________________
% %%% %%%% %%%% %% %%%% %%%%%%%% %%%%% %% %
__ आठ नक्षत्र चन्द्रमा के साथ प्रमर्दयोग (चन्द्रमा का नक्षत्रों के मध्य से गमन करते समय उसके | उत्तर और दक्षिण पार्श्व से उनका चन्द्रमा के साथ संयोग) करते हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं, यथा - १. कृत्तिका नक्षत्र, २. रोहिणी नक्षत्र, ३. पुनर्वसु नक्षत्र, ४. मघा नक्षत्र, ५. चित्रा नक्षत्र, ६. विशाखा नक्षत्र, ७. अनुराधा नक्षत्र, ८. ज्येष्ठा नक्षत्र।
The constellations which do Pramadyoga with the moon (the combination of the constellations with Moon while Moon travels through these Nakshtras from their North and South flanks). The number of these constellations are said be eight i.e. 1. Krittika Nakshatra, 2. Rohini Nakshatra, 3. Punarvasu Nakshatra, 4. Magha Nakshatra, 5. Chitra Nakshatra, 6. Vishakha Nakshatra, 7.Anuradha Nakshatra, 8. Jyeshtha Nakshatra.
४९-इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठ पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। चउत्थीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठ सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठ पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं अट पलिओवमाडं ठिर्ड पण्णत्ता। - रत्नप्रभा पृथ्वी में कितने ही नारकों की स्थिति आठ पल्योपम बतायी गयी है। पंकप्रभा जो चौथी
पृथ्वी है उसके कितने ही नारक आठ सागरोपम वाली स्थिति के कहे गए हैं। कितने ही असुरकुमार | देव, तथा सौधर्म-ईशान कल्प के देव आठ-आठ पल्योपम वाली स्थिति के कहे गए हैं।
The duration of life of the hellish beings of the Ratanprabha hell has been 4 told of eight Palyopama. Pankprabha the IVth hell has the hellish beings having
the life span of eight Sagropama that Asurkumar Dev (fiendish) and the celestial beings of the Sodharma Kalp and Ishan Kalp have the life of eight Palyopama duration.
५०-बंभलोए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं अट्ठ सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। जे देवा अच्चि १, अच्चिमालिं २, बइरोयणं ३, पभंकरं ४, चंदाभं ५, सूराभं ६, सुपइट्ठाभं ७, अग्गिच्चाभं | ८, रिट्ठाभं ९, अरुणाभं १०, अणुत्तरवडिंसगं ११, विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसिं णं देवाणं उक्कोसेणं अट्ठ सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा अट्ठण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा, ऊससंति वा नीससंति वा। तेसिं णं देवाणं अट्ठहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पजइ।
संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे अट्ठहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति ॐ * परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। ____ ब्रह्मलोक कल्प में कितने ही देव आठ सागरोपम स्थिति के हैं। वहाँ जो देव ग्यारह विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, वे देव आठ सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति के कहे गए हैं। ये विमान इस प्रकार
乐 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听
29
समवायांग सूत्र %%%% %%%%%%%
8th Samvaya % %% %%%
%
%%
%%
%%
%
%
%