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सत्ताईसवां समवाय
The Twenty Seventh Samvaya १७८-सत्तावीसं अणगारगुणा पण्णत्ता, तं जहा-पाणाइवायाओ वेरमणं १, मुसावायाओ वेरमणं २, अदिन्नादाणाओ वेरमणं ३, मेहुणाओ वेरमणं ४, परिग्गहाओ वेरमणं ५, सोइंदियणिग्गहे ६, चक्खिदियणिग्गहे ७, घाणिंदियणिग्गहे ८, जिभिदियणिग्गहे ९, फासिंदियणिग्गहे १०, कोहविवेगे ११, माणविवेगे १२, मायाविवेगे १३, लोभविवेगे १४, भावसच्चे १५, करणसच्चे १६, जोगसच्चे १७, खमा १८, विरागया १९, मणसमाहरणया २०, वयसमाहरणया २१, कायसमाहरणया २२, णाणसंपण्णया २३, दसणसंपण्णया २४, | चरित्तसंपण्णया २५, वेयण अहियासणया २६, मारणंतिय अहियासणया २७। . ___अनगार-निर्ग्रन्थ साधुओं (अनगार श्रमण) के सत्ताईस गुण (पाँच मूल गुण और शेष बाईस उत्तर गुण) निरूपित हैं। यथा – १. प्राणातिपात-विरमण मूल गुण, २. मृषावाद-विरमण मूल गुण, * ३. अदत्तादान-विरमण मूल गुण, ४. मैथुन-विरमण मूल गुण, ५. परिग्रह-विरमण मूल गुण, ६. श्रोत्रेन्द्रियनिग्रह उत्तर गुण, ७. चक्षुरिन्द्रिय निग्रह उत्तर गुण, ८. घ्राणेन्द्रिय-निग्रह उत्तर गुण, ९. / जिह्वेन्द्रिय-निग्रह उत्तर गुण, १०. स्पर्शनेन्द्रिय-निग्रह उत्तर गुण, ११. क्रोधविवेक उत्तर गुण, १२. मान | विवेक उत्तर गुण, १३. माया विवेक उत्तर गुण, १४. लोभ विवेक उत्तर गुण, १५. भावसत्य उत्तर गुण, १६. करण सत्य उत्तर गुण, १७. योग सत्य उत्तर गुण, १८. क्षमा उत्तर गुण, १९. विरागता उत्तर गुण, २०. मनः समाहरणता उत्तर गुण, २१. वचन समाहरणता उत्तर गुण, २२. काय समाहरणता उत्तर गुण, २३. ज्ञान सम्पन्नता उत्तर गुण, २४. दर्शन सम्पन्नता उत्तर गुण, २५. चारित्र सम्पन्नता उत्तर गुण, २६. वेदनाति सहनता उत्तर गुण, २७. मारणान्तिकाति सहनता उत्तर गुण (मरण के समय परीषहोंउपसर्गों को सहना तथा किसी व्यक्ति के द्वारा होने वाले मारणान्तिक कष्ट को सहते हुए भी उस पर कल्याणकारी मित्र की बुद्धि रखना)।
It has been narrated that there are twenty seven attributes (five main (radical) virtues and twenty two subsequent virtues) as :- 1. Main virtue of killing, 2. Main virtue of renouncing of telling lies, 3. Main (radical) attribution of taking the things which have not been given, 4. Main virtue of renouncing of copulation, 5. Main virtue of renouncing the possessiveness, 6. Subsequent attribute of controlling the sense of hearing, 7. Subsequent virtue of checking the sense of seeing, 8. Virtue of controlling the smelling sense of smell, 9. Subsequent attribute of restraining the senses of taste, 10. Subsequent virtue of restraining the sense of touch, 11. Subsequent attribute of anger discernment, 12. Subsequent virtue of conceit discernment, 13. Subsequent virtue of deceit
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ॐ सत्ताईसवां समवाय
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