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The constellations named Rohini, Punarvasu, Hast, Vishakha and Dhanishtha have been said of five stars each.
२९ - इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पंच पलिओवमाई ठिई * पन्नत्ता । तच्चाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पंच सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता । असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं पंच पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता । सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं * पंच पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता ।
रत्नप्रभापृथ्वी तथा बालुकाप्रभा पृथ्वी के कितने ही नारकों की स्थिति क्रमश: पाँच पल्योपम तथा पाँच सागरोपम कही गई है। सौधर्म - ईशान कल्पों के कितने ही देव पाँच पल्योपम स्थिति के कहे गए हैं।
The life duration of the hellish beings of the Ratanprabha and Balukaprabha hells have been described of five Palyopama and five Sagropama respectively. The age duration of the celestial beings of the Sodharma and Ishan kalpas has been said of five Palyopama.
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३०-सणंकुमार-माहिंदेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं पंच सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता । जे देवा वायं सुवायं वायावत्तं वायप्पभं वायकंतं वायवण्णं वायलेसं वायज्झयं वायसिंगं वायसिट्ठि * वायकूडं वाउत्तरवडिंसगं सूरं सुसूरं सूरावत्तं सूरप्पभं सूरकंतं सूरवण्णं सूरलेसं सूरज्झयं सूरसिंगं सूरसिद्धं सूरकूडं सूरूत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसिं णं देवाणं उक्कोसेणं पंच सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता । ते णं देवा पंचण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा, ऊससंति वा नीससंति वा, तेसिं णं देवाणं पंचहिं वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ ।
संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे पंचहि भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ।
सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्पों के कितने ही देव पाँच सागरोपम स्थिति वाले कहे गए हैं। वात, सुवात, वातावर्त, वातप्रभ, वातकान्त, वातवर्ण, वातलेश्य, वातध्वज, वातश्रृंग, वातसृष्ट, वातकूट वातोत्तरावतंसक, सूर, सुसूर, सूरावर्त, सूरप्रभ, सूरकान्त, सूरवर्ण, सूर लेश्य, सूरध्वज, सूरश्रृंग, सूरसृष्ट, सूरकूट और सूरोत्तरावतंसक नामक चौबीस विशिष्ट विमानों के देवों की उत्कृष्ट स्थिति पाँच सागरोपम बतायी गई
है। वे देव पाँच अर्धमासों (ढाई मास) में उच्छ्वास - निःश्वास अर्थात् आन प्रान की क्रियाएँ करते हैं।
वे देव पाँच हजार वर्ष के अन्तराल से आहार की इच्छा रखते हैं।
कितने ही भव्य सिद्धिक जीव पाँच भव ग्रहण करेंगे, इसके उपरान्त सिद्ध, बुद्ध, तथा कर्मों से मुक्त होंगे। कर्ममुक्त होकर परम निर्वाण को प्राप्त होंगे। वे भव्यसिद्धिक जीव समस्त दुःखों का शमन
( अन्त) करेंगे।
पांचवां समवाय
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Samvayang Sutra
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新编告