Book Title: Jainetar Drushtie Jain
Author(s): Amarvijay
Publisher: Dahyabhai Dalpatbhai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेनेतरदृष्टिए जैन. मुनिश्री अमरविजयजी महाराज, Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद्विजयानन्दसूरीश्वरचरणारविन्दाभ्यां नमः । जैनेतरदृष्टिए जैन. अथवा जैनेतर अनेक मध्यस्थ विद्वानोना जैनधर्म संबन्धि अभिप्रायो. _' संग्राहकजैनाचार्य-न्यायाम्भोनिधि-श्रीमद्विजयानन्दसूरीश्वर (अपरनाम श्रीमदात्मारामजी महाराज) ना लघु- र शिष्य मुनिश्नी अमरविजयजी महाराज. Kachakeepakickasex छपावी प्रसिद्ध करनारशा. डाह्याभाई दलपतभाई. मु. भरुच. (गुजरात). वीर संवत् २४४९१ प्रथमावृत्ति (आत्म संवत् २७४ 2 विक्रम संवत् १९७९ । प्रत २००० । सन् १९१३ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वडोदरा. लहाणामित्र स्टीम प्रिं. प्रेसमां विठ्ठलभाई आशाराम ठक्करे प्रकाशक माटे छाप्युं. ता. ५-११-१९२३. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनाचार्य-न्यायांभोनिधि-श्रीमद् विजयानंदसूरीश्वरजीना लघुशिष्य दक्षिणविहारी-श्री अमरविजयजी महाराज. जन्म संवत १९१५ ना फाल्गुण शुदि १५ * दीक्षा संवत १९३८ ना वैशाख शुदि. २ શિનોરવાસી શા. ગુલાબચંદ શિવલાલ માઈએ પોતાની સ્વ. સધર્મચારિણીના શ્રેયાર્થે તથા ગુરૂભકિત નિમિત્ત આ टे। 5 राय छे. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GOv000000Crvaro0000000000000474MARATHom. दक्षिण विहारि सदगुरुवर्य श्रीमदर विजय मु नपुङ्गव गुणस्तुत्यष्टकम. मन्दाक्रान्तावृत्तम् । 00000000000000000000000000000000000000000000000000000 पायं पायं भवभयहरी वाक्सुधां यो गुरूणां श्रायं श्रायं विरतहृदयो जैनदीक्षां वरेण्याम् । लायं लायं ह्य विचलमनाः शीक्षणं योऽवुधच्च सोऽयं दद्यादमरविजयः सदगुरुमङ्गलं नः ॥ जापं जापं प्रकटविभवं तीर्थकृन्नाममन्त्रं वाएं वापं भविकहृदयक्ष्मासु सद्धर्मबीजम् । तापं तापं दुरितततिहृत दुस्तपो या व्यराजत सोऽयं दद्यादमरविजयः सद्गुरुमङ्गलं नः ॥२॥ शाम शामं भवततिकरान् यः स्वकीयान कषायान् दामं दामं भुवनजयिनं चेन्द्रियग्राममुग्रम् । वामं वामं विकलितजगन्मोहसीधु व्यलासीत् सोऽयं दद्यादमरविजयः सद्गुरुर्मङ्गलं नः ॥३॥ भ्रामं भ्रामं जगति च जिनाधीशतीर्थषु भक्त्या नाम नामं सुरनरनताः सादरं जैनमूर्तीः । रामं रामं निजगुणगणे योऽशुधत् सौवचेतः सोऽयं दद्यादमरविजयः सदगुरुमगलं नः ॥४॥ 00030000000000000000000000DOOMDEVOOMon Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गालं गाले विमलगुणभाक् योऽभिमानं स्वकीयं चालं चालं जिनवरपथे योऽनबद्ये मदेव ।। ज्वालं ज्वालं भवदमदहत् कर्म यो ध्यानवन्हि मोऽयं दद्यादमर विजयः सद्गुरुमङ्गलं नः ॥५॥ श्रोधं बाधं भविकनिकरं स्वीय पीयुषवाण्या शोधं शोधं कलुषकलुषं तन्मना दर्पणाभम् । योधं योधं मतिभदजयद्वादिनी यश्च वादे मोऽयं तन्यादमर विजयः सदगुरुर्मङ्गलं नः ॥६॥ दाय दायं जिनसमय विदच्छुद्धधर्मापदेश आय त्रायं भविकमनुजान् योऽहितीमार्गगन्तृन् । नायं नायं ह्य वितथपथेऽतिष्ठिपधः प्रकामं मोऽयं दिश्यादमा विजयः मदगुरुमगलं नः धारं धारं सरणिमहमं यश्च वैराग्यखङ मारं भारं स्मररिपुमरं शीलमन्त्राहशाली । भारं भारं विमलयशमा यो जगन्तीम दीपि सोऽयं दिश्यादमरविजयः सदगुरुर्मङ्गलं नः ॥८११ इतिगुणगणभाजां धीमतां सद्गुरूणां स्तवनमरचि भक्त्या चेतसि प्रस्फुरत्या । चतुरविजयनाम्ना शिष्यलेशेन तेषां वसुमुनि निधिभूमीसंख्यके वैक्रमे दे Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रस्तावना॥ ॐ श्री स्यावादिने नमः। प्रिय वाचको ! लोकोने बोध थवाना हेतुथी आ पुस्तकमां लेखोनो संग्रह करवामां आव्यो छे, दुनीया " शांतिनो " मार्ग ढूंढे छे पण बीजा जीवोर्नु अहित करीने जो पोते शांति मेळववा चाहतो होय तो ते केवल भ्रांतिमय छे. कदाच पूर्व पुण्यना प्रबल संयोगोथी वर्तमानकालमां विघ्न देखी शकतो न होय, पण परभवमां तो ते पापर्नु प्रायश्चित भोगव्या विना छुटको थायन नहीं; एम सर्वे धर्मना शास्त्रो पोकारी पोकारीने कही रह्यां छे. माटे पोताना आत्माने आ भवमां तेमन परभवमां शांतिमय बनाववानी इच्छा होय तेवा महापुरुषोने कोई निःस्वार्थी महापुरुषोनो कहेलो, सर्व जीवोना हितवालो, तत्त्वस्वरूपमय, सत्य धर्म होय ते मेळववानी खास जरुर छे. जुवो के पूर्वकालमां केटलाक महापुरुषोने तेवा "हिंसक" मार्गना प्रपंचथी तिरस्कार पण ययेलो जोवामां आवे छे, तेथी ते हिंसक प्रवृत्तिभोने छोडी दई पोते भक्तिमार्गनां अथवा Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) निवृत्तिमार्गनां वचनोने प्रगट करी तेओए लोकोने ते तरफ दोरेला छे पण ते मुख्य पुरुषोनो अभाव थया पछी तेमना अनुयायीओने ते हिंसक लोकोए पोतानी चालती हिंसक प्रवृत्तिनी प्रथामा भेलसेलज करी दीधा छे,पण ते भक्तिमार्गमां के निवृत्तिमार्गमां शुद्धपणे रहेवा दीधा नथी. हिंसक प्रवृत्तिमां भळेला पाछा फरीथी हिंसक रूप तामसी कोटडीमांथी निकळवा पामे नहीं तेवा हेतुथी अनेक - प्रकारनी वाग्जाल पण करी मुकेली छे, जेमके " स्वधर्म निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः " पुनः " हस्तिना ताज्यमानोऽपि न गच्छेज्जैनमंदिरं" इत्यादि अनेक प्रकारथी एवा फसाव्या छे के जेथी अज्ञानवर्ग कोइ पण प्रकारथी सत्यधर्मनो आश्रय मेळवी शके नहीं. खरु जोतां स्वार्थीलोकोए सत्यधर्मथी वंचित राखी केवळ स्वार्थ साधवाने माटेज आ प्रपंच रचेलो होय एम लागे छे, परंतु आ अंग्रेजोना राज्यमां ते वागजालनु मान स्वभावधीज ओछु थतुं जाय छे ए पण एक समयनीज बलिहारी छे ॥ हवे आपणे विचार करवानो ए छे के, जे धर्ममां पोतार्नु अने बीजा जीवोर्नु सर्व प्रकारथी हित समाएलु होय, अने ते धर्म निःस्वार्थी एवा पूर्णतत्त्वज्ञानीना मुखथी प्रगट थयेलो होय, अने ते सत्यधर्म प्राचीन कालथी चालतो आवेलो होय, तेवा Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३ ) सत्य धर्मनो आश्रय मेळवीए तो जरुर आपणे आपणा आत्माने आ भवना तेमज परभवना जोखममां पडतो बचावी शकीए. हवे ते प्राचीनकालथी चालतो आवेलो खरो सत्यधर्म कयो हशे ? अने तेमां केवा केवा प्रकारना तत्त्वो समायेला हो ! विगेरे विचारो को त्राहित मध्यस्थ पुरुषोनी--दृष्टिथी विचारीये तो जरूर सत्याऽसत्यनो निर्णय करी शकीये. ते सत्यासत्यनो निर्णय क्यारे करी शकीये के ज्यारे आपणा दुराग्रहने छोडी दइ, माध्यस्थपणानी बुद्धिधी पुरूतपणे विचार करीये तो, अवश्य आपणा आत्माने अधोमार्गमां पडताने रोकी सत्यधर्म उपर चढावी शकीए, ए शिवाय बीजो कोइ पण सुगम रस्तो वामां आवतो नथी ॥ सत्यधर्मना मार्गने शोधवानो उपाय ए छे के धर्म बे प्रकारना हेतुथी चालतो आवेलो होय छे - एक धर्म अल्पज्ञोथी प्रवर्त्तमान स्वार्थसाधक, अने बीजो सर्वज्ञोथी प्रवर्त्तमान परमार्थ - पोषक. जो के स्वार्थ साधक धर्ममां परमार्थनी वातो न होय तो तेने कोइ पण मान आपे नहीं, माटे तेमां परमार्थनी वातो प्रसंगने अनुसरीने लीघेली तो होयज पण ज्यारे बारीक Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दृष्टिथी विचार करीये तो, ते परमार्थ वातो पण मुख्यपणे स्वार्थ साधवाना हेतुथीन मिश्रित थयेली छे एम दृष्टिमां तरी आवशे. तो पछी तेवा स्वार्थी लोकोना शास्त्रोमांथी आत्माना उद्धारनो रस्तो केवी रीते शोधी काढवो ? ते काइ सामान्य बुद्धिवालाथी शोधी शकायज नही. माटे -तेमांनाज मध्यस्थ पंडितोए पोताना चालता धर्मनो अने बीजाना चालता धर्मनो अभ्यास करी सत्य हृदयथी टुंकमां सारभूत उद्गारो प्रगट करेला होय, तेनो विचार करतां जे कांइ आपणने सत्य स्वरूप भासमान थाय, ते तरफ आपणुं वलण फेरवीने ते सत्यधर्मना महात्माओनी संगत करी किंचित् किंचित् तत्त्व मेलवता रहीये, तो पण आपणी चालती भूलने सुधारी शकीए. हुं कांइ बधा मतना संपूर्ण तत्त्वोने जाणवानो दावो करी शकतो नथी, पण तेवा तत्त्वना जाण मध्यस्थ पुरुषो-जे जे पोताना निर्मल हृदयथी उद्गारो प्रगट करी गयेला होय, तेमनाज विचारोगी विचार करीये तो, आपणे पण आपणुं ध्येय साधवाने समर्थ थइ शकीए. हुं पण तेवाज ख्यालथी तेवा मध्यस्थ पुरुषोना वचनोमा रहेली महत्त्वतानो विचार करी, लोकोने विचार करवानी सुगमता करी आपबानू धारु छ. आटली सूचना करीने, हवे हुं ते बताववा प्रयत्न करीश. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) • जूवो के धर्मनो विषय अगाध छे तेमज प्रपंची पंथो पण घणा छे, छतां पण हिंदुओना धर्मोनो विचार करी जोतां १ वैदिक २ जैन. अने ३ बौद्ध. ए त्रण धर्मोज घणा प्राचीनकालथी विस्तारपणे चालता आवेला नजरे पडे छे तेमज तेमना तत्त्वग्रंथोनो विस्तार पण जाणवा जेवोज होय छे. बाकीना पंथो तेणे धर्मोथी किंचित् किंचित् पोताने मन गमता विचारोने ग्रहण करी प्रसिद्ध थयेला छे एम जणाइ आवे छे. प्रथम अमोए कं हतुं के एक धर्म स्वार्थसाधक अने बीजो धर्म " परमार्थपोषक " तो हवे एनो सामान्यपणे विचार करी जोतां - इंद्रियोनाज सुखने माटे तेमज - धन, पुत्र, कलत्रादिक ऐहिक सुखना माटे तेमज परलोकमां राज्यादिक संपदा मेलववा अथवा इंद्रादिकनी पदवी मेलववाने माटे मुख्यपणे शास्त्रोनुं बंधारण थयेलुं होय, ते धर्मशास्त्रने स्वार्थसाधक तरीके मानवामां हरकत आवे नहीं. अने इंद्रियोना विषयनी सुख प्रवृत्तिथी पोताना आत्माने हटाववाने माटे, तेमज धन पुत्रादिकना मोहथी विरक्त थइ आत्मतत्त्व मेलववानी प्रवृत्ति थवाने माटे, जे शास्त्रोनी रचना थएली होय, ते शास्त्रो " परमार्थपोषक " धर्म तरीकेनांज मनाय. कारण के - सर्व कर्मोथी Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) मुक्त ययेज आत्माने दुःखनो अंत भवनार छे, एम हिंदुज्ञानना तत्त्ववेत्ताओनें कबूल करवुं पडे छे. तो हवे विशेष विचार करवानो एटलोज के ते कर्मवस्तु शुं हशे ? अने दुनियामां उचामां उचां सत्य तत्त्वोनो विचार कोणे कर्यो हशे ! अने ते तत्त्वो आज सुधी पूर्ण प्रसिद्धिमां आव्यां म नहीं होय ! तेनुं कारण जोतां एज मालम पडे छे के प्राचीन कालमां मतांधतानुंज प्राबल्य वधारे होवुं जोईए, अने ते कारणथीज - बौद्धोने आपणा हिंदुस्थानमांथी हांकी मुकवामां आव्या हता. मात्र जैनधर्मवालाओ उपरज तेटलो अत्याचार करवा शक्तिमान थया न हता. विचार करी जोतां ए सिद्ध थाय छे के प्राचीनकालमां जैनधर्मना तवोथी अने बौद्ध धर्मना तत्त्वोथी आगळ वधी शके एवो बीजो वर्ग हयाती धरावतो न हतो. ते कारणने लीज पुराणोवालाओने बौद्धने पण नवमा “ अवताररूपे " कल्पवानी जरुर पडी हती, जो के बौद्धधर्म तो हिंदुस्थानमांथी विदायज थएलो हतो. मात्र विशेष तत्त्वोनो प्रकाशक जे जैनधर्म हतो ते पण अनुकलताना अभावे दबाएलो रह्यो . तो पण जैनोना मूलतत्वोमां आज सुधी कोइ पण Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकारनो विकार थवा पाम्यो नथी, ए निर्विवाद सिद्ध छे. ते केवल सर्वज्ञ पुरुषोनी वाणीनीज खुबी छे. वर्तमानकाळमां मध्यस्थ देशी तेमज परदेशी जैनधर्मना अभ्यासीओ, जनोना सुनिश्चित सत्य तत्त्वोने एकी अवाजे स्वीकारे छे, ते आ नवा जमानामां लोकोने आश्चर्य कर्या शिवाय रहेशे नहीं. कारण पूर्वकालमां वैदिकधर्मी तथा ब्राह्मणधर्मी अनेक आग्रही पण्डितोना तरफथी जैनधर्मना मूलतत्वो उपर जूठा अने तद्दन अविचारित आक्षेपो सिवाय योग्य न्याय मळ्यो न होतो, तेमांनो एकज आक्षेप आ प्रसंगे टांकी बता, तो भारी पडतो नहीं गणाय. जुओ के-ब्रह्मसूत्रना प्रणेता वेदव्यास महर्षि "नैकस्मिन्नसंभवात् " आ सूत्रमा जैनधर्मनुं खंडन बीजरूपे लखी गएला, पछी तेना भाष्यकार अवतारिक अने सर्वज्ञ बिरुदना धारक श्री आद्यशंकरस्वामीजी जैनोना स्याद्वदन्यायर्नु विस्तारथी खण्डन करेलं, पण ते योग्य करेलु नथी, जुओ महामहोपाध्याय पं० गंगनाथ एम. ए. डी. एल. एल. इलाहाबादवाळा लखे छे के- जबसे मैंने शकराचार्यद्वारा जैनसिद्धांत पर Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) खंडनको पढा है तबसे मुझे विश्वास हुआ कि-इस सिद्धान्तमें बहुत कुछ है, जिसको वेदान्तके आचार्यने नहीं समझा और जो कुछ अभी तक मैं जैनधर्मको जान सका हूं उससे मेरा यह विश्वास दृढ हुआ है कि, यदि वह जैनधमको उसके असली ग्रन्थोसे देखनेका कष्ट उठाता तो, उनको जैनधर्मसे विरोध करनेकी कोई वात नहीं मिलती". एज प्रमाणे वैष्णवाचार्य श्रीराममिश्रशास्त्रीजी पण लखे छे, जुओ आज पुस्तकना प्रथम भागना पृ. ९६ थी "जैनदर्शन वेदान्तादि दर्शनोसें भी पूर्वका है तब ही तो भगवान् वेदव्यास महर्षि ब्रह्मसूत्रोमें कहते है ' नैकम्मिन्नसंभवात् 'xxx वेदोमें अनेकान्तवादका मुल मिलता है. " तथा पृ. १०७ थी काका कालेलकर पण जणावे छे के-" जैनतत्त्वज्ञानमां स्याद्वादनो बराबर शो अर्थ छे ते जाणवानो दावो हं करी शकतो नयी, पण हुं मानुं के " स्याद्वाद" मानवबुद्धिनुं एकांगीपणुंज सूचित करे छे " इत्यादि. वळी पृ. ११० थी आनंदशंकर बापुभाई ध्रुव पण लखे छे के-शंकराचार्य स्याद्वाद उपर जे आक्षेप कयों छे ते मूल रहस्यनी साथे संबन्ध राखतो नथी" इत्यादि. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९ ) " तथा बीजा भागना पृ. ९० मां युरोपियन विद्वान् डॉ. परटोल्ड लखे छे के " स्याद्वादनुंज एक वर्त्तमान पद्धतिनुंज स्वरूप जुओ एटले बस छे. धर्मना विचारोमां 66 जैनधर्म " ए एक निःसंशयपणे परमहदवाळो छे." इत्यादि. आ ठेकाणे विचार करवानो ए छे के वेदोना प्रवर्त्तक मनाता श्रीवेदव्यासमहर्षि तेमज सर्वज्ञ अने अवतारिक पुरुष गणाता श्रीशंकराचार्य स्वामीजी जेवा पण सर्व पदार्थोंनो सुलभ रीते बोध करावनार एक सामान्य जैनोनो “ स्याद्वादन्याय " न समजी शक्या तो पछी ते वखतना बीजा पण्डितो जैनोना तत्त्वोने समजेला हशे एम केवी रीते मानी शकाय ? अमो तो एज कहिए छीए के - वर्तमानकालना आ तत्त्वन शोधक पण्डितो जे निःपक्षपणानी बुद्धिथी जैनोमां रहेला महत्वना तस्त्रोने जोई शक्या छे, ते पूर्वेना मोटा मोटा पंडितो पण पोताना दुराग्रहने वश थएला, जैनोना एक पण महत्त्वा तत्त्वने जाणी शक्याज नथी. आ विषयने वधारे न लंबावतां विशेष एज जणावुं हुं के Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) अमोए आ पुस्तकमा छपावेला लेखो शिवाय बीजा पण घणा मध्यस्थ विद्वानो तरफथी-" लेखो" बहार पडेला छे, पण केटलीक अनुकूलताना अभावे ते बधा संपूर्ण लेखो दाखल न करतां ते तर्फ वाचकोनुं ध्यान खेंचवा माटे तेमांना केटलाक टुंका टुंका फकरा आ स्थले टांकी बतावू छु. ते नीचे प्रमाणे 'साधु' सरस्वतीभंडार-तत्त्वदर्शी-मार्तण्ड-लक्ष्मीभण्डारसन्तसन्देश आदि उर्दू तथा नागरी मासिकपत्रना संपादक, विचारकल्पद्रुम-विवेककल्पद्रुम-वेदान्तकल्पद्रुम-कल्याणधर्म-कबीरजीका बीजक आदिग्रन्थरत्नोना रचयिता, तथा विष्णुपुराणादिना अनुवादक सुप्रसिद्ध महात्मा श्री सुव्रतलालजी वर्मन एम. ए. पोताना संपादित उर्दू मासिक पत्रना जान्युआरी सं. १९११ ना अंकमां प्रकाशित " महावीरस्वामीका पवित्र जीवन" नामना लेखमां केवल महावीरस्वामीना माटेज नहीं किन्तु एवा सर्व जैनतीर्थकरोना, जैनमुनिओना, तथा जैनमहात्माओना संबन्धमां लखी गया छे के–“ गये दोनों जहान नजरसे गुजर, : १. संसारमें-पीछेका और यह दोनो काल हमारा चला गया परन्तु हे प्रभो तेरे जैसा पवित्र आज तक हमको कोई न मिला, Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) तेरे हुसनका कोई बशर न मिला " यह जैनीयोके आचार्य गुरु थे. पाकदिल, पाकखयाल, मुजस्सम पाकी व पाकीजगी थे. हम इनके नामपर इनके कामपर, और इनकी बे नज़ीर नैफ्सकुशी व रिऔजतकी मिसालपर जिस कदर नाज ( अभिमान : करें बजा ( योग्य ) है । ३ हिंदुओ ? अपने इन बुजुर्गोंकी इज्जत करना सीखो... तुम इनके गुणोंको देखो. उनकी पवित्र सूरतोंका दर्शन करो, उनके भावोंको प्यारकी निगाह देखो, यह धर्म कर्मकी झलकती हुई, चमकती, दमकती, मूर्ते हैं... इनका दिल विशाल था, वह एक वेपायाकनारें समंदर था जिसमें मनुष्यप्रेमकी लहरें जोरशोर से उठती रहती थी. और सिर्फ मनुष्यही क्यों उन्होंने संसारके प्राणीमात्रकी भलाई के लिये सबका त्याग किया. जानदारोंका खून बहाना रोकनेके लिये अपनी जिंदगीका खून कर दिया । यह अहिंसाकी परमज्योति - वाली मूर्तियां है। वेदोंकी श्रुति " अहिंसा परमो धर्मः " कुछ १ पाउं से लेकर मस्तक तक पवित्र थे. २ अद्वितीय ॥ ३ मनको काबू रखनेवाले ॥ ४ ऐसें भगवानकी, ५ भक्तिपर ॥ ६ जितना अभिमान करे तितनाही योग्य है. ७ वह एक किनारे विनाके समुद्रये ॥ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) इन्हीं पवित्र महान् पुरुषोंके जीवनमें अमलीसूरत इख्त्यिार करती हुइ नजर आती है. ये दुनियांके जबरदस्त रिफॉर्मर, जबरदस्त उपकारी और बडे ऊंचे दर्जेके उपदेशक और प्रचारक गुजरे है । यह हमारी कौमी तवारिख ( इतिहास ) के कीमती (बहु मूल्य ) रत्न हैं । तुम कहां और किसमें धर्मात्मा प्राणीयोंकी खोज करते हो ? इन्हीं कों देखो, इनसे बेहतर ( उत्तम ) साहबे कमाल तुमको और कहां मिलेंगे ? । इनमें त्याग था, इनमें वैराग्य था, इनमें धर्मका कमाल था, यह इन्सानी कैमजोरियों से बहुतही उचे थे, इनका खिताब " जिन" है. जिन्होंने मोहमायाको जीत लिया था, यह तीर्थंकर हैं, इनमें बनावट नहीं थी. जो बातथी साफ साफथी. ये वह लासानी ( अनौपम ) शखसीयतें हो गुजरी हैं. जिनको जिसमानी कमजोरियों व ऐवोंके छिपानेके लिये किसी जाहिरी पोशाककी जरूरत लाहक नहीं हुई क्योंकि उन्होंने तप करके जप करके १ वहि अमल करनेवाली मूर्तियां ।। २ महापुरुषो । ३ माणस तरीकेकी कमजोरीयांसें । ४ बेसक । Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) योगका साधन करके अपने आपको मुकम्मिल और पूर्ण बना लिया था "....इत्यादि.॥ २ वळी-मि० कन्नुलाल जोधपुरी माह दिसंबर सन् १९०६ अने जान्युवारी सन् १९०५ The Theosophist (धी थिओसोफिस्ट ) पत्रना अंकमां लखे छे के-" जैनधर्म " एक ऐसा प्राचीनधर्म है कि जिसकी उत्पत्ति तथा इतिहासका पत्ता लगाना एक बहुत ही दुर्लभ बात है । इत्यादि. ३ जर्मनीना-डॉ० जोहनस हर्टल. ता. १७ । । । १९०८ ना पत्रमा कहे छे के-" मैं अपने देशवासियोको दिखाऊगा कि कैसे उत्तम नियम, और ऊंचे विचार, जैनधर्म और जनआचार्योम है. जैनका साहित्य बौद्धों से बहुत बड कर है और ज्यों ज्यों मैं जैनधर्म और उसके साहित्यको समझता हूं त्यों त्यों मैं उनको अधिक पसंद करता हूं" ॥ इत्यादि. ४ पेरिस ( फ्रांसनी राजधानी ) ना डॉ० ए० गिरनाट पोताना पत्र-ता० ३-१२-१९११ मां लखे छे के-“मनुष्योंकी तरक्कीके लिये जैनधर्मका चारित्र बहुत लाभकारी हैं, यह धर्म २ यथार्थपणे परम स्वरूपको। ___ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) बहुत ही असली स्वतंत्र सादा बहुत मूल्यवान् तथा ब्राह्मणों के मतोंसे भिन्न है. तथा यह बौद्धके समान नास्तिक नहीं है." इत्यादि ॥ ५ श्रीयुत वरदाकांत मुख्योपाध्याय एम० ए० बंगाला श्रीयुत नथुराम प्रेमीद्वारा अनुवादित हिंदी लेखथी-- ___ "१ जैनधर्म हिंदुधर्मसे सर्वथा स्वतंत्र हैं. उसकी शाख या रूपांतर नहीं है. २ पार्श्वनाथजी जैनधर्मके आदि प्रचारक नहीं था, परंतु इसका प्रथम प्रचार ऋषभदेवजीने किया था. इसकी पुष्टिके प्रमाणोंका अभाव नहीं है. ३ बौद्धलोग महावीरजीको निग्रंथोका (जैनियोंका ) नायक मात्र कहते हैं स्थापक नहीं कहते है." इत्यादि. ___६ श्रीयुत तुकारामकृष्ण शर्मा लट्ट बी. ए. पी. एच. डी. एम. आर. ए. एस. एम. ए. एस. बी. एम. जी. ओ. एस. प्रोफेसर-संस्कृत शिलालेखादिकना विषयना अध्यापक क्विन्स कॉलिन बनारस काशीना दशम वार्षिकोत्सव उपर आपेला व्याख्यानमाथी-“ सबसे पहले इस भारतवर्षमें ऋषभदेव नामके महर्षि उत्पन्न हुए, वे दयावान् , भद्रपरिणामी, पहिले ___ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) तीर्थकर हुए. जिन्होंने मिथ्यात्वअवस्थाको देखकर-सम्यग्दशन, सम्यगज्ञान, और सम्यगचारित्ररूपी मोक्षशास्त्रका उपदेश किया. बस यहही जिनदर्शन इस कल्पमें हुआ. इसके पश्चात् अजितनाथसे लेकर महावीर तक तेईस तीर्थंकर अपने अपने समयमें अज्ञानीजीवोंका मोहअन्धकार नाश करते रहे." __ ७ साहित्यरत्न डॉ. रवीन्द्रनाथ टागोर कहे के"महावीरने डीडीम नादसे हिंदमें ऐसा संदेसा फैलाया किधर्म यह मात्र सामाजिक रूढि नहीं है, परंतु वास्तविक सत्य है, मोक्ष यह बाहरी क्रियाकांड पालनेसे नहीं मिलता. परंतु सत्यधर्म स्वरूपमें आश्रय लेनेसे ही मिलता है. और धर्म और मनुष्यमें कोई स्थाई भेद नहीं रह सकता. कहते आश्चर्य पेदा होता है कि-इस शिक्षाने समाजके हृदयमें जड करके बैठी हुई भावनारूपी विश्नोंको त्वरासे भेद दिये. और देशको वशीभूत कर लिया. इसके पश्चात् बहुत समय तक इन क्षत्रिय उपदेशकोंके प्रभावबलसें ब्राह्मणोंकी सत्ता अभिभूत हो गईथी" इत्यादि. ८ नेपालचंद्रराय अधिष्ठाता ब्रह्मचर्याश्रम शांतिनिकेतन बोलपुरवाला कहे छ के-" मुझको जैन तीर्थंकरोंकी शिक्षा पर अतिशय भक्ति है " इत्यादि-- Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९ मुहम्मद हाफिज सय्यद बी. ए. एल. टी. थीयोसोफिकल हाईस्कूल कानपुरवाला लखे छे के..." मैं जैनसिद्धांतके सूक्ष्मतत्त्वोंसे गहरा प्रेम करता हूं" इत्यादि. १० एम. डी. पांडे थियोसोफिकल सोसायटी बनारस लखे छे के-" मुझे जैनसिद्धांतका बहुत शौख है, क्योंकि कर्मसिद्धांतका इसमें सूक्ष्मतासे वर्णन किया गया है" ११ श्री स्वामी विरूपाक्ष वडियर-धर्मभूषण, पंडित, ‘वेदतीर्थ ' ' विद्यानिधि' एम. ए. प्रोफेसर संस्कृतकॉलेज इन्दौर स्टेट, एमनो “जैनधर्म मीमांसा " नामनो लेख चित्रमयजगत्मां छपायेल छे तेमां लख्युं छे के १ "ईर्षा द्वेषके कारण धर्म प्रचारको रोकनेवाली विपत्तिके रहते हुए जैनशासन कभी पराजित न होकर सर्वत्र विजयी ही होता रहा हैं. इस प्रकार जिसका वर्णन है वह “ अर्हन् देव " साक्षात् परमेश्वर (विष्णुस्वरूप) है, इसके प्रमाणभी आर्यग्रन्थोंमें पाये जाते है. १ अनिर्वचनीया माया कह करकेभी वेदांतिओ अनिर्णीवपणे लिखते रहे वही परिस्फुट सूक्ष्मवस्तुरूप कर्मसिद्धांत जैनोमें लाखो श्लोकोंसे लिखा गया है । संग्राहक॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ उपरोक्त अर्हत परमेश्वरका वर्णन वेदोंमेंभी पाया जाता है. ३ एक बंगाली बैरिष्टरे " प्रेकटिकल पाथ" नामक ग्रन्थ बनावेल छे तेमां एक स्थान उपर लख्युं छे के-“ ऋषभदेवका नाती मरीची प्रकृतिवादी था और वेद उसके तत्त्वानुसार होनेके कारण ही ऋग्वेद आदि अन्योंकी ख्याति उसीके ज्ञानद्वारा हुई हैं. फलतः मरीची ऋषिके स्तोत्र, वेद पुराण आदि ग्रन्थोमें है. यदि स्थान स्थान पर जैनतीर्थकरोंका उल्लेख पाया जाता है तो कोई कारण नहीं कि हम वैदिककालमें जैनधर्मका अस्तित्व न माने. ४ सारांश यह है कि इन सब प्रमाणोंसे जैनधर्मका उल्लेख हिंदुओंके पूज्य वेदमें भी मिलता है. ५ इस प्रकार वेदोंमें जैनधर्मका अस्तित्व सिद्ध करनेवाले बहुतसे मंत्र है. वेदके सिवाय अन्य ग्रन्थोंमेंभी जैनधर्मके प्रति सहानुभूति प्रगट करनेवाले उल्लेख पाये जाते है. स्वामीजीने इस लेखमें वेद, शिवपुराणादिके कई स्थानों के मूल श्लोक देकर उस पर व्याख्या भी की है. ___ ६ पीछेसें जब ब्राह्मणलोगोंने यज्ञ आदिमें बलिदान कर " मा हिंस्यात् सर्वभूतानि " वाले वेदवाक्य पर हरताल फैरदी Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) उस समय जैनियोंने उन हिंसामय यज्ञ यागादिका उच्छेद करना आरंभ किया था. वस तभीसें ब्राह्मणोंके चित्तमें जैनोंके प्रति द्वेष बढने लगा, परंतु फिरभी भागवतादि महापुराणोंमें ऋषभदेवके विषयमें गौरवयुक्त उल्लेख मिल रहा है इत्यादि " ॥ १२ अम्बजाक्ष सरकार एम. ए. बी. एल. लिखित " जैनदर्शन जैनधर्म " जैनहितैषी भाग १२ अंक ९-१० मां छपावेल छे तेमां लख्युं छे के १ “यह अच्छी तरह प्रमाणिक हो चुका है कि जैनधर्म बौद्धधर्मकी शाखा नहीं है. उन्होंने केवल प्राचीनधर्मका प्रचार किया हैं. २ जैनदर्शनमें जीवतत्त्वकी जैसी विस्तृत आलोचना है वैसी और किसीभी दर्शनमें नहीं है इत्यादि." १३ तथा श्रीयुत महामहोपाध्याय डॉक्टर सतीशचन्द्र विद्याभूषण एम. ए. पी. एच. डी. एफ. आई. आर. एस. सिद्धान्तमहोदधि प्रीन्सीपाल संस्कृतकॉलेज कलकत्ता, एमणे ता. २६ डिसम्बर सन् १९१३ काशी ( बनारस ) नगरमां जैनधर्मना विषयमा व्याख्यान आपेल तेमां कहे छे के-“ जैनसाधु........एक प्रशंसनीय जीवन व्यतीत करनेके द्वारा पूर्णरीतिसे Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९) व्रत, नियम और इद्रियसंयमका पालन करता हुआ जगत् के सम्मुख आत्मसंयमका एक बडाही उत्तम आदर्श प्रस्तुत करताहै। प्राकृत भाषा अपने संपूर्ण मधुमय सौन्दर्यको लिए हुए जैनियोंकी रचनामेंही प्रगट की गई है ” इत्यादि. १४ मि. आवे जे. ए. डवाई Discription of the character Manners and Customs of the people of India and of their institution and ciril (Recalcara ऑफ धी केरेक्टर मेनर्स एन्ड कस्टम्स ऑफ धी पीपल ऑफ इन्डिया एन्ड ऑफ धेर इन्स्टीट्युशन-एन्ड सीरील ) आ नामना पुस्तकमां जे सन् १८१७ मां लंडनमा छपाएल छे, तेमां ऐमणे जैनधर्मने घणोज प्राचीन जणावेल छे, अने जैनोना चार वेद १ प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, करणानुयोग अने द्रव्यानुयोग ने आदीश्वर भगवाने रच्या एम कां छे अने आदीश्वरने जनीओमां घणा प्राचीन भने प्रसिद्ध पुरुष जैनिओना २४ तीर्थकरोमां सहुथी पहेलां थयेला जणान्या छे. १५ वळी रा. रा. वासुदेव गोविन्द आपटे बी. ए. इन्दोर निवासी एक वखतना व्याख्यानमा लखे छे के ___ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) १ “प्राचीनकालमें जैनिओने उत्कृष्ट पराक्रम वा राज्यभार* का परिचालन किया है. २ जैनधर्ममें अहिंसा का तत्व अत्यन्त श्रेष्ठ है. ३ जैनधर्ममें यतिधर्म अत्यन्त उत्कृष्ट है-इसमे सन्देह नही. ४ जैनियोमें स्त्रियोंको भी यतिदीक्षा लेकर परोपकारी कृत्योमें जन्म व्यतीत करने की आज्ञा है वह सर्वोत्कृष्ट है. ६ हमारे हाथसे जीवहिंसा न होने पावे इसके लिए जैनी जितने डरते है इतने बौद्ध नहीं डरते। बौद्धधर्मदेशोमें मांसाहार अधिकतासे जारी है । आप स्वतः हिंसा न करके दूसरेके द्वारा मारे हुए बकरे आदिका मांस खानेमें कुछ हर्ज नहीं ऐसे सुभीतेका अहिंसा तत्त्व जो बौद्धोने निकालाथा वह जैनियोको सर्वथा स्वीकार नहीं है. ७ जैनिओंकी एक समय हिंदुस्थानमें बहुत उन्नतावस्था थी. * प्राचीनकालमे चक्रवर्ती, महामंडलीक, मंडलीक, आदि वडे वडे पदाधिकारी जैनधर्मी हुए है. जैनिओंके परमपूज्य २४ सों तीर्थकर भी सूर्यवंशी चंद्रवंशी आदि क्षत्रियकुलोत्पन्न बडे बडे राज्याधिकारी हुए जिसकी साक्षी जैनग्रंथो तथा किसी किसी अजैनशास्त्रों व इतिहास ग्रन्थोमें भी मिलती है. Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) धर्म, नीति, राजकार्यधुरन्धरता, शास्त्रदान, समाजोन्नति आदि बातोंमे उनका समाज इतरजनोसें बहुत आगे था." १६ रायबहादुर पूर्णेन्दु नारायणसिंह एम. ए. बांकीपुर वाला लखे छे के-" जैनधर्म पढनेकी भेरी हार्दिक इच्छा है, क्यों की में खयाल करताहूं कि व्यवहारिक योगाभ्यासके लिये यह साहित्य सबसे प्राचीन ( Oldest ) है. यह वेदकी रीति रिवाजोसे पृथक् है. इसमे हिन्दुधर्मसे पूर्वकी आत्मिकस्वतन्त्रता विद्यमान है, जिसको परमपुरुषोने अनुभव व प्रकाश किया है यह समय है कि हम इसके विषयमें अधिक जाने." १७ टी. पी. कुप्पु स्वामी शास्त्री एम. ए. एसिस्टेन्ट गवनमेंट मुझियम तंजोरना एक अंग्रेजी लेखनो अनुवाद जैनहितैषी भाग १० अंक २ मां छपाएल छे तेमां जणाव्युं छे. के-- १" तीर्थंकर जिनसे जैनियोंके विख्यात सिद्धांतोका प्रचार हुआ है वह आर्य क्षत्रिय थे.. २ जनी अवैदिक भारतीय आर्यों का एक विभाग है." सूचना-अमोए ए १७ लेखोनो उद्धार ' मुन्सी केशरीमल मोतीलाल रांका-अर्जीनवीस-व्यावरवालाए छपावेला पुस्तकपरथी करेल छे माटे जिज्ञासुओए ते मंगावी जोइ लेवू. Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) हवे आ पुस्तकमांना केटलाक हिंदी अने गूजराती लेखोनो टुंकमां तेज भाषामा सार आपीए छीए १ "जैनधर्म विषये बे शब्दो" नामना पोताना पहेला लेखमां वासुदेव नरहर उपाध्ये लखे छे के-आर्यलोकोना जूदा जुदा वंशोमां स्तोत्रो गवातां ते स्तोत्रोनो संग्रह करीने कर्मकांड योज्यूं ते कर्मोमां विधिओ प्रार्थनाओ नाखवाथी कर्मकांड वधतुं गयूं. . मुख्य चार संहिताओ थई तेनुं संमिश्रण करवाथी अग्निष्टोमादियाग तैयार थया. ते एटलां बधां वधी गयां के खेतरमां बीज वाव_ होय के तेमांथी घास काढवो होय तो करो याग. छेवट कोई कोई यज्ञविधिमां तो कंपारी उठे तेवां दुष्ट कर्म थयां. तेथी मांसना ढगले ढगला देखाववा लाग्या. आ, हिंसाप्रधान यागादि कर्मकांड बिलकुल निरर्थक छे. एमां पुरुषाथ बिलकुल नथी, एम बे वखतना घणा विद्वानोना समजवामां आव्युं, पण समाजमां घणा दिवसथी घूसेली दुष्ट बाबतोनो नाश करवानी इच्छा धरावनाराओमा अलौकिक धैय, ज्ञान, अने पोताना स्वार्थनो भोग आपवानी जरुर होय छे. इंद्रिय दमन करवू एज पुरुषार्थ छे एम माननारा प्रथम ने लोको हता ते जैन हता. हाल आपणा आचारो विचारो जोतां तेमां Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) बौद्धोए अने जैनोए अमारा भारतीओ उपर घणी क्रियाओ करीने बतावी छे, ए निर्विवादरीते सिद्ध थाय छे. ख्रिस्ती धर्मोपदेशकोमा जे व्रत देखाय छे, अने तत्पंथियलोको जेनुं मोटुं मान धरावे छे, ते तमाम व्रतो घणा प्राचीन कालमां जैनधर्मी ओमां हतां, एम मानवाने अमोने घणां प्रमाणो मल्यां छे. जैनयतिओ पोताना धर्मनो प्रचार करवामां घणुं चातुर्य वापरता, जैनधर्मना ग्रथोनुं सूक्ष्मावलोकन करवा लागीए तो कांइ जूदीन हकीकतो नजरे पडे छे, हालना जनसमूहमां-जैन अने बौद्ध विषे मोटी गेरसमजूतीओ थएली छे. हिंदुस्थानमां लाखो करोडो लोको वैदिक धर्म करतां एने बिलकुल जूदो माने छे, जैनधर्मीओना मंदिरोनी ठठा निभत्सना करे छे. घणा स्मृतिग्रंथोमां, शास्त्रग्रंथोमां, अने टीकाग्रंथोमां, वेदबाह्य माने छे. जैनग्रंथोनुं सूक्ष्मावलोकन करी जोतां जैनधर्म ए जूदो नथी पण उपनिषत्कालीन, अने ज्ञानकांडकालीन, महान् महान् ऋषिओना जे उत्तमोत्तम मतो हता, ते सर्वे एकत्र करीने बनावेलो धर्म होय एम देखाई आवे छे. जैनधर्मनं प्रथमनुं स्वरूप कहीए तो विशुद्ध छे एटले वैदिकधर्म तेज जैनधर्म छे. जैनकाव्योमां जैनपंडितोना वर्णनोमां तेओ चारे वेदोमां निपुण Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) हता एवां वर्णनो मली आवे छे, कुमारील्ल भट्ट विगेरे मोटा मोटा पुरुषोए, जैनधर्मीओनो नाश करी, वैदिकधर्मनी पुनः स्थापना करी, आ बाबतमा सामान्यलोकोना मतमां अने अमारा मतमां तफावत छे ते कहीए छीए.कडकडीत तीव्र वैराग्यादिना आचरणोथी, स्वार्थत्यागथी, अने अनेक सद्गुणोनो फेरफार करी लोकोने सन्मार्ग तरफ झूकाववा जे साहित्य निर्माण कयें, अने वैदिक धर्मानुयायीमा रहेला प्राचीन चित्तशुद्धि, सदाचरण, चारित्र्य विषयोना संबंधमां आपणा हृदयने हरी लेनारा, अने तल्लीन करीनेज छोडी मुकनारा साहित्यथी, विषयरसमां तन्मय थई गयेलाओने-मात्र श्रवणथीज ठेकाणे लावनार, जे विचार प्रचलित करेलो, तेनो नाश कुमारिल भट्ट विगेरेना हाथी बिलकुल थएलोज नथी. भारतीयलोकाना जे आचार विचार अने धर्म संस्थाओ छे. तेओमां जैनधम संस्था अने विचार मली गयेला छ. शिवाय कुमारिल भट्टादिकोए जनोनी साथे ठेकठेकाणे धादविवाद करी पराभव कर्यो, विगैरे जे दंतकथाओ छे, तेनुं तेटलं स्वरूप नही होइने दयानंदसरस्वतीना खंडन प्रमाणे-तेमां लटपट अने ग्राम्यव्यवहार विशेष देखाय छे, भारतीय लोकोमां गेरसमजूतीओ थवाने जूदां जूदा कारणो पण थयां हतां, परंतु Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) जैनधर्मर्नु अने बौद्धधर्मर्नु आद्यस्वरूप तपासी जोईशु तो विशुद्ध वैदिक तेज जैन अने बौद्ध धर्म छे एम जणाशे. जैन अने बौद्ध ए विषे जे अनेक कारणोथी विरुद्ध संबंध उत्पन्न थयो ते हवे भूली जईने जे धर्म हालना हिंदुधर्ममां विलीन थई गयेलो छे ते धर्मना ग्रंथो तरफ हालना विद्वानो कदाच अनुकंपानी बुद्धिथीन जोशे तो तेओने अत्यंत आनंद उत्पन्न थशे, हालना जगतमांना प्रचलित धर्मो तथा बौद्ध अने जैनधर्मो एनो जेवो जेवो संबंध तेओनी नजरमां आवतो जशे तेम तेम आ नवीन मलेली विलक्षण रत्नोनी अगाध खाण देखीने तेओनुं मनः आनंदसागरमा तल्लीन थई जशे एटलुंज आठेकाणे कहे, बश छे. इति वासुदेव न० उपाध्येना पहेला लेखनो सार ॥ २ उपाध्येजीना बीजा लेखनो सार नीचे मुजब घणा पंडितो साशंक लेखो लखता रह्या छे, एम करवाने बिलकुल कारण नथी. कारण जैनग्रंथोनी योग्यता जोतां तेना उपर अणविश्वास राखवाने बिलकुल कारण जणातुं नथी. साधारणपणे संस्कृतभाषाना ग्रंथो प्राचीन होय छे. जैनधर्मना ग्रंथो Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) तेनाथी पण प्राचीन छे. बौद्धना ग्रंथो निर्विवादपणे साधन मनाय छे, त्यारे बौद्धना ग्रंथो करतां विशेष करी उत्तरीय बौद्ध ग्रंथो करतां जैनग्रंथोनुं धोरण घणुंज जुएं जणाय छे. जैनधर्मना ग्रंथोनी जे वास्तविक योग्यता छे तेनुं तेवा प्रकारचें स्वरूप लोकाना समक्ष मुकर्बु अगत्यनुं छे. ए संबंधी शोधखोल करतां जनधर्मना संस्थापक छेल्ला तीर्थकर “ महावीर" नामनी खरेखर कोई व्यक्ति नथी पण जैनधर्मना अनुयायीओमांनी आ एक व्यक्ति छे. तेनुं निराकरण सयुक्तिक थई शके तेवी माहीती उपलब्ध थई छे. आ प्रमाणे अनेक युक्ति प्रयुक्ति बतावी जैनधर्मना नायक महावीरनी अने बौद्धधर्मना नायक गौतमनी सर्वथा प्रकारथी भिन्नता बतावी अंतमां लख्युं छे के महावीरना चरित्र- विवेचन करवानुं कारण एटलंज के जैनधर्मनी उत्पत्ति बुद्ध धर्ममांथी न होईने बिलकुल स्वतंत्र छे, एनो निकाल करती वखते उपयोगी थशे, इत्यादि कहीने-प्रोफेसर बेवरनो बौद्धनी शाखा तरीकेनो मत, अनेक प्रमाणोथी अयोग्य थएलो जणाव्यो छे. प्रो० लेसने पण जैनो करतां बौद्धने प्राचीन ठराववा प्रमाणो आप्यां छे ते योग्य थएलां नथी-जेम के प्रथम तीर्थंकरोनी पूजाविधि, बौद्ध पासेथी जनोए Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७ ) लीधी ते योग्य नयी, पण ते विधि बन्नेनी स्वतंत्र छे. एम मानवं युक्तियुक्त बतान्युं छे. कालनी गणना विषे जैनोज अधिक छे. बौद्धो करतां अने ब्राह्मणो करतां एक नवीनज योजना काढेली छे. ते बौद्धोना चार मोटा अने ऐंशी नाहना कल्पोमांथी पण काढी शंकाय तेम नथी. तेमज ब्राह्मणोना कल्पोमांथी अने युगोमांथी पण काढी शकाय तेम नथी. जैनोनी उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी ब्रह्मदेवनी रात्रि दिवसथी निकली होवी जोईए, एम अनुमान करीने बतान्युं छे. आगल जातां जैन अने बौद्ध यतिओना आचार विचार उपर अनुमान चलावतां-जैन अने बौद्ध ब्राह्मणधर्ममांथी निकल्या हशे ? पण जैनधर्म बौद्ध धर्ममाथी निकल्यो एम कहेवाने बिलकुल कारण मलतुं नथी. जुवो के हिंदुतच्चज्ञानमां ज्ञाननी संपूर्ण अवस्था सुधीनां जुदां जुदां पगथीयां मानेलां छे, पण एव जैनोनो मत स्वतंत्र छे, तेओनी परिभाषा ब्राह्मणो करतां, अने बौद्ध करतां बिलकुल जुदीज छे. जैनोना मत प्रमाणे यथार्थ ज्ञानना पांच प्रकार छे. ते आ प्रकारे Pogg १ मतिज्ञान, २ श्रुतज्ञान, ३ अवधिज्ञान, ४ मनःपर्यवज्ञान, अने ५ कैवल्यज्ञान, एवा प्रकारनुं साम्यदर्शावनारुं वर्णन Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) बौद्धोना अध्यात्मग्रन्थोमां कई पण देखातुं नथी. आगल जतां जैन अने बौद्धोना केटलाक विचारो ब्राह्मणोनी साथे मलता छे ते बताया छे. नेमके - पूर्वजन्म, पूर्वजन्मनां करेलां कर्म, इत्यादि. पुनः जैनोना तीर्थकरो चोवीश, तो बौद्धोना पचीश, आमां पण चोवीशनी कल्पनाज प्राचीन ठरावी जैनोने प्राचीन ठराव्या छे. आम उपर जणाव्या प्रमाणे केटलीक वातो जैनधर्मवालानी बौद्ध ने ब्राह्मणोथी सरखी अने केटलीक जैनोनी स्वतंत्र बतावी छेवटमां निकाल करतां जणाववामां आव्युं छे के जैनधर्म ए बौद्ध धर्ममांथी. निकलेलो नथी. तेनो उद्भव स्वतंत्र होवाथी बौद्धधर्ममांथी विशेष लोधुं पण नथी. बौद्ध अने जैन ए बन्नेओए पण पोतानो धर्म, नीति, शास्त्र, तत्वज्ञान अने सृष्टिनी उत्पत्तिनी कल्पनाओ विगेरे, बधो प्रकार ब्राह्मणो पासेथी विशेष करी सन्यासीओ पासेथी लीघेलो छे, अहीं सुधी जे विवे मां आव्युं हतुं ते जैनलोकोना पवित्र ग्रंथोमां लखेली दंतकथाओ विगेरेने प्रमाण मानीने कर्यु हतुं. बार्थ साहेबनो मत एवो हतो के - जैनोनो पंथ केटलाक सैकाओ सुधी क्षुद्र अवस्थामां होवाने लीधे, पोताना धर्मग्रंथो लखेला नहीं होवा जोईए. विगेरे दलीलो यथार्थ नथी, एटलुंज Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९) न हतुं पण जैनकोको प्राचीनकाले पण क्षुद्र न होइने, पोताना धर्ममतो विषे केवल उपर उपरनी कल्पनाओ करनारा करतां, विशेष होशीयारज हता, ए निर्विवाद सिद्ध थाय छे. जैनोमां जे अग ग्रंथो के ते पूर्वेना हता, श्वेताबर अने दिगंबर ए बन्ने पोताना ग्रथोना माटे कहे छ केपूर्वना ग्रंथोनुं ज्ञान जतां जतां बिलकुल चाल्युं गयु. जो के नवा मतो प्राचीन ग्रंथो लुप्त थवा बहानुं धणे ठेकाणे बतावे छे. परंतु जैनग्रंथो माटे एम मानवानुं कारण नथी. पूर्व एटले पेहलां उपलब्ध थएला ग्रंथो, एम मानवं विशेष योग्य लागे छे एकंदर रीते जैनधर्मनो उद्भव, अने विकाश, बीजाथी न थतां स्वतंत्र छ एम सारी रीते सिद्ध थाय छे." । ॥ इति उपाध्येजीना बीजा लेखनो सार संपूर्ण । . ३ लेख त्रीनो पृ. ७८ थी-योगजीवानंदपरमहंसे जनाचार्य श्रीआत्मारामजी महाराजा उपर लखेला पत्रनो सार-" महात्मन् ? व्याकरप्पादि नाना शास्त्रोंके अध्ययना:ध्यापनद्वारा-वेदमत गलेमें बांध में अनेक राजा-प्रजाके समा विजय कर देखा, व्यर्थ मगज मारना है. एक जैनशिष्यके हाथ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) दो पुस्तक देखा, वो लेख इतना सत्य, वो निःपक्षपाती, मुझे दिख पडा कि-मानो एक जगत् छोडके दूसरे जगत्में आन खडे हो गये. आबाल्यकाल ७० वर्षसे जो कुछ अध्ययन करा, वो वैदिकधर्म बांधे फिरा सो व्यर्थसा मालूम होने लगा....प्राचीन धर्म, परमधर्म, सत्यधर्म, रहा हो तो जैनधर्म था. जिसकी प्रभा नाश करनेको वैदिकधर्म, वो षट्शास्त्र वो ग्रंथकार खडे भये थे....वैदिक बातें कही वो लीई गई सो सब जनशास्त्रोंसे नमूना इकट्ठी करी है. इसमें संदेह नहीं" ॥ ॥ इति त्रिजा लेखनो टुंक सार ॥ .. ४ पृ. ८२ थी-राममिश्र शास्त्रीजीना व्याख्याननो सार" जैनमत सृष्टिकी आदिसे बराबर अविच्छिन्न चला आया है. ___ आजकल अनेक अल्पज्ञजन बौद्धमत और जैनमतको एक जानते है यह महाभ्रम हैं. . बडे बडे नामी आचार्योंने अपने प्रथोमें जो जैनमतका खंडन किया है, वह ऐसा किया है कि देखकर हांसी आती है . एक दिन वह था कि-जैनसंप्रदायके आचार्योंके हूंकारसे दशों दिशाए गूंज उठतीथी. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) भरी मजलिसमें-मुझे यह कहना सत्यके कारण अवश्य हुवा है कि जैनोंका ग्रथसमुदाय सारस्वत महासागर है. उस्की यसंख्या इतनी अधिक है कि-उन ग्रंथोंका मृचिपत्रभी एक महानिबंध हो जायगा. और उस पुस्तकसमुदायका-लेख, और लेख्य, कैसा गंभीर, युक्तिपूण, भावपूरित, विशद, और अगाध है-इसके विषयमें इतनाही कहना उचित हैकि निनोने सारस्वत समुद्र में अपने मतिमंथानको डाल कर चिरान्दोलन किया है वेही जानते है. जनदर्शन वेदांतादिदशनों से भी पूर्वका है तब ही तो भगवान् वेदव्यास महर्षि ब्रह्मसूत्रमें कहते है. 'नैकस्मिन्नऽसंभवात्' वेदव्यासके समय पर जनमत था तब तो खंडनार्थ उद्योग किया गया. यदि नहीं था तो खंडन कैसा और किसका ? वेदोमें अनेकांतवादका मूल मिलता है, वेदांतादिकदर्शनशास्त्रोका और जनादिदशनोंका कौन मूल है यह कह कर सुनाता हूं-उच्चश्रेणिके बुद्धिमान् लोगोके मानसनिगूढ विचार ही दशन है. जैसे अजातवाद, विवर्त्तवाद, दृष्टिसृष्टिवाद, परिणाम Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) वाद, आरंभवाद, शून्यवाद, आदि दाशनिकोके निगूढ विचार ही दर्शन है, तब तो कहना ही होगा कि सृष्टिकी आदिसे जनमत प्रचलित है. ___सजनो ? अनेकांतवाद तो एक ऐसी चिज हैं उसे सबको मानना होगा और लोकोने मानाभी है. देखिये-" सदऽसद्भ्यामनिर्वचनीयं जगत् " कहनाही होगा किसी प्रकारसे सत् होकर भी वह किसी प्रकारसे असत् है. तो अब अनेकांत मानना ही सिद्ध हो गया. नैयायिक-तमः को तेजोऽभाव स्वरूप कहते है. वेदांतिक जोरसोरसे खंडन करते है. जैनसिद्धांत-किसी प्रकारसे भावरूप कहते है, और किसी प्रकारसे अभावरूप भी कहते है, तो अब दोनोकी लडाईमें जैनसिद्धांतही सिद्ध हो गया. क्योंकि दोनो सच्च नही, परंतु जैनसिद्धांत ही सच्च है. इसी रीतिपर कोई कोई आत्माको ज्ञानस्वरूप कहते है, और कोई ज्ञानाधार स्वरूप बोलते है, तब तो कहना ही क्या जैनोंका अनेकांतवादही पाया गया. इसी रितीपर कोई ज्ञानको द्रव्यस्वरूप मानते है तो कोई वादी-गुणस्वरूप मानते है. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) कोई जगत्को भावस्वरूप कहते है, तो कोई शून्यस्वरूप बतलाते है, तब तो अनेकांतवाद अनायाससे सिद्ध हो गया. ____ कोई कहते है घटादि द्रव्य है, और उनमें रूप, स्पर्शादि गुण है । दूसरा वादी कहता है कि, द्रव्य कोई चीज नहीं है, वह तो गुणसमुदाय रूप है. ___ कोई कहता है कि आकाश नामक शब्दजनक एक निरवयव द्रव्य है, अन्यवादी कहता है कि वह तो शून्य है. कोई वादी कहता है कि, गुरुत्व गुण है, दूसरा कहता है कि, गुरुत्व कोई चीन ही नही है, पृथ्वीमैं जो आकर्षण शक्ति है उसे गुरुत्वनामक गुण माना है. मित हित वाक्य पथ्य है, उसीसे ज्ञान होता हे, वाग्जालका कोई प्रयोजन नहीं है." इत्यादि । ५ पृष्ट १०१ थी लोकमान्य तिलकना उद्गारो-“पुर्वकालमें यज्ञके लिए असंख्य पशुहिंसा होतीथी इसमें प्रमाण मेघदूतादिक अनेक ग्रन्थोसे मिलते है. रंतिदेव नामक राजाने यज्ञमें इतना प्रचुर वध किया था कि नदीका जल खूनसे रक्तवर्ण होगया, उन Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) नदीका नाम चर्मवती प्रसिद्ध है. ब्राह्मण और हिंदुधर्ममें मांसभक्षण और मदिरापान बंध हो गया यह भी जैनधर्मका प्रताप हैं. महावीर स्वामीका अहिंसाधर्मही ब्राह्मणधर्ममें मान्य हो गया" इत्यादि ॥ ६ पृ. १०३ थी-काका कालेलकरना लेखनो सार-विहारभूमीना प्रवासना वखते महावीर भगवाननी कैवल्यभूमीनामना लेखमां पोते लखे छे के "नैनोनी मूर्तिओज ध्यानने माटे होवी जोइए, चित्तने एकाग्र करवानी शक्ति ए मूर्तिओमां जरुर छे, पावापुरीमां महावीरनुं निर्वाणस्मरण करावे छे के आ संसारर्नु परम रहस्य, जीवननो सार, मोक्षनु पाथेय, तेमना मुखारविंदमांथी ज्यारे झरतुं हो त्यारे ते सांभळवा कोण कोण बेठा हो? पोतानो देह हवे पडनार छे एम जाणी प्रसन्न, गंभीर उपदेश करी बधी छेल्ली घडीओ काममां लई लेनार ते परमतपस्वीनुं छेल्लु दर्शन कोणे कर्यु हशे ? तेमनो उपदेश-दृष्टिने पण अगोचर एवा सूक्ष्मजंतुथी मांडीने अनंतकोटी ब्रह्मांड सुधी सर्व वस्तुजातनुं कल्याण चाहनार ते अहिंसामूतिर्नु ' हार्द ' कोणे ग्रहण कर्यु हशे ? माणस अल्पज्ञ छे, तेनी दृष्टि एकदेशी संकुचित Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) संपूर्णज्ञान विनानी छे, माणसनुं सत्य एकांगी छे, तेथी बीजाना ज्ञानने वखोडवानो हक नथी. तेम करतां अधर्म थाय छे, एम कही मानवबुद्धिने नम्रता शिखवनार ते परमगुरुने ते दिवसे कोणे वंदन कर्यु हशे ? । आ शिष्यो पोतानो उपदेश आखी दुनियाने पहोंचाडशे, अने ते मानवनातिने खपमा आवशे, एवो ख्याल ते पुण्यपुरुषना मनमां आव्यो हशे खरो ?' जैनतत्त्वज्ञानमा स्याद्वादवादनो बराबर शो अर्थ छे, ते जाणवाने हुं दावो करी शकतो नथी, पण हुं मार्नु छ के" स्याद्वाद" मानवबुद्धिन एकांगीपणुंज सूचित करे छे. अमुकदृष्टिए जोतां बीजी रीते देखाय छे । जन्मांधो जेम हाथीने तपासे तेवी आपणी दुनियानी स्थिति छे. आ वर्णन यथाथ नथी एम कोण कही शके ? आपणी आवी स्थिति छे, एटलं जेने गळे उतयु तेज आ जगत्मां ययार्थज्ञानी. माणसनुं ज्ञान एकपक्षी छे, एटलं जे समज्यो तेज सर्वज्ञ. वास्तविक संपूर्ण सत्य जे कोई जाणतो हशे, ते परमात्माने आपणे हजु ओलखी शक्या नथी. आ ज्ञानमाथीज अहिंसा उद्भवेली छे. सर्वज्ञ विना बीना उपर अधिकार न चलावी शकाय. पोतानुं सत्य पोताना पुरतुंन. बीजाने तेनो साक्षात्कार न थाय त्यां सुधी धीरज राखवी Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवी वृत्ति तेज अहिंसावृत्ति. आखी दुनिया शांतिने खोळे छे, त्रस्त दुनिया त्राहि त्राही करीने पोकारे छे, छतां तेने शांतिनो रस्तो जडतो नथी. बिहारनी आ पवित्र भूमिमां शांतिनो मार्ग क्यारनो नकी थई चुक्यो छे, पण दुनियाने ते स्वीकारतां हजू वार छे. दुनीया ज्यारे निर्विकार थशे, त्यारेज महावीरनु अवतारकृत्य पूर्णताने पामशे." इत्यादि ॥ ७ पृ० ११० थी-आनंदशंकर बापुभाई ध्रुवना उद्गारो" स्याद्वाद एकीकरणतुं दृष्टिबिंदु अमारी सामे उपस्थित करे छे. शंकराचार्य-स्याद्वाद उपर जे आक्षेप को छे ते मूलरहस्यनी साथे संबंध राखतो नथी । ए निश्चय छे के-विविध दृष्टिविंदुद्वारा निरीक्षण कर्या वगर, कोई वस्तु संपूर्णस्वरूपे समजवामां आवी शके नहीं. " स्याद्वाद" संशयवाद नथी, पण विश्वनुं केवी रीते अवलोकन करवू जोइए ए अमने शिखवे छे." . ८ पुनः पृ० ११२ थी-जेम आधुनिक तटस्थ पंडि-. बोना जैनधर्मना तत्त्वो जोवायी-वेदवेदांतादिक एकांत पक्षना कि al Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) चारो फरता जाय छे तेम प्राचीनकालमां पण घगा पंडितोना विचारो फरेला छे. तेनुं कारण जैनोना पूर्वाऽपर विरोधरहित अगाध तत्त्वोनीज खुबी छे. जुवो के सिद्धसेनमूरि, धनपाल पंडित, हरिभद्रसरि ए त्रणे ब्राह्मण पंडितोज हता. जैनधर्मना तत्त्वोने समज्या पछी जेवी रीते आ आधुनिक पंडितोए पोताना अभिप्रायो प्रगट कर्या छे तेवी रीते ते पंडितो पण एज कही गया छे के-हे वीतराग भगवान् जे जे उत्तम तत्त्वो बीजा मतवालाओमा देखाय छे, ते ते जैनधर्मना तत्त्वसमुद्रमांथी निकलीने बहार पडेला बिंदुरूपेज देखाय छे. एम निश्चय पूर्वक सिद्ध छ । ९ पृ.१२२ थी-हेमचंद्रसूरिजीना लेखनो सार--एमणे वीतरागनी स्तुति करतां कयूं छे के-हे भगवन्! वेद वेदालना मतवालानां शास्त्रो एकांतपक्षवालां, अने तमारां शास्त्रो-अनेकांतपक्षवालां एटलु ज नही पण तेमनां शास्त्रो-हिंसाना उपदेशथी मिश्रित थएलां, अने तमारां सर्वजीवोना हितना उपदेशवालां. बीजा मतना आचार्योए सरल भावे कांइ अयुक्तपणे कहेलुं हशे, पण तेमना शिष्य परिवारे तो काइनुं कांइ उलटुंज करीने दह्य छे. पण तमारा शासनमा ए बनाव बनवा पाम्यो नथी. तेमां. तो ए Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८) तमारा शासनना बंधारणनीज खूबी छे. बीजाना मतोमा पूर्वाऽपर विरोध, अयथार्थपणुं, अने देवोनां चरित्रो पण निंद्यपणाथी शास्त्रोनें बंधारण थएलुं छे. पण हे भगवन् तमारा शास्त्रोमां एम बन्यु नथी. एज तमारा शासननी अलौकिक खुबी छे. हे भगवन् ! तारी मत्ति वीतरागी छे, अने तेमना देवोनी मूर्तिओ पण विकृतिवालीओ छे. छतां पण तेओ विचार नथी करी शकता पण अमोबधाए मतवादिओना सन्मुख पोकार करीने कहीए छीये के-चीतरागी मूर्ति जेवी बीजा काई पण देवनी मूर्ति ध्यान करवाने योग्य नथी. तेमज सर्वपदार्थोना स्वरूपर्नु यथार्थज्ञान मेलववा माटे अनेकांतना मार्ग जेवो ( स्याद्वादमार्ग जेवो ) बीजो कोई पण न्यायमार्ग, दूनियामां छेज नहीं एम जे अमो कहीये छीये ते श्रद्धामात्रथी केहता नथी, पण परीक्षापूवक निःपक्षपातपणाथी कहीए छीए. ॥ इति लेखसंग्रहे प्रथमभागनी प्रस्तावना ॥ हवे भाग बीजानी प्रस्तावना. डॉ० हर्मन जेकोबी—जैनसूत्रोनी प्रस्तावनाना प्रथम भागमां लखे छे के---अत्यार सुधीनी चर्चा, जनोनी परंपरागत कथाओनी प्रमाणिकताउपरज चालेली छे. तेथी Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९) विद्वान् मी. बार्थना-अभिप्राय मुजब, जैनोनी सांप्रदायिक परंपराओ बौद्धोना अनुकरणरूपे उपजावी काढेली छे. मी. बार्थनी दलील ए छे के-जैन घणी शदीओ सुधी एक नानो संप्रदाय हतो. हुं पुछु छु के-थोडा अनुयायीओ वडे, पोताना मौलिक सिद्धांतो अने परंपराओ सुरक्षित राखी शके छे के, जे धर्मने एक मोटा जनसमूहनी धार्मिक जरूरीआतो पुरी पाडवानी होय ते ? जैनोने पोताना सिद्धांतनुं एटलुं बधुं स्पष्ट ज्ञान हतुं के, न जेवी बाबतमां मतभेद धरावनारने, पोताना विशाल समुदायमांथी जुदा करी दीधा हता. आना प्रमाणमां-डॉ० ल्युमने प्रकट करेली सात निन्हवोनी परंपरा छे. आ सघली हकीकतो उपरथी सिद्ध थाय छे के, जैनोनी सूक्ष्ममां सूक्ष्म मान्यता पण सुनिश्चित स्वरूपवाली हती. जेवी रीते जनोना धार्मिक सिद्धांतो सिद्ध थई शके छे, तेवीज रीते ऐतिहासिक बाबतो पण सिद्ध थई शके तेवी छे. जो के दरेक संप्रदायने-पोतानो संप्रदाय, आप्त पुरुषथी उतरी आवेलो छे–एम बताववाने गुरुपरंपरानां नामो उपजावी काढवानी जरूर पडे छे. परंतु कल्पसूत्रमां-स्थविरो, गणो, अने शाखानी नामावली छे, ते कल्पी काढवामां जनोने कोइ पण प्रकार- प्रयोजन होय तेम हूं मानी शकतो नथी. आटलं सिद्ध Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) करी बताववाथी ए सिद्ध थाय छे के जैनो तेमना आगमोनू स्वरूप नक्वी थया पेहलां पण-पोतानो धर्म, संप्रदाय, तेमज अन्यदर्शनीयसिद्धांतोना संमिश्रण योगे उत्पन्न थती भ्रष्टताथी, तेने बचावी सुरक्षित राखवा माटे, योग्य गुणसंपन्न हता. जे जे बाबत करी शकवानुं सामर्थ्य हाँ, ते सघलुं तेमणे संपूण रीते कयूँ हतुं । आ चर्चा उपरथी जैनसाहित्यना कालनी चर्चा उपर आवी जइए छे. __ जैनसिद्धांत वीरनिर्वाण पछी ९८० ( अथवा ९९३) मां देवगिणिना अध्यक्षपणा नीचे निश्चित करवामां आव्यो हतो. तेनी पहेलां-तेओ शिखवती वखते लिखितग्रथोनो उपयोग करता नहोता. आ हकिकत तहन साची छे. एतो भाग्येज मानी शकाय के-सर्वथा नज लखता होय. ब्राह्मणोनी माफक जैनोनुं एवं मानवू तो हतुंन नही के, लिखितपुस्तको अविश्वस्य छे. ज्यां सुधी जैनयतिओ भ्रमणशील जीवन गुजारता त्यां सुधी तेमने लागु पडे तेवू छे. इत्यादि । हवे आपणे जैनोना पवित्र आगमोनी रचनाना समयविषयक विचार करीए, संपूर्ण आगमशास्त्र प्रथमतीर्थकरन प्ररूपेलु छे--ए जातना जैनोना विचार निराकरण करवा खातरज, Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) हूं अहीं सूचन करूं छु. के-सिद्धांतना मुख्य ग्रंथोनो समय नक्की करवा माटे आना करतां वधारे सारां प्रमाणो एकत्र करवांजोइए. ग्रीकनुं ज्योतिशास्त्र ई. स. नी त्रीजी, अगर चोथी, शताब्दिमां हिंदुस्थानमा दाखल थयूं हतुं. ते समय पहेलां जैनोनां पवित्र आगमो रचायां हतां. बीजू प्रमाण तेनी भाषाविषयक छे. तेमां अनेक तर्क वितर्कना अंते-इ. स. नी शरुआत पहेलां रचाएलां मानवां जोइए, एम कही छेवट-इ. स. पूर्वे त्रीजी शताब्दीना प्रथम भागमां स्थिर करीए तो ते खोटें नहीं गणाय. तथापि एक बाबत अहीं ध्यानमा लेवा लायक छे ते ए छे केश्वेतांबरो अने दिगंबरो ए बन्नेनुं कहे, ए छे के अंगो शिवाय पहेलांना कालमां तेनाथी वधारे प्राचीन एवां चौद पूर्वो हतां, ते पूर्वोनुं ज्ञान-नष्ट यतुं यतुं सर्वथा नष्ट थइ गयूं. आवा प्रकारनी प्राचीन परंपरा मानी लेवामां घणी सावचेती राखवानी जरूर छे. परंतु प्रस्तुत वाजतमां (प्राचीन परंपरानी सत्यताना विषयमां) शंका करवाने कोई कारण जणातुं नथी. पूर्वानुं ज्ञान व्युच्छिन्न थतुं चाल्युं हतुं, एवी जे हकिकत छे ते तद्दन वास्तविक छे. अमोए एवो खुलासो करेलो छ के-पूर्वो ते सौथी प्राचीन ग्रंथो हता, ते पछी तेनुं स्थान नवा सिद्धांते लीधुं हतुं, ते युक्तिसंगत छे. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) आवी रीते प्राचीन सिद्धांतनो त्याग करवामां शुं प्रयोजन हो ? आ विषयमा कल्पना शिवाय अन्य कोई गति नथी.. आ उपरांत ए पण एक बात ध्यानमा राखवानी छे के, महावीर कोई एक नवा धर्मना संस्थापक न हता, परंतु जेम में सिद्ध करेलुं छे के, तेओ एक प्राचीन धर्मना सुधारक मात्रज हता. जैनधर्म ए स्वतंत्ररीते उत्पन्न थएलो छे. परंतु कोई अन्यधर्मनी अने खास करीने बौद्धधर्मनी शाखारूपे बिलकुल प्रवर्तलो नथी. पृ. ३० थी-डॉ० हर्मन जेकोबीनी जैनसूत्रो परनी प्रस्तावनाना बीजा भागनो सार जैनसूत्रोना मारा भाषांतरना प्रथमभागने प्रकट थए दश वर्ष थयां. ते दरम्यान-प्रो० ल्युमन, प्रो० होर्नल, होनेट चुल्हर, डॉ. फुहरर, एम. ए. बार्थ, मि. लेवीस राइस, आदि यूरोपीयन अनेक विद्वानोद्वारा जैनसूत्रोनां भाषांतर शिलालेखो विगेरे बहार पडवाथी, जैनधर्म अने तेना इतिहास विषयक आपणा ज्ञानमा घणा महत्वनो वधारो थयो छे. हवे मात्र कल्पनाने-आ विषयमां थोडोज अक्काश रहेशे. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४३ ) अहीं केटलाक विवादग्रस्त मुद्दाओनुं स्पष्टीकरण करवा. इच्छं छं. जेओ जैन अथवा आईतना नामयी प्रसिद्ध छे, तेओ ज्यारे बौद्धधर्म स्थपाइ रह्यो हतो, त्यारे एक महत्वशाली संप्रदाय तरीके क्यारनाए प्रसिद्ध थई चुक्या हता. आ विषयनी सिद्धिमां बौद्धनाज प्राचीनमां प्राचीन गणाता १ अंगुत्तरनिकाय, २ महावग्ग, ३ दीघनिकाय, ४ बुद्धघोषनी टीका आदि अनेक ग्रंथोनां उदाहरणो आपी, सर्व प्रकारथी सिद्ध करीने बतान्युं छे. जेमके बौद्धप्रथोमां लख्युं छे के 'नातपुत्त - सर्वज्ञान अने सर्वदर्शन प्राप्त करवानो दावो करे छे.' ए प्रकारनं जे कथन छे तेने माणआपवानी जरुर नथी. कारण के-आ तो जैनधर्मनुं खास एक मौलिक मंतव्यज छे. पृ. ४१ मां लख्युं छे के - " पापे ए आचरनारना आशय १ जैनोना संकेत मुजब असत्य निरूपण करेलं नथी पण सत्यरूपेज थलं छे, केमके - सूक्ष्मनिगोदना, पृथ्वी, जल, आदि पांच स्थावरना, वेइंद्रिय, तेरेंद्रिय, चौरेंद्रिय अने छेवट सन्मूर्छन पंचेंद्रियना जीवोने मन होतुं नथी, छतां पापनो बंध तो थाय छे, तेथी पापनुं बंधनं केवल आशयथीज थाय छे तेम नथी, पण मिथ्यात्वाऽवृत्ति आदिना योगे आशय Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४४ ) उपर आधार राखे छे, बौद्धना आ एक महान् सिद्धांतने, जैनोए मिथ्याकल्पित अने मूर्खतापूर्ण उदाहरण साये मेलवी उपहास्य पात्र बनावी दीधो छे. जैनविषये बौद्धोए करेली भूल. पृ० ४७ मां " चातुयाम" पार्श्वनाथने लागु पडे छे, तेने महावीर उपर आरोपित करवामां मुल करेली छे, बौद्धोनी आ भूलद्वारा महावीरना समयमां पण पार्श्वनाथना शिष्यो विद्यमान हता. १९४८ मां बनी भूल - नातपुत्तने अग्निवेसन कहे छे पण महावीरनो एक मुख्य शिष्य जे सुधर्मा हतो ते अग्निवेश्यायन हतो तेथी शिष्यनुं गोत्र गुरुने लगाडी बेवडी भूल यवाथी महावीरना शिष्य सुधर्मानी साक्षी आपे छे. पृ० ५० बौद्धधर्मनो प्रादुर्भाव थयो त्यारे निर्ग्रथोनो ( जैनोनो ) संप्रदाय एक मोटा संप्रदायरूपे गणातो होवो जोइए, केमके बौद्धपिटकोमां - ए निग्रंथोमांना केटलाकने विरोधी अने Sheeraोने अनुयायी थला वर्णवेला छे, पण निर्ग्रथोनो एक विना पण पाप बंधाय छे. तेथी ते विषयनुं खंडन अयोग्यपणे थएलं नथी, एम खास ध्यानमा राखवा जेबुं छे. संग्राहक. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवीन संप्रदाय छे एम सूचनमात्र पण नथी. आ उपरथी अनुमान करी शकीए छीए के-निग्रंथो बुद्धना जन्म पेहलां घणा लांबा कालथी अस्तित्व धरावता हशे. __ पृ० ५१ थी—बीजी एक बाबतद्वारा पण जनोनी प्राचीनताने टेको मळे छे. गोशाले मनुष्य जातिनी छ वर्गमां वहेचणी करी हती, ते वर्गमांना त्रीजा वर्गमां निग्रंथोनो समावेश को हतो. . जो तेज अरसामा हयातीमां आव्या होत, तो तेमनी गणना खास तरीके कदापि न करवामां आवी होत. — पुनः पृ० ९२ मां-मज्झिमनिकायथी सच्चकनो दाखलो आपी जणाक्वामां आव्युं छे के-निग्रथोनो संप्रदाय बुद्धना समयमां स्थापित थयो होय तेम भाग्येन मानी शकाय. पृ० ५९ थी-बुद्ध अने महावीरना समयमा प्रचलित एवा अन्य तात्त्विक विचारोना विषयमां जैन तथा बौद्ध ग्रन्थोमां मळी आवती नोंधो गमे तेटली जुज होय तो पण ते नामांकित कालना इतिहासकारने अति महत्त्वनी छे. एक बाजूए आ बधा पाषंडीमतोमा मली आवती परस्परनी Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केटलीक साम्यता, अने बीजी बाजुए जन अने बौद्धोनी जणाती विशिष्टता उपरथी अनुमान करी शकाय छे के-केटलाक विचारो पाखंडिओमाथी लीधा हता, अने केटलाक तेमनी साथेना वादविवादनी असरथी उपजावी काढ्या हता. पृ. ६२ थी-अज्ञेयवादनी बुद्धना उपर केटली बधी असर थई हती तेनुं सविस्तर वणन कर्यु छे. पृ. ७२ थी-जैनधर्म ए एक प्राचीनकालथी चालतो आवेलो धर्म होय, महावीर बुद्ध करतां वधारे जूनो छे. केम के-सबली वस्तु चैतन्ययुक्त छे एम बतावतो सचेतनबाद छे. ___पृ. ७३ थी-जनधर्मनी प्राचीनतानुं बीजं चिन्ह वेदांत अने सांख्य जेवां सौथी प्राचीन ब्राह्मदर्शनोनी साथे रहेली सिद्धांतविषयक समानता छे. वैशेषिक दर्शन साथे जैनोना विचारो, केटलाक मलता अने केटलाक जुदा होवाथी जैनधर्मनी उत्पत्ति तेना पछी थइ, एवो जे मत डॉ० भांडारकरे उपस्थित कर्यो छे, तेनी साथै हुँ मलतो थई शकतो नथी. इत्यादि कही छेवटमां कयूं छे केवैशेषिक पार्थिवादिक चार प्रकारनां शरीरो माने छे, पण जैनो पृथ्वी आदि चार काय, लेना सूक्ष्म विभागो, तेनी साथे एक एक Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) विशिष्ट आत्मा रहेलो माने छे. आ जड-चैतन्यवादना सिद्धांत उपर असल सचेतनवादनुं विशेष परिणाम छे. वैशेषिकोए-लौकिक पुराणो उपरथी गोठवेलो छे. आ बन्नेमां जैनमत वधारे प्राचीन छे. वैशेषिकना चार शरीरवाला करतां पण, तत्त्वज्ञानना वधारे विकाशक्रमना समयनो जैन छे. वेदांत अने सांख्यना मूलतत्त्वभूत विचारो जैनविचारोथी तद्दन विरुद्ध छे. तेथी जनो तेमना विचारो स्वीकारी शके नहीं. इत्यादि कही आगल जतां, जनआगमोनो केटलोक उहापोह करीने कहे छे के आ ग्रंथनो वांचनार, भाषांतरकारनो अभिप्राय जाणवानी आशा राखतो होवाथी हुँ अत्यंत संकोचपूर्वक, मारो मत जाहेर करूं छु के जैनसिद्धांतग्रन्थोना घणा खरा भागो, प्रकरणो तथा आलापको खरेखर जूना छे. अंगोनुं आलेखन प्राचीनकालमां ( परंपरानुसार भद्रबाहुना समयमां) थयुं हतुं. इत्यादि विवेचन करीने उत्तराध्ययनादिकनी विशेष : उहापोह करीने आ बीजा भागनी प्रस्तावना पूरी करी छे. ३ पृ०९० थी डॉ० ओ० परटोल्डना व्याख्याननो सारधर्मोनी सरखामणीना , विज्ञानमां जैनधर्मवाळाने कयुं स्थान al Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , ( ४८ ) आपी शकाय, अने तेना विज्ञानमां केटलं महत्व छे ए बतावव मारो प्रयत्न छे. धर्मोनी सरखामणीनुं विज्ञान, ए शास्त्र नवीनज छे. प्रथम - ई० स० १८ मा शकमां अंग्रेजी तत्त्वविवेचनपद्धतिमां अने जर्मनीना धार्मीक तत्त्वविज्ञानमां बीजरूपे जोवामां आवे छे, पण प्रो० मेक्समुल्लरे पद्धतिसर स्वरूप आपेलं. पछी घणा विद्वानोए वृद्धिंगत करेल. प्रो० टीले आ सर्व धर्मविज्ञाननी पुनर्घटना करी खरो पायो नाख्यो छे. ग्रेटब्रिटनम स्वतंत्र शास्त्र समजवामां आवतुं गयुं. आ शास्त्रनी वृद्धि, माटे, बे गृहस्थोए बे संस्थाओ स्थापन करी. आ शास्त्रनो हेतु खरो धर्म कयो, अने केवल नामनो कयो, अने धर्मना विकाशनो काल कयो, ए ठराववानो उद्देश छे. ए काम प्रो० मॅटेट विद्वाने सारी रीते करी मुकेलुं छे. आ पंडितना मतथी कनिष्टधर्मनुं स्वरूप आस्ट्रेलीयामां - टॅबू अने मान, ए बेमां दृष्टिगोचर थाय छे. हवे धर्मनो उच्चतम स्वरूप ठराववानो बाकी रहे छे. पोताने अत्युच्च समजनारा अनेक धर्मो विद्यमान छे. कयो धर्म अत्युच्च ए ठराववो अशक्य नथी पण कठीन छे. आ विचार करवा सामान्यथी धर्मना इतिहास तरफ नजर नाखतां Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४९) जेमनु स्वरूप वृद्धिंगत थयुं छे-एवी निःसंशय बे जातिओ छे. 'सेमेटिक ' अने 'आर्य' ए बे छे. सॅमेटिकमां-ख्रिस्ती, याहूदीन, मुसलमीन, आरब विगेरे छे. आर्यपूर्वकालना हिंदुस्थानमा बे विशिष्ट जातिओना धर्म हता. आ बन्न वर्ग जीवद्देवस्वरूपना हता के, एक वर्ग जीवद्देवस्वरूपनो थईने बीजो जडदेवस्वरूपनो हतो, ए यथार्थ कही शकाय नहीं. तेमां जडदेवस्वरूपनो प्रादुर्भाव कांइक गूढकारणथी उत्पन्न थएलो, उन्मादअवस्थामां अथवा आनंदातिरेकमां मग्न थवाथी थयो. जीवद्देवस्वरूपवालो जे बीजो वर्ग हतो, तेमां-वैराग्य, अने तपस्विवृत्तिनो संबंध हतो. आ बे तत्त्वथी आर्यधर्मना जुदा जुदा धर्म उत्पन्न थया. अत्यार सुधी विवेचन, उपोद्घातरूपे थयु. हवे यूरोपियनपद्धत्तिथी जैनधर्मनो विचार करवानो छे. आ देशमां-धर्मविचारोमांथी जैनधर्म उत्पन्न थयो एम मानवानी साधारण प्रवृत्ति छे. आ मत सामान्यथी यूरोपियन पंडितोमा प्रचलित छे, पण ए मत भूल भरेलो छे. जूनी शाखाना यूरो० विद्वानो एवं मानता हता के-महावीर 'गौतमबुद्ध करतां जरा मोटा समकालीन हता । तेमणेज जैनधर्मनी Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) स्थापना करी, आमत भूल भरेलो सिद्धथएलो छे. हालना यूरोपियन विद्वानोनो मत एवो छे के-जैनधर्मनो संस्थापक पार्श्वनाथ होईने महावीर जागृति करनार हता.जैनोनी परंपराप्रमाणे तो जैनधर्म अनादिनो होइने अनेक व्यक्तिओ तरफथी जागृति मली छे. तेज चोवीश तीर्थकरो अथवा जिनो छे. आ मतने नि:संशय असल इतिहासनो आधार मले छे । कयो आधार ? ए, कहेवू कठीन छे. तो पण नीति ए विषय उपर-हेस्टिग्स साहेबना ग्रन्थमा अने प्रो० जेकोबीना निबंधमां “जैनधर्म पोताना केटलाक मतो प्राचीन जीवदेवना धर्ममाथी लीधेला होवा जोइए" एवं कहेलं होवाथी प्रत्येक प्राणी तो शुं पण वनस्पति अने खनिज पण जीवस्वरूपज छ । एवो जे तत्व छे ते महत्वनो छे, आ कारणथी जैनधर्म ए अत्यंत प्राचीन छे. जैनोना निग्रन्थोनो उल्लेख वेदोमां पण मले छे तेथी आ मारा कथननी प्रतीति थशे. लोकोने जैनधर्मनो विचार महावीरना पछीथी करवो पडे छ। अथवा श्वेतांबर अने दिगंबर उपरथी करवो पडे छे. जैन धर्मनुं स्वरूप अनार्य लोकोनी प्रवृत्ति थया पछीथी झांखं देखाइ रह्यं छे, पण तेज स्वरूप आर्यधर्मनो उंचामा उंचो आदर्श छे. जैनधर्मनुं मूलकाम, धर्मना मूल उपर फटको मारनारा-ब्राह्म ___ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णोनो जे नास्तिकवाद अने अज्ञेयवाद कहेवामां आवे छे तेने अने महावीरनी सुधारणा पेहलां-ब्राह्मणधर्मना विविविधानमां जे केवल अत्याचार थएलो हतो तेने पाछो हठाव्यो ते हतुं. __ जैनधर्मनो बौद्धधर्म जेटलो जो के विस्तार थयो नथी, पण तेनुंज महत्व हिंदुस्थानवालाने वधारे छे. कारण जैनधर्मवालानी क्रिया सरु थवाथी, पालना विचारोनो वधारो थवाथी बचाव थतो गयो. - जैनधर्मनु खलं महत्व धर्मना अंगांनी ययाप्रमाण वहेचणी थवाने लीधेज छे. तेनो थोडो घणो खुलाशो करूं छु. ____ प्रत्येकधर्मना-१ भावनोद्दीपक कथा पुराणो, २ बुद्धिबर्द्धक तत्वविज्ञान, अने ३ आचारबर्द्धक कर्मकांड, ए त्रण मुख्य अंगो होय छे. घणा खरा धर्मोमां-विधिविधानरूप जे कर्मकांड तेनोन प्रचार थई, इतर वे अंगो गौणपणे थईने रहेलां होय छे. अने भावनोदीपक कथा पुराणोनुं अंग मात्र लोकप्रिय होय छे. बौधिक एटले तत्त्वज्ञाननी अभिवृद्धि, आर्यधर्मनं मुख्य लक्षण होय छे. पण ए त्रणे अंगोनी एकला जैनधर्ममांज सर Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) खापणाथी वहेचणी करेली होवाथी, प्राचीन ब्राह्ममधर्म, अने बौद्धधर्म, एमां बौधिकअंगोनुं विना कारण मोटापणुं बतावेलुं छे. बीजा धर्मना प्रमाणमां जैनधर्मवालाने कयुं स्थान आपी शकाय ? तेनो निश्चय करवा, तेना अंतरंगनो थोडो अधिक विचार करीए. ___ जैनधर्मने बधा धर्मोथी विशेष महत्व केम प्राप्त थयुं छे तेन हुं बताईं छु. देव विषयोना संबंधे, जैनधर्मनो प्रमाण तरीके मानेलो मत, एज तेनामां पेहली मोटी महत्वनी वात छे. जैनधर्म मनुष्योत्सारी ( नरथी नारायण सुधी चढेलो ) धर्म ठरे छे. वैदिकधर्म, अने ब्राह्मणधर्म, ए पण मनुष्योत्सारी छे खरा, पण ते केवल औपचारिक छे, कारण देव एटले कोई मनुष्यातीत प्राणी छे, तेने मंत्रोथी वश करी, इष्ट प्राप्ति करी लेवू मानी लीधेलुं छे. पण खरं मनुष्योत्सारीपणुं जैन अने बौद्धमांन देखाई आवे छे. बौद्धनो ईश्वरविषयक मत घणोज जुदो बनी मयो छे, मूलमांज ते अनीश्वरवादी हतो के केम ? एवो संशय उत्पन्न यई जाय छे. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (५३) जनोनी देवविषयक कल्पना, विचारीपुरुषोना मनमां आवी शके तेवी छे. देव ए परमात्मा छे, पण जगत्नो स्रष्टा अने नियंता नथी, पूर्णावस्थाने पोहचेलो-जीवन होइने, अपूर्णावस्थावालानी पेठे, जगत्मां पाछो आववानो अशक्य होवाने लीधे पूज्य अने वंदनीय थयो छे. आज बाबतमां मने जैनधर्मनो अत्युद्दात्त स्वरूप देखावा लाग्यो छे, बौधिकविषयोनी उत्तम परिपुष्टि करवाने माटे तेटलाज उच्चतम ध्येयने ( देवनी मूर्तिने ) जनधर्मवालाए हाथे धर्यों छे. ___ आ बधां कारणोने लीधे जैनधर्मने आर्यधर्मनीन नहीं, पण एकंदर सर्वधर्मोनी परम मर्यादावालो समजीए तो पण कोई प्रकारनी हरकत आवे तेम नथी. आ परम सीमावाला जैनधर्मने मोठे महत्व प्राप्त थएवं छे. धर्मनी सरखामणीना विज्ञानमां जैनधर्मवालाने एटलुंज एक महत्व नथी परंतु जैनोनुं१ तत्त्वज्ञान, २ नीतिज्ञान, अने ३ तर्कविद्या, पण तेटलांज महत्ववाला छे. अहिं जैनोना नीतिशास्त्रनी-बेज वातानो उल्लेख करुं छु. तेमां पेहली ए छे के-जगत्मांना सर्व प्राणीओने सुख समाधानथी Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५४ ) एक केवी रीते रेहतां आवे ? आ प्रश्नना आगल, अनेक नीतिवेत्ताआने हाथज टेकवा पड्या छे. आ विषयनो संपूर्ण निर्णय आज सुधी कोई पण करी शकेलो नथी. पण जैनशास्त्रमां बहुज सरल ते करीने मुलो छे. बीजाओने दुःख न देवुं अगर अहिंसा आ वानो केवल तात्त्विक विधिथीज नहीं, पण ख्रिस्ती धर्ममनी - तत्सदृश दश आज्ञाओ करतां, अधिक निश्चयथी अने कडकपणाथी, तेनो आचार कहेलो छे, तेटलीज सुलभताथी तथा पूर्णताथी, तेनो खुलासो जैनधर्ममां करेलो छे. बीजो प्रश्न स्त्री पुरुषोना पवित्रपणानो छे. जैनधर्मने सर्वधर्मनी, विशेषथी आर्यधर्मनी परम हदवालो मानवो जोइए. बौधिक विषयोने पण बाजु उपर न मुकतां जैनधर्मनी बाजु घणी मजबुत रचाएली छे. स्त्रिस्तिधर्ममां बौधिक प्रश्नोनो विशेष ऊहापोह के विवेचन थलं नथी. टुकमां सारांश ए छे के उच्च धर्मतत्त्वो अने ज्ञाननी पद्धत ए बन्नेनी दृष्टिए जोतां - जैनधर्म धर्मनी सरखामणीवाला शास्त्रोमां घणोज आगळ पहोंचेलो छे, एम तो मानवुं ज पडे छे. अने द्रव्योनुं ज्ञान करी लेवाने माटे, तेमां जोडी दीधेला - स्याद्वादनुंज एक स्वरूप जुवो एटले बस छे. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मना विचारोमा जैनधर्म ए एक निःसंशयपणे परम हदवाळो छे. अने ते केवल स्याद्वादनी दृष्टिथी सर्व धर्मोनू एकीकरण करवाने माटेज नहीं, पण विशेषपणाथी, धर्मोना लक्षण समजवाने माटे अने तेना अनुसारथी सामान्यपणे धैर्मनीउपपत्ति संगत करी लेवाने माटे तेनो कालजी पूर्वक अभ्यास करवानी जरूर छे ॥ ४ पृ. १०८ मां-डॉ० एल. पी. टेसीटोरी अने डॉ. हर्टल ए बन्ने विद्वानोना लेखोमांना मात्र बेज फकराथी जैनधर्मना तत्त्वोनी दिशा केटली बधी उंची छे एटटुंज जणाववामां आव्युं छे. ५ पृ. १०९ मां 'जैनदर्शन अने जैनधर्मः' मूल लेखकमि० हर्बर्टर वारन साहेब छे, तेमां जैनोना मुख्य मुख्य तत्वोनी टुंक नोंध करी बतावेली छे. ॥ इति यूरोपियन लेखकोना लेखोना संग्रहरूप द्वितीय भाग संपूर्ण ॥ १ स्याद्वादना. २ सर्वधोनी: Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) सूचना. प्राये आ पुस्तकमां जगावेला लेखोना लेखको शोधक दशामां रहीने पण घणाज आगळ वधीने लखता रह्या छे, ए निःसंशय छे. जैनोना तत्त्वो पण हजु गूढ दशामा रहेला छे, माटे लेखकोना बधाए विचारो, जैनोने सम्मत थइ गयानी, कोइए भूल करवी नहि. आ पुस्तकमां लेखो तथा प्रस्तावनामां आपेला फकराओ मळी ३४-३५ महाशयोना अभिप्रायो जणाववामां आव्या छे, ते जनताने विशेष उपयोगी निवडे अने तेथी कोईने पुनरावृत्ति छपाक्वानो विचार थाय तो अमारा तरफथी कोई पण प्रतिबंध नथी. काळजीपूर्वक संशोधन कर्यु छे छतां कोई स्थळे अशुद्धि जणाय तो ते सुधारी वांचवा भलामण करीये छीये. सीनोर. संग्राहक(रेवाकांठा) ता. १-१०-२३ मुनी श्रीअमरविजयजी महाराज. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम भागना १३ लेखोनी अनुक्रमणिका. १ लोकोमा चालता वैदिक धर्मनुं हिंसाथी दूषितपणुं, अने जैनधर्म तथा बौद्धधर्मनी विशुद्धवैदिकधर्मता. लेखक-वासुदेव नरहर उपाध्ये. .... पृ. १ थी. २ जैनधर्मनी धर्मना विषयमा पूर्ण योग्यता जैन अने बौद्ध धर्मना नेताओनी भिन्नता, जैनधर्मनी उत्पत्ति वैदिकथी, के बौद्धथी, इत्यादिक अनेक विकल्पोनी साथे छेवटमां स्वतंत्रतानी सिद्धि-ले० वासुदेव नः उपाध्ये. पृ. २१ थी. ३ उपरना बन्ने लेखोनो संग्रहकारे आपेलो सार. पृ. ६९ थी. ४ जैनधर्मनां मात्र बेज पुस्तकना वाचनथी जैनधर्मनी पूर्णयोग्यतानो, अने चालता वैदिकधर्मनी अयोग्यतानो, एक परमहंसने थएला ख्यालनो पत्र.... पृ. ७८ थी. ५ जेमां धर्मनी अनादिता, बौद्धधर्मथी भिन्नता, एकांत Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८) ६ वैदिकाऽनुयायी पक्षना सर्वमतोने, पोताना स्याद्वादना सिद्धांतथी पोताना मतमां मेलवी लेवानी सत्ता छे तेज जैनधर्म.ले० वैष्णवाचार्य 'राममिश्र शास्त्रीजी. पृ.