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व सम्यग्दृष्टि भव्यजीव प्रशस्त अध्यवसान अर्थात् परिणाम से युक्त है, ऐसा भव्य जीव तीर्थंकर नाम
सहित नामकर्म की उनतीस प्रकृतियों को बाँधता है और नियम से वैमानिक देवों में देवरूप से उत्पन्न | होता है।
The right living being perceptual, capable of salvation, has meritorious reflection with (Prashast Adyaavsan). Such a being binds the twenty nine tendencies of physique making karmas including the ford maker tendencies and as a rule reincarnates as a celestial being into the celestial vehicle.
१९४-इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगूणतीसं पलिओवमाइं * ठिई पण्णत्ता। अहे सत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगूणतीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगूणतीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। F सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं एगूणतीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता।
___इस रत्नप्रभा पृथ्वी में उनतीस पल्योपम स्थिति वाले अनेकों नारकों का वर्णन है। अधस्तन सातवीं | पृथ्वी में उनतीस सागरोपम स्थिति वाले कितने ही नारक कहे गए हैं। कितने ही असुरकुमार देवों तथा सौधर्म-ईशान कल्पों के देवों की स्थिति उनतीस-उनतीस पल्योपम की बतायी गई है।
In this land of Ratanprabha hell the hellish beings have been narrated of the life span of twenty nine Palyopama duration. Below in the seventh land (Mahatamah hell) the life duration of the infernal beings has been narrated of twenty nine Sagropama. The life span of the malevolent demons and the celestial beings of Sodharma-Ishan celestial vehicles have been told of twenty nine Palyopama each.
१९५-उवरिममज्झिमगेवेजयाणं देवाणं जहण्णेणं एगूणतीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। जे देवा उवरिमहेट्ठिमगेवेजयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं एगूणतीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा एगूणतीसाए अद्धमासेहि आणमंति वा, पाणमंति वा, ऊससंति वा, नीससंति वा। तेसि णं देवाणं एगूणतीसं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पजइ।। ___संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे एगूणतीसभवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुझिस्संति | मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
उपरिम-मध्यम ग्रैवेयक देवों के विषय में कहा गया है कि इनकी जघन्य स्थिति उनतीस सागरोपम | है। उपरिम अधस्तन ग्रैवेयक विमानों में देवरूप से उत्पन्न होने वाले देवों की उत्कृष्ट स्थिति उनतीस # सागरोपम उल्लिखित है। वे देव उनतीस अर्धमासों यानि साढ़े चौदह मासों के उपरान्त उच्छ्वास-नि:श्वास |
अर्थात् आन-प्राण की क्रिया करते हैं। वे देव उनतीस हजार वर्षों के पश्चात् आहार की इच्छा करते
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हैं।
उनतीसवां समवाय
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Samvayang Sutra