-ईशान कल्पों में भी कितने ही देवों की स्थिति बाईस पल्योपम बतायी गई है।
In the hell of Ratanprabha the hellish beings have been narrated of life span of twenty two Palyopama duration. The sixth hell (prithvi) is Tamhprabha in which the hellish being shave been said of the life duration maximum of twenty two Sagropama. Below it there is situated the seventh Prithvi (hell)named Tamhstambha in which the life span of the hellish beings has been described minimum of twenty two Sagropama duration Sodharma-Ishan kalps's celestial being shave been said having the life span of twenty two Palyopama duration.
१५४-अच्चुते कप्पे देवाणं [ उक्कोसेणं] वावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। हेट्ठिम-हेट्ठिमगेवेजगाणं देवाणं जहण्णेणं वावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। जे देवा महियं विसूहियं विमलं | पभासं वणमालं अच्चुतवडिंसगं विमाणं देवत्ताए अववण्णा, तेसिं णं देवाणं उक्कोसेणं वावीसं
सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा [वावीसं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा, उस्ससंति वा नीससंति वा।] तेसिं णं देवाणं वावीसवाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पजइ। ।
संतेगइया भवसिद्धिआ जीवा जे वावीसं भवग्गहणेहिं सिझिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति | परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
अच्युतकल्प में देव बाईस सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति के कहे गए हैं। अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक देव बाईस सागरोपम जघन्य स्थिति के हैं। वहाँ देव विशिष्ट विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं। उन विमानों की संख्या छह कही गई है। यथा - १. महित विमान, २. विसूहित (विश्रुत) विमान, ३. विमल विमान, ४. प्रभास विमान, ५. वनमाल विमान, ६. अच्युतावतंसक विमान। वे देव बाईस सागरोपम
उत्कृष्ट स्थिति के कहे गए हैं। वे देव बाईस अर्धमासों (ग्यारह मासों) के उपरान्त उच्छ्वास-नि:श्वास | या आन-प्राण की क्रिया करते हैं। वे देव बाईस हजार वर्षों के पश्चात् आहार की इच्छा करते हैं।
वहाँ कितने ही भव्यसिद्धिक जीव बाईस भव (जन्म ) ग्रहण करेंगे। इसके उपरान्त वे सिद्धबुद्ध होंगे। तदनन्तर वे भव्यसिद्धिक जीव कर्मों से विमुक्त होकर परमनिर्वाण को प्राप्त होंगे। वे जीव अन्ततोगत्वा सर्व दु:खों का शमन (अन्त) करेंगे।
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बाईसवां समवाय
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Samvayang Sutra 历历步步步步步步步步步步步步步步步步步步步为当当当当当当当当