८२ थी. ६ यज्ञमां थती हिंसाना निरोधनुं मान जैनधर्मवालानेन छे लेक लोकमान्य टिलक. ... .... पृ. १०१ थी. ७ जैनधर्मना स्याद्वादमां मानवबुद्धिन एकांगीपणुं रहेलुं छे. अने विहारनी पुण्यभूमीमां बे महापुरुषो, जेमांना एक श्रीमहावीर अने बीजा श्रीबुद्ध, तेमनाथी प्रगट थएलो शांतिनो मार्ग. लेखक-काका-कालेलकर. पृ. १०३ थी. ८ शंकराचार्ये दूषित करेलो जैनधर्मनो स्याद्वादन्याय संशयवाद नयी पण एक दृष्टिबिंदु मेलवी आपनार परमोपयोगी न्याय छे. ले० प्रो० आनंदशंकर बापुभाई ध्रुवे. ..... ... ... .... पृ. ११० थी. ९ जैनधर्मने बौद्धनी शाखा घणा खरा विद्वानो जणावता हता ते पडलो हवे नष्ट थवा लाग्यां छे. अने जैनधर्म पूर्वेना धर्ममां पोतानुं स्थान लेतो जाय छे. ले० श्रीयुत राजवाडे. ..... .... .... .... पृ. १११ थी Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६९) १० जैनधर्मने अंगीकार कर्या पछी सर्वज्ञनी यथार्थपणे स्तुति करनार त्रण ब्राह्मण पंडितो ( श्रीहरिभद्रसूरि, सिद्धसेनदिवाकर, पं० धनपाल ) ना योग्य थएला उद्गारो. .... .... .... .... पृ. १११ थी. ११ तीर्थकरनी स्तुति करतां-सर्वज्ञकल्प श्री हेमचंद्राचार्यजीना यथार्थपणे थएला उद्गारो. .... पृ. १२२ थी. १२ अनादिथी चालती आवेली आ दूनीयाना, ब्रह्म, हरि, हरादिकने अयोग्यपणे, वेद, स्मृति, पुराणादिक वालाओए ठरावेला कर्ता तेनो लिवार-लेखक-संग्रहकार. पृ.१४५ थी. १३ जे जे उत्तम गुणो जीवमां प्रगट थवाथी परम पर मात्माने योग्य थाय ते ते ते गुणोथी गर्भित परमात्मानी स्तुति-कर्ता श्रीसिद्धसेनदिवाकर.... पृ. १७० थी. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग बीजो-यूरोपियन विद्वानोना ६ लेखोनी अनुक्रमणिका. १ बौद्धोथी प्राचीन मोटा जनसमूहवाला जैनोए पोताना सत्यसिद्धांतमा रहेली सूक्ष्ममां सूक्ष्म मान्यतानी, अन्यसिद्धांतथी थती भ्रष्टताथी करेली सुरक्षानी सप्रमाण सिद्धि। ले० डॉ० हर्मन जेकोबी. .. .... पृ. १ थी २ अनेक यूरोपियन उत्तम विद्वानोद्वारा शोधना अंते जैन धर्मनी प्राचीनताना संबंधे तेमन स्वतंत्रताना संबंधे अनेक युक्तिओथी सिद्धि. बौद्धोए करेली भूल, तेनी सयुक्तिक सिद्धि० ले० डॉ० हर्मन जेकोबी. ... पृ. ३० थी ३ अनेक यूरोपियन विद्वानोनी शोधने अंते, सर्वधर्मोमां जैनधर्मवाळाने, अपूर्वतत्त्वकथनना योगथी मळेलं प्रथम स्थान ले० डॉ० ओ० परटोल्ड. .... पृ. ९० थी ४. ज्यौं ज्यौं पदाथविज्ञान आगे बढता जाता है, त्यौं त्यौँ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) जैनधर्मके सिद्धांतोको सिद्ध करता है ले० डॉ० एल० पी० टेसिटोरी. .. .... .... पृ० १०८ थी ५ जैनोना महान् संस्कृतसाहित्यने अलग पाडवामां आवे तो संस्कृतकवितानी शी दशा थाय ? ले० डॉ० हर्टल. .... .... .... पृ. १०८ थी ६ जैनधर्म-जैनधर्मनी मान्यताना किंचित् मुख्य मुख्य तत्त्वो० ले० डॉ० हर्बर्ट बारन. ... पृ. १०९ थी Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ COOLOODOORNER 200000000000000000000000 श्रीः। शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् । यं शैवाः समुपासते शिव इति ब्रह्मेति वेदान्तिनो बौद्धा बौद्ध इति प्रमाणपटवः कति नैयायिकाः। अईनित्यथ जैनशासनरताः कर्मेति मीमांसकाः सोऽयं वो विदधातु वाञ्छितफलं श्रीवीतरागः प्रभुः ॥१॥ अर्थ-शैवानुयायिओ शिव समजीने, वेदांतिओ ब्रह्मा गणीने, बुद्धना भक्तो बुद्ध जाणीने, प्रमाणमां चतुर एवा नैयायिको कर्ता कल्पीने, जिनेंद्रना उपासको जिन मानीने, अने मीमांसको कर्म कहीने जेनी उपासना करी रह्या छे, ते रागद्वेष आदि दोषोथी मुक्त थएलो श्रीवीतरागप्रभु* तमारा वांछित फलने आपवावाळो थाओ. OCT@930000090535000000000000 * श्रीवीतराग प्रभुनु यथार्थ स्वरूप अमोए एज पुस्तकना प्रथम भागना पृ. १७० थी श्रीसिद्धसेनदिवाकरविरचितपरमात्मस्वरूपद्वात्रिंशिकाथी ) जणावेल छे त्यांथी जोइ लेवु. 00000000000000000000000 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीः । शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् । विद्यन्ते कति नात्मबोधविमुखाः सन्देहिनो देहिनः १ प्राप्यन्ते कतिचित् कदाचन पुनर्जिज्ञासामानाः कचित् । आत्मज्ञाः परमममोदसुखिनः मोन्मीलन्तर्दृशो द्वित्राः स्युर्बहवो यदि त्रिचतुरास्ते पश्चषा दुर्लभाः ॥ १ ॥ अर्थ - आ दुनियामां आत्मबोध मेळववामां विमुख केटला नथी ? अर्थात् घणा जीवो छे, तेमां पण तत्त्वविगेरेना सन्देह करनार थोडा होय छे, वळी तत्त्व शुं वस्तु छे ते जाणवानी इच्छावाळा तो बहुज अल्प होय छे, अने आत्माने ओलखनार अंतरचक्षु खुलेलां, परमप्रमोदधी सुखमां लीन थएला कोई बेचार ज होय छे, वधुमां वधु पांच, छो, मळवा तो दुर्लभ ज होय छे. ॥ १ ॥ एमांथी तत्त्व मेळववानी इच्छा राखनारा वर्गने माटे आ अमारो प्रयत्न छे. तेओ वांचीने लाभ उठावशे तो अमारो प्रयत्न सफल थयो मानीशुं. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रसंगने अनुसरी जैनधर्म विषये बे शब्दो ॥ लेखक-वासुदेव नरहर उपाध्ये. वडोदरा मराठी शाला नं. १ ना हे. मा. ARE VR3424 अत्यंत प्राचीनकाले आर्यलोकोमां जूदाजूदा 5 वंशमां जूदाजूदा प्रसंगने अनुसरीने जूदाजूदा । पुरुषो स्तोत्रो गाता हता, प्रथमतः आ स्तोत्रो बाद बोलनाराओनो जुदो वर्ग थयो नहोतो, पछी ते बधां स्तोत्रो एकठ्ठा करी तेओनी संहिताओ बनावेली, जुदाजुदा मंत्रो नष्ट न थाय ए हेतुथी तेओनो विनियोग करी कर्मकांड थयु, जुदीजुदी अडचणोमां इष्टप्राप्ति माटे जे जे कर्मों योजेलां हतां ते ते कर्मोमां अने विधिओमां ते ते प्रकारनी प्रार्थनाओ विगेरे नांखवाथी आ कर्मकांड वधतुं गयुं, ते ज प्रमाणे मुख्य चार संहिताओ थई, ने चारवेद- बिल १ ते मंत्रोने भेला करी. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) कुल पृथक पणुं पडीने तेना अनुआयिओमां ने भेद पट्या हता ते नष्ट ने सर्वे वेदानुयायिओनुं ऐक्य करवाना हेतुथी ऋग्वेदनुं हौत्र, यजुर्वेदनं आध्वर्यव, सामनुं गायन, विगेरे संमिश्र करपाथी अग्निष्टोमादियाग तैयार थया, पछी आ यज्ञयागादिकोनुं कर्मकांड घणुंज वध्युं, खेतरमां बीज वाववानुं होय तो पण याग जोइये, झाड उग्या पछी अंदरनुं वास काढी नाखवं होय तो पण 接 याग, पर्जन्यनी जरूर पडे के ते माटे ईष्टि छे ज, सन्तति जोइये तो करो इष्टि, धन जोइये तो करो इष्टि, सारांश ए प्रमाणे बधे ठेकाणे यज्ञ याग विगेरे पुष्कळ वधारी दीघां. अश्वमेवादि यागो - मांतो मांसना ढगले ढगला देखावा लाग्या. यज्ञोमां अतिशयहिंसा थती. केटलाक यज्ञोमां तो कंपारी उठे एवा प्रकारनी विधिओ अने कर्मो हतां. स्वाभाविक रीते मद्य मांस तरफ अभिरुचि राखनाराओने ए. यज्ञादि क्रियाओमांज मद्य मांस ग्रहण कर विगेरे परिसंख्यादि विधानोथी प्रतिबंध करवामां आवतो हतो. तो पण आ-हिंसादि क्रियाओ जे यागादिकोमां थाय छे ते विधिओ निंद्य अने विहित हिंसा होय तो पण ते परम गर्ल छे, एम केटलाक विद्वानांना समजवामां आव्यं परन्तु घणा दिवसोनी १ इष्टि एटले यज्ञ. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३ ) दृढमूल थई गयेली प्रवृत्तिओनो एकदम निषेध पण शी रीते करी शकाय ? ' राष्ट्रोमा जेटला प्रमाणमां कर्मकांड वधतुं जाय तेटलाज प्रमाणमां अज्ञाननुं जोर वधे छे. आ नियमने अनुसरी यज्ञ याग अने पुत्र, धन, संपत्त्यादिकोनी प्राप्ति विगेरेना कार्यकारणभाव विषे जे निविडतर अज्ञान पसरेलं हतुं तेमा दिवसे दिवसे फरक पडवा लाग्यो. अमुक यागथी अमुक थाय छे. एवं शास्त्रमां मळे पण तेनो कार्यकारणभावसंबंध शुं होवो जोइये ! एवी शंकाओनो उद्भव थवा लाग्यो. ते वखतना कर्मकांडनिपुण आचार्यो एवी शंका काढनारा सामान्य लोकोने कर्मोनो अने फळोनो तुलनादर्शक संबंध दर्शावी गमे ते उपपत्तिथी समाधान करता. आ प्रमाणे केटलाक दिवसो चालतां चालतां शास्त्रीयदृष्टिथी अथवा नियुक्तयागादिकोना नियुक्तनियमोने अनुसरी फावे तेम हो, पण तेटलामां शङ्का समाधान अने उत्पत्ति ए विषे विचार थवा लाग्यो. ते पछी पूर्वमीमांसा शास्त्र बन्युं तो पण मीमांसको कर्मकांडना पूरा अभिमानी हता, बुद्धिवाद करनारा लोकोए कर्मकांडीओनी साथे तेओनाज वेदवाक्यो लई शंका काढी ते १ आड अवलु समजावीने. ܕ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) उपर वादविवाद शरु करी कर्मकांडीय जडोने पण वादविवादनी, बुद्धिवादनी अने प्रत्यक्षनी साथे मेळ राखी वेदवाक्योनो अर्थ करवानी टेव पाडी. “ लोके व्यवायामिषमद्यसेवा" इत्यादि स्वाभाविक संसार सुखमां आसक्त रहेनारा अने इन्द्रियसुख एज पुरुषार्थ छे एम माननारा लोकोमा विषयोना माटे तिरस्कार उत्पन्न थयो. विषयसुखोपभोग करतां इन्द्रियदमन करवामांज विशेष मजा छे अने खरं सुख छे, एम माननाराओनों वर्ग वधवा लाग्यो. ( इन्द्रियदमन करवू एज पुरुषार्थ छे. एम माननारा जे लोको तेज प्रथम जैन हता एम अमोने लागे छे.) तेओने ए मांसादि हिंसानो परम तिरस्कार उत्पन्न थयो. ते दखतना यज्ञ यागादिकोना अत्यन्त प्रमाणभूत ग्रन्थो विगैरे अप्रमाण छे एम चोक्खी रीते कही पोतार्ने कार्य साधवा करतां तेमांथीन काइएक तोड काढवो ए तेओने पोतानो हेतु साधवा माटे विशेष ठीक लाग्यु. तेओए ब्राह्मण ग्रन्थोमां मेधाने प्रथम पुरुषमां, पछी घोडामां, पछी बळदमां, पछी मृगमां, पछी हरिणमां ए प्रमाणे आणतां आणतां छेवटे धान्यमां आणी मुक्युं. तात्पर्य-आ प्रमाणे यज्ञ यागादिकोमा प्रत्यक्ष पशुओनी १ मैथुन मांस अने मदिराना सेवनथी. २ यज्ञने. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (9) जे हिंसा थती तेना बदले पिष्टपशुथी ते यज्ञो करवां आटला सुधी ते वखतना लोकसमाजने पकडी रहेनाराओने जैनोए तथा बौद्धोए पहोंचाड्या. पछी आ हिंसाप्रधान यागादि कर्मकांड बिलकुल निरर्थक छे. एमां पुरुषार्थप्राप्ति बिलकुल नथी. " न कर्मणा न प्रजया त्यागेनैकेन अमृतत्वमानशुः " एटले अमृतत्व कर्मथी प्राप्त यतुं नथी. प्रजायी प्राप्त थतु नथी. पण त्यागथी प्राप्त थाय छे. एम माननारानो वर्ग तैयार थयो. कर्मकांड उपरनी श्रद्धानो दहाडे दहाडे लोप थवा लाग्यो. ब्राह्मण ग्रन्थोमां अने मीमांसादि । शास्त्रोमा वादविवादनी देव पडवाथी प्रखर बुद्धिना लोकोए हवे चोक्खी रीते कर्मकांडने फेंकी देई ज्ञानकांडने प्रधानपणु आपवानी शुरुआत करी, ते हवे जुदीज दृष्टिथी ( श्रद्धा छोडी दईने स्वतन्त्रपणाथी ) विचार करवा लाग्या. आ जगत्मां जे जुदा जुदा पदार्थो भासमान थाय छे तेओनुं आदि कारण शुं ? मनुष्यना देहमां चालक शक्ति कई होवी जोइये ! जेनाथी देहादिकोनो व्यापार चाले छे, अने जे तत्त्वना अभावे देहक्रिया बन्ध पडे छे ते तत्त्व क्युं ? ए विषे विचार थवा लाग्यो. सृष्टिनो कर्त्ता कोण ? आ जे क्रियाओ चाले छे ते कोनी सत्ताथी ? आ सर्वे सृष्टिन १ आत्मकल्याण. Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्यों चलावनारो अने सर्वेनो नियामक कोण छे ? अथवा आ बधुं स्वभावथीज चाले छे, ए विषे पंडितो स्वतन्त्र रीते वादविवाद करवा लाग्या. “ स्वभावमेके कवयो वदन्ति" इत्यादि अनेक सैकाओ सुधी पंडितोमां एवा प्रकारना वादविवादो चालता हता. पण ते पंडितोए एवा मतनो स्वतन्त्र पन्य कहाड्यो नहोतो. ते वखतना पंडितोमां वे मोटा पक्ष पड्या हता. तेमां एक पक्ष संसारमा मग्न रहेनाराओनो, अने बीजो विरक्त रहेनाराओनोहतो. परन्तु प्राचीन कालथी चालती आवेली रूढीओ फेंकी देनाराओमां विलक्षण धैर्य अने श्रद्धानी जरुर होवी जोइए. पोताना मतो केवळ सामदामादि प्रकारोथी प्रमरी शकता नथी. लोकोमा प्राचीन रूढिने वलगी रहेनाराओनी संख्या वधुन होय. ए कारणयी जोइये तेवो मत प्रसार यतो नथी. ए प्रकारे जोइने जैनोए अने बौद्धोए मांसभक्षक पाखंडिओनी साथे संग्राम करवा माटे कमर कसी. अर्थात् दुनियाना स्वाभाविक नियमने अनुसरी प्राचीन मतावलंबी लोको तरफथी तेओनो छल थवा लाग्यो. समाजमांनी दुष्ट बाबतोनो नाश थवो जोइये. अने ते वखतनी दुष्ट बाबतोर्नु सत्यानाश थवा इच्छनाराओमां खरी लागणी धरावनारा जे लोको हता तेओने ते दखतना आचार विचारोनी दिशा फेरवी Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जूदा प्रकारनी दिशा लगाडवा माटे खटपट करनारा लोकोनी जुदी संस्थान निर्माण करवानी आवश्यकता भासवा लागी. अने ए कार्य माटे पोतार्नु संसारसुख विगैरे सर्वनो भोग आपवानो एमणे निश्चय को. जे कोइने समाजमांना दुःखो देखीने ते दूर करवानी इच्छा होय तो तेना माटे सर्वस्वनो भोग आपी ते वातनी पाछल पडवा संसार छोडी देवो एम लागे ते वखते तेणे संसार छोडी दई प्रव्रज्या धारण करवी. ( संन्यास लेवो ) एवँ एक वाक्य छे. (यदहरेव विरजेत तदहरेव प्रव्रजेत्) त्यांथीन अमो बौद्धोना अने जैनोना संन्यासनी उत्पत्ति समजीये छे. तात्पर्य-पछी बधा संसारनो त्याग करी संन्यास ( दीक्षा) ग्रहण करी पोताना मतोनो उपदेश करवो एम माननारामां बुद्ध अने महावीर एवा वे राजवंशीय अग्रगण्य. निकळ्या. आखा जगतमांना संसारसुखमां अत्यंत स्पृहणीय जे राज्यपद तेनो खुल्लीरीते त्याग करी संन्यास लेई उपदेशकनुं काम करवामांज आनंद छे एम बोलीने नहीं पण प्रत्यक्ष कृतिथी बतावनारा न्यारे राजपुरुषो निकल्या त्यारे ते पक्षने घणुंज जोर मल्यु. ज्या ज्यां ए उपदेशको जता त्या त्यां मूर्तिमन्त राज्यसुखनो त्याग करेला ते अग्रणीओना व्याख्यानना श्रवणथी. लोकोना टोळेटोळां संन्यास ___ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) लेवा माटे तेओनी पासे मेगा थता. सारांश-माणस मात्रने परमप्रिय जे संसारसुख तेनो त्याग करी संन्यासवत लीघेला लोकोने जोई समाजमांना लोकोने शुं लाग्युं हशे वारु ? देखीतुंज छे के, मोटा मोटा श्रीमान् अने संपत्तिमान् राजवंशीय लोको जे अर्थे प्रत्यक्ष सुखनो त्याग करी एकदम उपदेशकोनी दिक्षाओं लेवा लाग्या छे, एम ज्यारे लोकोना जोवामां आवे त्यारे तेओना माटे पूज्यबुद्धि उत्पन्न थई अने तेओना अनुयायिओनी संख्या झडपथी वधवा मांडी. माणस मात्रने परमप्रिय एवा संसारसुख अने विषयसुखने लात मारी धर्मोपदेश करवा माटे विरक्त थयेला लोकोनां टोळेटोळां धर्मोपदेश माटे सर्वत्र भरतखंडमां ज्यारे देखावा लाग्यां, अने तेओनी खरी लागणी जोई तेओना अनुयायिओनी संख्या जे प्रमाणमां झपाटाथी वधवा मांडी, तेटलाज प्रमाणमां तेओना प्रतिस्पर्खिओ तरफथी तेओनो विशेष छल थवा मांड्यो. परमार्थ-मुखश्रद्धाथी परिपूर्ण बनेला तेवा छलने नहीं गणतां ते महावीरोए पोताना धर्मप्रचारनुं काम आगळ चलाववा माटे तेओमां लोकोत्तर धैर्य उत्पन्न करनारा शास्त्रो पण तेओना स्थापकोए निर्माण को. ते शास्त्रश्रद्धाथी परिपूर्ण थईने ते महावीरोए ते काम आगळ घणी झडपथी शरु कयु. तेनुं परिणाम केटलंप्रचण्ड Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९) थयु ए पाछळ कह्या प्रमाणे जैन अने बौद्धमतनो सर्वत्र भरतखंडमां प्रचार थयो ते शिवाय बौद्धपन्थियोनो ब्रह्मदेश, सयाम, चीन, जापान, सीलोन, तिबेट, अर्फघाण, सैबीरीया विगेरे पृथ्वीना लगभग अर्धा भाग उपर प्रचार थयो हतो, एम लोक मानता हता. पण पाछळ कह्या प्रमाणे जैन अने बौद्धमत सर्वत्र भरतखंडमां तो प्रसरेलाज हता ए उपरथी सहेज ध्यानमां आवशे. पछी कालान्तरे यद्यपि ते लुप्त थयो तो पण हालना आपणा आचार विचारो जोतां तेमां बौद्धोए अने जैनोए अमारा भारतीयो उपर घणी क्रिया करींने बतावी छे ए निर्विवाद रीते सिद्ध थाय छे. लातो मारो, गालो आपो, हांकी कहाडो, पथरा मारो, मारी नांखो, वखते खावा मलो या न मलो, तो पण उपदेशनु काम अखंड रीते चालु राखवू तेमां जरा पण पाछळ हठवू नहीं, एवं जे ख्रिस्तीधर्मोपदेशकोमा व्रत देखाय छे, अने तत्पन्थिय लोको जेर्नु मोटुं अभिमान धरावे छे, ते तमाम व्रतो घणा प्राचीनकालमां जैनधर्मियोमा हतां, एम मानवाने अमोने घणां ग्रन्थोमां कहेलां प्रमाणो मळ्यां छे. तात्पर्य-ए प्रमाणे नाना प्रकारना कष्टो वेठी, अने अत्यन्त कठिन एवा कंगाल स्वार्थनो त्याग करी, जैनोए आखा भरतखंडमां ठेकठेकाणे, शहेर शहेरमां जैनधर्मनो प्रचार Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) कर्यो. धर्मनो अथवा विशिष्टमतनो प्रचार समाजमा हालना प्रमाणे वर्त्तमानपत्रो, अथवा मासिक पुस्तकोद्वारा थयो नथी. तो ते तो प्रसिद्ध करनारी ते वखतनी कांइ जूदीज संस्थाओ हती. ( सर्वे संस्थाओनुं अमारा महाराष्ट्र साधु मंडळोए महाराष्ट्रमां तुरत अनुकरण करी लीधुं. एटले ते पद्धति उपर पोताना पन्थोनी संस्थाओ तेओए स्थापन करी ). ते मत प्रसार करनारी अतिशय महत्वनी संस्थाओ कई ? एवो स्वाभाविक प्रश्न उद्भवशे, माटे ते विषे थोडी माहिती आपवानी आवश्यकता छे. ते संस्थाओ एटले नगरप्रदक्षिणाओ, वरघोडा, उत्सवो, भजनो, तीर्थयात्राओ विगेरे हती. ते दिवसे हजारो लाखो लोको भेगा थता पछी यतिमंडलो अने तेओनुं अनुयायिमंडल विगेरे नाना प्रकारना रागोमां तेमज जुदाजुदा मनोरंजक छंदोमां घणा मंजुल स्वरोथी जैनधर्म विषे जुदी जुदी माहिती विगेरे तेमां भेगी करी जैनसाधुओना चरित्रो, वर्णनो, प्रार्थनाओ, स्तोत्रो, उपदेश, विगेरे जेमां ओतप्रोत भरेलां हतां. एवी कविताओ बनावी समाजमां गाता, तेथी चंडालो सुधीमां ते मतोनो प्रचार थयो हतो. तेज प्रमाणे जैनयतिओना व्याख्यानो पण थतां. कथाओ, पुराणो, रासो, जुदाजुदा साधुपुरुषोनां अने राजवयनां रसयुक्त अने मनोरंजक Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११) चरित्रो, काव्यना रूपमा रची तेओमा ठेकठेकाणे प्रसंगो साधी मोटा मोटा यतिओना अने साधुपुरुषोना संवादो नांखी धर्मतत्वर्नु प्रतिपादन करता. सामान्यजनोनी तेमन श्रीमान् रानवों विगेरेनी धर्म उमर अने धर्मप्रचारक संस्थाओ ( रथयात्राओ, रथोत्सवो, नगर प्रदक्षिणा विगैरे) उपर श्रद्धा उत्पन्न थई. एवी विधिओ करवा तरफ तेओनी प्रवृत्ति थवा माटे पहेलानां जे जे मोटा मोटा राजाओए तेवी विधिओ करोडो रुपिया खरच करी करी हती तेओना पूर्वेना धर्माचरणोना रसनिभृत वर्णनो विगेरे करी मुकता, अने ते वर्णनो साधारण लोको, श्रीमानो, राजाओ, राजपुत्रो, राणीओ विगैरेने पहेलानां राजालोकोए एवं एवं कर्ये विगेरे वांची बतावी तेओ करतां वधारे अथवा तेओना जेटलुंज आपणे करीशुं एवो उत्साह निर्माण करता. धणी क्वते जैनयतिओ पोताना धर्मप्रचार अथवा पन्थप्रवर्तन करवामां घणुं चातुर्य वापरता. जैनधर्मना ग्रन्थोनू सूक्ष्मावलोकन करवा लागीये तो कांई जूदीन हकीकतो नजरे पडे छे. हाल सामान्य जनसमूहमां तो जैन अने बौद्ध ए विषे घणी मोटी गैरसमजुतीयो थयेली छे. हिंदुस्तानमा लाखो करोडो लोको जैनधर्म भने बौद्धधर्म ए कोई बिलकुल जुदो (वैदिक धर्म करतां) Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) एम माने छे. जैन धर्मिओना मन्दिरोनी ठठा अने निर्मर्त्सना करे छे. अने घणा स्मृतिग्रन्थोमां शास्त्रग्रन्थोमां अने टीकाग्रन्थोमांथी जैन अने बौद्ध एओने वेदबाह्य माने छे. जैन ग्रन्थोनुं सूक्ष्मावलोकन करतांजैनधर्म ए जूदो धर्म नथी पण उपनिषत्कालीन अने ज्ञानकांड कालीन महान महान् ऋषीयोना जे उत्तमोत्तम मतो हतां ते सर्वे एकत्र ग्रंथित करीने बनावेलो धर्म होय एम देखाई आवे छे. अर्थात जनधर्मनुं प्रथमनु स्वरूप कहिये तो विशुद्ध छे. एटले जे वैदिक धर्म तेज जैन धर्म छे. एनां अनेक प्रमाणो छे. अनेक ग्रन्थोमां वेदोने पोताना कहेवाने तेओएवेदोना प्रमाणो आप्या छे. तेज प्रमाणे जुदा जुदा जैनकाव्योमां जैन पंडितोना वर्णनोमां, तेओ चारे वेदोमां निपुण हतां एवा प्रकारना वर्णनो मळी आवे छे. घणा जैनग्रन्थो उपरथी तो एवं लागे छे के, जैन एटले एक विशुद्ध वैदिक धर्मनी शाखा छे. जैनोमांना डाह्या पंडितो अने अग्रणीओ पोते वैदिक धर्मना अथवा जुना प्रचलित मार्गना द्वेष्टा छीये एम नही बताववा माटे घणी कालजी १ महान् महान् ऋषियोना उत्तमोत्तम मतथी ग्रंथित करेलो एम अनन्यगतिथी केहबुं पड्युं हशे. केमके जीवादिक तत्त्वोतं, पांचज्ञाननु, अने कर्मना सिद्धांतोनू सूक्ष्म स्वरूप, बीजे ठेकाणे संपूर्ण शैते न होय तो जनोना जत स्वोमांथी गयेटुमानवामां शुं हरकत भावे ? Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राखता. पछी अनेक कारणोना लीधे जैनधर्मियोमा अने जुना मार्गे चालनाराओमां मतभेद अने टंटा विगेरे थवाथी जैनधर्म ए बिलकुल जुदो पन्थ छे एम लोकोने भासवा लाग्युं. जैनधर्मना ग्रन्थोमां बीनी एक ध्यानमा राखवा जेवी वात नजरे पडे छे. ते एछे के वैदिकधर्भमां अथवा वेदानुयायि भागवतादि ग्रन्थोमां जे सेंकडो राजाओना नामो छे ते सर्वेने ( राजाओने शुं पण पंडितोने पण ) जैनग्रन्थकारोए जैन बनाव्या छे. उदाहरण तरीकेराम जैन, कृष्ण जैन, पांडव जैन, नळ जैन, दमयन्ती जैन, चाणक्य जैन, विगैरे घणा ठेकाणे कथाओमां विपर्यास करेलो नजरे पडे छे. परशुरामे एकवीस वखते पृथ्वी निःक्षत्रिय करी. तेओना जैन राजाए सत्तावीस वखते पृथ्वी निर्ब्राह्मण करी. परिक्षित राजा मरणोन्मुख थयो त्यारे सात दिवसोमां तेने श्रीमद् भागवत संभलाव्यु. एवी जे वैदिकधर्मानुयायिओमां एक कथा छे तेज प्रमाणे तेओना एक ग्रन्थमां पण तेवीन कथा छे. कथाओमा ए प्रमाणे साम्य अने विपर्यास मळी आवे छे एमां आश्चर्य नथी. कारण के, मतना शब्दोमां पण साम्य अने शब्द विचित्रता नजरे पड़े छे.--- Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैदिकधर्मानुयायिओना र जैनमतानुयायिओना शब्दो. तेवाज अर्थना शब्दो. अहिंसा. प्राणातिपातविरमणवत. सत्य. मृषावादविरमणव्रत. अस्तेय. अदत्तादानविरमणव्रत. ब्रह्मचर्य. मैथुनत्यागवत. उपर आपेला शब्दो उपरथी अने वैचित्र्य उपरथी एम देखाई आवे छे के एकाद नवीन धर्मने ज्यां सुधी ते जुदो पंथ छे एम मानवामां आवतो नथी त्यां सुधी ठीक होय छे पण पछी एक वखते जुदापणुं थवा लाग्युं एटले अमो तमारा करतां बिलकुल स्वतन्त्र अने जूदा छीये एम बताववा माटे केवा केवा विचित्र प्रयत्नो करवां पडे छे तेनु प्रत्यक्ष उदाहरण जैन धर्मना शब्दो उपरथी अने ग्रन्थो उपरथी देखाई आवे छे. वैदिक धर्मिओनुं अने जैनधर्मिओयूँ आगल जे जुदापणुं मनायु अने ते बन्नेमां जे द्वेषभाव मच्यो अने जे द्वैतपणं उत्पन्न थ ते १ अहिंसादिकनुं कथन कुरानादिक बधाए मतना मूल ग्रंथोमां तात्पर्यरूपथी कहेलु होय छे, मात्र पोताना सुखोना माटे आगळ पाछळ फेरखी नाखवामां आव्या पछी स्वार्थी लोको तेने सिद्धांत तरीके मानी बेठे छे. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण एटली हद सुधी पहोच्यु के, एकन विषय उपर ब्राह्मणी प्रन्यो अने जैन ग्रन्थो एवा भेद पडवा लाग्या. ब्राह्मणोए जैन ग्रन्थोन अध्ययन कर एटले पाप, अने जैनोए ब्राह्मण ग्रन्थोनुं अध्ययन करवू एमां हलकापणुं छे, एम मानवानो रिवाज पड्यो. ए वाग्भट, अमरकोष, हैमव्याकरण, विगेरे विषे जे वार्ताओ छे ते उपरथी खुल्ली रीते जणाय छे. जे प्रमाणे जैनोए वैदिक राजाओ, पंडितो अने देव विगैरेने पोताना ग्रन्थोमां जैन बनाव्या ते प्रमाणे ब्राह्मणोए पण भागवत विगेरे ग्रन्थोमां जैनोना आद्य धर्मस्थापक ऋषभदेव विगेरेने भागवत बनाव्या. ए प्रमाणे भरतखंडमां पोताना कडकडित वैराग्यथी अनेक सैकाओ सुधी पोतानो कायम अमल बेसाड्यो. छतां कुमारिलभट्ट, शङ्कराचार्य,रामानुज, मध्व, बल्लभ इत्यादि अनेक आचार्योए अविश्रान्त परिश्रमथी तेओनी सत्ता नष्ट करी वैदिकधर्मनुं पुनरुज्जीवन कर्यु. लाखो नहीं पण करोडो लोको समजे छे के, कुमारिलभट्ट, विगेरे मोटा मोटा महापुरुषोए जैन धर्मिओनो जगोजगो पर पराभव करी तेओना स्थापन करेला धर्मनुं सत्यानाश करी पोताना परमपूज्य प्राचीन वैदिक धर्मनी स्थापना करी. - ए बाबतमां सामान्य लोको करतां अमारी समजुती Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६. ) बिलकुल जुदा प्रकारनी छे. जैनधर्मनुं पहेलुं स्वरूप एटले विशुद्ध वैदिक धर्म ए छे. पछी अनेक कारणोयी ते जूदो धर्म छे एम मनायो. ( आ जैनधर्मनुं पाछळनुं स्वरूप ) अने पछी लोकमत प्रमाणे कुमारिलभट्ट विगेरे मोटा मोटा महापुरुषो जैनोनो अने बौद्धोनो जगोजगो पर पराभव करी तेओना धर्मनो सर्वथा प्रकारे ( जडा मूलथी ) नाश करी वैदिक धर्मनी स्थापना करी आ जैनधर्मनुं छेल्लुं स्वरूप. सामान्य लोकोना मतमां अने अमारा मतमां जे तफावत छे ते हवे कहीए छे— कडकडित तीव्र वैराग्यादिना आचरणोथी पछी राज्याश्रयथी अने स्वार्थत्यागथी जैनोए भारतीय लोकसमाज उपर जे क्रियाओ करी अने अनेक सद्गुणोथी जे फेरफार कर्यो, जे जुदी जुदी संस्थानुं स्थापन करी अनेक विधिओ शरु करी, तेमज लोकोने सन्मार्ग तरफ झुकाववा माटे जे साहित्य निर्माण कर्यु अने वैदिक धर्मानुयायिओमां रहेला- प्राचीन चित्तशुद्धि, सदाचरण, चारित्र्य, इत्यादि विषयोना संबन्धमां आपणा हृदयने हरी लेनारा अने तल्लीन करीने ज छोडी मुकनारा साहित्यथी विषयरसमां तन्मय यई गयेलाओने मात्र श्रवणथीज तत्काल ठेकाणे लावनार जे , Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) विचार प्रचलित करेलो तेनो नाश कुमारिलभट्ट विगेरेना हाथथी बिलकुल थयोज नथी. हवे हालमां भारतीय लोकोना जे आचार विचार अने धर्मसंस्थाओ छे तेओमां जैन धर्मसंस्था अने विचार मळी गएला छे. ए नगर प्रदक्षिणा, आलंदीनी पालखी, पोताना षोडषोपचारनी पूजा, नैवेद्यसमर्पण विगेरे जैनधर्मिओना साथे तुलना करी जोतां तरत ध्यानमां आवी जशे. ए शिवाय कुमारिलभट्टादिकोए जैनोनी साथे ठेकठेकाणे वादविवाद करी तेओनो पराभव कर्यो विगेरे जे दन्तकथाओ छे ते विषे शोध करतां सामान्य लोको ते विषे जेटलं माने छे तेटलं तेनुं स्वरूप नहीं होईने दयानन्द सरस्वतीना खंडन प्रमाणे तेमां लटपट अने ग्राम्य त्र्यवहार विशेष देखाय छे. तात्पर्य — जैन अने बौद्ध धर्मविषे भारतीय लोकोमां आजदिनसुधी जे भयंकर गेर समजुतीयो थई छे, ते गेरसमजुतिओ थवाने जैनधर्मनुं अने बौद्धधर्मनुं पछीनुं स्वरूप तपासीए एटले तेवा प्रकारना जुदाजुदा कारणो पण थयां हतां एम देखाय छे. परन्तु जैनधर्मनुं अने बौद्धधमनुं आद्यस्वरूप जोइसुं तो जैन अने बौद्ध ए जुदा नथी पण विशुद्ध वैदिक धर्म तेज जैन अने बौद्ध धर्म छे एम जणाशे. 2 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ) भारतीय लोकसमाजमा जैन अने बौद्धधर्म एटलो बधो व्यापी गयो छे के 'पौराणिक धर्ममां अने पछीना पन्थमां तेमांना विचारोनुं, आचारोनुं अने तेओनी धर्मपद्धतिनुं तादात्म्य थई गयुं छे. ए भगवद्गीतादिग्रन्थोमां बोद्धोना निर्वाणादिशब्दो जे बिलकुल लीन थइ गया छे ते उपरे तुरत ध्यान आपवा जेवुं छे. पछी जैनधर्मनो द्वेष करतां करतां अमारा आचार विचार उपर, सन्ध्या पूजादि विधिओ उपर, हमेश बोलवाना स्तोत्रो विगेरे उपर पण तेनो असर थयेलो छे. ए जैन अने बौद्धोना सर्वे ग्रन्थोनुं कालजी पूर्वक अवलोकन करीए तो तरतज ध्यानमां आवी जशे . छेवटे वांचकोने एटलुंज कहेवानुं के, एक वखते जैन अने बौद्ध ए विषे अनेक कारणोथी जे विरुद्ध संबंध उत्पन्न थयो ते हवे मुली जइने जे धर्म हालना हिंदुधर्ममां विलीन थई गयेलो छे, ते धर्मना ग्रन्थो तरफ हालना विद्वानो कदाच अनुकंपानी बुद्धिथीज जोशे तो १ प्रथम बौद्धोने वैदिकधर्मवाला तरफथी शत्रुभूत मानेला परंतु जैन धर्मना अने बोद्ध धर्मना पूर जोसमां पोताना स्वार्थनी रक्षा माटे पुराणोनी रचना करी बुद्धने अवताररूपे मान्य राखी जैनोना अने बौद्धोना आचार विचारोने भेलसेलपणे गूंथन करी लोकोने थोभावी राखवा प्रयत्न करेलो पण पछी आद्यशंकराचार्यना वखते राज्याश्रय मल्या पछी बौद्धोनो नाश करवा प्रयत्न करेलो मात्र जैनो उपर पोतानी प्रभा पाडी शकेला नहीं. एम विचार करवाथी खुली रीते जणाई आवे छे. Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेओने अत्यन्त आनन्द उत्पन्न थई भरतखंडमां तो शुं पण बन्ने धर्मोए आखा जगत उपर केटलो अपरिमित उपकार कर्यो छे, ए नजरे आव्या पछी हालना जगतमांना प्रचलित धर्मो तथा बौद्ध अने जैनधर्मो एनो जेवो जेवो संबन्ध तेओनी नजरमा आवतो । जशे तेम तेम आ नवीन मळेली विलक्षण रत्नोनी अगाध खाण : देखीने तेओनुं मनः आनन्दसागरमा तल्लीन थई जशे. एटलंज आ ठेकाणे कहेवू बस छे. छेवट जे श्रीमंत सयाजीराव महाराजनी कृपाथी मने आ भावी लाभनो यत्किचित् अंश प्राप्त थयो ते , महाराजानी आ धार्मिक जिज्ञासा एवीज वृद्धि वाली रहो. आ प्रमाणे ईश्वर पासे प्रार्थना करीने कंटाळो आववा जेवो आ लेख परो करुं छु. एमांना केटलाक विचारो साथे जैनोनो सहज भेद छे ते तेमनक समागमथी समजी शकाय तेम छे. आगलना लेखमां पण एज प्रमाणे समजी लेबु. मुनिश्री अमरविजयजी. Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रसंगवशात् जैन धर्मनी उत्पत्ति संबंधे कांइक विचार. (लेखक-वासुदेव नरहर उपाध्ये. वडोदरा, मराठी शाला नं. १ हे. मा. ) RAPE व न धर्मनी उत्पत्ति अने विकास ए संबंधिनी घणीखरी माहीती मळी शके तेम छे छतां केटलाक पंडितो आनदिन सुधी ए विषय RK उपर साशंक लेख प्रसिद्ध करता रह्या छे. खरु जोतां एम करवानुं बीलकुल कारण नथी. कारणके जेमने एवी शोधखोळ करवानी इच्छा होय तेवा पंडितोने माटे जोइए तेवा जैन धर्मना प्राचीन घणा ग्रंथो उपलब्ध थयेलाज छे, अने ते उपरथी जैन धर्मनो शरुवातनो इतिहास मेळववा माटे घणीज सामग्री मळेली छे. शिवाय आ ग्रंथोनी योग्यता जोतां तेना उपर अणविश्वास राखवाने बीलकुल कारण जणातुं नथी. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २२) साधारण रीते जोतां संस्कृत भाषामां ग्रंथो घणा प्राचीन छे ते छेज एवी घणाखरानी समज थएली होय छे. पण जैन धर्मना ग्रंथो तेनाथी पण प्राचीन छे. प्राचीनपणाना संबंधनेज देखीये तो तेमांना घणाखरा पुस्तको औत्तरीय बौद्ध धर्मीओना अति प्राचीन पुस्तकोना वखतनाज छे. बुद्धोनो अने बौद्धधर्मनो इतिहास लखवाने ज्यारे उपरना बौद्धधर्मीय प्राचीन ग्रंथो निर्विवादरीते साधन तरीके मनाय छे त्यारे जैनोना धर्मनो इतिहास लखवाने तेमना ग्रंथोना माटे शंका लेवानुं आपणने बीलकुल कारण रहेतुंज नथी. जैनधर्मना ग्रंथोमां ज्यारे परस्पर विरुद्ध वातो मळी आवे, अथवा तो तेमां आपेला दिवसो उपरथी परस्पर विरुद्ध एवां अनुमानो ज्यारे नीकळतां होय त्यारे कदाच तेमना ग्रंथो इतिहासना काममां साधन तरीके न गणवाने कारण छे. परंतु एवा • संबंधनीज दृष्टिथी जोवा लागीए तो बौद्धधर्मना ग्रंथो करतां :विशेष करी उत्तरीय बौद्ध ग्रंथो करतां जैनग्रंथोनुं धोरण घjन सुदुं जणाय छे. एम छतां वास्तविक रीते तेमना धर्मग्रंथथी बण उपरनो जैन धर्मनो जे उद्भव अने उत्पत्तिकाल मानवो भोइए तेम न मानतां पुष्कळ पंडितो ते विषयमा जुदाज अनुमानो करी बेसे छे. तेनुं कारण शुं हशेवारु ? तेनुं कारण जोतां साधारण Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) लोकोने पण देखातुं एवं बन्ने धर्मोनू बाह्य निकट साम्य होवामां कंड संशय नथी. जे बे धर्मोमां एवी अनेक बाबतो बीलकुल सामान्य होय तेवा बे धर्मो बीलकुल स्वतंत्र होय ए अशक्य छे. कारण एवं साम्य जे धर्मोमां होय एमांनो कोईपण एक धर्म बीजामाथी नीकळेलो होवोज जोइए, एवा प्रकारनी जे एक वखत केटलाक पंडितोनी समज थइ गएली छे तेज कारणथी अनेक पंडितोना मतो ते बाजु तरफ वळेलां छे अने आजदिन सुधी पण घणाखरा पंडितो तेवाज प्रकारनो मत पकडीने बेठा छे. जैनधर्मग्रंथोनी जे वास्तविक योग्यता छे तेनुं तेवा प्रकार- स्वरूप लोकोना समक्ष मुकवू अगत्यतुं छे. ए संबंधी शोधखोळ करतां जैन धर्मना संस्थापक अने छेल्ला तीर्थकर जे महावीर तेमना विषयमा विशेष विवेचन कर जोइए. एटली शोधने अन्ते महावीर नामनी खरेखर कोइ व्यक्ति नथी पण जैनधर्मना अनुयायीओए जैन धर्म उत्पन्न थया पछी केटलाक सैकाओ गए महावीर नामनी एक व्यक्ति उभी करी छे, एवो जे आक्षेप छे तेनुं सारी रीते अने सयुक्तिक निराकरण थई शके तेवी माहिती हाल उपलब्ध थई छे एम समजवामां आवशेन. श्वेतांबर जैन अने दिगंबर ए बन्ने महावीर ए कुण्ड Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४) ग्राम अथवा कुंडपुर त्यांना सिद्धार्थ नामना राजानो पुत्र हतो एम कहे छे. जैनधर्मी लोकोनी जे विगतो छे ते उपरथी कुण्डग्राम नामर्नु कोई एक मोटुं शहेर हतुं अने सिद्धार्थ नामनो कोई एक अद्वितीय मोटो बलाढ्य राजा हतो एम ते बतावे छे. बौद्ध लोकोए जे प्रमाणे कपिलवस्तु अने सुद्धोदनना संबंधमां प्रतिष्ठा वधारी हती तेज प्रमाणे जैनधर्मीओए पण कुण्डग्राम अने महावीरना संबंधमां कर्तुं छे. आचारांगसूत्रमा कुण्डग्रामने सन्निवेश का छे, टीकाकारोए एनो अर्थ वेपारी लोकोने मुकाम करवानी जग्या एम कर्यो छे. ए उपरथी कुण्डग्राम नामर्नु एक सामान्य स्थल होवू जोईए एम देखाय छे. लोकवार्ता उपरथी एटलुंज देखाय छे के ते विदेहमां हतुं. (आचारांग सत्र २-१५-१७ जुवो ). बौद्ध ग्रंथोनुं अने जैन ग्रंथोनुं सूक्ष्म निरीक्षण करीये तो महावीरनी जन्मभूमिनो पत्तो बराबर लावी शकीए. महात्वागा नामना बौद्धना ग्रंथमां कां छे के बुद्ध कोटिग्राममा रहेतो हतो ते वखते त्यांनी विशाली नामनी राजधानीमांथी अंबापाली अने लिखिवा ए मळवाने आव्या हता. पछी बुद्ध कोटिग्रामथी नाटिका तरफ गयो, नाटिकागाममां तेणे एक ईंटोना बंगलामा मुकाम को हतो, Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५) तेनी पासे अंबापाली- एक अबापालीवन नामनुं स्थान हतुंते बुद्ध अने बुद्धना अनुयायीओने समर्पण कयु. पछी त्यांथी ते विशाली गयो त्यां तेणे 'निग्रंथीओमांनो गृहस्थाश्रमी ने लिखिवी लोकोनो नायक तेने पोतानो अनुयायी बनाव्यो. बौद्धधर्मीओनी कुण्डग्राम एवी कोई जग्या होवीज जोइए एम घणा अंशे मानी शकाय. नामना साम्यनो विचार एक बाजुए मुकीए तो नाटिका नामनो जे उल्लेख बौद्धोए को छे ते उपरथी पण उपरनुज अनुमान दृढतर थाय छे. नाटिका, महावीर जे ज्ञात्रिका क्षत्रियमंडळमांनो हतो ते पैकीन ए होय एमां संशय जणातो नथी. त्यारे एकंदर रीते कुण्डग्राम ए विदेहानी राजधानी ने विशाली नगर तेना नजीकनुंज एक स्थान होवू जोइए ए विशेष संभवनीय लागे छे. सूत्रकृतांग नामना जैनग्रंथमां महावीरने वशालिक एम जे कहेलुं छे ते उपरथी अमारुं मानवु सप्रमाण छे एम सिद्ध थाय छे. ( सत्रकृतांग १, ३ जुवो) टीकाकारोए वैशालिक शब्दनो अर्थ बे रीते करी तेनो त्रिजो पण एक नक्की अर्थ न आपतां ज्यारे जुदो जुदो अर्थ आप्यो छे त्यारे ते वखते पण ते १ जैनोमांनो. