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%% %%%% %% %% %% %% %% %% % %%% %% %% %% %% % % * अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा, ऊससंति वा, नीससंति वा। तेसिं णं देवाणं दोहिं |
वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ। अत्थेगइया भवसिद्धियाजीवा जे दोहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
शुभ, शुभकान्त, शुभवर्ण, शुभगन्ध, शुभलेश्य, शुभ स्पर्श वाले सौधर्मावतंसक विशिष्ट विमानों के 5 देवों की उत्कृष्ट स्थिति दो सागरोपम कही गई है। इन विमानों में उत्पन्न देव दो अर्धमासों में अर्थात् एक मास में आन-प्राण या उच्छ्वास-नि:श्वास की क्रिया करते हैं। इन देवों में दो हजार वर्ष के उपरान्त र आहार ग्रहण करने की इच्छा उत्पन्न होती है। कुछ भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो दो भव ग्रहण करके सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त तथा परम निर्वाण को प्राप्त होंगे तथा समस्त दु:खों का अन्त करेंगे।
The maximum life span of the gods of the Shubh, Shubhkant, Shubhvarsh, Shubhgandh, Shubhleshya and the exclusive vehicles of the auspicious touchable Shoudharmavtarsak god's has been said of two Sagropama, the gods who have reincarnated in these celestial vehicles inhale and exhale once in a month. The desire of these gods to take meal grows after two thousand years. A few are Bhavsidhik Jeeva (capable of salvations) who will become Sidh, Budh and be liberated from the bondage of Karma and attain Salvation after taking only two births in future. They will terminate all the miseries of life ultimately.
॥ दूसरा समवाय समाप्त । || The End of Second Samvaya ||
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तीसरा समवाय
The Third Samvaya १५-तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा-मणदंडे. वयदंडे कायदंडे। तओ गुत्तीओ पन्नत्ताओ, || तं जहा-मणगुत्ती, वयगुत्ती, कायगुत्ती। तओ सल्ला पन्नत्ता। तं जहा-मायासल्ले णं नियाणसल्ले 5 णं मिच्छादसणसल्ले णं। तओ गारवा पन्नत्ता, तं जहा-इद्धीगारवे णं रसगारवे णं सायागारवे | णं। तओ विराहणा पन्नत्ता, तं जहा-नाणविराहणा दंसणविराहणा चरित्तविराहणा।
___ दण्ड (चारित्र रूप ऐश्वर्य का तिरस्कार होना तथा आत्मा का दण्डित होना) तीन प्रकार के गए हैं यथा – १. मनदण्ड, २. वचन दण्ड, ३. कायदण्ड। गुप्ति (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान पूर्वक मन, वचन
और काया की प्रवृत्ति को अपने मार्ग में स्थापित करना अर्थात् अशुभ प्रवृत्ति को रोकना और शुभ प्रवृत्ति को करना) के तीन भेद हैं, यथा – १. मनगुप्ति, २. वचन गुप्ति, ३. कायगुप्ति। शल्य (अन्तरंग 4 में वेदना या कष्ट देने वाली) के भी तीन भेद बताए गए हैं यथा - १. माया शल्य, २. निदान शल्य,
तीसरा समवाय
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Samvayang Sutra