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constellations are said to be having their entrance gates in the East. Some say that the gates of the seven constellations including Abhijit etc. are situated in the East including Magha. Seven constellations, seven nakshtra including Anuradha and seven constellations including Dhanishtha are the Nakshtra having their gates in the directions of South, West and North respectively.
४२ - इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सत्त पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता । तच्चाए णं पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । चउत्थीए णं पुढवीए नेरइयाणं जहण्णेणं सत्त सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं सत्त पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं सत्त पलिओमाइं ठिई पण्णत्ता । सणकुमारे कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । माहिंदे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं साइरेगाई सत्त सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता ।
रत्नप्रभा पृथ्वी में कितने ही नारक सात पल्योपम वाली स्थिति के कहे गए हैं। बालुका पृथ्वी में नारक सात सागरोपम वाली उत्कृष्ट स्थिति के कहे गए हैं। पंक प्रभा - पृथ्वी में नारक सात सागरोपम वाली जघन्य स्थिति के हैं। असुरकुमार देवों तथा सौधर्म-ईशान कल्पों के देवों की स्थिति सात-सात पल्योंपम की कही गई है। सनत्कुमार कल्प और माहेन्द्र कल्प के देवों की उत्कृष्ट स्थिति क्रमशः सात सागरोपम और सात सागरोपम से कुछ अधिक है।
The beings of the Ratanprabha hell have been told of the life span of seven Palyopama. The maximum life span of the beings of the Balukaprabh hell has been said of seven Sagropama duration. The life span of the gods of Asurkumar and Sodharma - Ishankalpa has been said of maximum of seven Sagropama and the maximum life span of gods of Mahendra Kalp and Sand Karma Kalpa is little more than seven Sagropama respectively.
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४३ - बंभलोए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं सत्त साहिया सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । जे देवा समं समप्पभं महापभं पभासं भासुरं विमलं कंचणकूडं सणकुमारवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसिं णं देवाणं उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । ते णं देवा सत्तण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा, पाणमंति वा, ऊससंति वा, नीससंति वा, तेसिं णं देवाणं सत्तहिं वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ ।
संइया भवसिद्धिया जीव जे णं सत्तहिंभवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति क परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ।
ब्रह्मलोक के कितने ही देव सात सागरोपम से कुछ अधिक स्थिति वाले बताए गए हैं। जो देव विशिष्ट विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उनकी उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम है। इन विशिष्ट
समवायांग सूत्र
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7th Samvaya
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