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) शब्दना अर्थना विषे निर्विवाद एकमत न हतो एम स्पष्ट देखाय छे. अर्थात् ते शब्दनो हालना जैनग्रंथकार जे अर्थ करे छे तेनुं अमो प्रमाण आपता नथी तो एमां कांइपण खोटुं नही ए प्रगटज छे. सताराना आसपासना गाममा रहेता छतां “ अमे सताराना छीए " एम कहेवानो जे प्रमाणे एक लोकव्यवहार छे ते प्रमाणेज वैशालिक शब्दनो व्यवहार समजवो जोइए. वैशालिक शब्दनो यद्यपि विशालीमा रहेनारो एवो अर्थ थाय छे तोपण जे प्रमाणे सतारानो रहेनारो कहेवाथी नजीकना गामडाओमां रहेनाराओनो समावेश थाय छे तेज प्रमाणे कुण्डग्राम ए विशालीना नजीकर्नु होय तोपण कुण्डग्रामना रहेनाराओनो पण वैशालिक शब्दथी ग्रहण थाय छे. हवे कुण्डग्राम ए विशालीना पासेनुं एक नहानुं गामडुं गणीए तो कुण्डग्रामाधिपति एटले मोटो सार्वमौम राजा एवो अर्थ न लेतां एकाद गामडानो अधिपति एमज मानवू जोइए. हवे जैनग्रंथकारोए सिद्धार्थने मोटो बलाढ्य राजा गणी एना ठाठमाठनो अने वैभवतुं जे भपकादार वर्णन आप्युं छे तेमांथी अतिशयोक्ति बाद करी यथार्थ रीते गणीए तो सिद्धार्थ ए एक नहानो जमीनदार हतो एवेंज ठरे. कारण जे ठेकाणे तेनो उल्लेख आवे छे ते ठेकाणे पण तेने क्षत्रियज कह्यो Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) छे. तेनी स्त्रीना नामनो उल्लेख देखीशुं तोपण तेने देवी न कहेतां क्षत्रियाणी एमन कहेलं मळी आवे छे. ज्ञात्रिक क्षत्रियनो पण जे ठेकाणे उल्लेख आवे छे ते ठेकाणे पण तेमने सिद्धार्थना सामन्त अथवा तदनुयायी एम न कहेतां तेना समान दरजाना गण्या छे. आ प्रमाणे ते संबंधी जुदा जुदा उल्लेखोनो विचार करीए तो एटलंज नक्की थाय छे के, सिद्धार्थ ए सार्वभौम राजा तो नहोतोज पण साधारण ठाकोर जेटलो अथवा एकाद टोळीना मुख्य अधिपति नहीं पण सामान्यतः एकाद जमीनदार .. जेटलो तेनो दरजो हतो एम देखाय छे. आम छतां पण तेना दरजाना लोको करतां ते वखतनी मंडळीमां ते विशेष प्रतिष्ठित अने सामान्य गणातो हतो एनी विशेष प्रतिष्ठा अने वजन होवानुं कारण तेनो विवाह संबंध मोटा घरोनी साथे थयो हतो अने ते संबंध विशाली नगरीना चेटक राजानी बहेननी साथे थयो हतो. सिद्धार्थनी स्त्रीने वैदेही अथवा विदेहदत्ता एम कहेता हता, कारण विदेह नगरीना राजवंशनी साथे तेनो आप्त संबंध हतो. ___बौद्ध लोकोना ग्रंथोमां विशाली नगरीना राजा जे चेटक तेना विषे विशेष उल्लेख मळतो नथी. बुद्ध ग्रंथोमां एटलुंज मळे छे के Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८) विशालीना राजानी राजपद्धतिमां राज्यव्यवस्थानो अधिकार एक सरदार सभाना हाथमा हतो अने तेनी साथे राजानो संबंध अध्यक्ष तरीके हशे अने तेनो अधिकार हालना व्हॉईसरॉय अथवा जनस्ल ईन चीफ जेवो हशे. लिखिवी लोकोनी राज्यपद्धतिनो जैन ग्रंथोमां पण उल्लेख मळे छे. निरयावलिसूत्रमा एम का छे के चंपाना राजा अजातशत्रए चेटक राजा उपर स्वारी करवानी तैयारी करी ते वखते तेणे पोताना जेवा बीजा काशीकौशलना १८ राजाओने ' तमे शत्रुओनी मागणीओ कबुल राखशो के तेनी साथे लडवा तैयार थशो ? ' ते अमोने जणावो एम पूछाव्यु हतुंः तेज प्रमाणे महावीरना काळ धर्म थया पछी १८ राजा ओए तेमनी मरणप्रीत्यर्थे एक उत्सव करवानी संस्था निर्माण करी हती तेमा प्रमुख गणेला चेटक राजानो कोई पण ठेकाणे जुदो उल्लेख नथी. ए उपरथी चेटक राजा ते १८ राजा पैकीज एक होई तेनो अधिकार पण इतर राजाओना जेटलोज हतो एम लागे छे. शिवाय तेनो अधिकार विशालीनी राज्यपद्धतिथी नियमित थयो हतो. बौद्ध ग्रंथकारोए चेटकना नामनो पोताना ग्रंथोमां उल्लेख को नथी एनी आ उपरनी हकीकत उपरथी खुलासो . १ कोणिक. Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थाय छे. कारण एक तो ते मोटो वजनदार नहोतो, अने बीजें तेणे पोतानुं वजन जैनधर्मनो महिमा करवा माटे वापर्यु हतुं. बौद्ध ग्रंथकारोए यद्यपि चेटक तरफ दुर्लक्ष्य करेलु तोपण जैनोए तेमना धर्म संस्थापक जे महावीर तेना मामा अने आश्रयदाता जे चेटक तेने न विसरी जतां तेना नामनो उल्लेख पोताना ग्रंथोमां सारी रीते कर्यो छे. जैन ग्रंथकारोन पोताना ग्रंथोमां चेटक राजानुं वर्णन करवानू कारण प्रगटज छे ते एवी रीते के तेना वजनथी विशाली नगरी जैनधर्मर्नु आश्रमस्थान बनावी अने तेज कारणथी अर्थात् जैनोना प्रतिस्पर्धी ने बौद्ध तेमणे विशाली नगरीने पाखंडीनी भूमिका अथवा शारदापीठ एवं नाम आप्यु. उपर महावीरना आप्त संबंधी विषे जे माहिती आपी छे ते कदाच निरर्थक जेवी लागशे पण तेम मानवाने बीलकुल कारण नथी. महावीर धर्म संस्थापक थया पछी तेमना धर्मनो प्रचार केवी रीते थयो ते, उपरना तेना आप्त संबंधीनी माहिती उपरथी सारी रीते समजी शकाय छे. बुद्ध अने महावीर ए हालना रजपुत जेवाना अथवा श्रीकृष्णना वंशना हता. क्षत्रिओना वंशमां अने जातिमां आप्त संबंधीनों पाश घणो प्रबळ होय छे. अने तेमनामां आप्त संबंधीओने al Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) पुष्कळ दिवस सुधी याद राखे छे. ( महावीरना आप्त संबंधी जनोना नामो अने गोत्रो कहेवाना विषे जैन लोकोनो विशेष लक्ष्य होय छे ) बुद्धे पोतानां धर्मनो उपदेश प्रथम क्षत्रिय लोकोमा कर्यो; तेज प्रमाणे जैनधर्मसंस्थापकोए पण ब्राह्मणो करतां क्षत्रियोनेज उपदेश करवान विशेष पसंद कयु. ए उपरथी महावीर अने बुद्ध ए बन्नेए पोताना धर्मनो प्रसार करवा माटे पोताना आप्त संबंधीओनी आ कार्यमा विशेष मदद ग्रहण करी. जैनोए अने बौद्धोए जे प्रदेशोमा पोताना धर्मनुं वर्चस्व महत्व स्थापन कर्यु ते प्रदेशोमां बीजा धर्मो उपर जैनोए अने बौद्धोए स्वसत्ता स्थापन करवामां ते प्रदेशोना जे मोटा मोटा वंशोना हता तेमनी साथे थएलो तेमनो संबंध घणे अंशे कारणभूत थयो. महावीरनी माताना संबंधथी मगध देशना राजवंशनी साथै संबंध थयो हतो. चेटक राजानी चेल्हणा नामनी पुत्रीनुराजगृहनगरीमा रहेनारा बिबसार राजानी साथे लग्न थएवं हतुं. जैनोए अने बौद्धोए बिंबसारने तो महावीरनो अने बुद्धनो भाश्रयदाता तरीके सारी रीते वर्णवेलो छे. चेल्हणाना उदरथी बिबसारनो कुणिक नामनो पुत्र थयो ( जेने बौद्ध अजातशत्रु कहे छे ) ....१ श्रेणिक.. Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) तेने बौद्ध धर्मना विषये बीलकुल लागणी हती नहीं. बुद्धना मृत्यु पहेला ८ वर्षे तेणे बौद्धधर्मने आश्रय आप्यो हतो, एटला उपरथी तेना मनमां बौद्ध धर्म विषे मोटी श्रद्धा उत्पन्न थइ हती एवं यद्यपि कोइ मानतुं होय तो ते मात्र मोटी भुल भरेलु छे एमां संशय नथी. कारण प्रत्यक्ष रीते जेणे पोताना पितानो वध को अने दादाना राज्य उपर स्वारी करी ते धर्मने थोडोज माननारो हतो ए देखीतुंज छे. कुणिके प्रथम बौद्ध धर्म विषे बीलकुल सहानुभूति न दर्शावतां पाछळथी तेणे बौद्धधर्मने आश्रय शा माटे आप्यो ? एनुं कारण हवे आपणी ध्यानमा सहज आवशे. जे प्रमाणे तेना पिताए अंगदेशन राज्य पोताना राज्यनी साथे जोडी दीधुं हतुं तेज प्रमाजे विदेहदेशन राज्य पोताना राज्यनी साथे जोडवानी व्यूह रचना तेणे पोताना मनमां करी मुकी हती. विदेहदेशना लोकोने कहाडी मुकवाना इरादे नहीं पण ते लोकोने पोताना ताबामां राखवाना हेतुथी तेणे पाटलीग्राममा एक मोटो किल्लो बांध्यो अने पछी हळवे रहीने पोतानो दादो जे विशालीनो राजा तेनी साथे टंटो उपस्थित कर्यो. विशालीनो राजा महावीरनो मामो थतो हतो. एवा ते जैन धर्मना आश्रयदाता उपर ज्यारे स्वारी करी ते कारणथी जैनधर्मी लोको. तेना Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२) उपर गुस्से थया. तेथी हवे कुणिके तेमना प्रतिस्पर्धी जे बौद्ध तेओने आश्रय आपवानो निश्चय कर्यो. एज बौद्धलोकोनो पोताना पिताना प्रीतिपात्र होवाथी तेणे घणो छळ करी छेवटे तेमनो वध पण को हतो. (१) अजातशत्रुने हवे जय मळ्यो तेथी तेणे विशाली नगरी पोताना ताबामां लीधी हती तथा नंद अने मौर्य एमना साम्राज्यनो पायो तेणे नाखी मुक्यो हतो. ए प्रमाणे मगध राज्यनी सीमा वध्या पछी बन्ने धर्मीओने पोतपोताना धर्मनो प्रसार करवा माटे विपुल क्षेत्र मळ्यु. अने तेज प्रमाणे ए प्रदेशोमां आ बन्ने धर्मोनो प्रसार घणीज झडपथी थयो. ते वखतना बीजा अनेक पंथो तेवाज संकुचित रही जैन अने बौद्ध ए बन्ने धर्मोनोज उदय शा माटे थयो ? एर्नु स्वभाविक कारण जोतां कुणिके करेलो मगध देशनो राज्यविस्तार एज होवो जोइए एमां संशय नथी. एम महावीरना संपूर्ण चरित्रनो विचार हवे लखवा बेसता नथी पण केवळ जेना योगथी बुद्धमां अने तेनामां जे तफावत छे ते समजाय तेटलीज बाबतो, दिग्दशन करीए छीए. वर्धमान ए काश्यप गोत्रीय हता. मा बाप मरतां सुधी ते येताना घरमांज हता. तेमनी पाछळ तेनो नंदिवर्धन नामनो मोटो Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाई हतो. ते वडिलोपार्जित संस्थाननो मालिक थयो. ते वखतना ने सत्ताधीशो हता तेनी अनुमतिथी तेणे संन्यास लीधो. ११ वर्ष सुधी तपश्चर्या करी जुदां जुदां जंगली लोकोना प्रदेशो जोया एक वर्ष सुधी तेणे दिगंबर ब्रत धारण कयु हतुं. बार वर्ष ए प्रमाणे बित्या पछी वर्धमानने कैवल्यज्ञान प्राप्त थयु. ने पछीथी तेने शाक्यमुनि प्रमाणे सर्वज्ञ, सर्वशक्ति, तीर्थकर अने महावीर एम कहेवा लाग्या. छेल्ला त्रीस वरसनो बधो वखत तेणे लोकोने धर्मोपदेश आपवामां अने यतिजनोनी गणादिक व्यवस्था करवामां गाळ्यो हतो. आ यतिजनोने तेनी मातृद्वारा अंग, मगध, अने विदेह ए स्थानोमांना जे आप्त संबंधीओ चेटक, श्रेणिक अने कुणिक नामना राजाओ हता तेमना तरफनो आश्रय मळ्यो. दिक्षा लीधा पछी वर्षाऋतुना बधा दिवसो तेणे नजीकना शहरमां गाळ्या छतां तेणे पश्चिम तरफ श्रावस्ति सुधी अने उत्तर तरफ हिमालय सुधी प्रवास को हतो. तेमना मुख्य अग्यार गणधर हता. तेओना नाम श्वेतांबर अने दिगंबर ए बन्नेए जे आपेला छे तेमां बीलकुल मतफेर नथी. महावीरना चरित्रमा मंखलोनो पुत्र ने गोशालक तेणे तेनी साथे करेली १ एक वर्ष सुधी वस्त्र धारण कयु हतुं एवं जैनोनुं मंतव्य छे. - - Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्पर्धा अने तेमां महावीरने मळेलो विज्य भने छेवटे पंपार्मा यएलं तेनुं मृत्यु ए विगतो विशेष विचार करवा नेवी छे. जैन ग्रंथो शिवाय महावीरना चरित्रनी माहिती बौद्धोना ग्रंथोमां पण मळी आवे छे. बौद्ध लोकोए तेने नटपुत्र एवं नाम आपीने ते निग्रंथनो मुख्य अने बुद्धनो प्रतिस्पर्धी हतो एवं वर्णन कर्यु छे. बौद्ध ग्रंथोमां महावीरनुं गोत्र अग्निवेशायन एम आप्यु छे. तो हवे खरु जोतां तेमना शिष्य ने सुधा तेनुं ते गोत्र हतुं. महावीर अने बुद्ध बन्ने समकालीन होवाथी बिबसार अने तेना अभयकुमार, अजातशत्रु, लिखिचामल्ल, गोशाल (मंखलीपुत्र) विगेरे राजपुत्रो पण तेओनाज समकालीन हता. जैन लोको तेनी जन्मभूमी विशालीनी आसपास हती एमन कहे छे. तेनो तेनी साथे सारी रीते मेळ खाय छे. उदक सर्व जीवमय छे विगेरे जैन धर्मना मतनो अनुवाद बौद्ध ग्रंथोमां करेलो मळी आवे छे. बौद्ध लोकोए नटपुत्रना मृत्यु पंपा (पावापुरी) नामनुं जे स्थान आप्युं छे ते अचुक बराबर छे. महावारनी बुद्धनी साथे सरखामणी करीए तो बुद्धना अने महागीरना आयुष्यक्रममा जे विलक्षण सरखापणुं मळी आवे छे तेनुं साहनीक कारण एवं हतुं के ते बन्ने संन्यासीओ हता. . Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीरना केटलाक आप्त संबंधीओना नामो बुद्धना आतसंबंधीओनी साथे सारी रीते मेळ खाय छे. महावीरनी स्त्रीन नाम यशोदा त्यारे बुद्धनी स्त्रीनुं नाम यशोधरा हतुं. महावीरना भेष्ठबंधुनुं नाम नंदिवर्धन हतुं त्यारे बुद्धना सावका भाईन नाम नंद. ए बुद्ध राजा हतो ते वखते तेनु नाम सिद्धार्थ हतुं. त्यारे महावीरना पितानुं नाम सिद्धार्थ हतुं. नामोमा साम्य होवानु कारण एटलुंज के ते वखते एवा प्रकारना नामो राखवानो विशेष रिवाज हतो. बन्ने क्षत्रियपुत्रोए ब्राह्मणोना धर्म विरुद्ध धर्म स्थापन कर्यो एमां आश्चर्य मानवाने बीलकुल कारण नथी. ब्राह्मणो मेमने मिथ्या संन्यासीओ मानता हता ते ए बौद्धोज हता. बन्नेमांनो तफावत खोळी काढवा माटे हवे आपणे बुद्ध अने महावीरना जीवनक्रममांनी केटलीक बाबतोनो विचार करीशुं.. १ बुद्धनो जन्म कपिलवस्तु | १ महावीरनो जन्म विशाली - शहेरमा थयो. नगरीनी पासे थयो. २ बुद्धनी माता तेनो जन्म | २ महावीरना मा बाप घणो , थतांन मृत्यु पामी.. मोटो थतां सुधी हयात हता. ३ बुद्ध पोताना वडीलोनी ३ महावीरे पोताना वडीलोनी परवानगी न लेतां अने तेमनी परवानगी लई तेमनी समक्ष - ___ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) संन्यास लीवो. ४ महावीरे १२ वरस तपश्चर्या करी. तपश्चर्या जरूरनी छे एम महावीरनो मत हतो माटे जै तेणे तीर्थ करना निर्वाण (?) पछी तपश्चर्यानं व्रत पाळ्युं. ६ बुद्धनुं देहावसान कुडि-६ महावीरनुं देहावसान पंपा (पावापुरी) शहेरमां थj. गंडमां थयुं. हयाती छतां सन्यास लीधो. ४. बुद्धे ६ वरस तपश्चर्या करी. १ तपश्चर्यानो काळ फोगट छे एम बुद्धनो मत हतो. ५ महावीरना चरित्रनुं एटलं विवेचन करवानुं कारण एटलं ज के, जैन धर्मनी उत्पत्ति बुद्ध धर्ममांथी न होईने बीलकुल स्वतंत्र छे के नहीं एनो निकाल करती वखते तेमांनी घणी बाबतो उपयोगी थई पडशे. केटलाक पंडितो महावीर अने बुद्ध ए बन्ने जुदा जुदा महापुरुषो हता एम तो माने छे. छतां ते उपरथी पण आ संशययुक्त प्रश्ननो निकाल थाय छे एम समजता नथी. जैनसाहित्य विषे लखतां प्रोफेसर वेबर एम कहे छे के जैन ए. अति प्राचीन बौद्ध धर्मीओनी एक शाखा होय. १ तेमना अनुयायीओए तपश्चर्या करवानुं कायम राख्युं. 金 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) जैनधर्म बौद्धधर्ममांथी नीकळ्यो होवो जोईए एम मानवा तरफ मोटा मोटा पंडितोनी प्रवृत्ति थवाचं कारण बन्ने धर्मोमां जे साम्य देखाय छे ते छे. ते विष हवे आपणे विचार करवो जोईए. जैन धर्म ए बौद्ध धर्मनी शाखा होय एम प्रोफेसर लेसने चार अंतः प्रमाणोथी सिद्ध करी बताव्युं छे. ते विषे हवे क्रमवार विचार थशे. ... बन्ने धर्मोमा तेमना संस्थापकोने जिन,अर्हत, महावीर, सर्वज्ञ, सुगत, तथागत, सिद्ध, बुद्ध, संबुद्ध, परिनिवृत्त अने मुक्त एवा नामो आपवामां आव्या छे. घणा वखतना समयने अनुसरीने बन्नेना ग्रंथोमां उपरनां नामो अपायां. परंतु तेमां विशेष एटलुंन के जिन अने श्रमण ए सिवाय ते संबंधी केटलाक नामो एकपंथमांना लोकोए विशेष पसंद का अने केटलांक तेममां विरुद्ध बीजा पंथमांना लोकोए विशेष अर्थनी दृष्टिथी. पसंद को. . उदाहरण तरीके-बुद्ध, तथागत, सुगन अने संबुद्ध एका शाक्यमुनिना हमेशनाज नामो छे. मह वारनी साथे एका नामोनो प्रसंगविशेषेन उपपद तरीके उपयोग क वामां भावतो. Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेन प्रमाणे वर्धमानना उपपदार्थक जे वीर अने महावीर एवा शब्दो तेन प्रमाणे उपपदना अर्थे उपयोगमा लीधेला जणाई आवशे. . तीर्थकर शब्दनो ते एथी पण जुदा स्वरूपे उपयोग करता हता. जैनोना मत प्रमाणे तीर्थकर एटले धर्मसंस्थापक अने तेज तीर्थकर शब्द बौद्ध अनुयायीओना मतमां बुद्धधर्मविरुद्ध नास्तिकपंथ काढनाराओना. माटे वपराएलो छे. सुगत अने तथागत विगेरे शब्दोमाथी हरएक पंथानुयायी तेमना केटलाक विशेष शब्दो पसंद करी पोताना ग्रंथोमां वापरता हता, ए उपरथी शुं सिद्ध थाय छे ? ते शब्दो जैनोए बौद्धो पासेथी लीधा एम सिद्ध थई शके खलं ? बिलकुल नहींन. कारण उपरना शब्दनो धात्वर्थों करतां कांई जुदान अर्थे एक वखत एनो नक्की उपयोग थई चुक्यो एटले पछी एक तरफ ते शब्दनो उपयोग तेज अर्थमा करवो जोईए अथवा तो ते शब्दनो कायमनो त्याग करवो जोईए. तथागत, सुगत, विगैरे शब्दोना एक वखत अर्थ करी चुक्या पछी जैनोए तेओना पासेथी ते शब्दो लेईने तेज अर्थमां बापरेला होय एम संमवतुं नथी. ए विषे विचार करतां एम देखाय के के सामान्य माणसो करतां विशेष सद्गुणी पंडित एवा पुरुषोने Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९) लगाडवा जेवा केटलाक विशेषणो अने शब्दसमुदाय होय छे. ते प्रमाणे ते वखते मोटा मोटा सद्गुणी महान् पुरुषोने लगाडवा जेवा केटलाक विशेषणो अने नामो होय छे. ते शब्दोना मूळ अर्थने अनुसरीने ते वखते तेवा शब्दो अनेक महान् पुरुषोने लगाडता हता. पछी तेवा शब्दो पोताना विरुद्ध पंथोमां लोकोए पोताना धर्मसंस्थापकोने लगाड्या ए कारणे अथवा पोताना महान् लोकोत्तर सद्गुणयुक्त धर्मसंस्थापकोने लगाडवा तेवा शब्दो अयोग्य लागेला एटले पछी ते शब्दोनो धर्मसंस्थापकोना उपपद अयें उपयोग थवा लाग्यो. उदाहरण तरीके:- तीर्थकर शब्दनो योगरूढार्थ देखीए तो धर्मसंस्थापक एवो थाय छे. जैनधर्मग्रंथोमां तेवा अर्थे ते शब्द वापरेलो छे. परंतु बौद्ध लोको ते शब्द तेना मूळ अर्थे न वापरतां नास्तिकपंथप्रवर्तकोने लगाडता रह्या. एज कारणथी बौद्ध लोको पोते जैनधर्मना द्वेषिओ छे एम स्पष्टपणे दर्शावे छे. बुद्ध शब्दनो मुक्त एका अर्थे उपयोग करे छे. जैनग्रंथोमां एवा अर्थे ए शब्दनो घणा वखते उपयोग कर्यो छे.. परंतु बौद्धग्रंथोमां बुद्धशब्दनो धर्मसंस्थापक एवा. अर्थेन . उपयोग करे ठो मळी आवे छे. उपरनी हकीकतनो सार काढीए , तो एटलोज देखाय छे के बौद्धलोकोए ज्यारे उपर ना. शब्दोनी:. Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०). परिभाषा गोठवेली त्यारे तेमनुं जैनोनी साथे सख्य तो नहोतुंन पण तेमनो तेमनी साथे झगडो चालतो हतो. जैनो करतां बौद्धो पूर्वेना एम नक्की करवाने माटे-प्रोफेसर लेसने एक प्रमाण आप्युं छे. ते कहे छे के बन्ने धर्मोमां तेमना धर्मसंस्थापकोना मृत्यु थया पछी तेमनी मूर्तिओनी प्रतिमा विगैरेनी देवळोमां पूजा करे छे. जगतमा आज सुधी जे अनेक धर्मसंस्थापको थया के जेमणे बुद्ध प्रमाणे अमे सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान् छीए एम लोकोने दर्शाव्यु ते पैकी जैन अथवा बुद्ध एमना भनुयायीओ शिवाय कोईए पण जैन अने बुद्ध प्रमाणे पोताना धर्मसंस्थापकोना ईश्वरोने मान आपेलु नथी. तेवाज कारणथी अर्थात् एक तो बौद्धो पासेथी जैनोए आ पद्धति लीधी होवी जोईए अथवा तो बौद्धोए जैनोनी पासेथी लीधी होवी जोईए ए शिवाय त्रीजी उत्पत्ति लागु थती नथी. । आम छतां पण ए मूर्तिपूजानो अने मूळना जैनधर्मनो अथवा बौद्धधर्मनो एक बीजानी साथे कोईपण प्रकारनो संबंध नथी. कारण साधुपूजा, प्रतिमापूजा अथवा चैत्यवंदन विगैरेनी बाबतोर्नु मूळ जोतां तेनो आरंभ मूळना यतिननोनी साथे न होईने गृहस्थननोनी साथे विशेष देखाय छे. सामान्यजनोने Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४१ ) तेमना प्राचीन परंपरागत यक्ष, भूत, पिशाच देवताओ करतां काईपण विशेष पूज्यतम भाव होवो जोईए एम ज्यारे भास थवा लाग्यो, त्यारे उपरनो प्रकार ( प्रतिमापूजा विगेरे ) गृहस्थजनोना तरफयी हळवे हळवे प्रचारमां आवेलो होवो जोईए. प्रतिमापूजा चैत्यवंदन विगेरे विशेष प्रकारो उत्पन्न थवानुं कारण ते वखते ८४ लक्ष योनिओना फेरीमांथी पार उतरवानो भक्तिमार्ग एज एक रस्तो छे एवो भरतखंडमां ते समये प्रचलित थलो मत होय. त्यारे जैनोए तीर्थंकरादिकोनी पूजा विगेरे विधिओ बौद्ध पाथी लीधी अने बौद्धोनी ते विधिओ मात्र स्वयंभ हती एवं मानवा करतां ते वखते भरतखंडमां जे सामान्य धार्मिक उत्क्रांति चालेली हती ते मूळ कारणथीज' बन्नेए पोतपोतानी विधिओ लीवी एम मानवुं ए वधारे सयुक्तिक लागे छे. बन्ने aaj एक साम्य 'अहिंसा परमो धर्मः' ए पण छे ते विषे आगळ एकाद वखत विचार करीशुं. उपरना सिद्धांतोनुं समर्थन करवा माटे प्रोफेसर लेसने चो एक प्रमाण आप्युं छे, ते ए छे के जैन अने बौद्ध ए बन्ने सृष्टिनी उत्पत्तिना कानी कल्पनातीत अपरिमेय संख्याथी गणना करे छे. जैन शात्रानां सृष्टि, युगो विगेरे विषे जे तेओनो हिसाब छे तेमां - Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२ ) : तेओ एवी कल्पनाओ बौद्धो उपरथी खेची होय एम नयी तोषण ए कल्पना तेओए ब्राह्मणो पासेथी लीधी होय एम विशेष संभवनीय लागे छे. युगो विगेरनी कालगणना विषे जैनोए बौद्धो करतां अने ब्राह्मणो करतां पण मुख्य बाबतमां एक विचित्र नवीन योजना काढेली छे. जैनोए उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी अने आरा एवा नामथी कालगणनानी पद्धति काढेली छे तेनी उत्पत्ति बौद्धोना ४ मोटा अने ८० नहाना कल्पोमांथी पण काढी शकाय तेम नयी अने तेज प्रमाणे ब्राह्मणोना कल्पोमांथी अने युगोमांथी पण काढी शकाय तेम नथी. तेमनी उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी ब्रह्मदेवनी रात्री दिवसथी नीकळी होवी जोईए एम लागे छे. अहिंसा विषे पछी विवेचन करीशुं एम पाछळ कहेलुंज हतुं थी ते विषये हवे थोडुं विवेचन करीशुं. प्रोफेसर वेबरे जैनोना पांच मुख्य धर्मो अने बौद्धोना दश धर्मो एमां निकट साम्य छे एम बतान्युं छे ते नीचे प्रमाणे:-- * बौद्ध यतिओना १० धर्मो ते नीचे प्रमाणे १ प्राणिओनी हिंसा नहिं करवानुं व्रत. * आ व्रतोनी बाबतमा - डॉ. हर्मन् जेकोबीना लेख साथे अंकोनी saini फरक पडे छे. Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) १ चोरी नहि करवा व्रत. १ अपवित्र कृत्य नहि करवानुं व्रत. १ असत्य नहि बोल्वानुं व्रत. . २. असत्य भाषण करवू नहि ( अहिंसा ).. ३ अदत्त वस्तुनुं ग्रहण करवू नहि ( अस्तेय ). ४ ब्रह्मचर्य धारण कर ( ब्रह्मचर्य ). ५ अने ऐहिक वस्तु उपर ममत्व राखवो नहि. बौद्धो अने जैनोना ५ व्रतो बीलकुल सरखा छे. आ साम्य जोतां ए पैकी कोईए पण बीजानी नकल करेली होवी जोईए एम मानवून ठीक देखाय छे. तो पण आ व्रतो जैनोए बौद्धो पासेथी लीधा के बौद्धोए जैनो पासेथी लीधां ए. वाद तो हजु कायम छे ते छेज. तेनो आ उपरना प्रमाणोथी कांई पण नीकाल थई शकतो नथी. हवे ए विषे त्राहित दृष्टिथी विचार करीए तो एम जणाई आवशे के आ व्रतो मूळनां जैनोना पण नथी परंतु बन्नेए आ व्रतो त्रीजा पासेथी ( ब्राह्मण संन्यासीओ पासेथी लीधा छे.) एवं सप्रमाण सिद्ध थाय छे. ( जुवो बौद्धायन स्मृति २-१०-१८ बुलरनुं भाषांतर Sacred Book in the East ) भाग १४ पार्नु २७१, ___ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) १ प्रगति अने सद्गुण बंध करनारा मादक द्रव्योर्नु सेवन नहि करवानुं व्रत. २ निषिद्ध समये भक्षण नहि करवानुं व्रत. ___७ गायन, नर्तन, वाहन अने नाट्य इत्यादियी दूर रहेवानुं व्रत. · ८ भूषण, अलंकार, हार, सुगंधी द्रव्यो विगेरेनु सेवन नहि करवानुं व्रत. ९ मोटी शय्या नहि स्वीकारवान व्रत. १० सुवर्ण अने रौप्यतुं ग्रहण न करवानुं व्रत. - ए शिवाय बौद्धोनी बीनी ८ विधिओ छे ते पैकी प्रत्येक बौद्धे पहेली ५ विधिओ पाळवीज जोईए.अने छेवटनी गृहस्थोना माटे छे. ते आठ धर्म नीचे प्रमाणे १ जीवहिंसा करवी नहि. २ आप्या वगर लेवू नहि. ३ असत्य भाषण करवू नहि. ४ मादक द्रव्योर्नु सेवन करवू नहि. ५ व्यभिचार करवो नहि. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ रात्रे निषिद्ध अन्न खावू नहि. ७ माळा, सुगंधी द्रव्यो विगेरेनू सेवन कर्बु नहि. ८ चटाई उपर उंघg. बौद्धोना ५ व्रतो जैनयतिओना ५ व्रतोनी साथे सारी रीते मळी जाय छे. १ हवे जैन अने बौद्ध एमना यतिओना आचार विचारोनो उद्भव क्याथी थयो हशे? ए विषे पण आपणे शोध करवाना छे. संन्यासाश्रमनी अनेक विधिओ जैनोए अने बौद्धोए ब्राह्मण संन्यासीओना नियमो उपरथी लीधी छे. एवो फक्त अमारोज मत नथी. डॉक्टर ब्युलरे बोडायन सूत्रनु भाषांतर कयु छे तेमां तेणे पोतानो मत एवोज दर्शाव्यो छे. प्रोफेसर केर्ने — भरतखंडमांना बौद्धोनो इतिहास' नामनो ग्रंथ को छे तेमां पण पोतानो मत अमारा प्रमाणेज आप्यो छे. जैनोना यतिओना जे नियमो छे ते ब्राह्मणोना चतुर्थाश्रमना नियमोनी केटलीक आबेहुब नक्कल छे ए स्पष्ट रीते दर्शाववा माटे हवे अमे गौतम अने बौद्धायन स्मृतिमांना संन्यासीओना नियमोनी जैनयतिओना नियमोनी साथे तुलना करीने बतावीशुं एटले घणा ठेकाणे बौद्धोना नियमो Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) पण स्मृतिमांना नियमोनी साथे मळे छे ते हवे स्पष्ट रीते ध्यानमा आवशे. ११ संन्यासीए धान्यनो संग्रह करवो नहीं. बौद्ध अने जैनयतिओने पण सांसारिक प्रमाणे संग्रहनो निषेध छे. (जैनोनुं ५ मुं व्रत जुओ ) जैन यतिओ पोतानी साथे भिक्षापात्र, * कुंचलो, कपडा विगैरे जे काई राखे छे ते पण तेमनी मालमत्ता होती नथी पण धार्मिक विधि माटे आवश्यक छे ए दृष्टिथी ते राखे छे. १२ सन्यासिओए ब्रह्मचर्य पालवं, बौद्धायनस्मृति प्रमाणे भने जैनयतिओना नियमो प्रमाणे आ बन्नेनुं चोथु व्रत छे. बौद्धोना यतिओन ए पांचमं व्रत छे. १३ पर्जन्यकालमा सन्यासिए एकन अहेरमा रहेवु. ५ उपरथी एम देखाय छे के, बौद्ध अने जैन एमनु वसो नामर्नु ने प्रत छे ते पण ब्राह्मणो पासेथीन लीधेलं होवू जोईए. १४ तेणे नाना गाममां फक्त भिक्षा माटे जई. जैनोनो नियम ए बाबतमा एटलो कडक नथी. जैनयतिओने शहरमां अगर गाममां सुवानी परवानगी छे, तोपण तेणे त्यां वधारे दिवस * रजोहरण. Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) मुकाम करवो नहीं. महावीर शहेरमा ५ दिवस करतां वधारे अने गाममा १ रात्रि करतां वधारे रहेता नहोता. १५ संन्यासिए मोडा भिक्षा माटे जर्बु ( लोकाना घानं जमण थया पछी ) जैनयति सवारे अथवा बपोरे पोतानी भिक्षा आणे छे. एनुं कारण जमवाना वखते जतां आवतां भिक्षा मारे निकलता पोताना प्रतिस्पर्धिओनी मुलाकात थवानो संभव होय छे ते टाळवा माटे तेओ सवारे अथवा बपोरे जता हो. जैनयति घणा भागे दिवसमा एकल वखत भिक्षा माटे निकळे छे. एक दिवस करतां वधारे उपवास कर्या होय तो तेओ बे वखत पण मिक्षा माटे जई शके छे. १६ मिष्टान्न भक्षण विषे इच्छानो त्याग, जैनयतिओना पांच महाव्रतो पैकी चोथा कल्पमा एज कहेलुं छे. १७ वाचा, नेत्र अने कृति एर्नु नियमन करबु. जैनोनी त्रण गुप्तिओनी साथे अथवा काया वाचा अने मन एना संयमनी साथे ए घणा अंशे मळे छे. . १८ गुप्तेंद्रियोर्नु आच्छादन करवा भाटे तेमणे वस्त्र धारण करवं. पोषाक विषे जनयतिओना नियमो एटला सादा नथी. जैनोना शास्त्र प्रमाणे यतिओ नग्न फरी शके छे अथवा तेओ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८) एक, बे, ऋण वस्त्र पण धारण करी शके छे. तरुण अने सशक्त यतिने मात्र एकज पोषाक धारण करवानी आज्ञा छे, महावीर नग्न फरता हता. जिनकल्पिको पण तेमज वर्तता हता. अने जेने नेने महावीरने अनुसरवु श्रेयस्कर लाग्युं तेओए एएए महावीर प्रमाणेज आचरण कयु. परन्तु ते सर्वेने गुडेंद्रिय सा छादन करवा माटे वस्त्र धारण करवानी परवानगी हती. ( आचारांगसूत्र १, ७, ७, १). ...१९ केटलाकना मत प्रमाणे जुना कपडा धोया पछी संन्यासिए वापरवां. बौद्धायन कहे छे के, तेणे रंगावेलुं वस्त्र धारण कर. आ नियमोनू जैनो करतां बोद्धयतिओना नियमोनी साथे विशेष साम्य मळी आवे छे. जैनोमां कपडा रंगाववानो अथवा धोवानो निषेध छे. जैन्यतिओए तेओने जे अवस्थामां कपडां आप्यां होय तेवीज अवस्थामां ते धारण करवान का छे. कपडाओने रंग आपवानी अने धोवानी अनुज्ञा आपदानो ब्राह्मण संन्यासिओना नियमोनो सारांश एटलोज छे के, संन्यास्.िओना कपडा बिलकुल सादा होवां जोइये. ( जैनयतिओने ब्राहणोथी वधी जवानी इच्छा. तो हवे विशेष ताण ते कई करवानी ? "ते एन के, कपडां बिलकुल धोवडावां नहीं. गलीचपणानी सीमा Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४९) करीने छोडी देवां. अने लोकोने एवा प्रकारचें कडकपणुं बतावी अमो ब्राह्मणो करतां श्रष्ठ छीए एम दर्शाव्यु.) बौद्धोए भूतदया तरफ पोता विशेष धोरण राख्यु. ___ २० वृक्ष, वल्ली विगेरेनी शाखाओ तेणे तोडवी नहीं. जैनोनुं व्रत एवाज प्रकारनुं छे पण तेमां एमना करतां वधारे एटळु छे के, जेमां अणुमात्र पण चतन्य न होय एवाज फलो अने वनस्पतिनुं भक्षण करवानी तेओने परवानगी छे. २१ पर्जन्यकालमां तेणे तेज गाममां बीजी रात्रे रहेवू नहीं. ननयतिओना नियमो गमे तेम होय पण महावीर ए नियम पाल्यो हतो. २२ तेणे माथा उपर नहानी चोटली राखवी अथवा बधुं मुंडन करावq. ए बाबतमा जनोए ब्राह्मणोथी खेंच करी छे. ते एवी छे के, जैन यतिओने केशलुचन करवू पडे छे. केशलुंचन एटले चपटीथी केश खची काढवां * (अज्ञानी माणसो उपर छाप बेसाडवा माटे आ युक्ति होवी जोईए) बौद्धायनस्मृतिमा ब्राह्मणे संन्यास लीयो एटले शरीर उपरना अने माथा उपरना * प्रथमतीर्थकर-ऋषभदेवथी चालतो आवेलो बारा प्रकारना तपमांनो भा पण एक तप छे, नहीं के छाप बेसाडवा माटे कल्पेलो छे. Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) केश अने हाथना नखोनें नियमन कर, ( काढी नांखवां) एम को छे. संन्यासना वखते जैनो पण केश विगेरे काढी नांखे छे. २३ तेणे बीज नाश करवो नहीं. आचारांगसूत्रना बीजा अध्ययनमां जैनयतिए इंडां, जीवता प्राणिओ, बीज विगैरेने पीडा न आपवा विषे अने अतिक्षद्र प्राणी अथवा वनस्पतिने पण पीडा न करवा विषे जैनयतिओनो घणो कटाक्ष छे. __ २४ कोई उपकार करो अथवा अपकार करो ते सर्वेनी साथे उदासीन पणे वत्तवं. २५ ऐहिक अथवा पारत्रिक कल्याण * विषे पण प्रयत्न करवो नहीं. छेवटना बे नियमो जैनग्रन्थोमां पण मळी आवे छे. कारण जैनधर्मनुं पण धोरण उपरला नियमोना धोरण प्रमाणेन छे. महावीरे उपरना बन्ने नियमोने अनुसरिनेन पोतानुं वर्तन राख्यु हतुं. चार महिना करतां वधारे कालसुधी नानाप्रकारना जीव, जन्तुओ तेना शरीर उपर चढता अने फरता, तेमने वेदना पण "उत्पन्न करता, तेमणे घास, ठंडी, पवन, अग्नि अने मच्छरो * इन्द्रियोना सुखने माटे ___ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एमना संबन्धथी जुदा जुदा प्रकारना दुःखो सहन कया. तेणे नानाप्रकारना देवी अने मानवी प्राणिओथी उत्पन्न थनारा सर्वे प्रकारना सुखदायक अने दुःखदायक प्रसंगो घणी धीरनथी सहन कर्यो. संन्यासाश्रमनी छेल्ली स्थितिमां जीवन मरण विषे संन्यासी बिलकुल उदासीन हता. बौद्धायनसूत्रमांना अनेक नियमो जैनोना नियमोनी साथे बिलकुल नजीकमां मळे छे. यतिए कायिक, वाचिक अने मानसिकरीतिथी कोई पण सृष्टप्राणिने इना करवी नहीं. जेना विषे पहेली योजना करेली नथी अने जे अकस्मात् प्राप्त थयुं छे एवा प्रकारचें अयाचित अन्न संन्यासिए भक्षण कर. तेनुं पण प्रमाण शरीर धारणने जेटली जरुर होय तेटलुंज ते होवू जोईए. ए विषे जैनयतिओना नियमो, बौद्धायनस्मृतिमां ब्राह्मणसंन्यासी विषे जेवा नियमो छे तेज प्रमाणे छे एम जणाई आवशे. ए विषे बौद्धभिक्षुनो कोई विशेष कटाक्ष नथी. तेनामां तेओना भोजननी पहेली व्यवस्था करी मुकी होय तोपण चाले छे अने भोजनना आमंत्रणो आवे तोपण ते स्वीकारे छे. ब्राह्मणसंन्यासिओना अने जैनयतिओना नियमोनी आपणे उपर जे तुलना करी ते उपरथी जैनोए ब्राह्मणोना नियमोनुं अनुकरण करेल होवू Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) जोईए एम सिद्ध थाय छे. कारण एटला नहाना प्रदेशमांना वौद्धयतिओनुं सर्व भरतखंडमां प्रसरेला संन्यासिओए अनुकरण कयु होय एम मानवू ते असंभाव्य लागे छे. सिवाय गौतमस्मृतिकार बौद्धधर्मस्थापनाना पहेलां थई गयो छे. प्रोफेसर ब्यूलरना मत प्रमाणे आपस्तंबसूत्र ई. स. पहेला ४००-५०० वर्ष पूर्वे रचेलं होवू जोईए. तेज प्रमाणे न्यूलरना मतथी बौद्धायन, आपस्तंब करतां पुष्कळ प्राचीन छे. १०३५ वर्ष नहीं पण केटलाक सैकाओ प्राचीन होवो जोईए एवो तेमनो मत छे. बौद्धायनसूत्र करतां गौबम स्मृतिकार प्राचीन, अने गौतम अने बौद्ध ए बन्ने पण बौद्धधर्मस्थापनाना पूर्वेना हता. अर्थात् तेवाज कारणथी ए बन्नेए चौद्धोनुं अनुकरण कर्यु एम कहेवू असंबद्ध छे ए स्पष्ट छे. कदाच न्युलर साहेबनी कालगणनामां भूल थई हशे एम गणिए अने बौद्धधर्म पछी ए बन्ने स्मृतिकार थया एम तुष्यदुर्जनन्यायथी कदाच मान्यु तोपण ब्राह्मणोए बौद्धो पासेथी पोताना संन्यासना नियमो लीधा होवा जोईए एम मानवं युक्तिविरुद्ध थाय. कारण सर्वत्र प्रगट नास्तिक गणाएला बौद्धोना नियमोनू अनुकरण ब्राह्मणोए कर्यु होय ए केवी रीते संभवे ?, हवे ए उपर केटलाक एम कहेशे के, बौद्धोए ब्राह्मणोनुं अनुकरण कर्यु एम तमो कहो Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५३ ) छो ते पण केवी रीते संभवे ?, कारण चोक्खी रीते द्वेषी गणाएला ब्राह्मणोनुं बौद्धो केवी रीते अनुकरण करशे ? तो तेनो उत्तर ए छे, बौद्धधर्मनी स्थापना वखते बौद्धो पण ब्राह्मणोने तेओनी विद्वत्ता बद्दल अने नीति माटे घणुं सन्मान आपता माटे बौद्धोएज ब्राह्मणोनुं अनुकरण कयु. तोपण जैनोए खुद ब्राह्मणोना नियमोनुं अनुकरण कर्यु के बौद्धोए ब्राह्मणोनुं अनुकरण कर्तुं भने बौद्धोन "जैनो अनुकरण कर्यु ? ए प्रश्न तो हजु रहे छेज. ए शंकानु निराकरण बे प्रकारथी थई शके छे. एक तो जैनोए अनुकरण करवानुं ते बौद्ध करतां ब्राह्मणोनुं अनुकरण करखं तेओने व प्रशस्त लागशे. कारण एक तो नास्तिक गणाएला बौद्ध मार्फत अनुकरण करवा करतां प्राचीन कालथी सन्मान पामेला ब्राह्मगोनुंज खुद अनुकरण करवं विशेष संभवनीय लागे छे. शिवाय केटलेक ठेकाणे जैनोए जे ब्राह्मणोना नियमो लीधा ते बौद्धग्रन्थोमां मळी आवता नथी ( बौद्धोए ते लीधा नथी ). जो. बौद्ध ब्राह्मणो पाथी नियमो लीधा अने बौद्धो पासेयी जैनोए लीधा एम मानीए तो उपरना बौद्धग्रन्थोमां नहीं होय एवा परन्तु ब्राह्मणग्रन्थोमां ने जैनग्रन्थोमां मळी आवनारा नियमोनी उत्पत्ति शुं ? अर्थात् तेवाज कारणथी जैनोए बौद्धो मार्फत Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' भनुकरण न करतां ब्राह्मणो पासेथी ते नियमो लीधा एन सिद्ध थाय छे. * ____ हवे कदाच कोई एम कहे के, ब्राह्मणोए संन्यासिओना नियमो जैनो पासेथी अथवा बौद्ध भिक्षुओ पासेथी लीधा एम केम न मानिए ? आ आक्षेपनो एक उत्तर छे, ते आ प्रमाणेब्राह्मणोना चारआश्रमो पैकी छेल्लो चोथो आ संन्यासाश्रम छे. आ संन्यासाश्रम ब्राह्मणसंस्था उत्पन्न थवाना पूर्वे पण हतो एम यद्यपि मानी शकाय नहीं तो पण ते आश्रम जैन अथवा बौद्ध करतां घणो प्राचीन हतो ए निर्विवाद छे. __बीजुं-ब्राह्मणसंन्यासिओ आखा हिंदुस्तानमा प्रसरेला हता अने बौद्धयतिजनोनो धर्म स्थापन थयाने बे सैकाओ थया तो पण तेनो प्रसार नियमित प्रदेशोमांज हतो, सन्माननीय अने - * पृ. ४५ थी लईने अहिं सुधी जे जे विचारो करवामां आव्या छे ते प्रायः जैनधर्मनी सामान्य कथाओने जोवा वाला लेखकोना विचारोने लईनेज करवामां आव्या छे, बारीक दृष्टिथी विचारीए तो बौद्ध तथा भाह्मणो करतां विशिष्ट-अनेक सूक्ष्मतत्त्वविचाररत्लोने निरूपण करनार मैनधर्मने-यमनियमादि जेवी सामान्य बाबतो बीजा पासेथी लेवानी संभवी शकेज नहीं, आगल जतां लेखकना खुलासा पण एवाज रूपमा भनेक अोवामां आवशे. Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) विद्वान् एवा ब्राह्मणोनुं अनुकरण करवामां बौद्धोने सरमाववाबिलकुल कारण नथी ए देखीतुंज छे. एटला माटेज जैन अने बौद्ध जाते ब्राह्मण नहीं होय छतां पण बहुमानथी पोताना ग्रंथोमां ब्राह्मण शब्द लगाडे छे. __हवे केटलाक कहेशे के, आ संन्यास कदाच जैनोए अने बौद्धोए ब्राह्मणो पासेथी लीधो होय तो पण तेनो उद्देश क्षत्रिओनी प्रीतिना माटेज हतो एम देखाय छे. बुद्धे प्रथम मोटा मोटा मंडलोने उपदेश कर्यो एम ऑल्डेन. वर्गे सिद्ध करीने बताव्युं छे. कारण बुद्धे प्रथम बनारसमां जे व्याख्यान आप्युं हतुं तेनो भावार्थ एम छे के, “एमना माटे मोटा वंशना मोटा मोटा पुरुषो गृहस्थाश्रमनो त्याग करी यति-. धर्मनी दिक्षा ले छे" जैनो पण ब्राह्मणो करतां क्षत्रियोने विशेष पुज्य गणे ई एम तेमनो धर्मसंस्थापक जे महावीर तेनी हकीकत लखतां जैन चरित्रकारोए तेना जरायुगर्भने ब्राह्मणस्त्री देवानन्दाना गर्भाशयमाथी काढीने क्षत्रियाणीना गर्भाशयमां मुंक्यो ए उपरथी स्पष्ट देखाय छे. एम थवानुं कारण जैनलोको एम कहे छे के, तीर्थकर जेवा धर्मसंस्थापकोनो जन्म ब्राह्मण जेवा हलका कुलमां थतो नथी. इतरजातिओना यतिओने ब्राह्मणसंन्यासी Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेवा गणता नहोता एम पण घणा अंशे संभवनीय छे. आ तरफ तो चारे आश्रमनो अधिकार फक्त ब्राह्मणोनेन छे एवो मत दृढ ययो छे. अने तेने मनुस्मृतिनो अध्याय ६, श्लो. ९७ नो आधार आपे छे. ते उपरनी हकीकत जोतां बधा टीकाकारोनो एम मत हतो ते देखातो नथी केवल आ तरफ मात्र चार आश्रम ब्राह्मणोए ग्रहण करवा, त्रण क्षत्रिओए, ने वे वैश्योए, अने शुद्रोए फक्त एकज आश्रम ग्रहण करवो एवी समन थई छे. . ए सर्व हकीकत उपरथी एम सिद्ध थाय छे के, अति प्राचीन वखते पण ब्राह्मणेतरयतिधर्म ब्राह्मणयतिवर्गो करतां बिलकुल जुदो गणाएलो होवो जोईए. ए खरुं नथी, कारण क्षत्रिओने चारे आश्रमनो अधिकार हतो. रघुराजादि राजाओ पुत्रने राज्यकारभार सोपीने जंगलमां जईने संन्यास लईने रह्या हता एवा वर्णनो छे तेनी उपपत्ति शं? जनकादि तपस्विओ हता ए सिवाय अनेक क्षत्रिय तपस्विओना दृष्टांत आपी शकाशे.. - ( वारु, त्यारे ब्राह्मण अने ब्राह्मणेतर एवा मार्गो करतां द्विन ( ब्राह्मण, क्षत्रिय अने वैश्य ) अने द्विजेतर एवा कदाच थई शकशे) ब्राह्मणेतरोना मोक्षना साधनभूत जे चतुर्थाश्रम एमां प्रवेश थतो नहोतो. एटला माटेज बौद्ध अने जैन विगेरे ब्राह्मणोथी ___ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) विरुद्ध पंथो निर्माण थया. अने एज कारणथी ब्राह्मणेतरयतिननोने मोक्षपन्थ सर्वेने सुगम करवा माटे जुदा जुदा पन्थो काढवानी जरूर पड़ी. ब्राह्मणधर्मप्रमाणे अनधिकारी यतिननोने पोताना जुदा जुदा पन्थो काढवाने वधु शं साधन थयुं ए वशिष्ठोक्ति उपरथी सारी रीते ध्यानमा आवशे. वशिष्ठ कहे छे, सन्यासिए सर्वनो त्याग कर्यो तोपण वेदाध्ययननो त्याग ते करी शकता नयी. संन्यास लीधा पछी केटलाक पंडितोना मतथी वेदोक्तकर्मकांडनी कई पण जरुर नथी. एटलं कारण मल्या पछी शुं पूछ ? केटलाकोए तो कर्मकांड बंधन कर्यु, अने वेदपठन पण बंध करी दीg ए विषे वशिष्ठ कहे छे, संन्यासिए कर्मकांडनो त्याग कर्यो तो पण हरकत नथी पण वेदपठन करवून जोईए. कारण वेदपठन न करे तो ते शूद्र थाय छे. माटे तेणे वेदपठन बंध करवू नहीं जोईए. वशिष्ठना एटला कटाक्ष उपरथी केटलाकोए फावे तेम होय तोपण वेदपठन ते वखते बंध कयु ए निर्विवाद छे. हवे केटलाकोए वेदपठन बंध कर्यु एनो अर्थ थतां थतां हळवे हळवे केटलाकोए तो वेदोमां कांई तात्पर्य नथी, ते निरुपयोगी भाग छे. एम मानवानी शरुआत करी. एवा प्रसंगे ब्राह्मणो तरफयी धिक्कार पामेला ब्राह्मणेतरयतिननोने फावतुं आयुं. केरलाक ब्राह्मणसंन्यासिओए, Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८) संन्यास लीधा पछी वेदपठन बंध करेलु जोयुं तेनो अथ ते निरुपयोगी अने अप्रमाण छे एटला माटेज ब्राह्मणसंन्यासिओए छोडी दीधो एवं ब्राह्मणेतर लोकोए लोकोमा फेलाव्यु. एवी दृष्टिथी नोतां जैन अने बौद्ध एमना जेवा जुदा जुदा पन्थो उत्पन्न थवानुं मूल चतुर्थाश्रम छे. अने ते चतुर्थाश्रम नास्तिकपन्थनो नमुनो होवो जोईए एम लागे छे. एकंदर रीते जैन अने बौद्ध ए ब्राह्मण धर्मोमांथी निकळ्या एम मानवून योग्य लागे छे. मात्र जैन अने बौद्ध ए एकी वखते ब्राह्मणधर्मोमांथी निकळ्या एम नथी तो पण केटलाक वर्षे हळवे हळवे फेरफार थतां थतां परिणत अवस्थामां आवता गएला ब्राह्मणधर्ममांथी ते निकळ्या हशे एम मानवं विशेष प्रशस्त लागे छे. __जैनोए पोताना छेल्ला तीर्थङ्कर महावीर विषे जे विगतो आपी छे ते तपासतां अने जैनयतिओना नियमो तथा जैनोना अनेक आचार विचार तपासीशुं तो जैनधर्म बौद्धधर्ममांथी निकल्यो एम कहेवाने बिलकुल प्रमाण मळतुं नथी, बौद्ध अने जैन ए बन्ने धर्मोमांना मुख्य मुख्य मुद्दाओना मतो एटला बधा भिन्न छ के, बन्नेना मुख्य मतो एक छे अथवा सामान्य छे एम पण कही शकशेज नहीं. उदाहरण तरीके-बुद्धना निर्वाण विषे गमे Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९ ) तेम होय पण सर्वजगत्नी उत्पत्ति शून्यथी थई ने तेनो शून्यमा लय थाय छे. एवी उपपत्ति ते करे अथवा अन्यथा करे पण सर्वव्यापि आत्मा तत्त्व छे एम जे अद्वैतवादिओनो मत छे तेना विरुद्ध बुद्धनो मत हतो ए देखीतो छे. जैनलोको ब्राह्मणो प्रमाणे आत्मतत्त्व माने छे परन्तु सांख्य, न्याय अने वैशेषिकदर्शनकारी प्रमाणे ते जगत्व्यापि न मानतां तेनुं विमुत्त्व नियमित माने छे.. alerator पंचस्कन्ध विगेरे जे सिद्धान्तो छे तेनी नक्कल जैनशास्त्रमां नथी. जैनोना अध्यात्मग्रन्थोमां सर्व जगो पर जे एक विशेष उपलब्ध थाय छे ते ए छे के, फक्त प्राणी अथवा वनस्पतिमांज जीवतत्त्व न मानतां पंचमहाभूतोना अत्यंतबारिक परमाणुमां- एटले पृथ्वी, आप, तेज, वायु अने आकाश इत्यादिकोमां पण जीवतत्त्वनुं अस्तित्व माने छे. बौद्धोना अध्यात्मग्रंथोमां एवा प्रकार क्यांए प्रतिपादन करेलुं नथी. हिंदुतत्त्वज्ञानमां ज्ञाननी संपूर्ण अवस्था सुधी जुदां जुदां पगथियां मानेलां हे पण ए विषे जैनोनो स्वतंत्र मत छे. ए संबंधि तेओनी परिभाषा ब्राह्मणो करतां अने बौद्धो करतां बिलकुल जुदीज छे. तेओना मत प्रमाणे यथार्थ ज्ञानना ५ प्रकार छे. ते एवा प्रकारे के, १ मतिज्ञान, २ श्रुतज्ञान, ३ अवधिज्ञान, ४ मनः पर्यवज्ञान Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) ५ कैवल्यज्ञान, जैनोना ग्रन्थकारो जुदा जुदा साधुओनां चरित्र आपती वखते ए परिभाषानो उपयोग करे छे. एवा प्रकारर्नु साम्य दर्शवनारुं वर्णन बौद्धअध्यात्मग्रन्थोमां कई पण देखातुं नथी. जैनोना केटलाक मतो बौद्धोनी साथे मळता नथी ते पैकी केटलाकोनु उपर विवेचन कर्यु छे. हवे जैन अने बौद्ध ए बन्नेना जे मतो ब्राह्मणदर्शनकारोनी साथे मळे छे तेनुं निदर्शन करिशं. १ पुनर्जन्म, २ पूर्वजन्ममां करेला सारा खोटा कृत्यो प्रमाणे आ जन्ममां फलप्राप्ति थवी. ३ तेमन यथार्थज्ञानथी अने सद्धर्तनथी पुनर्जन्म अने मरण एनी यातनाओमाथी मुक्त थई शकवू. ४ धर्मनी ग्लानि थई एटले अवतार थई धर्मस्थापना थवी विगेरे जेम जैनो अने बौद्धो माने छे ते प्रमाणेन ब्राह्मणोमां पण मानेलं छे. जे प्रमाणे अनेक वखते असुरोए वेद चोर्यो अने विष्णुए मत्स्यादि अवतार धारण करीने तेओनो उद्धार को एम ब्राह्मणो माने छे. तेज प्रमाणे प्राचीनकालमां थई गएला जैन... X मुक्तात्मा तो फरीथी जन्म धारण करेज नहीं परन्तु बीजा बीजा जीवो अनेक जन्मोमां सुकृतनो संचय करी तेवा पदनी योग्यता मेळवी एक कालचक्रमा मात्र २४ तीर्थकरज थाय छे अने ते तत्त्वज्ञानने पुनः प्रकट करे छे. पण एकज व्यक्ति फरी फीथी अवतार धारण करीने धर्मनी ग्लानि थती मटाडे एम जैनोनुं मन्तव्य नथी. Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ १ ) ग्रंथोनो उद्धार महावीरादि तीर्थंकरोए कर्यो एम जैनोनुं मानतुं छे. अने बौद्धग्रंथोमां पण 'जैनोना नवीन उत्पन्न थएला पन्थवालाए एम क छे' एवा प्रकारना उद्देखो छे तेथी बौद्धोना देखते पण जैनोने प्राचीनपन्थमांना गणता हता. अने नटपुत्र एमने यद्यपि जैनधर्मनो संस्थापक मानता तो पण २३ मो तीर्थङ्कर जे पार्श्वनाथ मणे स्थापन करेलो, परंतु आगळ जतां मांगी पडेला धर्मनुं पुनरुज्जीवन करनार एटलुंज समजता. जैन अने बौद्ध ए बन्ने धर्मोनो विचार करती वखते आश्वय लागवा जेवी एक बाबत छे ते ए छे के, बन्नेना धमसंस्थापकोनी संख्या बिलकुल पासे पासे छे. एटले जैन २४ तीर्थङ्करो माने छे. अने बौद्धो २५ बुद्धो माने छे. एवा प्रकारनुं साम्य देखाय एटले बन्नेनो एक बीजानी साथै संबन्ध होवोज जोईए अने एवा प्रकारनी मान्यतावालाओना मतनुं खंडन करवाने घणी अडचण पडे छे. तो पण ए साम्यतामां बन्ने पैकी एके संख्या कोणे कोना पासेथी लीधी हशे ? अथवा बन्ने धर्मवालाओए अवतारकल्पना ब्राह्मणो पासेथी लीधी हशे के शुं ? ए प्रश्ननो निर्णय थई शकतो नथी. बुद्धना निर्वाण पछी पहेला सैकामां बौद्धलोको २५ बुद्धोनी पूजा करता हता. ए उपरथी बौद्ध Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) प्राचीन छे एम कहीए तो जैनो पण ओछा प्राचीन न हता एम मानवाने बिलकुल कारण नथी. कारण निर्वाण पछी बीजा सैकामां विभक्त थएला जैनोना जुदा जुदा जे श्वेताम्बरजैन, अने दिगम्बर जैन ते बन्ने पण २४ तीर्थङ्करोने पूज्य मानता हता. ए उपरथी २४ तीथङ्करोनी कल्पना जुनीज ठरे छे. २४ तीर्थंकर अने २५ बुद्ध ए अवतारोनी कल्पना बौद्धोए जैनो पासेथी लीघी के नोए बौद्धो पाथी लोधी एनो विचार करिए तो निर्णय थई एलो छे तोपण हाल अमे जे केटलीक बाबतो ठराववाना छीए तेने थी कोई को लागतो नथी ते बाबतो आ प्रमाणे छे १ जैनधर्म ए बौद्ध धर्ममांथी निकळेलो नथी. तेनो उद्भव स्वतन्त्र होवाथी तेणे बौद्धधर्ममांथी विशेष लीघेलं पण नथी. २ बौद्ध अने जैन ए बन्नेओए पण पोतानो धर्म, नीति, शास्त्र, तत्त्वज्ञान अने सृष्टिनी उत्पत्तिनी कल्पनाओ विगैरे Tal प्रकार ब्राह्मणो पासेयी विशेष करी संन्यासिओ पासेथी लीलो छे, अहिं सुधी जे विवेचन थयुं हतुं ते जैनलोकोना पवित्रग्रंथोमां लखेली तेओनी दंतकथाओ विगेरे प्रमाण मानीने क हतुं. बार्थनामना एक मोटा विद्वान् हता ते दरेक बाबतमां विशेष उंडा उतरी विचार करता अने पछी घणी काळजीथी • Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोताने योग्य लागे ते मत जाहेर करता हता, ते आ जैनप्रन्योमांनी दंतकथाओने प्रमाणभूत मानता न हता. नटपुत्रने ते कबुल राखता हता परंतु जनोनो मत स्थापन यया पछी प्रकटपणे ५०० वर्षे लखाएला ग्रंथोने प्रमाण्य मानीने तेना उपरथी तर्क काढता रहे, तेओने पसंद नहोतो. ते कहे छे के केटलाक सैका ओ सुधी जेओर्नु विशेष महत्व नहोतुं एवा संन्यासिओना अनेक टोळाओथी जैनलोको पृथक थया नहोता. जैनोनी दन्तकथाओ बौद्धोनी दन्तकथाओ उपरथी लीधेली होवी जोईए. एवं बार्थ साहेबर्नु मत छे. ज्यारे अनेक सैकाओमां जैनमत विशेष प्रबल थयो नहोतो ते वखते तेओए पोताना पवित्रग्रंथो लखी राख्या नहोता एबुं मानीने बार्थ साहेबे उपरनी दलीलो करी छे. जनोनो पन्थ केटलाक सैकाओ सुधी बिलकुल क्षुद्र अवस्थामां होवाने लीधे तेओए पोताना धर्मग्रंथो विगेरे लखेला नही होवा जोईए, विगेरे दलीलो तेओए प्रमाणीभूत मानेला ग्रंथोमांनी केटलीक बाबतोमा जेओनो जुजनाज मतभेद थयो तेओने तेओए पोताथी जुदा राख्या विगेरे जे हकिकतो छे ते उपरथी ते दलीलो यथार्थ नथी एटलंन नहतुं पण ए उपरथी al Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४). जैनलोको प्राचीनकाले पण विलकुल क्षुद्र न होईने पोताना धर्ममतो विषे केवल उपर उपरनी कल्पनाओ करनारा करता विशेष होशिआर हता ए निर्विवाद सिद्ध थाय छे. ___डॉक्टर लुमाने श्वेताम्बर जैनोना सात विभागो विषे ने माहिती आपी छे ते उपरथी पण उपरना मतनेज पुष्टि मळे छे. वीजा अथवा त्रीजा सैकामां श्वेताम्बर जैनो पासेथी केटलाक अध्यात्मविचारोनी बाबतमा मतफेर पडवाथी दिगम्बर जैनो विभक्त थया. अध्यात्मविचारोमा मतभेद थयो तोपण आचार विचारोमां मतभेद नहीं होवाथी श्वेताम्बरोए तेओने कदी पण पाखडमां गण्या नथी. आ जुदा जुदा प्रमाणो उपरथी जैनलोकोना पवित्रग्रन्थो परिणत अवस्थामां आववाना पहेलो पण ते लोको केवळ क्षुद्र अने तेओना धर्ममतो अव्यवस्थित अने बीजा धर्मने अनुसरीने बदलनारा, एम न थतां तेओना मतमां बिलकुल झीणी झीणी बाबतो पण नियमित ठरावेली हती एमज मानवं योग्य लागे छे. जैनधर्मग्रन्थो प्रमाणे तेओनी ऐतिहासिकदन्तकथाओ विषे पण विचारतां जुदी जुदी गाथाओमां जे जे विस्तृत गुरुपरं अध्यात्मदिचारोमा भेद तो छे पण आचारविचारोमा विशेष थवार्थी विभक्त करेला ॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) पराओ आपी छे ते उपरथी तेओ पोताना मतना इतिहास तरफ पण दुर्लक्ष्य करता नहोता ए चोक्टुं देखाय छे. कदाच ए परंपराओ कल्पित होवी पण संभवनीय छे परन्तु कल्पसूत्रमा तेओए जे गण, शाखा अने गुरुपरंपरानी यादि आपी छे ते जैनोए बनावेली होय एम मानवाने कयां सबल कारणो छे वारु ?, हालना जैनोने कल्पसूत्रमा आपेली यादि शिवाय कई विशेष माहिति नथी, अने माहिती छे एम तेओ कहेता पण नथी. तेओए केवल नामोनी जे एक विस्तृत यादि रक्षण करीने मुकी छे ते उपरथी प्राचीनकालना धर्मपन्थना अनुयायिओनी माहिती होवा तरफ तेओनुं ध्यान हतुं ए निर्विवाद सिद्ध थाय छे. जैनधर्मना ग्रन्थो वल्लभराजानी कारकीर्दीमां देवर्द्धिगणिसमाश्रमणना परिश्रमथी परिणत अवस्थामां आव्या छे एम घणा खरा पंडितोना मतथी मान्य थयुं छे. देवर्द्धिगणिने पूर्व उपलब्ध यएला जुदा जुदा ग्रन्थोना आधारे सिद्धान्तना ग्रन्थो बनाव्या. हवे जैनग्रन्थो कया कालमां रचाएला होवा जोईए एनी शोध करीशुं. जैनौना सिद्धान्तग्रन्थो पैकी आचारसूत्रनो पहेलो भाग अने सूत्रकृताङ्ग ए भागो अतिशय प्राचीन होवा जोईए. सूत्रकृताङ्गसूत्र वैतालीयछन्दःमां लखाएछं छे. बौद्धोना Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६६ ) बीजा अनेक ग्रन्थो वैतालीयछन्दमां लखाएला छे. ललितविस्तराग्रन्यमांनी बैतालीयछंदोबद्ध कविताओ करतां सूत्रकृताङ्गग्रंयमांनी कविताओनुं स्वरूप प्राचीन देखाय छे, एकंदररीते अनेक साधकबाधक प्रमाणोनो विचार करतां ई. स. ४०० वर्ष पहेलां जैन ग्रन्थो रचाएला होवा जोईए एम देखाय छे. जैनग्रन्थोमांना प्रमाण मानेला जे अङ्गग्रन्थो छे ते तेनाथी पूर्वेना हता एवं श्वेताम्बर अने दिगम्बर ए बन्नेनुं कहेतुं छे. ते कहे छे के, पूर्वना ग्रन्थो, ज्ञान दहाडे दहाडे चाल्युं जतां जतां आगळ बिलकुल चाल्युं गयुं. कोई पण धर्मस्थापकोने पोताना नवा मतो प्राचीन आधार उपर चलावी देवाना होय तो ' फलाणा पूर्वग्रन्थो हता ते आगळ जतां लुप्त थई गया तेमांनो जे भावार्थ ते तमोने कहुं हुं ' एम कहेवा माटे जे प्राचीन ग्रन्थो लुप्त थयानं बहाने घणा ठेकाणे, बतावे छे परन्तु जैनग्रन्थो माटे एम मानवानुं कारण नथी. अङ्गग्रन्थो पूर्वोना आधारे थया छे एम जैनलोको मानता नथी. ते तेने अनादि माने छे. पूर्वशब्दना उपरथी ज्यारे जोईशुं त्यारे पण पूर्व एटले पहेलां उपलब्ध यएला ग्रन्थो एम मानवं विशेष योग्य लागे छे. शिवाय पूर्वग्रन्थोनुं ज्ञान एकी वखते लुप्त न थतां क्रमवार रीते लुप्त थयुं छे. Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६७ ) मनोनुं एम कहेतुं छे के - भद्रबाहु पछी १४ पैकी १० पूर्वो उपलब्ध हता. ए उपरथी ते केवल खोटुंज छे एम कही शकाय नहीं. "जैनोना १४ पूर्वो विषे विचार करतां एम देखाय छे के, आ पूर्वग्रन्थ जैनोना पहेलांना धर्मग्रन्थो होवा जोईए पछी नवा ग्रन्थो थया एटले ते ग्रन्थो जुना थई पड्या. दृष्टिवादमां १४ पूर्वोनो समावेश थलो हतो. आ ग्रन्थोमां दृष्टि एटले जैनोना अने तेनी साथेना बीजा यतिओना सिद्धांतोनुं निरूपण करेकुं इतुं एम देखाय छे. ए प्रमाणे पूर्वोमां महावीर अने तेमना प्रतिस्पर्द्धिमतवालाना वादविवादनुं कथन होवु जोईए एम लागे छे. दृष्टिवादमां प्रवाद विगेरे शब्दो वापर्या छे. ते उपरथी तेमाँ वादविवादनी बाबत होवी जोईए एम लागे छे, पहेलां एम क्युं छे के, 'महावीर नवो पन्थ नहीं काढतां पहेलांना धर्ममतोमां सुधारणा करीने प्राचीन मतोनो उद्धार कर्यो छे. अर्थात् तेमनो पोतानो मत स्थापन करती वखते अनेक जुना मतवादिओ साथै वादविवाद करीने केटाकोना मतनुं खंडन करीने पोतानो मत स्थापन करवो, यो शे. कारण धर्मस्थापकोने एम करवानी जरुर पढे ज छे. हवे महावीरनुं अने तेमना प्रतिस्पर्धिओनुं महत्व महावीरनुं प्रतिस्पर्धिमंडल नष्ट थया पछी अर्थात नहीं जेवुं थयुं हशे ते Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६८) वखतना लोकोने यद्यपि एवा ४ वादविवादक ग्रंथोनुं महत्व लागवा जेवू होय तोपण कालांतरे ते ग्रन्थोमांनी सुंदरता नष्ट थायज एटलुंन नहीं पण आगळना लोकोने एवा पवित्रग्रन्थो पण मानवा सारा लागता नहीं होय. अर्थात् देशकाल बदलायो त्यारे देशकालने अनुसरीने नवा ग्रंथो तैयार करवानी जरुर विशेष पडवाथी नवा ग्रन्थो तैयार करवा पड्या एटले जुना ग्रन्थो पाछल पड्या ए स्वाभाविकन छे. शिवाय एम पण कहे छे के, नवा ग्रन्थो तैयार चया पछी केटलाक वरसो सुधी पूर्वी उपलब्ध हता. पछी हलवे हलवे ते ग्रन्थो लुप्त थई गया. ए उपरथी एम देखाय छे के, ते पूर्वग्रन्थोनो जाणी जोईने कोईए नाश को एम नथी पण नवा ग्रन्थोमां जैनसिद्धान्तोनू निरूपण विशेषपद्धतिसर थवाथी अने ते अन्थोनो विशेष प्रचार थवाथी पूर्वग्रन्यो जुना थई पड्या होवा • जोईए एम मानवं विशेष प्रशस्त लागे छे. एकंदर रीते जैन धर्मनो उद्भव अने विकास ए बीजाथी न थतां स्वतंत्र के एम सारी रीते सिद्ध थाय छे. ४ पूर्वना ग्रंथोमां अति महत्त्व -सूक्ष्ममां सूक्ष्म ज्ञान हतुं ते धारण करनार बुद्धिमान् पुरुषोना अभावधी धीरे धीरे लुप्त थतुं गयु एवी जैनोनी मान्यता छे. पण ते केवल वादविवादना ग्रंथो न हता. Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीः। उपाध्यजीना बन्ने लेखोनो टुंकमा सार. वेदशास्त्रसंपन्न श्रीवासुदेव नरहर उपाध्ये पोतानी मराठी भाषामां आ बन्ने लेखो निर्मलहृदयथी लखेला ए तो निर्विवादन छे, छतां केटलाकोना तरफथी मने एवी सूचनाओ मळी के-आ लेखोमां केटलेक ठेकाणे जैनधर्मना तत्त्वोथी विरुद्ध भासे छे, मारी समज मुनब तो प्रायः लेखक पोताना विचारोने आगळ पाछळ जाहेर करी गया छे, कदाच तेवा अधीतजैनसाधुना समागमना अभावथी अथवा जैनधार्मिकग्रन्थोना अभ्यासनो विशेष लाभ न मळवाथी सहेज गफलतमां आव्या होय तो ते सुधारीने वांच ए आपणी ( वांचकनी ) फर्ज छे. ___ एकज लेखमां कोईनी समज केवा प्रकारनी थाय अने कोईनी केवा प्रकारनी थाय ए दरेकना विचारो उपर आधार राखे छे. माटे सूक्ष्म वातोने छोडी दई तेमना मुख्यविचारोनो संबन्ध जोडी आपुं एटले आगळ पाछलनो विचार कर्या वगर Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) - कोई अजाण माणस तेमनुं एकाद वचन मात्र पकडीने तेनो संबन्ध मेळव्या विना आडो अवळो अर्थ करी बेसे नहीं. जैनधर्म विषये बे बोल.' नामना तेमना पहेला लेखमां वेद प्रथम केवी अवस्थामा हता, पछी तेणे केg स्वरूप धारण कर्यु अने तेथी केQ बीभत्सपणुं जगत्मां चालतुं हतुं विगेरेनुं विवेचन करेलु छे. आ वेदनो विषय तो लेखकना घरनोन हतो. पछी जैन अने बौद्धना दयालु महात्माओथी ते वेदोक्त हिंसाकर्म केवी रीते हटवा पाम्यु, ते महापुरुषोनो तप, वैराग्य भने ज्ञान केटली बधी उंची हदनुं हतुं अने तेमणे लोको उपर केटलो बधो अपरिमित उपकार करेलो विगेरे जणावेल छे. छेवटमां बीना पण्डितोने पण जैन अने बौद्धोना ग्रन्थोमां रहेलां अगाधतत्त्वरत्नोने जोवानी भलामण करी लेखनी समाप्ति करेली छे. 'जैनधर्मनी उत्पत्ति अने विकास.' । आ मथालाना बीजा लेखमां-प्रथम संस्कृतग्रन्थोने प्राचीनतानुं स्थान आपी बौद्धोना ग्रन्थोने विशेष प्राचीन ठराव्या Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७१ ) ण औत्तरीय बौद्धग्रन्थोनी अधिक प्राचीनता ठहरावी तेना जेटलीज प्राचीनता जैनधर्मना ग्रन्योने आपेली छे. परंतु जैनोना ग्रन्थोनुं धोरण घणुंज जुदा प्रकारनुं छे ए पण स्पष्टपणे दर्शालुं छे. आगळ जतां जैनधर्मना नायक महावीरप्रमुतुं अने बौद्धधर्मना नेता बुद्धभगवानूनुं टुंक वृत्तान्त आलेखी ते बन्ने धर्मनाय - कोने भिन्न ठराववा प्रयत्न करेल छे अने बन्ने वर्मोना आचारो विचाराने अरसपरस सरखावीने ते कोनामांथी कोनामां गया हशे विगेरे अनेक कल्पनाओ करीने पृ. ४५ मां फरीथी एवी तर्क उठावी के जैन अने बौद्ध ए बन्नेना आचार विचारोनो उद्भव क्यांथी थयो हशे ? ब्राह्मणो पासेथी के तेमना संन्यासिओ पासेयी ? छेवटे पृ. १४ मां तो एवो निश्चय करी देवामां आव्यो के - जैनोए बौद्धोनुं अनुकरण न करतां ब्राह्मणो पासेथी ते नियमो लीवा एज सिद्ध थाय छे. एज पृष्टनी टीपमां अमोए जणाव्यं हतुं के अनेक सूक्ष्मतत्त्वरत्नोने निरूपण करनारा जैनधर्मिओने यमनियमादि जेवी सामान्य Tarant बीजा पाथी लेवानी संभवि शके नहीं. आगळ जतां Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) लेखकना पण एवाज प्रकारना अनेक खुलासा जोवामां आवशे. ते खुलासा नीचे प्रमाणे (१) पृ. ५९ मां " हिन्दुज्ञानमां ज्ञाननी संपूर्ण अवस्था सुधीनां जुदां जुदां पगथियां मानेलां छे पण ए विषये जैनोनो स्वतन्त्रन मत छे. ए संबन्धी तेओनी परिभाषा ब्राह्मणो करतां अने बौद्धो करतां बिलकुल जुदी छे." ___ अहिं विचार करवानो ए छे के मोक्षनी पूर्ण अवस्थानो पायो सर्व मतोमा मुख्यपणे ज्ञान उपरथी रचाएलो छे. ज्ञानाहते न मुक्तिः एवं वेदवाक्य पण छे तेनो विचार हजारो श्लोकोना विस्तारथी जैनग्रन्थोमां करेलो छे. ज्यारे तेवा मुख्य मुख्य विषयोमां पण जे जैनधर्म बीजा कोईनी पण अपेक्षा राखतो नथी तेवा स्वतन्त्रमत (जैनधर्म ) वालाने यमनियमादि जेवी सामान्य बाबतो बीजा पासेथी लेवानी केवी रीते जरूर पडे ? अर्थात् नन पडे एम अर्थापत्तिन्यायथी लेखके स्वयं सिद्ध करी बताव्युं छे. (२) पृ. ६२मां “ जैनधर्म ए बौद्धधर्ममांथी निकळेलो नथी, तेनो उद्भव स्वतन्त्र होवाथी तेणे बौद्धमांथी विशेष लीधेलं पण नथी." Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) (३) पृ. ६२ मां “ बौद्ध अने जैन ए बन्नेओए पण पोतानो धर्म, नीति, शास्त्र, तत्त्वज्ञान अने सृष्टिनी कल्पनाओ विगेरे बधो प्रकार ब्राह्मणो पासेथी विशेष करी संन्यासिओ पासेथी लीधेलो छे, अहिं सुधी जे विवेचन कयु हतुं ते मात्र तेमनी दन्तकयाओ विगेरेने प्रमाण मानीने कर्यु हतुं पण पुख्त विचार करनार बार्थ साहेब ते दन्तकथाओ उपरथी अनुमान करी बेसवार्नु योग्य मानता नहता. " इत्यादि. आ फकराथी लेखके ए सिद्ध करी बताव्युं छे के-जैनोना मुख्यसिद्धान्तोने जोतां पृ. ४५ थी ते पृ. ६२ सुधी जे जे अनुमानो करी बताव्यां छे ते यथार्थपणे थएलां नथी. (४) पृ. ६४ मां" जैनलोको प्राचीनकाले पण बिलकुल क्षुद्र न होईने पोताना धर्ममतो विषे केवल उपर उपरनी कल्पना करनाराओ करतां विशेष होशियार हता ए निर्विवाद सिद्ध थाय छे." ____ आ लेखथी तो अमोने ए विचार उद्भवे छे के-बौद्धधर्मना अने ब्राह्मणधर्मना तत्त्वो करतां पण जैनधर्मना तत्त्वो लेखकने केटलाबधा महत्त्ववाला भासमान थया हशे वारु ? आगळ जतां लेखके जणाव्युं छे के-“ जैनोना चौदपूर्वनं ज्ञान यद्यपि लुप्त थई गएलं छे तोपण ते जैनोनी वातो कल्पित नथी पा . Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) पण सत्यरूपज छे' इत्यादि लखीने ठेवटमां "जैनधर्मनो उद्भव अने विकास ए बीजामांथी न थतां स्वतन्त्रन छे" आ छेवटना फकराथी विचार करीए तो पण जैनोए पोताना आचारो अने विचारो बीजा कोईनी पासेथी लीधा नथी ए चोक्खे चोक्खं लेखके सिद्ध करी बताव्युं छे. उदाहरण तरीके-पृ. १७ मां लेखक लखे छे के" हालमा भारतीयलोकोना जे आचार विचार अने धर्मसंस्थाओ छे तेओमां जैन धर्मसंस्था अने विचार मळी गएलां छे. ए नगर प्रदक्षिणा, आलंदीनी पालखी, पोताना पोडशोपचारनी पूजा, नैवेद्यसमर्पण विगेरे जैनधर्मिओना साथे तुलना करी जोतां तरत ध्यानमा आवशे." तथा पृ. १८ मां " भारतीय लोकसमाजमां जैन अने बौद्धधर्म एटलो बधो व्यापी गयो छे के--पौराणिक धर्ममां अने पछीना पन्थमां तेमना ( जैनधर्मना ) आचारविचारोनुं अने तेओनी धर्मपद्धतिनुं तादात्म्य थई गयुं छे, ए भगवद्गीतादिग्रन्थोमां बौद्धोना निर्वाणादिशब्दो जे बिलकुल लीन थई गया छे ते उपर तरत ध्यान आपवा जेबुं छे. पछी जैनधर्मनो द्वेष करतां करतां अमारा आचार विचार उपर, सन्ध्यापूनादि विधिओ उपर, हमेश बोलवाना स्तोत्रो उपर पण तेनो असर थएलो छे." पृ. १९ मां " भरतखण्डमां तो शं पण आखा जगत् उपर बन्ने al Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मोए केटलो बधो अपरिमित उपकार कर्यो छे ए नजरे आव्या पछी हालना जगत्मांना प्रचलित धर्मो तथा बौद्ध अने जैन धर्मो एमनो जेवो जेवो संबन्ध तेओनी ( पण्डितोनी ) नजरमां आवतो जशे तेम तेम आ नवीन मळेली विलक्षण रत्नोनी अगाध खाण देखीने तेओन मन आनन्दसागरमां तल्लीन थई जशे एटलुज आ ठेकाणे कहेवू बस छे." लेखकना आ वाक्योथी पण एज सिद्ध थाय छे के-हिन्दुधर्मना आचारोन, विचारोनं अने तेमनी धर्मपद्धतिनं मलस्थान ते जैनधर्मना ग्रन्थोनेज आभारी छे. अने तेथीन ते धर्मो यत्किञ्चित् शोभापात्र थएला होय ए पण लेखकना विचारोथीन सिद्ध थायळे. इत्यलं विस्तरेण. संग्राहक Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परमहंसश्री योगजीवानन्दस्वामिजीनो पत्र । आ दुनियामां घणा माणसो तो पोताना धर्ममां चालता आवेला गमे तेवा विचारोने वळगीनेज रहेला होय छे. कदाच कोई कोई पंडितो बीजाना धर्ममा रहेला महत्वना विचारो जाणी शके छे अने विचारी पण शके छे छतां पोताना व्यवसायमां फसेला होवाथी गौणपणामां गणी काढे छे, अने केटलाक पंडितो तो वातचितना प्रसंगमां बीजामा रहेला महत्वना विषयोने मुखथी कही पण बतावे छे, अमुक धर्ममां अमुक विचारो विचार करवा जेवा छे. परन्तु खरी लागणीथी तो कोई महात्मा पुरुषोज बीजाधर्मना तत्त्वोनो अभ्यास करी तेनी वासनाथी वासित थवाथी खरेखलं अन्तःकरण महमहाटवाडं थया पछी लोकप्रसिद्धिमां मुंकी शके छे. कदाच एकाद पण्डितना तेवा विचारो बहार पडेला होय तो तेमां शुं सत्य छे अने शुं असत्य छ ते जाणवानी दरकार कर्या विना मात्र पोतानो कको खरो करवाना हेतुथी तेनो यद्वा तद्वा पणे उत्तर घडी काढीने लोकोमां तेने समजविनानो ठराववा प्रयत्न करे छे, पण ए वात Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७ ) तत्त्वज्ञपुरुषोने करवी ते योग्य न गणाय. भले अजाण गमे तेम बोले. __ अमोए जैनधर्मविषयना विचारो जे उपाध्येजीना थएला छे ते प्रसिद्धिमा मुक्या छे छतां पण कोईना मनमां एवी शंकानो पण उद्भव थवा पामे के-आ एकज माणसना विचारो खरा छ एम आपणाथी केवी रीते निश्चय थई शके ? माटे अमो आगळ बीजा पण अनेक पंडितोना नाना मोटा लेखो जे अमारा जोवामां आव्या तेमांना केटलाक लेखो आ लेखसंग्रहमा दाखल करी वांचकोने विचार करवानी सुगमता करी आपवानुं दूरस्त धारी टांकी बतावीए छीए. जुवो के-जेवी रीते वेदशास्त्रसंपन्न उपाध्येजीनो पहेलो लेख छे तेना अभिप्रायोने प्रायः मळतो वेदशास्त्रमा निपुण आ एक परमहंस के जेमणे कोई पण जैननो समागम थया वगर अमारा गुरुवर्य महाराजाना हाथथी लखाएला मात्र बेज ग्रन्थोना परिचयथी ग्रन्थकारनो पत्तो मेळवी पोताना अंतःकरणनो उभरो केवळ पत्रद्वाराज केवी रीते ठाळन्यो छे ते आ ठेकाणे दाखल करीने बतायूँ तो ते अस्थाने नहीं गणाय. संग्राहक. Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७८) तत्त्वनिर्णयप्रासाद ग्रन्थ पृष्ट १२६ मां प्रगट थएलो पत्र नीचे प्रमाणे छे पूर्वपक्ष- ऐसें महात्मा योगजीवानंदसरस्वतीस्वामीजी कौन है ? उत्तरपक्ष-संवत् १९४८ आषाढ सुदि १० मीका लिखा एक पत्र गुजरांवाले होके हमारे पास ( अर्थात् ग्रंथकार आत्मारामजी महाराजाके पास ) माझापट्टी में पहुंचा तिस पत्रको वांचके तिस लिखनेवाले निःपक्षपाती और सत्यके ग्रहण करनेवाले महात्माकी बुद्धिको कोटीशः धन्यवाद दीया और तिसके जन्मको सफल माना सो असली पत्र तो हमारे पास है तिसकी नकल अक्षर अक्षर हम यहां भव्यजन पाठकोंके वांचने वास्ते दाखिल करते हैं. स्वस्ति श्रीमज्जैनेंद्रचरणकमलमधुपायितमनस्क श्रीलश्रीयुक्त परिव्राजकाचार्य परमधर्मप्रतिपालक श्री आत्मारामजी तपगच्छीय श्रीमन्मुनिराजबुद्धि विजय शिष्य श्रीमुखजीको परिव्राजक योगजीवानंदस्वामी परमहंसका प्रदक्षिणात्रयपूर्वकं क्षमाप्रार्थनमेतत् ॥ भगवन् व्याकरणादिनानाशास्त्रोंके अध्ययनाध्यापनद्वारा वेदमत ग -- Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७९) लेमें बांध मैं अनेक राजा प्रजाके सभाविजय करे देखा व्यर्थ मगज मारना हैं इतनाही फलसाधनांश होता है कि राजे लोग जानते समझते हैं फलाना पुरुष बडा भारी विद्वान् है परंतु आत्माको क्या लाभ होसकता देखा तो कुछ भी नहीं। आन प्रसंगबस रेलगाडीसे उतरके बठिंडा राधाकृष्णके मंदिरमें बहुत दूरसें आनके डेरा किया था सो एक जैनशिष्यके हाथ दो पुस्तक देखें, तो जो लोग ( दो चार अच्छे विद्वान् जो मुझसे मिलने आये ) थे कहने लगे कि ये नास्तिक ( जैन ) ग्रंथ है इसे नहीं देखना चाहिये अंत उनका मूर्खपणा उनके गले उतारके निरपेक्षबुद्धिके द्वारा विचारपूर्वक जो देखा तो वो लेख इतना सत्य वो निष्पक्षपाती लेख मुझे देखपडा कि मानो एक जगत् छोडके दूसरे जगत्में आन खडे हो गये. और आबाल्यकाल ७० वर्षसे जो कुछ अध्ययन करा वो वैदिकधर्म बांधे फिरा सो व्यर्थसा मालूम होने लगा. जैनतत्त्वादर्श वो अज्ञानतिमिरभासकर इन दोनो ग्रंथोंको तमाम रात्रिंदिव मनन करता बैठा वो ग्रंथकारकी प्रशंसा बखानता बठिंडेमें बैठा हूं सेतुबंधरामेश्वरयात्रासे अब मैं नैपालदेश चला हूं। परंतु अब मेरी ऐसी असामान्य महती इच्छा मुझे सताय रही है कि किसी प्रकारसे भी एकवार आपका मेरा समागम वो Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८०) परस्पर संदर्शन हो जावे तो मै कृतका होजाऊं । महात्मन् हम संन्यासी है आजतक जो पांडित्यकीर्तिलाभद्वारा जो सभाविजयी होके राजा महाराजाओमें ख्यातिप्रतिपत्ति कमायके एक नाम पंडिताईका हांसल करा है, आज हम यदि एकदम आपसे मिले तो वो कमायी कीर्ति जाती रहेगी। ये हम खूब समजते वो जानते है परंतु हठधर्म भी शुभपरिणाम शुभआत्माका धर्म नहीं । आज मैं आपके पास इतना मात्र स्वीकार कर सकता हूं कि प्राचीनधर्म परमधर्म अगर कोई सत्यधर्म रहा हो तो नैनधर्म था. जिसकी प्रभा नाश करनेको वैदिकधर्म वो षट्शास्त्र वो ग्रंथकार खडे भये थे. परंतु पक्षपातशून्य होके कोई यदि वैदिकशास्त्रोपर दृष्टि देवे तो स्पष्ट प्रतीत होगा कि वैदिकबार्ते कही वो लीई गई सो सब जैनशास्त्रोंसे नमूनाईकठी करी है ईसमें संदेह नही. कितनी कबातें ऐसी है कि जो प्रत्यक्ष विचार करे विना सिद्ध नही होती है. संवत् १९४८ मिती आषाढ सुदि १०॥ पुनर्निवेदन यह है कि यदि आपकी कृपापत्री पाई तो एक दफा मिलनेका उद्यम करूंगा ॥ इति योगानंदस्वामी किंवा योगजीवानंदसरस्वती स्वामि ॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ *मालाबंधश्लोको यथा ॥ योगाभोगानुगामी द्विजभजनजनिः शारदारक्तिरक्तो दिगजेताजेतृजेता मतिनुतिगतिभिः पूजितो निष्णुजिकैः । जीयाद्दायादयात्री खलबलदलनो लोललीलस्वलजः केदारौदास्यदारी विमलमधुमदो-दामधामप्रमत्तः ॥ १३४ इस श्लोकके ६१ अर्थ है वेसब अथ जैनप्रशंसा वो श्रीआत्मारामजीकी विभूतिकी प्रशंसा निकले है प्रत्येक पुष्पोंके बीचका जो अक्षर है वो तीनवार एक अक्षरको कहना चाहिये ऐसा काव्य दशवीश श्लोक बनाय के जरुर चाहता था कि जैनतत्वादश वो अज्ञानतिमिरभास्करमें जैनदेवप्रशंसा होनी चाहेती थी। एकवार आपको मिलने बाद अपना सिद्धांतका निश्चय फिर करना बने तो देखी जायगी ॥ . यह लेख उनका एक कागजके टुकडेमें अलग था यह सर्व • लेख पूर्वोक्त महात्मा का है। * आ काव्यनुं चित्र साधनना अभाव अमोए दाखल करेलु नथी माटे जेने जोवानी इच्छा होय तेमणे तत्त्वनिर्णयप्रासाद ग्रन्थ पृ. ५२८ मां जोई लेबु. Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसुजनसम्मेलनम् नाम सर्वतन्त्रस्वतन्त्रसत्सम्प्रदायाचार्यस्वामिरामंमिश्रशास्त्रिप्रणीते जैनधर्मविषयेव्याख्यानदशके प्रथमव्याख्यानम्। ॥ श्रीमते रामानुजाय नमः ॥ सज्जन महाशय ! ___आज बड़ा सुदिन और माङ्गलिक समय है कि हम भारतवर्षीय जिनके यहाँ सृष्टिके आदिकालहीसे सभ्यता, आत्मज्ञान, परार्थे आत्मसमर्पण, आत्माकी अनाद्यन्तता ज्ञान चला आया है, बल्कि समयके फेरसे कुछ पुरानी प्रतिष्ठा पुरानी सी पड़गयी है, वे इस स्थानमें एकत्र हुये हैं, अवश्यही इसे सौभाग्य मानना, और कहना चाहिये, क्योंकि वैदिक मत और जैन मत सृष्टिकी आदिसे बराबर अविछिन्न चले आये हैं, और इन १ गणे विद्यावतां यस्य प्रथमं नाम घोष्यते । सर्वतन्त्रस्वतन्त्रोऽसौ राममिश्रसुधीरयम् ॥ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (८३) दोनों मजहबोंके सिद्धान्त विशेष घनिष्ठ समीप संबन्ध रखते हैं, जैसा कि पूर्वमें मैं कह चुका हूँ और जैसा कि-सत्कार्यवाद, सत्कारणवाद, परलोकास्तित्व, आत्माका निर्विकारत्व, मोक्षका होना, और उस्का नित्यत्व, जन्मान्तरके पुण्यपापसे जन्मान्तरमें फलभोग, व्रतोपवासादिव्यवस्था, प्रायश्चितव्यवस्था, महाजनपूजन, शब्दप्रामाण्य इत्यादि समान हैं, बस तो इसी हेतु मुझे यहाँ यह कहते हुए मेरा शरीर पुलकित होता है कि आज का यह हमारा जैनोंके सङ्ग एकस्थानमें उपस्थित होकर संभाषण वह है कि जो चिरकालके बिछुड़े भाई भाईका होता है। सज्जनों ! यह भी याद रखना जहाँ भाई भाईका रिस्ता है वहाँ कभी कभी लड़ाईकी भी लीला लग जाती है, परन्तु याद रहे उस्का कारण केवल अज्ञानही होता है । __इस देशमें आज कल अनेक अल्पज्ञ जन बोद्धमत और जैनमतको एक जानते हैं, और यह महा भ्रम है। जैन और बौद्धोंके सिद्धान्तको एक जानना ऐमी भूल है कि-जैसे वैदिक सिद्धान्तको मान कर यह कहना कि वेदोंमें वर्णाश्रमव्यवस्था नहीं है, अथवा जातिव्यवस्था नहीं है, अथवा यह कहना कि द्विजोंने शुद्रोको झूठ मूठ छोटा बनाकर उन्हें बड़े क्लेश दिये, Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८४) 'अब हम उन्हें क्लेशमुक्त करेंगे । सज्जनों ! आप जानते हैं दुनियामें रुपया बहुतही आवश्यक वस्तु है, और वह बड़ेही कष्टसे मिलता है। यदि कोई उस्का सीधा और उत्तम द्वार है तो-शिल्प, और सेवा, तो अब ध्यानसे जानना, कि द्विनोंमें ब्राह्मण, क्षत्रिय सबसे बड़े समझे गये हैं, उन्होंने अपने हाथमें आवश्यक बात कोई न रक्खी। ब्राह्मणोंने अपने हाथमें केवल कुशमुष्टि रक्खी, और क्षत्रियोंने खड्गकोशमुष्टि रक्खी। तब भला देखो तो जिन्होंने अपने हाथमें निकम्मी चीजें रख कर वैश्यों को कृषिवाणिज्य दे डाला, और शूद्रोंको उससे भी बढ़ कर शिल्प और सेवा दे डाली । सज्जनों ! जानते हो-शिल्प कौन चीन है ? शिल्प वह है कि जिसके कारण इंगलैंड जगत्का बादशाह है, नहीं २ कहो शाहनशाह है, और जिस्के अभावही से हमारा देश, देश इसे क्या कहें, जन्मभूमि, जननी, भारतभूमि रसातलको जा रही है। विचारका स्थान है जब शिल्प शूद्रोंके हाथमें दे डाला तब तो वैश्य भी विचारे शूद्रोंके पीछे पड़ गये, क्योंकि कृषिमें दैवीआपत्का भय रहता है, और वाणिज्यमें तो और भी अधिक आपत्ति है, सबसे अच्छी शूद्रोंकी जीविका है । शिल्प, और सेवा, निस्के न कोई आपत् है नतो नुकसान । तब ही तो कहा गया है Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८६) स्वर्णपुष्पमयीं पृथ्वीं चिन्वन्ति पुरुषास्त्रयः । शूराश्च कृतविद्याश्च ये च जानन्ति सेवितुम् ॥ __ तब तो देखनेका स्थान है कि क्षत्रिय की जीविका तो हथेलीमें जान रख कर है और ब्राह्मणकी तो उससे भी कठिन है । जब वह बारह और बारह चौबीस वर्ष विद्यार्जन करेगा तब वह जीविका करेगा परन्तु शूद्रका जीवन कैसा सुलम है। जहाँ पर देखो वहाँ पर सर्वत्र शूद्रों पर अनुग्रह है ने शूद्रे पातकं किञ्चिन्नच संस्कारमर्हति । द्विजोंके लिये मनुने नियम किया है कि वे फलां फलां देशमें निवास करें। परन्तु शूद्रोंके लिये वे कहते हैं एतान् द्विजातयो देशान् संश्रयेरन् प्रयत्नतः । शुद्रस्तु यत्र कुत्रापि निवसेद वृत्तिकर्षितः ।। १ आ पृथ्वी सोनाना फूलमयी छे. ते फूलोने शुरमा पुरुषो, विद्यावाला, अने राजादिकनी सेवा करवानुं जाणे छे .एवा त्रण पुरुषोन चुंटी रह्या छे ॥ सं. ..... - २ शद्रोमां कांई पातक नथी तम संस्कारनी जरूर पण नथी ।। ... ३ ब्राह्मणो आ बतावेला देशोमांज रहे पण शुद्र तो पोतानी भा... जीविका माटे गमे त्यां रही शके || सं० Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८६) तब तो शूद्रोंके लिये मनुने देशकी यथेच्छ आज्ञा देदी अब क्या चाहिये । बस तो इस रीति पर यह भी अज्ञोंकी दन्त कथा है कि जैन और बौद्ध एकसमान हैं। सज्जनों ! बुरा न मानों, और बुरा माननेकी बातही कौनसी है ? जब कि खाद्यखण्डनकार श्रीहर्षने स्वयं अपने ग्रन्थमें बौद्धके साथ अपनी तुलना की है, और कहा है कि हम लोगोंसे [ याने निर्विशेषाद्वैतसिद्धान्तियोंसे ] और बौद्धोंसे यही भेद है कि हम ब्रह्मकी सत्ता मानते हैं, और सब मिथ्या कहते हैं, परन्तु बौद्धशिरोमणि माध्यमिक सर्व शून्य कहता है, तब तो जिन-जैनोंने सब कुछ माना उनसे नफरत करने वाले कुछ जानते ही नहीं, और मिथ्या द्वेषमात्र करते हैं यह कहना होगा। ___ सज्जनों ! जैनमतसे और बौद्धसिद्धान्तसे जमीन आसमानका अन्तर है। उसे एक जान कर द्वेष करना यह अज्ञजनोंका कार्य है। सबसे अधिक वे अज्ञ हैं कि जो जैनसम्प्रदायसिद्ध मेलोंमे बिघ्न डाल कर पापभागी होते हैं। सज्जनों ! आप जानते हैं जैनोंमें जब रथयात्रा होती है १ विपरीत विचार. Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तब किनकी मूर्ति रथमें बिराजती हैं ? सज्जनों ! देव गन्धर्वो से लेकर पशु पक्षि पर्यन्त जो पूजा की जाती है वह किसी मूर्तिकी ? अथवा मट्टी पत्थरकी ? नहीं की जाती है, जो ऐसा जानते हैं वे ऐसे अज्ञ हैं कि उन्हें जगत्में डेढ़ अकल मालुम होती है-याने एकमें आप स्वयं, आधीमें सब जगत्। क्या मूर्तिपूजक मूर्तिनिन्दकोंसे भी कम अकल हैं ? सज्जनों ! मूर्तिपूजा वह है कि जिसे मूर्तिनिन्दक नित्य करते हैं परन्तु यह नहीं जानते कि इस्में हमारी ही निन्दा होती है । देखिये ऐसा कौन देश, नगर, ग्राम, वन, उपवन है कि जहाँ पूज्य महारानी विक्टोरियाकी मूर्ति नहीं है और लोग उसे पवित्रभावसे पूजन नहीं करते ? । ठीक ही है। गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते । पदं हि सर्वत्र गुणैनिधीयते । जब उनमें ऐसे गुण थे तो उनकी पूजा कौन न करे । बस तो अब आपको ढोलकी पोल अवश्य ज्ञात हुई होगी, मिशनरीलोगोंकी मूर्तिपूजननिन्दा देख करही हमारे ( मजहबी १ मधे ठेकाणे गुणोनी पूजा थाय छे. जेने उंची पदवी मळे छे ते पण तेना गुणोथीज. सं० Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) न सही देशभाई ब्रह्मसमाजी आर्य्यसमाजी) देशवासी मूर्त्तिनिन्दा करने लगे हैं । सज्जनों ! बुद्धिमान् लोग जब गुणकी पूजा करते हैं तब जैसी हमारी पूज्यमूर्तियोंमें पूज्यताबुद्धि है वैसेही जहाँ पूजायोग्य गुण है वहाँ सर्वत्र पूजा करनी चाहिये । सज्जनों ! ज्ञान, वैराग्य, शान्ति, क्षान्ति, अदम्भ, अनीर्ष्या, अक्रोध, अमात्सर्य, अलोलुपता, शम, दम, अहिंसा, समदृष्टिता इत्यादि गुणोंमें एक एक गुण ऐसा है कि जहाँ वह पाया जाय वहाँ पर बुद्धिमान् पूजा करने लगते हैं तब तो जहाँ ये पूर्वोक्त सब गुण निरतिशयसीम होकर बिराजमान हैं उनकी पूजा न करना अथवा गुणपूजकोंकी पूजामें बाधा डालना क्या इनसानियतका कार्य है ? महाशय ! वैदिक जन ! अथवा मूर्तिपूजाविद्वेषि नूतनमजहबी सुजन जन ! जैनोंमें जिनका रथ प्रायः निकलता है वह किनका निकलता है ? आप जातने हैं ? वे महानुभाव हैं पारसनाथ स्वामी, महावीर स्वामी जिनदेव और ऐसेही ऐसे तीर्थकर तब तो उनकी पूजाका विरोध करना अथवा निन्दा करना यह अज्ञका कार्य नहीं है ? सुजनों ! आपने कभी यह श्लोक सुना है जिनमें पार्श्वनाथस्वामीके विषयमें कामदेव और उनकी पत्नीका सम्वाद है । Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८९ ) कोऽयं नाथ ! जिनो भवेत्तव वशी हू हूं प्रतापी प्रिये ! हूँ हूँ तर्हि विमुञ्च कातरमते ! शौर्यावलेपक्रियाम् ॥ मोहोऽनेन विनिर्जितः प्रभुरसौ तत्किङ्कराः के वय - मित्येवं रतिकामजल्पविषयः पार्श्वः प्रमुः पातु नः || सज्जनों ! जिनके ब्रह्मचर्यकी स्तुति काम और रति करते हैं वे कैसे हैं ? जिसकी हुशयारीको चोर सराहै वेही तो हुशयार हैं । पूरा विश्वास है कि अब आप जान गये होंगे कि वैदिक सिद्धान्तियोंके साथ जैनोंके विरोधका मूल केवल अज्ञोकी अज्ञता है और वह ऐसी अज्ञता है कि अनेक बार पूर्वमें उस अज्ञता के कारण अदालत हो चुकी है । सज्जनों ! अज्ञता ऐसी चीज है उसके कारण अनेक बेर अनेक लोग बिना जाने बूझे दूसरेकी निन्दा कर १ ध्यानारूढ भगवान् पार्श्वनाथने देखीने रति पोताना पति कामदेवने पुछे छे हे नाथ ! आ 'कोण छे ? उ० जिनदेव छे । प्र. शुं तमारा वंशमां छे ? । उ ना ना, ए तो घणा प्रतापी छे । अरे कातरमति ! जगतने वश करवा रूप आ तारा शौर्यपणाना गर्वने छोड. हे प्रिये ! एतो मोहने जितवावाला जगतना प्रभु छे. अमे तो एना किंकरो. एमना आगल अमारो शो हिशाब ?, जेमना विषयमां रति अने कामदेव आवा प्रकारनो वार्तालाप करी रह्या छे तेवा पार्श्वनाथ प्रभु अमारुं रक्षण करो ॥ सं० ॥ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९०) बैठते हैं । थोड़े ही दिनकी बात है कि किसीने नये मजहवीं जोशमें आकर जैनमतमें मिथ्या आरोप किये और अन्तमें हानि उठाई । मैं आपको कहाँ तक कहूँ बडे २ नामी आचार्योंने अपने ग्रन्थोमें जो जैनमतखण्डन किया है वह ऐसा किया है कि जिसे सुन देख कर हँसी आती है। मैं आपके संमुख आगे चल कर स्याद्वादका रहस्य कहूंगा, तब आप अवश्य जान जाँयगे कि वह एक अभेद किल्ला है, उसके अंदर मायामय गोले नहीं प्रवेश कर शकते । परंतु साथही खेदके साथ कहा जाता है कि अब जैनमतका बुढ़ापा आगया है, अब इस्मे–इने गिने साधु, गृहस्थ, विद्यावान् रह गये हैं। जैसे कि साधुवर्य परमोदासीनस्वभाव, आत्मविज्ञानपरायण, ज्ञानविज्ञानसंपन्न श्रीधर्मविजयजी साधुसंप्रदायमें हैं, और -गृहस्थोंमें तो विद्वानोंकी संख्या और भी कम है, जहाँ तक मुझे यादगारी और जानकारी है-पण्डितशिरोमणि पन्नालालजी न्यायदिवाकर, इस मतके अच्छे जानकार हैं और उनके कारण जैनसंप्रदायकी बड़ी प्रतिष्ठा है और नाम है । और नवीन गृहस्थमण्डलीमें होनहार और जैनसंप्रदायको लाभ पहुंचाने की योग्यतावाले-खुरजाके सेठ मेवाराम जी हैं, वे शास्त्रानु Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९१) रागी हैं और उन्होंने अपने यहाँ एक स्वरूपानुरूपा संस्कृतपाठशाला स्थापित की है, और उस पाठशालामें विविधविद्याविशारद प्रसिद्धनामा श्रीमान्-पण्डित चण्डीप्रसादजी सुकुल जैसे धुरन्धर अध्यापक हैं । देखा जाता है कि इस पाठशालाका फल उत्तम है। पण्डित श्यामसुन्दर वैश्य इसी पाठशालाके फल स्वरूप हैं जिनका शास्त्रमें अच्छा अभिनिवेश है। आशा है कि यह पाठशाला जैनलोगोंमें विद्याप्रचारकी मूलभूत होगी। सज्जनों ! एक दिन वह था कि जैनसंप्रदायके आचार्योंके हुङ्कारसे दसों दिशाएँ गूंज उठती थी, एक समयकी वार्ता है कि हमारही ( याने वैदिकसंप्रदायी वैष्णवने ) किसी सांप्रदायिकने हेमचन्द्राचार्यजीको देख कर ( जोकि संन्यासवेषके थे ) कहा । आगतो हेमगोपालो दण्डकम्बलमुद्हन् । बस तो फिर क्याथा उन्होनें मन्दमुसुकानके साथ उत्तर दिया कि। १ जुवो भाईओ ! दंड. अने कांबलने धारण करतो पेलो हेम गोवालीओ आवे छे. Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९२) घड्दर्शनपशुप्रायाँश्चारयजैनवाटके ॥ सज्जनों ! इस श्लोकके पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्धको सुन कर आप लोग खूब जॉनगये होंगे कि पूर्वसमय पर आपसमें विद्वानों के इसी ठठोल भी कैसे होते थे। ये महानुभाव हेमचन्द्राचार्य व्याकरणसे लेकर दशनशास्त्रपर्यन्त विषममें अप्रतिम आचार्य थे । सजनों ! जैसे कालचक्रने जैनमतके महत्वको ढांक दिया है वैसेही उसके महत्वको जानने वाले लोग भी अब नहीं रहगये । “ रज्जव साचे सर को वैरी करे बखान" यह किसी भाषाकविने बहुतही ठीक कहा है। सज्जनों ! आप जानते हो मैं-वैष्णवसंप्रदायका आचार्य हूँ यही नहीं है मैं उस संप्रदायका सर्वतोभावसे रक्षक हूँ और साथही उस्की तरफ कड़ी नज़रसे देखने वालेका दीक्षक भी हूँ तो भी भरी मजलिसमें मुझे यह कहना सत्यके कारण आवश्यक हुआ है कि जैनोंका ग्रंथसमुदाय, सारस्वत महासागर है । उस्की ग्रन्थसंख्या इतनी अधिक है कि उन ग्रन्थोंका सूचीपत्र भी एक महानिबंध हो जायगा। जिन्होंने जैनपुस्तकभण्डार देखे हैं उन्हें यह कहना १ हा भाई-आ षदर्शनना पशुजेवा लोकोने जैनवाडामां चरावतो थको आवी रह्यो तो छु. सं० Aims. . -- - Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९३ ) आवश्यक होगा कि जैनोंकी ग्रन्थसंख्या जितनी सुदीर्घ है उतनी (वैदिक संप्रदाय छोड़ कर ) अन्यकी नहीं है । और उस पुस्तकसमुदायका लेख और लेख्य कैसा गम्भीर युक्तिपूर्ण, भावपूरित विशद और अगाध है । इसके विषयमें इतनाही कहदेना उचित है कि जिन्होंने सारस्वतसमुद्र में अपने मतिमन्थानको डाल कर चिरान्दोलन किया है वेही जानते हैं। तरही तो कहागया है कि 'देवीं वाचमुपासते हि बहवः सारं तु सारस्वतम् । जानीते नितरामसौ गुरुकुलक्लिष्टो मुरारिः कविः || अर्लिङ्घित एव वानर भटैः किन्त्वस्य गंभीरता --- मापातालनिमग्नपीवरतनुर्जानाति मन्थाचलः ॥ १ सरस्वती ( अर्थात् विद्या ) नी उपासना तो घणाए लोको करे छे. पण ते बिद्यामां केवा प्रकारनो रहस्य छे तेवो तेनो सार तो निरंतर गुरुकुलना क्लेशोने सहन करवावालो एक मुरारि कविज जाणे छे. तात्पर्यबुद्धिमान् छतां पण- गुरुकुलमा रही अनेक प्रकारना क्लेशोने सहन करी निरंतर ते विद्यानो अभ्यास करतो रहे त्यार पछी ते विद्यानो सार केटलेक अंशे जाणी शके. अन्यथा नहीं । जुवो के वानरभटो बधा समुद्रनुं ओलंघन तो करी गया हता पण तेनी गंभीरतानुं प्रमाण तो पाताल सुधी पोहचीने मंथन करवावालो मेरुपर्वतज जाणी शक्यो हतो. पण केवल समुद्रनुं लंघन करवावाला ते वानरभटो जाणी शक्या न हता. Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९४) सज्जनों ! जैनमतका प्रचार कबसे हुआ इस बारेमें लोगोंने नाना प्रकारकी उछल कूद किई है और अपने मनोनीत कल्पना किई है। और यह बात ठीक भी है जिस्का जितना ज्ञान होगा वह उस वस्तुको उतनाही और वैसाही समुझेगा । किसी अन्धेने हाथीके पूंछको धरा और कहने लगा कि हाथी लाठी जैसा लंबा होता है । परंतु दूसरे अन्धेने जब उस्की पीठ छुई तो कहने लगा कि वह छात जैसा होता है। परंतु हाथीके कानस्पर्श करने वालेने तो कहा कि वह सूप जैसा होता है। ____ तो बस यही हाल संसार का है, जिस्के यहाँ जब सभ्यता का प्रचार हुआ तो उसने उसी तारीखसे दुनियाकी सब बात मान ली । जो छः हजार वर्षसे सृष्टिको मान बैठे हैं उन्हें हम यदि अपना नित्यस्नानका संकल्प सुनावे तो वे हँस देगें, और कहेंगे कि कृष्ण बारह कल्प, श्वेत बारह कल्प, ब्रह्माका द्वितीय परार्द्ध, और मनु, मन्वन्तर, चतुर्युग व्यवस्था सब कल्पित है । तब उन्हें जैनमतप्रचारकी तारीख भी अवश्य ईस्वी समयके अनुसार ही कहनी होगी। और कह देंगे कि अधिक भी यदि जैनमतके प्रचारका काल कहा जाय तो छठीं सदी होगी । परंतु सज्जनों ! हम आपको ऐसी कच्ची मनमानी बात न Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९५) कहनी चाहिये । ईश्वरकी सृष्टि अनाद्यनन्त है, और कल्पके भी पूर्वमें कल्प है, जब ऐसी स्थिति है तब तो इस कल्पकी इस सृष्टिको भी इतना समय बीत चुका है कि जिस्के अङ्कोकी शून्यसूचक बिन्दुमाला देख कर बुद्धिमान् गणककी बुद्धिमें भी चक्कर आ जायगा। सज्जनों ! यह सृष्टि बहुतही प्राचीनकालसे चली आती है, और आप यह भी जानते हैं कि सृष्टिकी आदिहीमें सर्जन करने वालेने आवश्यक वस्तुओंका ज्ञान दे दिया था, उस्का निरूपण मेरे जैसा अज्ञ कहाँ तक कर सकता है परंतु यह अवश्य कहा जा सकता है कि-परमेश्वरने अपनी सृष्टिमें लौकिक उन्नतिकी सीढ़ीपर्यन्त सबही विषय सृष्टिके आदि में जीबोंको दिखा दिया था, तो अब आप ऐसा जानिये कि जैसे उन्हें आदिकालमें-खाने, पीने, न्याय, नीति और कानून का ज्ञान मिला, वैसेही अध्यात्मशास्त्रका ज्ञान भी जीवोंने पाया। और वे अध्यात्मशास्त्रमें सब हैं जैसे सांख्ययोगादिदर्शन और जैनादिदर्शन । तब तो सज्जनों ! आप अवश्य जान गये होंगे कि जैन Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९६) मत जबसे प्रचलित हुआ है । जबसे संसारमें सृष्टिका आरम्भ हुआ तबसे यही इस्का सत्य उत्तर है । जिनकी सभ्यता आधुनिक है वे जो चाहें सो कहें परंतु मुझे तो ( जिसे अपौरुषेय वेद माननेमें किसी प्रकारका असंतोष और अनङ्गीकार नहीं है यही नहीं, परंतु सर्वथा तृप्ति, विश्वास, और चेतःप्रसत्ति है ) इस्में किसी प्रकारका उन नहीं है कि जैनदर्शन वेदान्तादिदर्शनोंसे भी पूर्वका है। तबही तो भगवान् वेदव्यासमहर्षि ब्रह्मसूत्रोंमें कहते हैं:नैकस्मिन्न संभवात् । सज्जनों ! जब वेदव्यासके ब्रह्मसूत्रप्रणयनके समय पर जैनमत था तब तो उसके खण्डनार्थ उद्योग किया गया । यदि वह पूर्वमें नहीं था तो वह खण्डन कैसा और किस्का ? सज्जनों ! समय अल्प है और कहना बहुत है इससे छोड़ दिया जाता है, नहीं तो बात यह है कि-वेदोंमें अनेकान्त वादका मूल मिलता है। सज्जनों ! मैं आपको वेदान्तादि दर्शनशास्त्रोंका और जैनादिदर्शनोंका कौन मूल है यह कह कर सुनाताहूँ। उच्चश्रेणीके बुद्धिमान् लोगोंके मानसनिगूढ विचारही दर्शन हैं । जैसे-अजातवाद, विवर्तवाद, दृष्टिसृष्टिवाद, परिणामवाद, आरम्भवाद, शून्यवाद, इत्यादि दार्श Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निकोंके निगूढ़ विचारही दर्शन हैं । बस तब तो कहना होगा कि-सृष्टिकी आदिसे जैनमत प्रचलित है, सज्जनों ! अनेकान्तवाद तो एक ऐसी चीज है कि उसे सबको मानना होगा, और लोगोंने माना भी है। देखिये विष्णुपुराण अध्याय ६ द्वितीयांशमें लिखा है नरकस्वर्गसंज्ञे वै पापपुण्ये द्विजोत्तम ! वस्त्वेकमेव दुःखाय सुखायेोद्भवाय च । कोपाय च यतस्तस्माद्वस्तु वस्त्वात्मकं कुतः ? ॥ ४२ ॥ यहाँ पर जो पराशर महर्षि कहते हैं कि-वस्तु वस्त्वात्मक नहीं है, इस्का अर्थ यही है कि कोई भी वस्तु एकान्ततः एकरूप नहीं है, जो वस्तु एकसमय सुखहेतु है वह दूसरे क्षणमें दुःख की कारण हो जाती है, और जो वस्तु किसी क्षणमें दुःखकी १ तात्पर्य हे द्विजोत्तम ! नरकसंज्ञा ते पापनी अने स्वर्गसंज्ञा ते पुण्यनी छे. एकज वस्तुथी-एक वखते दुःख थाय छे. तो फरीथी सुख पण थाय छे अने ते ज वस्तुथी ईर्ष्या पण उद्भवे छे. कोई वखते तेनाथी क्रोध पण थाय छे. ज्यारे वस्तुनी आ प्रकारनी स्थिति छे तो पछी सदा एकज स्थितिमां रहे छे एम केवी रीते कही शकाय ? अर्थात् वस्तु सदा एकज स्वरूपमा रही शकती नथी एज सिद्ध थाय छे. ॥ संग्राहक.. Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९८) कारण होती है वह क्षणभरमें सुखकी कारण हो जाती है। सज्जनों ! आपने जाना होगा कि यहाँ पर स्पष्टही अनेकान्तवाद कहा गया है । सज्जनों ! एक बात पर और भी ध्यान देना जो-"सदसद्भ्यामनिर्वचनीयं जगत् " कहते हैं उनको भी विचारदृष्टिसे देखा जाय तो अनेकान्तवाद माननेमें उज्र नहीं है, क्योंकि जब वस्तु सत् भी नहीं कही जाती, और असत् भी नहीं कही जाती, तो कहना होगा कि किसी प्रकारसे सत्-हो कर भी वह किसी प्रकारसे-असत् है, इस हेतु-न वह सत् कही जा सकती है, और न तो असत् कही जा सकती है, तो अब अनेकान्तता मानना सिद्ध होगया। सज्जनों ! नैयायिक-तमःको तेजोऽभावस्वरूप कहते हैं, और मीमांसक और वैदान्तिक बड़ी आरभटीसे उस्को खण्डन करके उसे भावस्वरूप कहते हैं, तो देखनेकी बात है कि आज तक इस्का कोई फैसला नहीं हुआ कि कौन ठीक कहता है, तो अब क्या निर्णय होगा कि कौन बात ठीक है, तब तो दोकी लड़ाई तीसरेकी पौवारा है याने जैनसिद्धान्त सिद्ध हो गया, क्योंकि वे कहते हैं कि वस्तु अनेकान्त है उसे किसी प्रकारसे भावरूप कहते हैं, और किसी रीति पर अमावस्वरूप भी कह Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९९) सकते हैं । इसी रीति पर कोई आत्माको ज्ञानस्वरूप कहते हैं, और कोई ज्ञानाधारस्वरूप बोलते हैं, तो बस अब कहनाही क्या अनेकान्तवादने पद पाया। इसी रीति पर कोई ज्ञानको द्रव्यस्वरूप मानते हैं, और कोई वादी गुणस्वरूप । इसी रीति पर कोई जगतको भावस्वरूप कहते हैं और कोई शून्यस्वरूप. तब तो अनेकान्तवाद अनायास सिद्ध हो गया । ___कोई कहते हैं कि घटादि द्रव्य हैं, और उनमें रूपस्पधादि-गुण हैं । परंतु दूसरी तरफ के वादी कहते हैं कि द्रव्य कोई चीज नहीं है, वह तो गुणसमुदायस्वरूप है । रूप, स्पर्श, संख्या, परिमाण इत्यादिका समुदाय ही तो घट है, इसे छोड़ कर घट कौन वस्तु है । कोई कहते हैं आकाशनामक शब्दजनक एक निरवयव द्रव्य है। परंतु अन्य वादी कहते हैं कि वह तो शून्य है। सजनों ! कहाँ तक कहा जाय कुछ वादियोंका कहना है कि गुरुत्व गुण है । परंतु दूसरी तरफ वादी लोगोंका कहना है कि गुरुत्व कोई चीज नहीं है, पृथ्वीमें जो आकर्षण शक्ति है उसे न जान कर लोगोंने गुरुत्व नामक गुण मान लिया है। मित हित वाक्य पथ्य है, उसीसे ज्ञान होता है वाग्जाल- - Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) का कोई प्रयोजन नहीं है, इस हेतु यह विषय यहाँही छोड़ दिया जाता है और आशा की जाती है कि जैनमतके क्रमिक व्याख्यान दिये जायेंगे। __ शुभानि भूयासुवर्द्धमानानि । शम् पक्षपातो न मे वीरे न द्वेषः कपिलादिषु । युक्तिमद्वचनं यस्य । तस्य कार्यः परिग्रहः ॥ श्रीहरिभद्रसूरिः स्वामी राममिश्र शास्त्री अगस्त्याश्रमाश्रम काशी. मि० पौषशुक्ल प्रतिपत् बुधवार सं० १९६२ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०१ ) लोकमान्य पण्डित बालगङ्गाधर तिलकना उद्गारो, " जैनधर्म अनादि है × × × ब्राह्मणधर्म पर जैनधर्मकी छाप. " श्रीमान् महाराज गायकवाडने पहले दिन कोन्फरन्समें जिस प्रकार कहा था उसी प्रकार ' अहिंसा परमो धर्मः ' इस उदार सिद्धान्त ब्राह्मणधर्म पर चिरस्मरणीय छाप (महोर) मारी है "7 यज्ञयागादिको में पशुओंका वध होकर जो 'यज्ञार्थ पशुहिंसा' आजकल नहीं होती है जैनधर्मने यही एक बडी भारी छाप ब्राह्मणधर्मपर मारी है. पूर्वकालमें यज्ञके लिए असंख्य पशुहिंसा होती थी इसके प्रमाण मेघदूतकाव्य तथा और भी अनेक ग्रन्थोसे मिलते है. रतिवेद ( रंतिदेव ) नामक राजाने यज्ञ किया था उसमें इतना प्रचुर पशुवध हुआ था कि, नदीका जल खूनसे रक्तवर्ण हो गया था. उसी समयसे उस नदीका नाम ' चर्मवती' प्रसिद्ध है. पशुवध से स्वर्ग मिलता है इस विषय में उक्त कथा साक्षी है परन्तु इस घोर हिंसाका ब्राह्मणधर्म से बिदाई ले जानेका Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२) श्रेयः ( पुण्य ) जैनके हिस्सेमें है “ परन्तु ब्राह्मणधर्म पर जो जैनधर्मने अक्षुण्ण छाप मारी है उसका यशः जैनधर्मके ही योग्य है. अहिंसाका सिद्धान्त जैनधर्ममें प्रारम्भसे है और इस तत्त्वको समजनेकी त्रुटिके कारण बौद्धधर्म अपने अनुयायी चिनीयोके रूपमें सर्वभक्षी हो गया है. ब्राह्मण और हिन्दुधर्ममें मांसभक्षण और मदिरापान बन्द हो गया यह भी जैनधर्मका प्रताप है." ___“ दया और अहिंसाकी ऐसी ही स्तुत्य प्रीतिने जैनधर्मको उत्पन्न किया है. स्थिर रक्खा है और इसीसे चिरकाल स्थिर रहेगा. इस अहिंसाधर्मकी छाप जब ब्राह्मणधर्म पर पड़ी और हिंदुओको अहिंसा पालन करनेकी आवश्यकता हुई तब यज्ञमें पिष्टपशुका विधान किया गया. सो महावीरस्वामीका उपदेश किया हुआ धर्मतत्त्व सर्वमान्य होगया और अहिंसा * जैनधर्ममें तथा ब्राह्मणधर्ममें मान्य होगई " इत्यादि. ता. ३०-९-१९०४ श्री जैनश्वेताम्बर कोन्फरन्सना त्रीजा अधिवेभान-वडोदरामां आपेला भाषण उपरथी. Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (भगवान् ) महावीरनी कैवल्य भूमि. - ले. अध्यापक कालेलकर. नलंदा अने राजगृही जतां पावापुरीना दर्शननो लाभ अमने अणधार्यो ज थयो. अरुन्धतिदर्शन न्यायथी कहे, होय तो पावापुरी बिहार शरीफ पासे छे. बिहार शरीफ बखत्यारपुरथी वीस पचीस माइल दूर छे, अने बखत्यारपुर बिहारनी राजधानी बांकीपुर पटनाथी पूर्व तरफ मेईन लाईन उपर आवेलुं छे. ___ बखत्यारपुरथी रानगृहीना कुंड सुधी जे रेलवे जाय छे ते नानी छे अने ट्रामनी माफक गाडीओने रस्ते गामडानां घरोनी बे हारोनी वच्चे थईने जाय छे. देशदेशान्तरना जिज्ञासु यात्रालुओ माटेज आ रेलव निर्धार करेली होय एम लागे छे. मुमुक्षु यात्रालुओ पण तेनो लाभ लई शके छे. x x x x बार वागे नीकळेला अमे लगभग बे वागे पावापुरी पासे आवी पहोंच्या. पावापुरीनां पांच सुधाधवल मन्दिरो दूरथीज एकाद सुन्दर बेट जेवां लागे छे. आसपास बधे डांगरनां सपाट Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०४ ) खेतरो, अने वच्चेज मंदिरोनुं सफेद जूथ. रस्तो जरा गोळ फरीने आपण मन्दिर तरफ लई जाय छे. पांच मन्दिरोमां एकज मन्दिर विशेष प्राचीन जणाय छे. मन्दिरो जैनोनां छे, एटले तेनी प्राचीनता क्यांये टकवा तो दीधीज नथी. खुब पैसा खरची खरचीने प्राचीनतानो नाश करवो एजाणे तेमनो खास शोख होय एमज लागे छे. पालीताणे पण एज दशा थई गई छे. फक्त देलवाडामांज जूनी कारीगरीने छाजे एवी मरामत थाय छे... मुख्य मन्दिर एक सुंदर तळावनी अंदर आवेलुं छे. x x अमृतसरना सुवर्णमन्दिरनी पेठे आ मन्दिरमां जवाने पण एक पुल बांधे छे. मन्दिरो बेठा घाटनां अने प्रमाणशुद्ध छे. गर्भगृहनी आसपास चारे बाजुपर लंबचोरस गुंबज छे ए आ मन्दिरनी विशेषता छे. कलाकोविद लोको आवा गुंबजनो आकार बहुज वखाणे छे. बाकीनां आसपासनां मन्दिरो उंचां शिखरोवाळां छे. शिखरोमां कई खास कळा जणाती नथी, छतां दृष्टि पर तेनी छाप सारी पडे छे. आ मन्दिरोनी केटलीक मूर्तिओ असाधारण सुंदर छे. सुंदर ध्यानने माटे आवीज मूर्तिओ होवी जोईए. मूर्तिनी सुंदरता Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०५) जोई तेमने हुं मोहक कहेवा जतो हतो, पण तरतज याद आव्यु के आ मूर्तिनुं ध्यान तो मोहने दूर करवा माटे होय छे. चित्तने एकाग्र करवानी शक्ति आ मूर्तिओमां जरुर छे. आ मन्दिरोनी पूजा त्यांना ब्राह्मणोज करे छे. जैनमन्दिरोमां ब्राह्मणोने हाथे पूजा ए एक रीते अजुगतुं लाग्यु. छतां " हस्तिना ताडयमानोऽपि न गच्छेजिनमंदिरम्" कहेनारा ब्राह्मणो भले लोभथी-पण आटला उदार थया एथी मनमा समाधान थयु. आजे पावापुरी एक नानकडं गामडु छे. अहिंसा धर्मनो प्रचार करनार महावीर ज्यारे अहीं वसता हता त्यारे तेनुं स्वरूप केवु हशे? हिंदुस्तानमां केटलीए महान् महान् नगरीओनां गामडां थई गयां छे, अने केटलीक नगरीओनां तो नामनिशान पण रह्यां नथी; एटले आजनां गामडां उपरथी प्राचीन पावापुरीनी कल्पना थईज न शके. प्राचीन काळनो अहीं कशो अवशेष देखातो नथी. फक्त ते महावीरना महानिर्वाणर्नु स्मरण आ स्थानने वळगेलुं छे, अने तेथीन श्रद्धानी दृष्टि बे अढी हजार वर्ष जेटली पाछळ जई शके छे, अने महावीरनी क्षीण पण तेजस्वी काया शान्तचित्ते शिष्योने उपदेश करती होय एवी दृष्टि आगळ उभी रहे छे. Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) आ संसार- परम रहस्य, जीवननो सार, मोक्षनु पाथेय तेमना मुखारविंदमांथी ज्यारे झरतुं हशे त्यारे ते सांभळवा कोण कोण बेठा हशे ? पोतानो देह हवे पडनार छ एम जाणी ते देहतुं छेल्लं कार्य-प्रसन्न गंभीर उपदेश अत्यन्त उत्कटताथी करी लेवामां छेलवेल्ली बधी घडीओ काममां लई लेनार ते परम तपस्वीनुं छेल्लु दर्शन कोणे कोणे कर्यु हशे ? अने तेमना उपदेशनो आशय केटला जण बरोबर समन्या हशे ? दृष्टिने पण अगोचर एवा सुक्ष्मजन्तुथी मांडीने अनन्तकोटि ब्रह्मांड सुधी सर्व वस्तुजातनुं कल्याण चाहनार ते अहिंसामूर्ति हार्द कोणे संघर्यु हशे ? 'माणस अल्पज्ञ छे, तेनी दृष्टि एक देशी होय छे, संकुचित होय छे, माटे तेने संपूर्ण ज्ञान नथी थ]; दरेक माणसवें सत्य एकांगी सत्य होय छे, तेथी बीजाना अनुभवने वखोडवानो तेने हक नथी. तेम करतां तेने अधर्म थाय छे,' एम कही स्वभा. बथी उन्मत्त एवी मानवीबुद्धिने नम्रता शीखवनार ते परमगुरुने ते दिवसे कोणे कोणे वन्दन कयु हशे ? आ शिष्यो पोतानो उपदेश आखी दुनीआने पहोंचाडशे अने अढी हजार वर्ष पछी पण मानवजातिने-हा, समस्त मानवजातिने ते खपमां आवशे एवो ख्याल ते पुण्यपुरुषना मनमां आव्यो हशे खरो ? Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०७ ) जैनतत्वज्ञानमां स्याद्वादनो बराबर शो अर्थ छे ते जाणवानो दावो हुं करी शकतो नयी. पण हुं मानुं हुं के स्याद्वाद मानवबुद्धिनं एकांगीपणुंज सूचित करे छे. अमुकदृष्टिए जोतां एक वस्तु एक रीते दीसे छे, बीजी दृष्टिए ते बीजी रीते देखाय छे, जन्मान्धो जेम हाथीने तपासे तेवी आपणी आ दुनियामां स्थिति छे. आ वर्णन यथार्थ नथी एम कोण कही शके ? आपणी आवी स्थिति छे एटलं जेने गळे उतर्यु तेज आ जगतमां यथाथ: ज्ञानी माणसनुं ज्ञान एक पक्षी छे एटलं जे समज्यो तेज माणसोमां सर्वज्ञ. वास्तविक संपूर्ण सत्य जे कोई जाणतो हशे ते परमात्माने आपणे हजु ओळखी शक्या नथी. आ ज्ञानमांथीज अहिंसा उद्भवेली छे, ज्यां सुधी हुं सर्वज्ञ न होउं त्यां सुधी बीजा उपर अधिकार चलाववानो मने शो अधिकार ? मारुं सत्य मारा पूरतुंज छे. बीजाने तेनो साक्षात्कार न थाय त्यां सुधी म्हारे धीरज ज राखवी जोईए. आवी वृत्ति: तेज अहिंसावृत्ति. कुदरती रीते ज माणसनुं जीवन दुःखमय छे. जन्म-मराव्याधिथी माणस हेरान थाय ज छे. पण माणसे पोतानी मेळे Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०८) कई दुःखो ओछां उभा कों नथी. माणस जो सन्तोष अने नम्रता मेळवे तो मनुष्यजातिनुं ९० टका दुःख ओछु थई जाय. आजे जे देश देश बच्चे अने कोम कोम बच्चे कलह चाली रह्यो छे अने मृत्यु पहेलांज आपणे आ सृष्टि पर जे नरक उपजावीए छीए ते एकली अहिंसावृत्तिथी ज आपणे अटकावी शकीए. हिन्दुस्तानना इतिहासनो जो कई विशेष सार होय तो ते एज छे के:-- ....... सर्वेऽत्र सुखिनः सन्तु सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ॥ ... हिंदुस्तानमा जेटला आव्या तेटला बधा अहीं ज रह्या छे. कोई गया नथी. आश्रित तरीके आव्या तेओ पण रह्या छे. अने विजेताना उन्मादथी आव्या तेओ पण रह्या छे. बधा ज माई भाई थईने रह्या छे अने रहे. विशाळ हिन्दु धर्मनी, जनकना हिन्दुधर्मनी, गौतमबुद्धना हिन्दुधर्मनी, महावीरना हिन्दुधर्मनी आ पुण्यभूमिमां सौने स्थान छे, केमके आज भूमिमां अहिंसानो उदय थयो छे. आखी दुनिया शान्तिने खोळे छे. त्रस्त दुनिया त्राहि Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०९) . त्राहि करीने पोकारे छे, छतां तेने शान्तिनो रस्तो जडतो नथी. जेओ दुनियाने लूटे छे, महायुद्धोने सळगावे छे, तेमने पण आखरे तो शान्तिज जोईए छे. पण शान्ति ते केम प्राप्त थाय? बिहारनी आ पवित्र भूमिमां शान्तिनो मार्ग क्यारनो नकी थई चूक्यो छे. पण दुनियाने ते स्वीकारतां हजु वार छे. पावापुरीना आ पवित्र स्थळे ते महान् मानवे पोतानुं आत्मसर्वस्व रेडी: दुनियाने ते मार्ग संभळाव्यो हतो, अने पछी शान्तिमा प्रवेश को हतो. दुनियाना शान्तितरस्या लोको नम्र थई, निर्लोभ थई, निरहंकार थई, न्यारे फरी ते दिव्यवाणी सांभळशे त्यारे ज दुनियामा शान्ति स्थपाशे. अशान्ति, कलह, विद्रोह ए दुनियानो कानून नथी, नियम नयी, स्वभाव नथी, पण ते विकार छे. दुनिया ज्यारे निर्विकार थशे त्यारेज महावीरनु अवतारकृत्य पूर्णताने पामशे. "नवजीवन" । } दत्तात्रेय बाळकृष्ण कालेलकर काकाता. ४-२-२३ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११०) प्रो. आनंदशंकर बापुभाई ध्रुवना उद्गारो. = *E गूजरातना प्रसिद्ध विद्वान् प्रो० आनंदशंकर बापुभाई ध्रुवे पोताना एक वखतना व्याख्यानमां " स्याद्वादसिद्धांत " विषे पोतानो अभिप्राय दर्शावतां जणाव्युं हतुं के " स्याद्वादनो सिद्धांत ” अनेकसिद्धांतो अवलोकीने तेनो समन्वय ( अर्थात् मेलाप ) करवा खातर प्रगट करवामां आव्यो छे. स्याद्वाद एकीकरणतुं दृष्टिबिंदु अमारी सामे उपस्थित करे छे. शंकराचार्ये स्याद्वाद उपर जे आक्षेप को छे ते मूल रहस्यनी साथे संबंध राखतो नथी. ए निश्चय छे के विविध दृष्टिबिंदुओद्वारा निरीक्षण कर्या वगर कोई वस्तु संपूर्ण स्वरूपे समजवामां आवी शके नहीं. आ माटे स्याद्वाद उपयोगी तथा सार्थक छे. महावीरना सिद्धांतमां बतावेल स्याद्वादने केटलाको संशयवाद कहे छे, ए हुं नथी मानतो. स्याद्वाद संशयवाद नथी किंतु ते एक दृष्टिबिंदु अमने मेळवी आपे छे. विश्वनुं केवी रीते अवलोकन करवू जोईए ए अमने शिखवे छे." Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११३) बतावनार एवा अनेकान्तवादनुं स्वरूप समजीने जैनी दिक्षा पण ग्रहण करी हती. पछी वीतराग भगवान्ना गुणोनी स्तुतिरूप बत्रीश बत्रीसीओनी रचना करी छे. तेमांथी मात्र आ प्रसङ्गने अनुसरता तेमना वे काव्यो बतावीए छीए. सुनिश्चितं नः परतन्त्रयुक्तिषु स्फुरन्ति याः काश्चन सूक्तसंपदः । तवैव ताः पूर्वमहार्णवोत्थिता जगत्प्रमाणं जिन! वाक्यविप्रुषः ॥१॥ तात्पर्य हे जिनदेव ! अमोने निश्चय थयो छे के जगत्ने प्रमाणभूत जे काई श्रेष्ठ वचनो-परमतना शास्त्रोमां जोवामां आवे छे ते बधां तमारा चौदपूर्वनामना ज्ञानरूपसमुद्रमांथी उडी उडीने बहार पडेला वचनबिंदुओज नजरे पडे छे. ॥१॥ आमां दृष्टान्त आपी दृढ करी बतावे छे. उदधाविव सर्वसिन्धवः समुदीर्णास्त्वयि नाथ ! दृष्टयः । न च तासु भवान् प्रदृश्यते प्रविभक्तासु सरित्स्विवोदधिः ॥ २॥ __तात्पर्यार्थ हे नाथ ! चोफेरथी विचार करी जोईए छे तो सर्व नदिओ जेम समुद्रमा प्रवेश करी जाय छे तेम तमारा ज्ञानरूपसमुद्रमां बधाए दृष्टिवाळाओनो प्रवेश थई जाय छे. पण: Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भिन्न भिन्न नदीओमा जेम समुद्र नोवामां आवतो नथी तेवी रीते तमारुं ज्ञान ते मतवादीओना ग्रंथोमां अमो देखता नथी. स्थाद्वादना स्वरूपवाळू तमारुं ज्ञान ते समुद्रनी ओपमाने धारण करे छे अने एकान्तदृष्टिवाळानुं ज्ञान ते नदीओनी ओपमावाळू छे. (२) धनपालपण्डित. महान् पण्डित धनपाल प्रथम भोज राजानी सभाना अग्रेसर ब्राह्मणज हता. अने जैन धर्मवाळाओनी साथे तद्दन विरुद्ध वर्त्तनन करता हता. पण पोताना भाई जैनसाधु शोभनमुनि पासेथी जैनमतना तत्त्वो समज्या पछी पोतानो वैदिक मत छोडी दईने जैन मन्तव्यानुसार तिलकमञ्जरी विगैरे अनेक ग्रन्थोनी रचना करेली छे. तेमां एक ऋषभपञ्चाशिका नामनो पण ग्रंथ छे. तेमा प्रमुनी स्तुति करतां लखे छे के- पावंति जसं असमंजसावि वयणेहिं जेहिं परसमया । तुह समयमहोअहिणो ते मंदा बिंदुनिस्संदा ॥ ४१ ॥ तात्पर्यार्थ हे नाथ ! परमतवाळा यद्यपि परस्परविरुद्ध क्चनादिकथी असमंजसस्वरूपवाळा छे छतां पण जे जे वचनोथी Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पश मेळवी रह्या छे ते बधाए वचनो तमारा सिद्धान्तरूपमहासमुद्रयी उडी रहेलां बिन्दुओज छे. ॥ ४१ ।। (३) श्रीहरिभद्रसरिः। ए हरिभद्रसूरिजी पण प्रथम वेदवेदान्तादिक सर्वविद्यामां महानिपुण प्रसिद्ध ब्राह्मणज हता. “ मने जे वाक्यनो अर्थ बेसे नहीं अने ते बीजो बतावे तो हुँ तेनो शिष्य थईने रहुं" एवी प्रतिज्ञा करीने वादिओने ढूंढता फरता हता. एक दिवसे जैनउपाश्रयनी ननीकमांथी नीकळतां 'चकिदुग्ग हरिपणगं' नामर्नु वाक्य गोखी रहेली वृद्धसाध्वीना मुखथी सांभळ्यु. अर्थ न बेसतां अन्दर जई साध्वीने अर्थ पूज्यो. तेणीए पोतानो अधिकार न होवाथी गुरुनो उपाश्रय बतान्यो. तेमनी पासे जैनतत्त्वनो रहस्य समजी जैनाचार्य बनी चौदसोने चुमालीश नवीन ग्रन्थोनी रचना करी छे. तेमांना एक लोकतत्त्वनिर्णय नामना अन्यमा पोते कहे छे के नेनिरीक्ष्य विषकण्टकसर्पकीटान् सम्यक् पथा जति तान् परिहृत्य सर्वान् । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६ ) कुज्ञानकुश्रुतिकुदृष्टिकुमार्गदोषान् सम्यग् विचारयथ कोत्र परापवादः ॥ २१ ॥ भावार्थ---जूओ के जेर, कांटा, सर्पो अने कीडाओनो नेत्रथी के विचारथी पोतानो बचाव करीनेज आपणे आपणी प्रवृत्तिओ करीए छीए तो तेज प्रमाणे अनेकप्रकारथी सृष्टि उत्पत्तिनी कल्पनारूप कुज्ञानना, जीवोनी हिंसा करवाथी पण धर्म जणावनार कुश्रुतिओना, रागद्वेष मोह अज्ञानादिथी दूषितने पण देव तरीके मानवारूप कुदृष्टिना, अने एकान्तनित्यादिक पक्षना कदाग्रहरूप कुमार्गना दोषोने वर्जिने पूर्वाऽपरविरोधरहित सत्यधर्मना मार्गने शोधिए तो तेमां कया प्रकारनी निन्दा गाणाय ? तेनो जरा विचार करीने जुओ. ॥ २१ ॥ प्रत्यक्षतो न भगवानृषभो न विष्णुरालोक्यते न च हरो न हिरण्यगर्भः । तेषां स्वरूपगुणमागमसंप्रभावा ज्ज्ञात्वा विचारयथ कोत्र परापवादः ॥ २२ ॥ भावार्थ-हे सज्जनो ! जैनधर्मना प्रवर्तक ऋषभदेवने, तेमन विष्णु, महादेव अने ब्रह्माजीने पण आपणामांथी कोईए प्रत्यक्ष ननरे जोया नथी. मात्र तेओनुं स्वरूप अने तेमना Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११७ ) गुणो - जैन सिद्धांतथी के वेदस्मृतिपुराणादिकथी जाणीने तेमनी योग्यता के अयोग्यतानो विचार करीए, तेथी शुं निन्दा करी गणाय ? नज गणाय. ॥ २२ ॥ हवे ते देवोनुं स्वरूप केवा प्रकारनुं छे ते बतावे छे विष्णुः समुद्धतगदायुधरौद्रपाणिः शम्मुर्ललन्नरशिरोऽस्थिकपालपाली । अत्यन्तशान्तचरितातिशयस्तु वीरः 1 कं पूजयाम उपशान्तमशान्तरूपम् ॥ २३ ॥ भावार्थ - जुओ के विष्णु भगवान् गदानुं शस्त्र हाथमां लई जाणे कोईने मारवाने तत्पर थया होय तेवा भयानकस्वरूपवाळा देखाय छे. तेमज महादेवजी पण मनुष्योना माथानी निन्द्य खोपरीओनी माला गळामां धारण करवाथी भयानकस्वरूपवाळा जोवामां आवे छे. अने जिनेश्वर वीर भगवान् तो अत्यन्तशान्ताकृति परमयोगीना स्वरूपने धारण करी बेठेला जणाय छे माटे हे सज्जनो ! एक तो विकरालस्वरूपनी मूर्ति अने एक परमशान्त मूर्ति आ बेमांथी आपणे कोनी सेवा करवी ? तेनो विचार करीने तमोज अमने कहो एटले बस छे. ॥ २३ ॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रागादिदोषजनकानि वचांसि विष्णोरुन्मत्तचेष्टितकराणि च यानि शम्भोः । निःशेषरोषशमनानि मुनेस्तु सम्यग वन्द्यत्वमर्हति तु को नु विचारयध्वम् ॥ २६ ॥ भावार्थ-कामी पुरुषोना जेवां राग उत्पन्न करवावाळां विष्णु भगवान्नां वचनो छे अने उन्मत्त पुरुषना जेवां महादेवनां वचनो छे अने सर्वप्रकारना रोपनी शान्ति करवावाळां जिनदेवना वचनो छे, तो आ त्रणेमां कयो देव वन्दन करवाने योग्य मानवो? तेनो विचार करीने जूओ ॥ २६ ॥ यश्वोद्यतः परवधाय घृणां विहाय त्राणाय यश्च जगतः शरणं प्रवृत्तः । रागी च यो भवति यश्च विमुक्तरागः पूज्यस्तयोः क इह ब्रूत चिरं विचिन्त्य ॥ २७ ॥ भावार्थ-एक देव भक्तोनो रागी बनी हृदयमा दयाहीन थई शस्त्रो धारण करी जीवोनो नाश वरवाने तैयार थाय छे अने एक देव रागद्वेषयी सर्वथा रहित आलोक अने परलोकना दुःखोयी बचाव करी प्राणिओने शरणरूपे थाय छे. हे सज्जनो ! एक तो Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११९) छे रागी अने बीजो छे वीतरागी. आ बेमांयी आपणे कया देवने पूज्य तरीके मानवो तेनो लांबो विचार करीने कहो ? ॥२७॥ पक्षपातो न मे वीरे न द्वेषः कपिलादिषु । युक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः ॥ ३८ ॥ भावार्थ-प्रथम ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वरादिक देवोनु स्वरूप यत्किञ्चित् जुदु जुएं कथन करीने हवे ग्रन्थकार पोतानी मध्यस्थता प्रगट करीने कहे छे के- मने वीरप्रमुमा पक्षपात नथी, के ते जे कहे ते युक्तिशून्य होय तोपण मानी लटं. तेम कपिलादिक देवोमा द्वेष पण नथी, के ते जे काई कहे ते मारे मानकुंज नहीं. तेवं कई छेज नहीं. मात्र जेनु वचन मने युक्तिवाडं लागे ते ग्रहण करवं ए हुं मारी फरज समजु छु ॥ ३८ ॥ अवश्यमेषां कतमोऽपि सर्वविज्जगद्धितैकान्तविशालशासनः । स एव मृग्यो मतिसूक्ष्मचक्षुषा विशेषमुक्तैः किमनर्थपण्डितैः ॥३९॥ भावार्थ-आ बधाएर मतवादिओना देवोमां कोईने कोई तो जरूर सर्वज्ञ होवोज जोईए अने एकान्तपणे जगतने हितकारी अने विस्तारवार्छ जेनु शासन ( सिद्धान्त ) होय तेवा महापुरुषने आपणे मतिरूपसूक्ष्मचक्षुःथी शोधीने मेळवी लेवो जोईए. बाकी Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२०) अर्थ विनानुं घणुं कहीने केवळ अनर्थनेज करवावाळा पण्डितोथी आपणा आत्मानु शुं हित थवानुं छे ? अर्थात् काईन नहीं ॥ ३९ ॥ हवे नीचेना श्लोकथी शोधवानो उपाय पण बतावे छेयस्य निखिलाश्च दोषा न सन्ति सर्वे गुणाश्च विद्यन्ते । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥ ४० ॥ भावार्थ-हवे आपणने जोवान ए छे के जे देवोमां रागद्वेष मोहादि कोई पण प्रकारना दोषो जोवामां आवता न होय अने जेना चरित्रमा, जेना वचनमां, जेना शास्त्रोमां जे तरफ जोईए ते तरफ तेनामां ज्ञानादिक निर्मल गुणोज जोवामां आवता होय, ते चाहे तो नामथी ब्रह्मा होय, चाहे विष्णु होय, चाहे महादेवना नामथी ओळखाता होय के जिनदेवना नामथी प्रसिद्ध होय, तेवा महापुरुषने अमारो सदा नमस्कार छे. अने ते अमारो परम देव पण छे ॥ ४० ॥ हवे बधाए देवोनां चरित्रो जोतां जोतां जे देवतुं चरित्र निर्दोष लागवाथी जेनो आश्रय लीधो छे ते पोताना देवने नामी पण बतावे छे Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२१) बन्धुर्न नः स भगवानरयोऽपि नान्ये साक्षान्न दृष्टतर एकतमोऽपि चैषां। श्रुत्वा वचः सुचरितं च पृथग् विशेषं वीरं गुणातिशयलोलतया श्रिताः स्मः ॥ ३२ ॥ भावार्य-जुओ के वीरप्रमु ते काई अमारो बांधव नयी. तेम ब्रह्मा, विष्णु अने महेश्वरादि देवो ते कांइ अमारा शत्रुओ नथी. तेमज आ बधा देवोमांथी कोई पण देवने प्रत्यक्षपणे अमोए जोयो नथी. मात्र ते बधाए देवोनां जुदा जुदा स्वरूपवाळां तेमवाज ग्रन्थोथी चरित्रो सांभलतां वीरप्रमुनु चरित्र सर्व प्रकारथी शुद्ध लाग्युं माटे तेमना गुणोना लोलुपी थईने अमोए तेमनो आश्रय लीधो छे. ॥ ३२ ॥ नाऽस्माकं सुगतः न पिता न रिपवस्तीर्थ्या धनं नैव तैदत्तं नैव तथा जिनेन न हृतं किञ्चित् कणादादिभिः । किन्त्वेकान्तजगद्धितः स भगवान् वीरो यतश्चामलं वाक्यं सर्वमलापहर्तृ च यतस्तद्भक्तिमन्तो वयम् ॥ ३३ ॥ भावार्थ-सुगत (बुद्ध) अमारो पिता नथी. बीजा (ब्रह्मादि देवो) कांई अमारा शत्रुओ नथी. तथा आ देवोमांथी कोईए ने धन आप्युं नथी. तेम जिनदेवे पण आप्युं नथी, अने Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११२) कणाद गौतमादि ऋषिओए अमारं धन खेंची ली, पण नथी. विशेष-कारण एज छे के-एकांतपणे जगत्तुं हित करनारो तो मावान् महावीरज छे. अने तेनुं निर्मल वचन सर्व पापने हरनालं छे. माटेज अमो वीरप्रमुनी भक्ति करवावाळा थया छे.॥३३॥ (४) श्रीहेमचन्द्रसूरिः। अढारदेशोना राजाधिराज गूजरातपट्टनाधीश श्रीकुमारपाल महाराजाना गुरुवर्य जगत्प्रसिद्ध सर्वज्ञकल्प श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वजी श्रीमहावीरप्रमुना सत्यसिद्धांततत्त्वोना स्वरूपथी आकर्षित यई प्रभुना गुणरूपनी स्तुति करतां-एक अयोगव्यवच्छेदिका अने बीनी अन्ययोगव्यवच्छेदिका नामनी वे बत्रीशिओनी रचना करेली छे. पहेलीमां महावीर प्रभुमां कया कया गुणोनी योग्यता छे तेनो, अने बीनीमां अन्यमतना देवोमां कया कया गुणोनी अयोग्यता छे तेनो, टुंकमां सारांश गुंथन करीने बतावेलो छे. आ बेमांथी बीजी अयोग्यव्यवच्छेदिका बत्रिशीनी-स्याद्वादमञ्जरी नामनी टीका पूर्वाचार्य श्रीमल्लिसेनसूरिमहाराजा करी गएला छे. पण प्रथम बत्रीशीनी टीका नहीं होवाथी तेनो अर्थ भाषामां अमारा गुरु महाराज (श्रीमद्विजयानन्दसूरीश्वरजी-अपरनाम Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२३) श्रीआत्मारामजी महाराजा) पोताना तत्त्वनिर्णयप्रसाद ग्रन्थमा विस्तारथी करीने बतावेलो छे, ते जोवानी भलामण करीने हुँ अहिं आ प्रसङ्गने अनुसरता बे चार श्लोको लखी बतावं ठंप्रादेशिकेभ्यः परशासनेभ्यः पराजयो यत्तव शासनस्य । खद्योतपोतद्युतिडम्बरेभ्यो विडम्बनेयं हरिमण्डलस्य ॥ ८ ॥ भावार्थ-वस्तुने एकान्तपणे नित्यादि अने एकांतपणे अनित्यादिरूप एकप्रदेशने मानीने वाद करनारा परमतना वादीओ छे. तेनाथी हे भगवन् ! अपेक्षाथी नित्यादि अने अनित्यादिरूप तारा स्याद्वादसिद्धान्तनो जे पराजय छे, ते खजुआना बच्चाना तेजयी सूर्यमण्डलना तेजनी विडम्बना करवा जेवो न्याय थाय छे ॥ ८ ॥ शरण्यपुण्ये तव शासनेऽपि सन्देग्धि यो विप्रतिपद्यते वा। स्वादौ स तथ्ये स्वहिते च पथ्ये सन्देग्धि वा विप्रतिपद्यते वा ॥९॥ भावार्थ-हे भगवन् ! शरण करवाने योग्य अने परमपवित्ररूप तारा सिद्धान्तमा जे सन्देह करे छे अने फोगटनो विवाद करवा उमा थाय छे, ते पुरुषो खरेखरा स्वादिष्ट अने तथ्यरूप तथा पोताने हितकारक अने सर्वप्रकारथी पथ्यरूप वस्तुमां सन्देह Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२४) अने तकरार करवा जेवोज धंधो लई बेसे छे पण अधिकपणुं कांई करी शकता नथी. तेवा पण्डितो उपर दया उत्पन्न थवाथी ग्रन्थकारे आ काव्यमा पोतानी दिलगीरीज प्रगटपणे करी बतावी छे ॥९॥ हिंसाद्यसत्कर्मपथोपदेशादसर्वविन्मूलतया प्रवृत्तेः । नृशंसदुर्बुद्धिपरिग्रहाच्च ब्रूमस्त्वदन्यागममप्रमाणम् ॥ १० ॥ - भावार्थ हे भगवन् ! हे जिनेन्द्र ! तारा कथन करेला आगम बिना बीजा वेदादि आगमो सत्पुरुषोने सर्वप्रकारथी मान्य थई शके तेम नथी. कारण के ते वेदादिआगमोमां हिंसादि असत्कर्मोना मार्गनो उपदेश होवाथी अने धरमूलथी असर्वज्ञपुरुषोथी प्रवृत्त थएला होवाथी अने निर्दय तथा स्वार्थसाधक दुष्टबुद्धिवाळा पुरुषोथी ग्रहण थएलां होवाथी अमो तेने अप्रमाण कहीए छीए॥ १० ॥ हितोपदेशात् सकलज्ञक्लप्तेर्मुमुक्षुसत्साधुपरिग्रहाच्च । पूर्वाऽपरार्थेऽप्यविरोधसिद्धेस्त्वदागमा एव सतां प्रमाणम् ॥११॥ ... भावार्थ-हे जिनेन्द्र ! तारां कथन करेलां आगमोमां सर्व मीवोना हितनो उपदेश होवाथी, तथा सर्वज्ञपुरुषोथी बंधारण थएला - - Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२५ ) होवाथी, तेमज मोक्षाभिलाषी सत्साधु पुरुषोएं ग्रहण करेला होवाथी अने पूर्वापरनो विचार करतां विरोधरहित होवाथी, सत्पुरुषोने प्रमाणरूपे थएलां छे. पण उपरना १० मा काव्यमां कहेला हेतुवाळां आगमो प्रमाणरूपे थएलां नथी ॥ ११ ॥ क्षिप्येत वाऽन्यैः सदृशीक्रियेत वा, तवांघ्रिपीठे लुठनं सुरेशितुः । इदं यथाऽवस्थितवस्तुदेशनं परैः कथङ्कारमपाकरिष्यते ? ॥ १२ ॥ भावार्थ - हे वीतराग भगवन् ! इन्द्रे तमारा चरणपीठमां कुठन कर्यु एम जे मनाय छे ते वात बीजा अन्यमतवाळा चाहे तो वखोडी काढो के चाहे तो पोतानामां सरखापणुं करीने बतावो पण आ तमारा तरफथी यथार्थ ( पूर्वाऽपरविरोधरहित ) कथन थएलुं वस्तुनुं स्वरूप ( पदार्थोनुं स्वरूप ) छे तेनो इन्कार बीजामतवाळा केवी रीते करी शकवाना छे वारु ? अर्थात् कोई पण प्रकारथी हठावी शकवाने समर्थ थई शके तेम नथी ॥ १२ ॥ यदार्जवादुक्तमयुक्तमन्यैस्तदन्यथाकारमकारि शिष्यैः । न विप्लवोऽयं तव शासनेऽभूदहो अधृष्या तव शासनश्रीः ॥ १६॥ भावार्थ - अन्यमतना सरळपुरुषोथी मूळमां अयुक्तपणे कथन थएकुं. पण ते तेमना शिष्योने गोठतुं न भवतां श्रुतिओने Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२६ ) फेरक्ता गया. स्मृतिओमां ऋषिओ पण भिन्न भिन्न विचारो गोठबता गया, अने पुराणोनी लीलानुं तो कहेतुं ज शुं ? हे जिनेन्द्र ! तमारा शासनमां ए उपद्रव थई शक्यो नथी तेनुं कारण एज छे के तमारा शासननी ठकुराईज अभ्रष्य छे. अर्थात् तमारा शासनमां कोईथी पण उपद्रव थई शके तेम छेज नहीं ॥ १६ ॥ यदीयसम्यक्त्वबलात् प्रतीमो भवादृशानां परमस्वभावम् । वासनापाशविनाशनाय नमोऽस्तु तस्मै तव शासनाय ॥ २१ ॥ भावार्थ - हे वीतराग ! जे यथार्थ सिद्धान्तना बलथी तमारा जेवा परमात्माओना स्वभावने अर्थात् सर्वज्ञपणाना स्वभावने अमो जाणी शक्या छे, अने जे यथाथ ज्ञाने अमारी खोटी वासनाओना पाशनो नाश करी दीधो छे, तेवा तमारा अलौकिक सिद्धान्तने अमारो नमस्कार थाओ ॥ २१ ॥ अपक्षपातेन परीक्षमाणा द्वयं द्वयस्याप्रतिमं प्रतीमः । यथास्थितार्थप्रथनं तवैतदस्थाननिर्बन्धरसं परेषाम् ॥ २२ ॥ भावार्थ हे वीतराग ! पक्षपातरहितपणे परीक्षा करतां पदार्थोना स्वरूपने यथार्थपणे कहेवामां कोई पण प्रकारनी न्यूनता तमारा सिद्धान्तमां थरली अमो जोता नथी. अने बीजा मतना ऋषिओनी जुदी जुदी कल्पनाओ ठेकाणे ठेकाणे विरुद्ध मरबड Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२७ ) गोटालाथी भरपूर तेमना सिद्धान्तोमां विपरीतपणानी खामिओ पण ओछी जोता नथी. एम बन्नेमां ने प्रकारथी असादृश्यपणाना स्वरूपने अमो प्रत्यक्षपणायी जोई रह्या छे. ॥२२॥ सुनिश्चितं मत्सरिणो जिनस्य न नाथ ! मुद्रामतिशेरते ते । माध्यस्थ्यमास्थाय परीक्षका ये मणौ च काचेच समानुबन्धाः ॥२७॥ भावार्थ - हे परमदेव ! जे परीक्षको मध्यस्थपणं धारण करीने राग अने द्वेषथी सदा मुक्त एवी तारी वीतरागी मुद्राने ( मूर्त्तिने ) अतिशयवाळी न मानतां - रागी द्वेषी एवा ब्रह्मा, विष्णु, महादेवादिक देवोनी मूर्त्तिनी साथे एकसरखी गणी ले छे ते जरूर मत्सरवाळा थएला मणि अने काच ए बन्नेनुं सरखापणुंज करी रह्या छे. ॥ २७ ॥ इमां समक्षं प्रतिपक्षसाक्षिणामुदारघोषामवघोषणां ब्रुवे । न वीतरागात् परमस्ति देवतं नचाऽप्यनेकान्तमृते नयस्थितिः॥२८॥ भावार्थ - हवे छेक्टमां हुं ( हेमचंद्राचार्य ) तमारा ( बधाए प्रतिवादिओना ) सन्मुख उभो रहीने खास विचार करवा जेवी मात्र बेज वातोनो विचार करवानुं उच्च स्वरथी पोकारी पोकारीने कहुं हुं के - दुनियामां वीतराग जेवो बीजो कोई पण परमदेव Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२८ ) नथी, अने दुनियाना पदार्थोनुं यथार्थस्वरूप समजवा माटे अनेकान्त विचार विनानो बीजो कोई पण न्यायमार्ग नथी, एम हुं तमोने (सर्व मतवाळाओने) निश्चयपणाथी कही बतावुं हुं के तमो सर्वे मळीने पण आटलो विचार तो जरूर करो. एम आ काव्यथी सूचवी आचार्य महाराज पोतानो करेलो निश्चय कही बतावे छे ॥ २८ ॥ न श्रद्धयैव त्वयि पक्षपातो न द्वेषमात्रादरुचिः परेषु । यथावदाप्तत्वपरीक्षया तु त्वामेव वीर ! प्रभुमाश्रिताः स्मः ||२९|| भावार्थ - हे वीर भगवान् ! अमोने श्रद्धामात्र थवाथीज तमारामां पक्षपात थलो छे एम नथी. तेमज हरिहरादि देवोमां द्वेषमात्र थवायीज अरुचि थएली छे एम पण नथी. मात्र ते देवोमां यथार्थपणे आप्तपणं ( सर्वज्ञपणुं ) न होईने ते यथार्थपणे आप्तत्वपणं ( सर्वज्ञपणुं ) तमारामां छे एम खात्रीपूर्वक परीक्षा करीनेज अमो तमने प्रमुपणे मानीनेज तमारा आश्रित थईने अर्थात् किङ्करो थईने रह्या छे. बीजुं कांई पण कारण नथी ॥ २९ ॥ संग्राहक. Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीः । श्रीहेमचन्द्राचार्यजीना एक बे काव्यनो विशेषार्थ. प्रथम पृ. १२४ मां हेमचंद्राचार्यनी बत्रीशीमांना दशमा काव्यमा एम कयूं हतुं के हिंसाद्यऽसत्कर्मपथोपदेशात्-आ पदनो अर्थ एटलोन के वेदादिक शास्त्रमा हिंसादिकनु कथन होवाथी ते शास्त्रो सत्पुरुषोने सर्वप्रकारयी मान्य थयेलां नथी ते वात-वा० न० उपाध्येना पहलाज लेखथी सिद्ध थएली छे तोपण द्विवेदी मणिलाल नभुभाईना लेखथी स्पष्ट करीने बतावीए छीए. जूवो सिद्धांतसार पृ. ४३ मां लख्यु छे के---- ..." यज्ञो संबंधे एक बात बहु मुख्य रीते विचारवा जेवी छे. घणा खरा मोटा यज्ञोमां एक बेथी सो सो सुधी पशु मारवानो संप्रदाय पडेलो नजरे पडे छे. बकरां, घोडा, इत्यादि पशुमात्रनो बलि अपातो एटलुन नहिं पण आपणने आश्चर्य लागे छे के माणसोनो पण भोग आपवामां आवतो ! पुरुषमेघ ए नामनो Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३० ) यज्ञज वेदमां स्पष्ट कहेलो छे, अने शुनःशेफादि वृत्तांतो पण ए वातनी साक्षी आपे छे. वळी आ रक्तश्रावमां आनंद मानवा उपरांत सोमपानथी अने छेवटना वखतमां तो सुरापानथी पण reat मत्त यता मालम पडे छे. परमभावनाना अग्रणीपदने पामेला ऋषिओमां आवो संप्रदाय जणाय ए अलबत आश्चर्य पेदा करवावाकुं छे. ने यद्यपि थोडाज वखत सुधी ए रिवाज बंध यतां पशुने छोडी मुकवानो के पिष्टपशु करवानो रीवाज आपणी नजरे पडे छे". पुनः सिद्धांतसार पृ. ७३ मां – “ विवाह संबंधे मधुपर्कनी यात जरा कही लेवा जेवी छे. एवो धर्माचार छे के आवेला अतिथिने माटे मधुपर्क करवो जोईए. वर पण अतिथिज छे असल जेम यज्ञने माटे गोवध विहित हतो तेम मधुपर्क माटे पण गाय के बलदनो वध विहित हतो. मांस विना मधुपर्क नहि एम अश्वलायन सूत्र कहे छे, ने नाटकादिकोथी जणाय छे के सारा महर्षिओ माटे पण मधुपर्कमां गोवध करेलो छे. आश्चर्यनी वात छे के जे गाय आजे बहु पवित्र गणाय छे तेने प्राचीन समयमा यज्ञ माटे तथा मधुपर्क माटे मारवानो रीवाज हतो ? हाल तो मधुपर्कमा फक्त दहीं मध अने वीज वपराय छे " · Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३१) मणिलालभाई पोते द्विवेदी छे. तेमने घणा दुःखनी साथै आ बे फकरा लखवा पड्या हशे बाकी चारे वेदोमां डगले डगले हिंसक श्रुतिओ भरेली छे. वधारे जोवानी इच्छा होय तेमणे अमारा गुरुवर्य श्रीमद्विजयानंदसूरीश्वरजी ( प्रसिद्धनाम आत्मारामजी ) महाराजाना रचेला अज्ञानतिमिरभास्कर अने तत्त्वनिर्णयप्रासाद आ वे ग्रंथो जोई लेवा. वेदोमां केटलं गहन ज्ञान ( ? ) छे तेनी खात्री थशे. . । एज दशमा काव्य, बीजु पद-असर्वविन्मूलतया प्रकृतेःआ पदनो अर्थ एटलोज के–वेद, स्मृति, पुराणादिक शास्त्रो सर्वज्ञ पुरुष विनाज प्रवृत्तमान थएलां छे. ते पण तेमनाज सिद्धांतर्थी सिद्ध थाय छे. जुवो-शिवपुराण धर्मसंहिता अध्याय ४७ मां पार्वतीजीने महादेवनी कहे छे के ब्रह्मा विष्णुरहं देवि ! बद्धाः स्मः कर्मणा सदा। कामक्रोधादिभि दो पै-स्तस्मात्सर्वे ह्यऽनीश्वराः ॥७॥ भावार्थ हे देवि ? ( हे पार्वति ? ) ब्रह्मा, विष्णु अने हुँ एम त्रणे देवो कर्मथी अने काम विकारना दोषथी, तेमज-क्रोध, मान, माया, लोभादिक दोषोथी सदा बंधाएलान छीए, तेथी अमो सर्वे ईश्वर स्वरूपे नयी. Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३२ ) पुन द्विवेदी मणिलाल नमुभाई पण पोताना सिद्धांतसारना - पृ. ३१ थी लखे छे के " अत्रे एटलं निश्चयपूर्वक जणाय छे के सर्वोपरि कोई सत्तानी भावनासहित अनेक देवता पूजा, एज मूल धर्म विचारनुं रूप होवु जोईए. आ वात वेदमंत्रोथी पदे पदे स्पष्ट थाय छे. यद्यपि मंत्रोमा अनेक देवतानी स्तुतिओ आवे छे, अने ने चखते जे देवने स्तव्यो होय छे ते वखत ते देवने जेटला अपाय तेलां विशेषणादिक आपी परमेश्वररूपे उराव्यो होय छे. तथापि ऋषिओना मनमांथी ए वात खसती नथी के कोई सर्वनियंता, सर्वोपरि, एक देव होवो जोईए. आवा मुख्य ईश्वरनी शोधमांने शोधमां तेओ घडीमां आ देवने, घडीमां पेला देवने, एम अनेक देव-देवताने ईश्वररूपे भजे छे पण एकथी संतोषपामी विरामता नथी. ईश्वरपदने एक पण अमुक देव, चिरकाल सुवी धारण करी रह्यो होय तेवं वेदमंत्रोमा जणातुं नयी, एम कहीए तोपण भूल भरेलुं नथी. के वेदकालथी मांडीने ते छेक आज पर्यंतमां पण, आर्यधर्ममां सर्वमान्य कोई अमुक तेज ईश्वर, एवो निर्णय थयोज नथी. ने ते नथी थयो एमांज ए धर्मने खीलववानो अवकाश मल्यो छे. जे जे देशमां ए भावना स्थिरताने पामी छे ते ते Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३३) देशमां धर्मवृद्धि अटकी छे. पण आर्यदेशमां ईश्वरत्व भावनानी सादी आकृति मूल्थी छतां, अमुक रंगरूपथी भराई सर्वमान्यरीते ते कदापि स्थिर ठरी नथी, एटलामांन ए धर्मने खूब खिलावानों अवकाश मल्यो छे. वेदमंत्रोमां आ देव पेलो देव, एम घणा देवने ऋषिओ वारा फरती ईश्वररूपे पूजे छे पण अमुक एक ईश्वर नियत ठरावेलो जणातो नथी ". अने ते दशमा काव्यना त्रिनाअने चोथा पदमां कयूं छे केनृशंसदुर्बुद्धिपरिग्रहाच्च ब्रूमस्त्वदऽन्यागममप्रमाणं ॥ १० ॥ आ वे पदनो भावार्थ मणिलालभाईना आपेला लेख उपरथी जणावू छु. तेमणे जणाव्युं छे के-" मोटा यज्ञोमां एक बेथी सो सो सुधी पशु मारवानो संप्रदाय पडेलो नजरे पडे छे ” इत्यादि " वली आ रक्तश्रावमां आनंद मानवा उपरांत सोमपानी अने छेवटना वखतमां तो सुरापानथी पण आर्यलोको मत्त यता मालूम पडे छे. परमभावनाना अग्रणीपदने पामेला ऋषिओमां एवो संप्रदाय जणाय ए अलबत आश्चर्य पेदा करवावालुं छे.". . पुनरपि “ नाटकादिकोथी जणाय छे के सारा महर्षिओ माटे पण-मधुपर्कमां गोवध करेलो छे. आश्चर्यनी वात छे के जे Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३४) गाय आने बहु पवित्र गणाय छे तेने प्राचीन समयमां यज्ञ माटे तथा मधुपर्क माटे मारवानो रीवाज हतो." । ___ आ बे फकराथी विचार करवानो ए छे के-जे लोको आर्य तरीके प्रसिद्धिने पामेला-अने अमारा वेदोने न माने ते-नास्तिक -नास्तिक कही जगत्ना अज्ञान वर्गमां जूठी अफवा फेलाववावाळा अने जे महर्षिओना नामथी पूज्य तरीके मनाएला तेओ पण-गाय, बलद, जेवा उत्तम प्राणीओने मारीने तेनुं मांस खावावाळा अने तेवा हिंसक शास्त्रने वळगीने अघोर कर्त्तव्य करवावाळा, तेमने निर्दय केहवा के दयावान् ? दुर्बुद्धिवाळा केहवा के सुबुद्धिवाळा ? अने तेवां हिंसक शास्त्रोने प्रमाणभूत मानवां के अप्राणभूत ? तेनो विचार वाचकवर्गज करी लेशे. ___वळी ई. सं. १८६६ मां करसनदास मूलजीए बहार पाडेला वेदधर्म नामना पुस्तकना पृ. २ मां-, __ "वेदथी लोकोने वाकेफ करवा माटे तेओ ना पाडे छे. केम के-पुराणादिक ग्रंथोमां कां छे के-कलियुगमां ब्राह्मण शिवाय कोईए वेद वांचवा अथवा समजवा नहिं. आलुंज नहीं पण वेदनां वचन पण लोकोने काने पडवा देवां नहीं. आवो अटकाव करवानुं कारण तपासी जोतां मालम पडशे के-पुराण Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३५) विगेरेना ग्रंथोमां आवेली घणीएक वातोनो वेदनी साथे मुद्दल संबंध नथी. पुराणादिक ग्रंथोमां लखेला विष्णुना अवतार संबंधी वेदमां कांई लाख्युं नथी. तथा वेदमा मूर्तिपूजन विषे पण लख्यु नथी. ते छतां वेदनी सत्ता तो बधा ग्रंथोए कबूल राखी छे. आ कारण माटे ज वेदथी लोकोने अज्ञान राखवा एवी ए पुराणिक ग्रंथ लखनाराओनी मतलब उघाडी मालम पडे छे." ____ आ सर्व पंडितो खास वेदमतना आग्रहवाळा छे. छता पण वेदोमां हिंसाना स्वरूपनी श्रुतिओ घणीन तेमना जोवामां आववाथी सेहन पोतानी अरुचि जाहेर करी छे. वळी दयानंदसरस्वतीजीए तो पूर्वेना आचार्योए करेला वेदोना अर्थो उपर पाणी फेरवी आजकालनी पद्धत्तिने अनुसरीने पोताना मनगमता अर्थो करीने कांई जुदो ज प्रकार करी मुक्यो छे. बधाए ब्राह्मणो वेदोने ईश्वरकृत कहीने अनादि कहे छे. जेमा हिंसा ए मुख्य धर्म तरीके वर्णवेलो छे. अने हिंसानी ज सेंकडो श्रुतिओथी तेनुं बंधारण थए© छे. अने तेनो अर्थ पण महीधर, मम्हट, सायन, कर्कादिक आचार्योए हिंसा करवाना स्वरूपनो करीने बतावेलो छे. अने ते लेखोथी एम पण जणाय छे के-ते पूर्वेना आचार्योए अने तेवा मोटा गणाता महर्षिओए राज्याश्रयने Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३६ ) मेळवीने लाखो पशुओना उपर कतल चलावेली जग जाहेर थई चुकी छे। अने वेदोमां तेवा हिंसक पाठो पण डगले डगले भोवामां आवी रह्या छे. तेमां केटलीक श्रुतिओ तो एवा प्रकारनी के श्रवण गोचर थतानी साथै सज्जन पुरुषो लज्जित ज थई जाय. विचार करी जोतां एम मालम पडे छे के आ वेदो ईश्वरना करेला तो नथी ज तेम कोई धर्मात्माना रचेला होय तेवा प्रकारनं पण अनुमान करवामां आपणुं हृदय प्रेरातुं नथी. पण मात्र एवाज अनुमान तरफ दोराय छे के - आ वेदनी हिंसक श्रुतिओ कोई विद्याम्यासना धावाळा मदिरा मांसना भक्षको रचना करता गया होय, तेना गानमां मस्त बनता गया होय, साथे लोकोने पण सुनावता गया होय. अने पोते महर्षिना नामोयी प्रसिद्ध थता गया होय, तेमज स्वार्थी लोको पण तेनो अमल करता गया होय. तेवा अवसरमा यथार्थतत्त्वज्ञानिना अभावे अमारो वेदधर्म, अमारो वेदधर्म, एम अयोग्य महत्व आपता गया होय. तेनुं बंधारण जोतां आवाज अनुमानो उपर आवीने बेसबुं पडे छे. केमके तेमां श्रुतिओ पण तेवाज प्रकारनी छे. जूवो के - हे इंद्र ! अमारी गायनी रक्षा कर, चोराईने गई छे तेने पाळी लावीने आप. हे इंद्र ! अमारा बकरानी रक्षा कर, आ श्रुति उपर एक दक्षणी पंडिते एवी तर्क करी हती के आजकाल कोई एवा Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३७) पंडित हशे के पोताना बकरानी रक्षा करवाने माटे इंद्रनी स्तवना करीने इंद्रने बोलावे ? वळी आगळ बीनी श्रुतिओ जोईए छे तो तेमां पण कदी तो इंद्र, अने कदी तो वरुण, धन दे, पुत्र दे, वर्षा कर, एनी ए कडाकूट ! आवा प्रकारना स्वार्थनी कडाकुट वाली श्रुतिओना संग्रहथीन वेदोनुं बंधारण थएलु जोवामां आवे छे. मणिलालभाई पण एमज लखे छे के-" घडीमां आ देव अने घडीमां पेला देव एम घणा देवने ऋषिओ वारा फरती ईश्वररूपे पूजे के पण अमुक ईश्वर नियत ठरावेलो जणातो नथी." वळी पंडित मेक्षमूल्लर पण पोताना संस्कृतसाहित्यग्रन्थमा लखे छे के-'वेदोनो छन्दोभाग.एवो छे के जाणे कोई अज्ञानिओना मुखथी अकस्मात् वचन निकलेला होय तेम जणाय छे. ' . वळी करसनदास मूलनी कांई बीजोज अभिप्राय कही बतावे . छे. तेनो विचार तेज लेख उपरथी करी लेवो. वळी जगतूनी उत्पत्तिना विषयनो वेदोमां तपास करीए तो कोई अनेक प्रकारनी कल्पनावाळी श्रुतिओ जूदा जूदा ऋषि ओना मुखथी प्रगट थएली आपणी नजरे पडे छे. अने ते पृथ्वी कोणे पेदा करी अने केवी रीते पेदा थई तेनो निर्णय पण आज सुधी कोई पंडित करी शक्योज नथी तो पछी ते वेदनी कल्पिल Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३८) प्रतिमोथी आपणे केवी रीते निर्णय करी शंकवाना ? आ जगत्नी उत्पत्तिना संबंधे वेदोमां केवा केवा प्रकारनी श्रुतिओनो संग्रह यएलो छे तेनो पण परिचय आपवानुं धारु छु. आ ठेकाणे विचार करवानो एटलोज के-जे वेदो ईश्वरकृत अनादि तरीके मनाएला छे तेना हाल शुं एक चीथरीया देव जेवा थएला जोवामां आवे खरा के ? सज्जनो ! स्वार्थी लोकोना कपन उपर भरोसो राखी केवल अंधारा कुवामां डुबी न मरतां कोई सत्पुरुषना वचनो तरफ लक्ष्य करी सत्याऽसत्यनो विचार करीने जूवो, अने सत्यमार्गे चढो । के जेथी आ मनुष्य जन्मन साफल्यपणुं थाय आटलुंज लखीने आ ठेकाणेथी विर{ छ । ॥ श्री हेमचंद्राचार्यनी बत्रीशीना-दशमा काव्यनु स्वरूप किंचित् विशेष का. हवे पृ. १२५ मांना बारमा काव्य किंचित् विशेष कहीए छीए. सिप्येत वाऽन्यैः सदृशीक्रियेत वा तवांऽघ्रिपीठे लुठनं सुरेशितुः । इंदं यथाऽवस्थितवस्तुदेशनं परैः कथंकारमपाकरिष्यते ॥ १२॥ . आ काव्यनो भावार्थ ए छे के—हे निनेश्वर देव ! बीजा मतना पंडितो, ऋषिओ, तमारा माटे जुळु साचुलखी सिद्ध बनवानो प्रयत्न गमे तेटलो करे पण आ यथार्थपणे प्रगट थएवं तमारुं पदा Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३९) थों सत्यस्वरूप छे तेनो इनकार केवी रीते करी शकवाना छे ! ज्यारे सत्य वस्तुने तपासवावाळा सज्जनपुरुषो प्रगट थशे त्यारे ते पदार्थोनुं सत्य स्वरूप प्रगट थया वगर रहेशे नहीं. ॥ अने अमोए तेवा सज्जन पुरुषोना लेखोनो संग्रह करीने आ पुस्तकमां बताव्यो छे. तोपण आ जगो उपर ते लेखोमांयी किंचित् इसारो करी बतावू तो ते अस्थाने नहीं गणाय अने स्थान शुन्य पण नहीं रहे. जुवो-वा० न० उपाध्येनो लेख-तेओ पृ. १२ मां लखे छे के-“घणा स्मृतिग्रन्थोमां शास्त्रीयग्रन्थोमा भने टीकापन्योमा जैन अने बौद्ध एओने वेद बाह्य माने छे. जैनग्रन्योनुं सूक्ष्माऽवलोकन करतां जैनधर्म ए जूदो धर्म नथी पण उपनिषत्कालीन अने ज्ञानकांडकालीन, महान् महान् ऋषिओना जे उत्तमोत्तम मतो हतां ते सर्वे एकत्र ग्रथित करीने बनावेलो धर्म होय एम देखाई आवे छे, अर्थात् जैनधर्मनुं प्रथमनुं स्वरूप कहीए तो विशुद्ध छे. एटले जे वैदिक धर्म ते ज जैन धर्म छे. एनां अनेक प्रमाणो छे" इत्यादि. __आ फकराथी विचार करवानो ए छे के प्रथम वेदकाल अने ते पछी ज्ञानकांडकाल. एम घणा पंडितो मानी बेठेला छे al ___ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४० ) बदकालमा लोहनी नदीओ वेहती. ज्ञानकांडकालमां ते प्रवाह केटलेक दरजे कमी थयो. अने ते ज्ञानकांडकालनी प्रवृत्ति जैनधर्म अने बौद्धधर्मनी प्रबल असर पछी थई. केमके - जैनोना तीर्थकर सर्वज्ञ होय छे अने तेमने केवलज्ञानरूपी सूर्यनो उदय यतानी साथै सर्व तत्त्वपदार्थोनो यथार्थ प्रकाश एकी वखते थाय छे. ते सत्यरूप पदार्थोंने तेमना गणधरो ( मुख्य शिष्यो ) सत्य सिद्धांतना स्वरूपमां पद्धतिसर रचना करी जनसमूहना आगळ मुके छे. तेनी साथेज श्रौतधर्म एटले यज्ञविधिरूप अंधकार दूनीयामांथी नष्ट थतो देखी - इंद्रियार्थसुखमां लेपट बनेला वैदिकधर्मवाळा एटले याज्ञिकधर्मवाळा पाछा आ दूनीयाने यज्ञधरूप अंधकारमां धक्केवाने माटे धमपछाड करी मुके छे पण सत्यना आगे जूठ सदा दबाईने ज रहे छे; पछी नवीन स्मृतिओ, पुराणोनी रचनाओ करीने कोई जगो उपर तो जैन अने बौद्धनी स्तुति करी तो कोई जगो उपर वेदवाह्य, नास्तिक विगेरे लखीवाळीने अजाण लोकोमां जूठी अफवा फैलावी मुकी, पण ते सत्य पदार्थो आज सुधी अज्ञानना पडलथी मुक्त पुरुषोने यथार्थपणे प्रकाश आप्या करे छे. अने तेवा महात्माओ दूनीयाने प्रकाश देखाडवाने तन अने धन विगेरे सर्वनो व्यय करी रह्या छे. वो सिद्धांतसार पृ. १०८ मां- बुद्ध "ते पोताना जन्मनुं सार्थक Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४१) करी-तत्त्वदृष्टिने खरेखरी जागृत करी पोतानी जन्मभूमीमां तो मरण ज पाम्यो. " पृ. १०९ मां-" आर्यधर्मनी 'पुराण भावनाओमां दबाई रहेली तत्त्वदृष्टि जागत थई खरी पण तेने खरा तेज पर लावनार एक बीजो वीर जरुरनो हतो एज महात्मा ते अनादिरूप दयाम्रति जिन. जेना अनुयायी जैन ए नामथी अद्यापि प्रसिद्ध छे." xxxx पुनरपि सिद्धांतसार पृ. ११६ थी-" जैनधर्मनां पुस्तक पण असंख्य छे. संस्कृत अने मागधी बन्ने भाषामां छे. केवल धर्म संबंधेज नहिं पण न्याय, व्याकरण, कोश, साहित्य, इत्यादि बाबतो उपर पण बहु सारा सारा ग्रंथो छे. ने तेमना धर्म बाबतना तो उत्तमोत्तम ग्रन्थ, तत्त्वविचारना तेमन पुराणादि जेवा सूत्र नयादि नामे प्रसिद्ध अनेक छे. आपणा गूजरातमांज खंबातनो कोई वाणीयो जे हेमाचार्य नामे जैन साधु थयो हतो तेना रचेला अनेक ग्रन्थ १ सिद्धांतसार-पृ. १२० मां-श्रौत के स्मार्त धर्म. अने कर्ममार्ग ते पुराण भावनानुं स्वरूप छे. दर्शन, अने ज्ञानमार्ग ते तत्त्वदृष्टिनुं रूप छे. विचारवान्ने, यथार्थ समजवानी शक्ति धरावनारने, दर्शनमांज प्रवृत्त थवाथी संतोष थाय छे. ( श्रौत एटले-वेदनी श्रुतिओनो मार्ग. स्मात एटले-स्मृतिओनो धर्म. कर्ममार्ग एटले-यज्ञमार्ग, ए त्रणे प्रकारना धर्मने पुराण भावनाचं स्वरूप कहे छे.) Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४२ ) अद्यापि पण छे. हिंसाने, खरो छे तेमज बीजा साधुओना पण छे. पाटण, खंबात, जेसलमेर, नेपुर आदि स्थळोना जैन भंडार लाखो पुस्तकोथी भरपुर छे. ने विद्याना खरा भंडाररूप छे. आ प्रमाणे दृढमूळ नाखी चालेलो आ अहिंसारूप परमधर्म आपणी नजर आगळ ब्राह्मणोना धर्मने, वेदमार्गने, तथा यज्ञमां थती को एज धर्मेलगाड्यो छे. बुद्धना धर्मे वेदमार्गनोज इनकार कर्यो हतो. तेने अहिंसानो आग्रह न हतो. ए महा दयारूप, प्रेमरूप धर्म तो जैनोनोज थयो आखा हिंदुस्थानमांथी पशुयज्ञ निकली गयो छे. फक्त छेक दक्षिणमां ज्यां बौद्ध के जैननी छाया बराबर पडी शकी नथी त्यांज ते चालु छे. एटलुंज नहिं पण उपनिषदोनो ज्ञानमार्ग सर्वथा सतेज थई जैनोना जीवाजीव तथा कर्मधर्मरूप वाद परत्वे घणो बहार आव्यो छे. आम शंकारूप बौद्ध तथा जैन धर्मोए दर्शनोना परमधर्मोनो रस्तो कर्यो छे. तत्त्वदृष्टिने खरेरूपे प्रवर्त्तवानो मार्ग कर्यो छे. ने वर्ण जाति बधु मूलावी दई मनुष्यमात्र ने परमप्रेममा एकात्म भाव पमाडनार ब्रह्मज्ञाननो उदय सूचव्यो छे. " १ खरो धक्को लगायो एम कहेलुं आ ठेकाणे शोभतुं नथी. पण लोहनी नदीओमां तणाइ रहेलाओने बहार काढ्या छे एम कहेता तो -बधारे शोभतुं. Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४३) मणिलालभाईए लख्यु के- “ पुराणमावनामां दवाई रहेढे तत्त्वदृष्टिनुं ज्ञान बौद्ध अने जैनधर्मना प्रचारथी जागृत थयुं." तो भहीयां विचार थाय छे के वेदनी श्रतिओ अने स्मृतिओथी प्रवतैला यज्ञकर्मन नाम पुराण भावना कही छे. अने ते भावनायी तो पशुओनी कतल थवानुं प्रसिद्धन हतुं, तो पछी तेमां दवाई रहेली तत्त्वदृष्टि घणा वखत पछी जागत केवा प्रकारथी थई मानवी ? शं ते वखतना मोटा मोटा ऋषिओ ते तत्वदृष्टिनं ज्ञान जोई न शक्या हता तेथी ते ज्ञान बहार न आव्युं हतुं ? अथवा एक ईश्वरनी शोधमां ने शोधमां-घडीमां आ देव तो घडीमा पेलो देव जेम बधा ऋषिओ भज्या करता हता तेम पोताना अज्ञानपणाथी जीवोना उपर कतल चलावी तेमांथी तत्त्वदृष्टिनुं ज्ञान शोध्या करता हता तेथी ते ज्ञान बहार न आव्यु हतुं ? आमां समजवू शं? आगल जतां बीजा फकरामां लख्यु के-“ उपनिषदोनो ज्ञानमार्ग सर्वथा सतेन थई-जैनोना जीवाजीव तथा कर्मधर्मवाद परत्वे घणो बहार आव्यो. आम शंकारूप बौद्ध तथा जैन धर्मोए दर्शनोना परम धर्मोनो रस्तो कर्यो छे. तत्त्वदृष्टिने खरेरूपे प्रवर्त्तवानो मार्ग को छे. अने ब्रह्मज्ञाननो उदय सूचक्यो छे". ___ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४४) .. आ ठेकाणे-पृ. ११३ मां श्रीसिद्धसेनसूरिजीना लथा पृ. ११४ मां जणावेल महाकवि धनपाल पंडितना काव्यनी सत्यतानो ख्याल करो. तेमणे का हतुं के “ परमतना शास्त्रोमां जे जे प्रमाणभृत वचनो जोवामां आवे छे ते बघांए बचनो हे जिनदेव ! तमारा ज्ञान समुद्रमांयी उडी उडीने बहार पडेलां वचन बिन्दुओज छे अने तेथीज ते शोभाने पात्र थयां छे. " अहियां विशेष एज छ के-जैनोना प्रबल उदयकाल पेहलां-वैदिकमागमां अने ब्राह्मणधर्ममां केवल जीवोना उपर कतल चालती होवाथी धर्ममार्गनो कहो के परम ब्रह्ममार्गनो कहो तेनो तो लोपज थईने रहेलो हतो. एम आ बधा पंडितोना तरफथी निकलेला वचनोना उद्वारोज आपणने सूचवी आपे छे. आ बधा वचनोना उदारो छे ते पण सामान्य पुरुषोना नथी पण महान महान् पंडितोना छे. अने पोते वेद धर्मना पण पूरेपूरा आग्रही होवा छतां पण सत्यने सत्यपणे केह, पडयूं हशे. सज्जनो ? विचार करो के जैनोना तत्त्वज्ञानमा केटली बधी गहनता रही हशे. Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४५) ॥ॐ नमः सिद्धं ॥ जगत्कर्त्ताविषे विविध मतो. ॥ अबधू सो जोगी गुरु मेरा-ए चाल ॥ सृष्टि कब किसीने बनाई, संतो ! कब किसीने बनाई वाकी खोज किसीने न पाई, सृष्टि कब० ए टेक. वेद पुराण कुरान वैवलमें, भिन्न भिन्न कर गाई; एक एक सब भिन्न कहत है, मिलत न मेली मिलाई. ॥वा.१॥ ___ भावार्थ---कुरानवाला कहे छे के-" खुदाके हुकमसे सत्र कुछ होता है ” ए वात प्रसिद्धन छे. बायबलवाला कहे छे के-"इसु ख्रिस्तीए सात दिवसनी अंदर बधा जगत्नी रचना करी, आठमा दिवसे ते ध्यानमां लीन, थईने बेठा." ए वात पण बायबलमां प्रसिद्ध ले. मात्र वेदः . पुराणादिकमांज घणा मतभेदो थएला जोवामां आवे छे तेथी. तेनो विचार थोडोक करी बतावीशं. सृष्टिकर्ताना संबंधे बघाए 10 Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मतवालाओना विचारो जुदा जुदा थवाथी ए विषे यथार्थपणे कोई समजेला नथी ए वात सिद्धन छे. तेथी तेमना तत्त्वविचारना संबंधे पण यथार्थ बंधारण थयेटु नथी एज विचार उपर आवीने अटकळ पडे छे. ऋग्वेद के ऐत्तरीय आरण्यमें, आतमसे उपजाई । यजुर्वेदको खोलके देखा, विराट् पुरुषे पसराई ॥ वाकी. २॥ भावार्थ-ऋगवेदमां लख्युं छे के-"प्रथम एक आत्माज हतो. चल अने अचल एमांगें कांई पण न हतुं. ते वखते आत्माए विचार को के हं जगत्नी रचना करूं. पछी तेणें जल ज्योतिष आदि बनाव्यां, फरीथी विचार कर्यो के एनो रखवाळो पण बनाएं विचारनी साथे जलमांथी एक पुरुष निकल्यो तेनु मुख खुल्लू थवाथी एक शब्द निकल्यो ते शब्दथी अग्नि पेदा यई. पछी ते • पुरुषतुं नाक खुल्लु थयुं तेथी श्वास आववा जवा लाग्यो तेथी १ सहस्रशीर्षा पुरुषः इत्यादि. सृष्टिनी उत्पत्तिविषयक विचार ऋग्० अष्टक ८ अ० ४ व० १७ । १८ । १९ मां पण छे. जुनो---अमारा गुरुवर्यकृत-तत्वनिर्णयप्रासाद. पृ. १९७ थी. पुनः-नालदासीन्नोसदा सीत्तदानी' इत्यादि सृष्टिनी उत्पत्ति विषय. ऋ० अ० ८ . अ० ७ क. १७ मं० १० मां पण सविस्तर छे, जूवो० तत्त्व० पृ. १९१ थी। Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४७) आकाशनी उत्पत्ति थई. पछी आंखो उघडी तेथी ज्योतिय प्रगट थई. ते ज्योतिथी सूर्य उत्पन थयो, इत्यादिक सर्व झाड बीड मृत्यु विगेरे पेला पुरुषथीन उत्पन्न थयुं." एम विस्तार साथे ऐतरीयआरण्यमां लखेटु छे. हवे यजुर्वेदमां लख्युं छे केविराट्रपुरुषथी आ सृष्टि उत्पन्न थई. तेनुं स्वरूप नीचे प्रमाणे" जे वखते ए विराट्ने बीजाने उत्पन्न करवानी इच्छा थई तेज वखते स्त्री अने पुरुष ए बन्ने एकल स्वरूपथी उत्पन्न थई गयां पछी जुदां पडीने स्त्री भर्ता रूपे बनी गया. त्यांथी मनुष्यनी वंशावली चालु थई. एज प्रमाणे पेलो पुरुष अने पेली स्त्री १ बन्नेए जे जे जातिनुं स्वरूप धारण कर्यु ते ते जातिनो विस्तार थतो गयो. जेमके-जल्द ने गाय. घोडो ने घोडी. गधेडो ने गधेडी." इत्यादि, ए प्रमाणे आ सृष्टि पेला विराष्ट्रपुरुषना संकल्पथी उत्पन्न थई. ॥ २ ॥ मंडूक उपनिषद् कहता है, मकडीजालके न्याई: कूर्मपुराणे विचारी जोता, नारायण मूल निपाई ।। वा.३॥ भावार्थ-"जेम करोलीयो पोते पोतानी जाते जाळु उत्पन्न करे छे अने पछी पार्छ पोतानामांन समावी दे छे तेज प्रमाणे Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४८ ) जे एक अविनाशी पुरुष छे तेमांथी आ सृष्टि उत्पन्न थाय छे नेपाली अविनाशी पुरुषमां पाछी समाई जाय छे." ए प्रमाणे मंडूक उपनिषद्मां कहेलं छे. ॥ / अने कूर्मपुराणमां एवं लख्युं छे के - "हुं नारायणदेव लुं, मारे माटे पहिलां रेहवानुं स्थान न हतुं. में शेषनागनी शय्या करी, पछी मारी दयाथी चतुर्मुख ब्रह्माजी अकस्मात् पेदा थया. के जे जगत्ना पितामह छे. पछी ब्रह्माए पोताना मनथी पोताना जेवा पांच पुरुषो बनाव्या तेनां नाम- १ सनक, २ सनातन, ३ सनंदन, ४ रुरु, ५ सनत्कुमार. । पोताना मनने ईश्वरमा आशक्त करीने सृष्टि रचवानी मनसा करी त्यारे ब्रह्मा मायाए करीनें मोहनें प्राप्त थया त्यारे जगतमायी महामुनि विष्णुए पोताना पुत्र ब्रह्माने बोधितकर्या, पछी ब्रह्माए उग्र तप कर्यो, घणा काल सुधी करेलुं तप फलीभूत न थतां खेदथी क्रोध थयो, आंखोमांयी पाणी निकल्युं तेथी पांपेणो वांकी थई तेमांथी महादेवजी उत्पन्न यथा, ब्रह्माजीनी आज्ञाथी तेमणे भूतप्रेतादि गणो रच्या अने उत्पन्न थतानी साथेज ते भूतादिगण भक्षण करवाने लागी गया, आवुं स्वरूप जोई ब्रह्मा पण विस्मित बनी गया. " इत्यादि कूर्मपुराणमां विस्तारपणे लखेलुं छे. ॥ ३ ॥ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४९) मनुस्मृति के पहिले अध्याये, तममात्र बतलाई; उहांसे प्रगटे स्वयंभू स्वामी, ताते तिमिर मिटाई ॥वा० ४॥ ___ भावार्थ---मनुस्मृतिना पेहला अध्यायमा लख्युं छे के"प्रथम आ जगत्मां अंधकार मात्रज हतो, ते एवो हतो के जाणी शकाय नहीं अने तेमां तर्क पण चाले नहीं. निद्रावशनी अवस्थानी तरे पडेलो हतो, मात्र कोई अतींद्रिय पुरुषयीज ग्रहण करवाने योग्य हतो, तेमां अव्यक्त महाभूतादिवलवालो स्वयंभू भगवान् ते अंधकारन हटाववावालो उत्पन्न थयो. ते भगवाने सृष्टि उत्पन्न करवानो विचार को. प्रथम तेणे पाणी बनाव्यु. पछी तेमां बीन नाख्यु. ते बीजयी सोना- इंडं उत्पन्न थयु. ते इंडामां सर्वलोकनो पितामह एवो ब्रह्मा उत्पन्न थयो. तेमां ब्रह्मना एक वर्ष अर्थात् मनुष्यनां-३१,१०,४०,००,००,०००, वर्ष तक रह्या. पछी ध्यान करीने ते इंडाना ये भाग कर्या. एकथी आकाश १ अध्याय पेहलाना श्लोक पांचमाथी ते ४१ सुधीमां मुटिनी उत्पत्तिनुं वर्णन छे. जेम के-“ आसीदिदं तमोभूत-मप्रज्ञातमलक्षणं । अप्रतक्म विज्ञेयं, प्रसुप्तमिव सर्वतः ॥ ५ ॥ ततः स्वयंभू भग्रयानऽव्यक्ती व्यंजयन्निदं । महाभूतादिवृत्तीजाः प्रादुरासीत्तमोनुदः ॥ ६ ॥” इत्यादि. Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५० ) अने बीजा टुकडाथी पृथ्वी उत्पन्न थई. दिशा विगेरेनां पण जुदा जुदां नाम पडयां पछी १ अग्नि, २ वायु अने ३ सूर्य पण उत्पन्न थया एत्रणथी - ऋग्वेद, यजुर्वेद, अने सामवेद, पण यज्ञनी सिद्धिने माटे उत्पन्न थया. पछी-तप, वाणी, रति, काम, क्रोधादिकने उत्पन्न कर्या पछी सुख, दुःखादिकनी योजना करी. पछी पोताना - मुख, हाथ, जंवा अने पगयी चारो वर्ण उत्पन्न कर्या. पछी पोताना शरीरना बे भाग करीने स्त्री अने पुरुषरूपे बनीने विराट्रूपने वारण कर्यु. पछी - दश मुनियो, सात सुनियो, देवताओ, कीटपतंगादिकनी उत्पत्ति करी दीधी. " ए वर्णन मनुस्मृतिमां ऋगवेदना मतथी प्राये मळतुं कहेलुं छे. ॥ ४ ॥ कोइ कहे कालीकी शक्ति, बाकी न्यारी न्यारी चतुराई; लिंगपुराणे शिवजी के बदनसे, विष्णु ब्रह्मादिकठाई बा.५॥ भावार्थ - " कालीदेवीए कयूं के हुं आदिशक्ति थईने बीजरूपे थई हुं अने पहिले शिव अने शिवनी शक्ति रूपे उत्पन्न थई. पी विष्णु अने विष्णुनी शक्ति रूपे उत्पन्न थई. तेथी आ बघा सृष्टिनी उत्पत्तिना कारण रूपे हुंज भयेकी हुं. " ए कालीदेवीना माटे बीजा ग्रंथमां एस पण ख्युं छे के- "कालीदेवी छे ते आदि शक्ति छे.' अने ए देवीए ऋण इंडी उत्पन्न कर्या, Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५१) तेमांथी ब्रह्मा, विष्णु, अने महेश, ए त्रण देवो बहार आव्या. तेमणे आ जगतनी रचना करी" इत्यादि. हवे शिवपुराणमां लखेलं तेनो विचार करीए छीए. जेमके-"आ ब्रह्मांडमांथी प्रथम शिवनी उत्पन्न थया. पछी शिवजीली डाबी बांहथी विष्णु अने लक्ष्मीनी ए बे उत्पन्न थयां. अने तेमनी जमणी बांहथी ब्रह्मा अने सरस्वतीजी उत्पन्न थयां. पछी शिवजीए गुणसंयुक्तपणे रहेली प्रकृतिने सूक्ष्मपणाथी देखी. ते वखते प्रकृतिए शिवजीन सामर्थ्य धारण करी महत्त्वादिकने उत्पन्न कर्या. पछी तेमाथी त्रण अहंकार उत्पन्न थया. प्रथम सात्विक अहंकारथी देवताओ उत्पन्न थया. अने बीजा राजस अहंकारथी इंद्रो उत्पन्न थया. अने त्रीना तामस अहंकारथी पांच तत्वो उत्पन्न थया, अने ते पांच तत्त्वोथीज आ बधा ब्रह्मांडनी उत्पत्ति थती चाली. " इत्यादि शिवपुराणमां विस्तारथी जोई लेतुं ॥ ५ ॥ ब्रह्मवैवर्तपुराण यूं बोले, एतो कृष्णकी चतुर ई; भितर भेदका पार न पाये, क्या फितुरी करे फितुगाइ बा.६॥ ___ भावार्थ---ब्रमवैवर्तपुराणामां एवं लख्यु छ के–“आ बधा जगत्नी रचना कृष्णजीथी थई. केमके-कृष्ण नीना जमणा हाथथी विष्णुनी अने डावा हाथथी शिवनी. अने कृष्णनीली नाभिथी Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५२) ब्रह्माजी उत्पन्न थया. ए त्रणे देवोए प्रथम कृष्णजीने पूज्या तेमनी आज्ञा मेळवीने आ सृष्टिनी रचना करी. इत्यादि सविस्तर ते पुराणथी जोई लेवु. ॥ ६ ॥ वेदनो पण कोइ भेद न पावे, क्या करे गडमथलाई मारग छोड उन्मारग जाके, केवल धूम मचाई | वा. ॥७॥ मतममताको छोडके देखो, कोई पुरुष अतिसाई पुछ पाछ कर भितर खोजो, पीछे आतम काज सधाई ।वा.॥८॥ गुरुकृपासे सृष्टिसंबंधका, किंचित् भेदको पाई; अमर कहे हम अमर भये है, अंतर भरम गमाई ॥वा.॥९॥ ॥ इति सष्टिसमुत्पत्तिसंबंधे भिन्नभिन्नविचारदर्शकं गीतं । ॥ सृष्टिनी उत्पत्तिना संबंधे-बीजी पण घणा प्रकारनी कल्पनाओ थयेली छे ते पण प्रसंगना वशयी थोडीक लखीने बतावीए छीए १ जुवो के-य० वा० सं० अ० १७ मं० ३० नी श्रुतितमिर्गर्भ प्रथमं दध्र आपो यत्रं देवाः समगच्छन्त विश्व अजस्य नाभावध्ये कमर्पितं यस्मिन् विश्वानि भुवनानि तस्थुः॥ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९३) भावार्थ--ब्रह्मकुशल उदासीकृत-ऋगादिभाष्यभूमिकेंदुनाम पुस्तकना भाषार्थनो तात्पय__“ संपूर्ण सृष्टिनी आदिमां जे जल हतुं तेणे गर्भ धारण कर्यो ते एवो के संपूर्ण जगत्ना कारण जे ब्रह्मा जेनामां देवताओ उत्पन्न थई गयेला छे. जन्मादिकथी रहित परमात्मा पोते छे तेनी नाभिमां जे कमल छे तेमां संपूर्ण जगत्ना बीजरूप ब्रह्मा छे जेनामां संपूर्ण चतुर्दश भुवन रहेला छे." आ उपरनी अतिनो दयानंदसरस्वतीजीए भाषामां करेला अर्थनो तात्पर्य नीचे मुजत्र--- __“ मनुष्योने एवं करवू जोईए के जे जगत्नो आधार. योगी ओने प्राप्त थवा योग्य अंतर्यामी पोतपोतानो आधार सर्वमा व्याप्त छे तेनी सेवा सर्व लोको करे." आ एकज वेदनी श्रुतिनो अर्थ बे पंडितोए करेलो छे तार्यमां केटलो तफावत छे ? प्रथमना अर्थमां ब्रह्माने जगत्ना बीज रूपे ठराव्या छे. सरस्वतीजी एक अंतर्यामी कहीने तेमनी सेवा करवान पूर्वाचार्योथी विरुद्ध कहे छे. तो आमां भरोशो कोनो करवो ? इतो व्यान इतस्तटी. Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५४) २ पुनः-य० वा० सं० अ० २३ मं० ६३ मांसुभूः स्वयंभूः प्रथमोऽन्त महत्यऽर्णवे। धे ह गर्भमृत्वियं यतो जातः प्रजापतिः ॥ ६३ ॥ ३ तात्पर्य-सुंदर भुवन ते सुभु, इच्छाथी शरीर धारे ते स्वयंभू, एवो परमात्मा महाजलसमूहमा प्राप्तकाले ह-प्रसिद्ध. तेणे गर्भ धारण को ते केवो छे के जेमांथी ब्रह्माजी उत्पन्न थया. ॥ ६३ ॥ ३ पुनः--शतः कां० ७ अ० ५ ब्रा० १ कं. ५ मां स यत्कर्मो नाम । एतद्वै रूपं कृत्वा प्रजापतिः पजा असृजत यत्सृजताऽकरोत् तद्यदकरोत्तस्मात्कूर्मः कश्यपो वै कूर्मस्तस्मादाहुः सर्वाः प्रजाः काश्यप्य इति ॥ तात्पर्य—वेदोमां प्रसिद्ध जे कूर्म. अर्थात् प्रजापति जे परमेश्वर तेमणे कूर्मनुं रूप धारण करीने आ वधा जगत्नी रचना करी. करवानुं हतुं ते करवाथी कूर्म कहेवाया, निश्चयथी तो कूर्मज कश्यप नामथी प्रसिद्ध थया तेथी बधा ऋषिओ संपूर्ण प्रजाने काश्यपकी कहे छे. ___ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५५ ) अहिंयां जुवो पहेलो यजुर्वेदनो अने बीजो शतपथब्राह्मणनो पाठ केटलो बधो तफावतमां छे ? आवा प्रकारना बीजा विरोधी पाठो घणा छे अने मोटा मोटा छे तेथी आ नानकडा पुस्तकमां लखी शक्राय नहीं. जिज्ञासा होय तेमणे अमारा गुरुवयकृततत्त्वनिर्णमासाद जोई लेवो. ४ पुनः - अथर्व सं० कांड० १० । प्र० २३ ॥ अ० ४ । मं० २० मां यस्मादृचो अपातंशन् यजुर्यस्मादपाकषन् । समानि यस्य लोमानि अथवाङ्गिरसो मुखं । स्कम्भन्तम् ब्रूहि कतमः - स्विदेव सः ॥ भावार्थ - जे परमात्माथी ऋगवेद उत्पन्न थयो. अने जे परमात्माथी - यजुर्वेद उत्पन्न थयो. अने सामवेद जे परमात्माना रोम ( केश ) छे अने अथर्ववेद जे परमात्मानुं मुख छे. एवो जे सर्वनो आश्रयभूत छे ते कोण छे ! कहो तो ते परमब्रह्म परमात्माज छे, बीजो कोई नथी. + ५ पुनः - ऋग्० अष्टक ८ । अ० ४ । व० १८ | मं० १० मां- Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५६ ) तस्मा॑द्यज्ञात् सर्वेऽहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे । छंदांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत || ९ || भावार्थ :-- सर्वहुतः - पूर्वोक्तयज्ञथी ऋचः सामानि - सामवेद उत्पन्न थयो. ते यज्ञथी छन्दांसि - गायत्री आदि उत्पन्न थया. अने ते यज्ञथी यजुर्वेद पण उत्पन्न थयो. ॥ ९ ॥ आ अथर्ववेदनी अने ऋग्वेदनी ऋचामां केटलो फरक छे तेनो विचार वाचक वर्गे करी लेवो. ६ पुनः शतपय कां० १४ । अ । ब्रा० ४ के १० मां--- एवं वा अरेऽस्य महतो भूतस्य निःश्वसितमेतत् । वेद यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्वाङ्गिरस || इत्यादि ॥ भावार्थ:--- आ जे परमात्मा छे. तेमनो निःश्वास छे ते ज ऋग्वेद, यजुर्वेद सामवेद अने अथर्ववेद छे || ७ पुनः - तैत्तिरीय ब्राह्मणे. अष्टक २ अनु० १० मां प्र॒जाप॑तिः सोमं राजांनमसृजत । तं त्रयो वेदा अन्वं सृज्यन्त । तान् हस्तेऽकुरुत । अध्या० ३ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९७) __ भावार्थः-प्रजापति-ब्रह्मा तेणे प्रथम सोमराजाने उत्पन्न. करीने पछी त्रण वेदोने उत्पन्न कर्या. ते त्रणे वेदोने सोमराजाए पोताना हाथमां लेई लीधा. ८ पुनः शतपथकां० ११ । अ० ५ ब्रा० ३ का १।२ । ३ मां. प्रजापतिर्दै इदमग्र आसीत् । एक एव । सोऽकामयत । सांप्रजायेयेति। सोऽश्राम्यत् । स तपोऽतप्यत । तस्माच्छ्रान्तात्तेपानात् त्रयो लोका अमृज्यन्त । पृथिव्यंतरिक्षंद्यौः ॥ १॥ स इमां स्त्रील्लोकानऽभितताप । तेभ्यस्तेभ्यस्त्रीणि ज्योति५. ष्य जायताऽग्निर्योयं पवते सूर्यः ॥ २ ॥ तेभ्यस्तेभ्यस्त्रयो वेदा अजायन्ताऽने ऋग्वेदो वायोयजुर्वेदः सूर्यात् सामवेदः ॥ ३॥ ___ भावार्थ-प्रथम निश्चयथी एक प्रजापति ज हतो. ते प्रजापतिने इछा थई के हुं अनेकरूपवालो थई जाउं. पछी तेणे शांतपणाथी तप करवा मांड्यो. तपना प्रभावथी त्रण लोकनी रचना करी-१ पृथ्वीलोक. २ आकाशलोक. अने ३ स्वर्गलोक, पछी ते प्रजापतिए आ त्रणे लोकनी पासे तप कराव्यो तेमना Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५८) तपना प्रभावथी त्रण ज्योतिः एटले प्रकाशस्वरूपवाला त्रण देवता उत्पन्न थया. १ अग्नि. २ सर्वजगत्ने पवित्र करवावालो वायु. अने ३ सूर्य. पछी ए त्रणेना तपथी त्रण वेद उत्पन्न थया. जेमके अग्निथी १ ऋग्वेद. २ वायुथी यजुर्वेद, अने ३ सूयथी सामवेद. ॥ ३ ॥ ९ पुनः-तैत्तिरीयसंहिता. कां० ७ प्र० १ अनु० ५ मां आपो वा इदमग्रे सलिलम् आसीत् तस्मिन् प्रजापतिर्वायुर्भूत्वाऽचरत् । स इमामपश्यत् तां बराहो भूत्वाऽऽहरत् । इति ॥ भावार्थः-अग्रे अर्थात् सृष्टिनी उत्पत्तिना पेहलां जल ने जल हतुं. ते जलमां प्रजापति वायुनुं स्वरूप धारण करीने फरवा लाग्यो. तेमां फरतां फरतां आ पृथ्वीने देखी. 'पछी तेणे वराहतूं (शूकरनुं ) रूप धारण करीने जलना उपर खेंची लाव्या. १० पुनः-गोपथ० पू० प्र० १ ब्रा० ६ मां यथा--- स भूयोऽश्राम्यद् भूयोऽतप्यत । भूय आत्मानं समत. पत् । स आत्मत एवं त्रील्लोकान्निरमियत । पृथिवीमंतरिक्ष बदिवमिति । स खलु पादाभ्यामेव पृथिवीं निरमिमतोदरा Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५९) दनारिक्षं मृनों दिवं । स सांस्त्री ५ लोकानऽभ्यश्राम्यदऽभ्यतपत् । तेभ्यः श्रांतेभ्यस्तप्तेभ्यः संतप्तेभ्यस्त्रीन देवानिरमिमताऽग्निं वायुमादित्यमिति । स खलु पृथिव्या एवाऽनि निरभिमताऽन्तरिक्षाद्वायु दिव आदित्यम् । स ताँस्त्रीन् देवानऽभ्यश्राम्यदऽभ्यतपत् । समतपत् । तेभ्यः श्रोतेभ्यस्ततेभ्यः संतप्तभ्यस्त्रान् वेदानिरमिमत । ऋग्वेदं यजुर्वेद सामवेदमिति।। भावार्थ-ते प्रजापति फरीथी शांत थयो. फरीथी पालो तप कर्यो. फरीथी आकरो तप करी पोताना आत्माने खूब तपाब्यो. पछी पोताना आत्माथीज ऋणे लोकनी रचना करी एटले पोताना वे पगथी १ पृथ्वीलोक, २ उदरथी ( पेटथी) आकाशलोक अने पोताना मस्तकथी ३ स्वर्गलोक ए प्रमाणे त्रणे लोकनी रचना करी. पछी ए त्रणे लोक शांत थये तेमनी पासे तप कराव्यो. पछी ए त्रण लोक तप करी शांत थये तेमनी पासेथी ऋण देवोनी उत्पत्ति करावी. जेम के–१ पृथ्वीलोकयीं अनिदेवनी, २ आकाशलोकथी वायुदेवनी अने ३ स्वर्गलोकयी सूर्यदेवनी उत्पत्ति करावी. फरीथी ए त्रणे देवोनी पासेयी तप कराव्यो, तपथी शांत थये, अग्निथी ऋग्वेदनी; वायुधी यजुर्वेदनी अने सूर्यथी सामवेदनी उत्पत्ति करावी. इत्यादि. Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६० ) अहीयां अमोए वेदने लगता ज मात्र दश पाठो नमुना रूपेज आप्या छे. १ तेमां पहेला पाठनो अथ एक उदासीनो करेलो अने बीजो अर्थ दयानंदजीनो करेलो ते केटला बघा फरकथी थयेलो छे ते बताव्यो छे. २ बीजा पाठमा - जे परमात्मा सुंदर भुवनादिवालो छे तेर्ण मां गर्भ धारण कर्यो तेमांथी ब्रह्माजी उत्पन्न थया एवो अर्थ सूचवेलो छे. ३ त्रीजा पाठमा - परमात्माएं कूर्मनुं रूप धारण करी आ सृष्टिनी रचना करी. तेथी ते काश्यपी कहेवाई. ४ चोथा पाठमा - परमात्माथी वे वेद उत्पन्न थया. त्रीजो तेमना रोमथी ( केशथी ) अने चोथो मुखथी एम चार वेद जेमनाथी उत्पन्न थया छे तेज बधानो आधारभूत छे. ५ पांचमा पाठमा - जे यज्ञ कर्यो हतो तेमांथी सामवेद, गायत्री आदि, अने यजुर्वेद, उत्पन्न थया. अहींयां परमात्मानुं नाम छोडी दीधुं छे. ६ छठा पाठमां-परमात्माए निःश्वास छोड्यो तेमांथी चारे वेदोनी उत्पत्ति थई. Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६१ ) ७ सातमा पाठमां- प्रजापतिए प्रथम सोमराजाने उत्पन्न कर्यो. अने पछी त्रण वेढ़ोने उत्पन्न कर्या. ते त्रणें वेदोने सोमराजाए पोतानी मुठीमां लेई लीघा. ८ आठमा पाठमा - प्रथम प्रजापति एकलोज हतो. तेनें aणां रूप थवानी इच्छा थवाथी तप करवा मांड्यो . तपना प्रभाartaण लोक उत्पन्न या. ते ऋणलोकने पाछो तप कराव्यो तेथी ऋण ज्योतिरूप ऋण देवो उत्पन्न थया. पाछो तेमने पण तप कराव्यो यी ऋण वेद उत्पन्न थया जेमके - अग्निदेवथी ऋग्वेद, बीजा वायुदेवथी यजुर्वेद, अने श्रीजा सूर्यदेवथी सामवेद. -- ९ नवमा पाठमा – प्रजापति पोते वायुनुं रूप धारण करीने पाणीमां फर्या त्यां तेमणे आ पृथ्वी जोई पछी पोते वराहनुं रूप धारण करी ते पृथ्वीने बहार खेची लाव्या. १० दशमानो पाठ आठमा पाठनी साथै घणो मलतो छे. विशेष ए छे के - दशमा पाठमां प्रजापतिना - पगथी - पेटथी अने मस्तकथी त्रणे लोकनी उत्पत्ति थई, आठमा पाठमा मात्र प्रजापतिनातपना प्रभावथी पोतानी मेले उत्पन्न थई गई. आ उपरना लेखोनो किंचित् विचार करी बतावुं तो अजाण वर्गने सुगम पडे. मान्य एवी मनुस्मृतिमां जणाववामां आव्युं हतुं के - “स्वयभ्रं 11 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवाने पाणी बनावी बीज नाख्यं ले सोनातुं इंडं थयूं तेमां ब्रह्मानी मनुष्यना खर्व निखर्व वर्षी सुधी रह्या पछी ध्यान धरीने बेभाग कर्या तेथी आकाश अने पृथ्वीबे बनी गयां." प्रथम आकाश अने पृथ्वी बेमांथी एके न हतुं तो पाणी शेमां राख्यु ? अने बीज क्यां नांख्युं ? हवे जूवो अमोए जे दश पाठ मुक्या छे तेमांनो पेहलो यजुर्वेदनो पाठ-परमात्मानी नामिना कमलमां ब्रह्माजी चउद मुवनने लेईने रहेला हता. ते शा कारणथी अने केटलां वर्ष सुधी रह्या तेनो खुलासो कांई करेलो नथी पण विचार करवानी जरुर छे. केम के प्रजापतिने अनादि मानेलो छे. बीजो पाठ पण यजुर्वेदनोज छे. तेमां एम जणाव्यु छे के परमात्माए पोते जलमां रहीने गर्भ धारण कयों तेमाथी ब्रह्माजी उत्पन्न थया तो जाणवान ए छे के जल क्या रहेलं हशे वारु ? हवे त्रीजा शतपथब्राह्मणना पाठमां-"परमात्माए कूर्मनुं रूप धाण करीने आ सृष्टिनी रचना करी. तेथी आ सृष्टि काश्यपी कहेवाई." प्रथम आ सृष्टिन न हती तो ते परमात्मा क्या रह्या हशे ? ' अने कूर्मन रूप कये ठेकाणे रहीने धारण कर्यु हशे वार ? बीजू कोई पण रूप न धारण करतां धर्मरूपज धारण करवामां शं विशेष हो वारू! अमोने तो आ लेखोज काई विचित्र वा लागे छे. Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हवे जूओ आठमो पाठ शतपथब्राह्मणनो. अने दशमो-गोपथब्राह्मणनो तेमां एवं जणाववामां आव्युं छे के-“ प्रथम प्रजापति एकलोज हतो. घणां रूप थवानी इच्छा करीने तप कर्यो." एवो कयो तप को हशे ? के जे तपना प्रभावथी त्रण लोकनी रचना करवानी शक्ति उत्पन्न थई ? वेर, फरीथी त्रणे लोकनी पासें तप कराव्यो. तेमां बीजो लोक तो आकाश छे ते तो शुन्यरूप (पोलार रूपे) छे तेनी पासे तप केवी रीते कराव्यो ? केम के ते आकाश तो रूप अने रंग विनानो छे. वली दशमा पाठमां तो-निरंजन निराकार परमात्माना पग पेट अने मस्तक सुद्धां बनावी देई तेमाथी त्रण लोकनी उत्पत्ति बतावी दीधी ? अने कहे छे के-चारे वेदो तो परमात्माना तरफथीन बक्षीश रूपे मळेला छे. तेनी उत्पत्ति पण विचित्र प्रकारथीज अमारा महापुरुषोए (१) बतावी छे तेनो पण विचार ते दश पाठोमांधीज थोडोक करीने बतायूँ छ । - जुवो-(४) चोथो पाठ-अथर्व सं० कां० १० मानो-ऋग्वेद अने यजुर्वेद ए बे तो खास परमात्माथी उत्पन्न थया. पण ते कया अंगथी अने केवी रीते उत्पन्न थया अने ते कई चीजमा राखवामां आव्या ते वातनो खुलासो कांई पण करेलो नथी. आ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६४) विचार एटला माटे उत्पन्न थयो के त्रीनो वेद परमात्माना केशरूपे अने चोथो वेद मुखरूपे कल्पेलो छे. तेथीज आ विचार करवानी जरुर पड़ी छे.॥ ५ पांचमो पाठ-ऋग्वेद अष्टक मानो छे तेमां ए छे के-यज्ञ करवा मांड्यो हतो-तेमांथी-सामवेद, गायत्री आदि अने यजुर्वेद उत्पन्न थया. आमां ऋग्वेद बताव्यो नथी. यज्ञमांथी तो ज्वालाओ निकले पण वेदो केवा स्वरूपथी निकल्या हशे अने ते शेनामां झीली लीधा हशे ! वेदो विना यज्ञनी विधि शेनाथी करी हशे ? ६ छठो पाठ-शतपय कां० १४ मानो छे तेमां तो--परमात्माना निःश्वासथीज चारे वेदोनी उत्पत्ति बतावी. तो विचार ए थाय छे के-अनादि स्वरूपना परमात्माए शुं ते निःश्वास एकज वखते लीधो हशे ? शुं हवे फरीथी निःश्वास लेतो नहीं होय ? अने लेतो हो तो हवे शी वस्तुनी उत्पत्ति थती हो ? परमात्माने तो शरीर विनानो कहेलो छे तो तेणे निःश्वास नाक विना केवी रीते अने क्यांथी मुक्यो हशे ? आ बधी कल्पनाओ योग्य थई होय एम अमोने कांई लागतुं नथी. बाकी तो वाचक वर्गनी ध्यानमां आवे ते खरु.॥ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६५) ७ सातमो पाठ-तैत्तिरीय ब्राह्मण भाग अष्टक बीजानो छे तेमां तो प्रजापति ने परमात्मा तेमणे प्रथम सोमराजाने उत्पन्न कर्यो. अने पछीथी त्रण वेदोने उत्पन्न कर्या. अने ते वेदोने सोमराजाए पोतानी मुठीमा लेई लीधा. सोमराजाने प्रथम उत्पन्न कर्यो. तो प्रजा विना राजा कोनो थयो हशे ! अने मुठीमां वेदोने केवी रीते पकडीने राख्या हशे वारुं ? ॥ ( हवे आठमो पाठ-शतपथ ब्राह्मण कांड ११ मानो आपेलो छे ते. अने (१०) दशमो पाठ-गोपथब्राह्मण भाग छठानो छे तेमां तो-प्रजापतिए पोतेज तप करीने त्रणलोकनी उत्पत्ति करी, बाद त्रणलोकनी पासे तप करावीने त्रण देवोनी उत्पत्ति करावी, त्यार बाद ते त्रणे देवोए तप कर्यो तेना पछी त्रण वेदोनी उत्पत्ति थई. आ वेदोत्पत्तिनी वात ( मा अने १० मा पाठमां मलती आवेली छे. सज्जनो ? आ सृष्टिनी उत्पत्तिना संबंधे. तेमन वेदोनी उपत्तिना संबंधे. जो पुराणोमां सत्य प्रमाण खोळवा जईए तो कोई पुराण बतावशे-ब्रह्माजी, तो कोई शिवजी, कोई विष्णु तो कोई कालीदेवी, तेथी तेने तो पंडितो प्रमाणमां मुकवा देता नथी पण अमोए जे जे प्रमाण आपेलां छे तेमां केटलांक तो खास Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेदनांज छे. अने बीजां पण वेदतुल्य ग्रंथोनांज छे. ज्यारे एवा ग्रंथोमांथी पण मुख्य वातोनुं सत्य न मली शके तो पछी बीजे कये ठेकाणेथी सत्य शोधी लाव ? माटे अमोने निश्चय थयो छे के जैनोना तीर्थकरोनी बरोबरी करवाने बीजो कोई पण पुरुष आज सुधी थएलो नथी अने तेमना कथन करेला तत्त्वग्रंथोने जोई-घणा एक तत्त्ववेत्ताओ स्तुति करवाने प्रेराएला छे. अने तेवा लेखोज आ पुस्तकमां अपाया छे. वली जुबो-जून १८९९ ना सुदर्शनमा आवेला-प्रो० आनंदशंकर बापु भाई ध्रुवेना उद्गारो-x “२ बौद्ध अने जैनधर्मनो पण विशालहृदयथी आ योजनामां समावेश करवो घटे छे. कारण के-ए धर्मोनो उपदेश मूलमां ब्रह्मधर्मने अंगेज थयो हतो अने ते ते समयमा प्रवर्त्तमान अनेक प्रकारना कचराने ब्राह्मधर्मना प्रवाहमांथी दूर करवाने ए धर्मो शक्तिमान थया छे ” विचार एटलोज के-ते तीर्थंकरो केवा उच्च गुणोंने धारण करवावाला हशे ! हवे मात्र तेमना टुंक गुणोना परिचयवाली एक महा कविए करेली स्तुतिने आ पुस्तकमां दाखल करी आ प्रयम भागनी समाप्ति करवाचं धारीये छे. - -- - x सेन्ट्रल हिंदु कॉलेज-बनारसना मथालाना लेखथी ॥ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३७ ) || परमपरमात्माना स्वरूपनं अवतरण ॥ आ दुनियामां अनादिकालथी रहेला अनंत जीव पदार्थो छे तेमज अनादी काली रहेला परमाणु आदि अजीव पढ़ार्थो पण छे. ते पदार्थोना यथार्थ स्वरूपनो प्रकाशक पुरुष कयो थाय अने ते केवी रीती उत्पन्न याय तेनुं किंचित्मात्र स्वरूप जणाaafने आ अवतरण करी बतावुं हुं. ते अंनत जीवोमांश्री गमे ते जीव, पोताना विशुद्ध चारित्रवडे अनेक भवोथी ( अनेक जन्मोथी ) पोताना आत्मानी शुद्धी मेळवतो मेळवतो, उत्तमोत्तमताना स्वरूपने प्राप्त थतो, छेवट पोताना मोक्षनी प्राप्तिना भवमां पण - राज्य, स्त्री, पुत्र, नादिक जे जे बाह्यपदार्थो आत्माने विकार करवा वाला छे. तैनाथी सर्वथा दूर रहने अर्थात् प्रत्रज्या ग्रहण करीने, रागद्वेष मोह अज्ञानादिक जे जे आत्मगुणोना घातक अंतरंगना महादूषणो छे तेमनो सर्वथा नाश करीने, प्राप्त र्क्यु छे-रूपी अरूपी सर्वचराऽचर पदार्थोनो प्रकाश करवावाळु केवलज्ञान, तेनीज साथे प्रगट थयुं छे - जगतना जीवोने उपदेश करवाना स्वरूपं तीर्थंकर नाम कर्म जेमने, ते परमात्मा पोते आ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुनियामां अनादिकालथी रहेला अनंतजीव पदार्थो अने अनंत परमाणुओ आदि अजीव पदार्थो वखतोवखत कोई एक विकारने प्राप्त थवाथी उत्पन्न थता अने तेवाज कारणथी रूपांतरने प्राप्त थता जाणीने, अज्ञानांधकूपमां पडेला भत्र्यप्राणीओने इंद्रियाऽगोचर सूक्ष्ममां सूक्ष्म पदार्थानो बोध आपी मुक्या छे प्रकाशमां जेणे, तेवो परम परमात्मा शुं एकज थतो हो ? ना, ते एकतो नहींज. पण-जैनसिद्धांतमां प्रसिद्ध-वीस कोडाकोडी सागरोपमनुं जे एक काळचक्र छे-तेमां एक उत्सर्पिणी काल छे, तेमां ते धर्मना प्रवर्तको चोवीसज थाय. अने तेज प्रमाणे बीजा अवसर्पिणीकालमां पण धर्मनी प्रवृत्ति कराववाना अधिकारवाला ते चोवीशज थाय. बाकी अधिकार विनाना पोताना कर्मानो सर्वथा नाश करीने गमे तेटला मोक्षे जाय तेनो तो नियम जैन सिद्धांतमां नथी. पण ते मोक्षे गयेला फरीयी पाछा आ दुनियामां आवे नहीं ए नियम तो जरुर छेज. आवा प्रकारना नियमथी अतीतकालमां अनंती चोवीशी थई गई अने भविष्यकालमां पण अनंती चोवीशीओ थया करवानीज, तेथी तेवा अनंत परमात्मा एकज प्रकार की उपदेशनो अधिकार भोगवी भोगवीने पोताना उद्धारनी साथे सत्य तत्त्वोनो प्रकाश करीने आ दुनियानो पण Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्धारज करता गया छे. तेथी ते परमात्मा अनंतज छे परंतु अनादिकालनो एकन नियंता आ दुनियानो उद्धार कर्याज करे छे एवा प्रकारनी गुंचवन जैनतत्त्वोना वेत्ताने रहेतीन नथी अने आवा प्रकारनी मान्यता छे ते सयुक्तिकज छे पण युक्ति विनानी नथीज. ते परम परमात्मामां कया कया दूषणोनो नाश थई केवा केवा प्रकारना अलोकिक गुणो प्रगट थता हशे, तेवा गुणोनेज टुंकमां जणाववाना हेतुथी महाकवि श्रीसिद्धसेनसूरीश्वरजी मात्र बत्रीश काव्यमांज ते परम परमात्मानी स्तुति करतां पोते कहे छे के-तेवा गुणवाला परमात्माना शरणधीज मारु कल्याण थाओ, एम कहेता थका पोते बीजा भव्य प्राणिओने पण तेमनुज शरण लेवानुं सूचवी रह्या छे. तेज स्तुति अमो पण बीजा जीवोना उपकारना माटे आ जगो पर दाखल करीने बतावीए छीए Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीः। ॥ श्रीसिद्धसेनसरिविरचिता ॥ परमपरमात्मस्तुतिद्वात्रिंशिका. सदा योगसात्म्यात् समुद्भुतसाम्यः प्रभोत्पादितप्राणिपुण्यप्रकाशः । त्रिलोकीशवन्यस्त्रिकालज्ञनेता स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ १ ॥ भावार्थ--पूर्णज्ञानादिकना योगयी उत्पन्न ययुं छे सदा समतापणु जेमने अने तेज ज्ञानादिकनी प्रभाथी कर्यो छे धर्मनो प्रकाश जेमणे, तथा जे इन्द्र १ नागेन्द्र २ अने राजेन्द्रथी वन्द्य, त्रिकालज्ञानिओना पण ईश छे ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे याओ ॥ १॥ शिवोऽधादिसङ्ख्योऽथ बुद्धः पुराणः पुमानप्यलक्ष्योऽप्यनेकोऽप्यथैकः । प्रकृत्यात्मवृत्त्याऽप्युपाधिस्वभावः स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ २ ॥ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७१) भावार्थ-जे निरुपद्रव, तीर्थस्थापवामां आद्य, ज्ञानवान् , सर्वेमां वृद्धरूप पुरुष, इन्द्रियोथी अगम्य, ज्ञानथी अनेकरूपवाळो पण निश्चयथी तो एकज. कर्मनी उपाधिथी मुक्त थई आत्मलीनस्वभावमय छे ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे याओ ॥ २ ॥ जुगुप्सामयाऽज्ञाननिद्राऽविरत्य भूहास्यशुग्द्वेषमिथ्यात्वरागैः। न यो रत्यरत्यन्तरायैः सिषेवे स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ ३ ॥ भावार्थ-१ दुगन्छा, २ भय, ३ अज्ञान, ४ निद्रा, ६ अविरति, ६ कामाभिलाष, ७ हास्य, ( शोक, ९ द्वेष, १० मिथ्यात्व, ११ राग, १२ रति, १३ अरति, अने दानादि पांच अन्तराय एवं मळी १८ दोषोथी जे सेवाएलो नथी ( सर्वथा मुक्त) ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ॥३॥ न यो बाह्यसत्त्वेन मैत्री प्रपन्न स्तमोभिन नो वा रजोभिः प्रणुनः । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७२ ) त्रिलोकीपरित्राण निस्तन्द्रमुद्रः स एकः परात्मागतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ ४ ॥ भावार्थ - जे लौकीक बाह्यसत्त्वनी मैत्री ( पुद्गलरा गदशा ) ने प्राप्त थलो नथी. अने रजोगुणथी तथा तमोगुणथी पण प्रेराएलो नथी. त्रणे लोकनी रक्षा माटे प्रगटपणे मूर्ति छे जेमनी एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ ४ ॥ हृषीकेश ! विष्णो ! जगन्नाथ ! जिष्णो ! मुकुन्दाच्युत ! श्रीपते ! विश्वरूप ! अनन्तेति सम्बोधितो यो निराशैः, स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ ५ ॥ Answ आ ५, ६ अने ७ मा काव्यमां- हृषीकेशादिक जे जे नामोथी स्तुति करवामां आवी छे. ते ते शब्दोना अर्थ प्रमाणे खरा गुणवाला तो एज परमपरमात्मा छे. बाकी बीजामतवालाओए तो नाममात्रथीज कल्पी लीला छे. कारण न तो तेवा अलोकिक गुणोवाली ते देवोनी कल्पेली मूर्तिओ छे तेमज न तो तेवा गुणोवालां ते देवोनां चरित्रो लखाएलां जोवामां आवे छे. माटे तेमणे कल्पेला ते देवो नाममात्रथी तो खरा परंतु गुणोथी नहीं एवो आ स्तुतिकारनो आशय छे. Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७३) भावार्थ हे हृषीकेश- अतीन्द्रियज्ञानिन् ! ( १ ) हे विष्णो- ज्ञानयी सर्वव्याप्त ! (२) हे जगन्नाथ- जगत्ना जीवोना नाथ ! ( ३) हे जिष्णो- रागादिकने जितनार ! ( ४ ) हे मुकुन्द- पापी छोडावनार ( ५ ) हे अच्युतनिजपदथी अच्युत ! (६) हे श्रीपते- केवलादि लक्ष्मीना पति ! (७) हे विश्वरूप- असंख्य प्रदेशथी आवृत ! (८) हे अनन्त- अन्तविनाना सिद्ध ! (९) एवी रीते जे आशा विनाना लोकोथी संबोधाएलो छे ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ ५॥ पुराऽनङ्गकालाऽरिराकोशकेशः कपाली महेशो महाव्रत्युमेशः । मतो योऽष्टमूर्तिः शिवो भूतनाथः स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ ६॥ भावार्थ-(१) जे क्षपकश्रेणीसमये मलीन कामदेवनो शत्रु, (२) अन्तना आकाशनो ईश, (३) ब्रह्मचर्यने पालनार, ( ४ ) ऐश्वर्यने भोगनार, (६ ) महाव्रती, (६ ) केवलज्ञानरूप पार्वतीनो ईश, (७) सर्वजीवोने सुख करनार, ( ८ ) सर्वप्राणिओनो नाथ ए आठ मूर्तिरूपथी मनाएलो छे ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा “अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ ६ ॥ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७४ ) विधिर्ब्रह्मलोकेशशम्भूस्वयम्भूचतुर्व मुख्याभिधानां विधानम् । ध्रुवोऽथो य ऊचे जगत्सर्ग हेतु: स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ ७ ॥ भावार्थ - ब्रह्मा ( १ ) लोकेश ( २ ) शंभू ( ३ ) स्वयंभू ( ४ ) चतुर्मुख ( १ ) आदि नामोने धारण करनार अने जगत्ना भव्यप्राणिओने मोक्षमार्गनी रचना करवामां हेतुरूप ध्रुवपणे थतो एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ ७ ॥ न शूलं न चापं न चक्रादि हस्ते न हास्यं न लास्यं न गीतादि यस्य । न नेत्रे न गात्रे न वक्त्रे विकारः स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ ८ ॥ भावार्थ — जेमना हाथमां नथी तो त्रिशूल, धनुष्, चक्रादिक अने जे नथी करतो हास्य नाट्य गीतादिक, तेमज नथी तो जेमना नेत्र, शरीर अने मुख उपर विकार एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याण माटे थाओ ॥ ८ ॥ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७५) न पक्षी न सिंहो वृषो नापि चापं न रोषप्रसादादिजन्मा विकारः । न निन्द्यैश्चरित्रैर्जने यस्य कम्पः स एकः परात्मा गतिम जिनेन्द्रः ॥ ९ ॥ भावार्थ तथा नथी तो जेमने पक्षी, सिंह अने बलदादिकनुं वाहन. तेमज धनुषु विनानो अने रागद्वेषजन्य विकारथी मुक्त, अने जेमना निन्धचरित्रोथी, लोकोने पण भय नथी, एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे याओ ॥ ९ ॥ न गौरी न गङ्गा न लक्ष्मीर्यदीयं वपुर्वा शिरो वाऽप्युरो वा जगाहे । यमिच्छावियुक्तं शिवश्रीस्तु भेजे स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ १० ॥ भावार्थ-नथी तो जेमना शरीर साथे पार्वती अने नथी नेमना मस्तके गङ्गा, तेमन नथी जेमना वक्षःस्थल उपर लक्ष्मी उतां पण जे इच्छारहित प्रभने मोक्षलक्ष्मी वरी छे, एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ॥१०॥ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७६) जगत्सम्भवस्थेमविध्वंसरूपै रलीकेन्द्रजालैन यो जीवलोकम् । महामोहकूपे निचिक्षेप नाथः स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ ११ ॥ भावार्थ-तेमज जगत्नी उत्पत्ति करवारूप, नाश करवारूप अने ध्रौव्यरूपी खोटा इन्द्रजालना स्वरूपथी जेमणे लोकोने महामोहरूपी रूपमां पण नांख्या नथी एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ ११ ॥ समुत्पत्तिविध्वंसनित्यस्वरूपा यदुत्था त्रिपद्येव लोके विधित्वम् । हरत्वं हरित्वं प्रपेदे स्वभावैः स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ १२ ॥ भावार्थ तथा उत्पत्ति १ ध्वंस २ अने नित्यरूप ३ जे त्रिपदी जेमनाथी प्रगट थएली तेज पोतपोताना, स्वभावथी आ १ अनादि अनंतपणाथी रहेला-जीव अजीवादि पदार्थो कारणवशथी उत्पन्न अने ध्वंस थई ने पण पाछा पोतपोताना स्वभावने प्राप्त थवाना एवो जे जिनेश्वर देवनो उपदेश छे तेने त्रिपदी कहेवामां आवे छे. Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७७) लोकमां ब्रह्मा १ विष्णु २ अने महेश ३ पणाना स्वरूपने धारण करीने रही छे. एवो ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे याओ ॥ १२ ॥ त्रिकालत्रिलोकत्रिशक्तित्रिसन्ध्य त्रिवर्गत्रिदेवत्रिरत्नादिभावैः। यदुक्ता त्रिपद्येव विश्वानि वने स एकः परात्मा गतिम जिनेन्द्रः ॥ १३ ॥ भावार्थ-जेमनी कहेली उत्पाद १ व्यय २ ध्रौव्य ३ रूपी त्रिपदी- भूत १ भविष्य २ अने ३ वर्तमान काळथी । स्वर्ग १ मृत्यु २ अने ३ पातालना लोकथी । प्रमुत्त्व १ उत्साह २ अने ३ मंत्रनी शक्तिथी। प्रातः १ मध्यान्ह २ अने ३ सन्ध्याना रूपथी। धर्म १ अर्थ २ अने ३ काम ए त्रण वर्गथी ब्रह्मा १ विष्णु २ अने शिव ३ ए त्रण देवथी । ज्ञान १ दर्शन २ अने चारित्र ३ ए त्रण रत्नथी। ए आदि अनेक भावोथी सारा जगत्मा व्यापी रहेली छे एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे याओ ॥ १३ ॥ यदाज्ञा त्रिपद्येव मान्या ततोऽसौ तदस्त्येव नो वस्तु यनाधितष्ठौ । Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतो ब्रूमहे वस्तु यत्तद् यदीयं ___ स एका परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥१४॥ भावार्थ-जेनी त्रिपदी छे ते ज मान्य छे. दुनीयामां कोई तेवी वस्तु पण नथी के जे त्रिपदीने धारण न करती होय एटलाज माटे कहिये छे के जेनी ए त्रिपदी छे ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ॥ १४ ॥ न शब्दो न रूपं रसो नाऽपि गन्धो न वा स्पर्शलेशो न वर्णों न लिङ्गम् । . न पूर्वापरत्वं न यस्यास्ति संज्ञा स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥१५॥ भावार्थ-जेमने शब्द, रूप, रस, गन्ध, अने स्पर्श ५ ए पांचे विषयो नथी । श्वेतादिवर्ण, पुरुषादिलिंग, अने आ पहेलो. आ बीजो एवी संज्ञा पण नथी एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याण माटे थाओ ॥ १५ ॥ छिदा नो भिदा नो न क्लेदो न खेदो न शोषो न दाहो न तापादिरापत् । न सौख्यं न दुःखं न यस्यास्ति वाञ्छा स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥१६ . Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जला ( १७९ ) भावार्थ — जेमनो शस्त्रादियी छेद, करवतादिथी भेद, दिथी आर्द्रपणु, खेद, शोष, दाह, ताप, आपत्ति, सुख, दुःख, वांछादि पण नथी एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ १६ ॥ न योगा न रोगा न चोद्वेगवेगाः स्थितिर्नो गतिर्नो न मृत्युर्न जन्म | न पुण्यं न पापं न यस्याऽस्ति बन्धः स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ १७ ॥ भावार्थ – मन, वचन अने कायाना योगो, चित्तोद्वेग, आयुःस्थिति, भवान्तरगति, मरण अने पाप, तेमज कर्मनो बन्ध, ए सर्व प्रकार पण जेमने एवो ते एकञ जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याण माटे थाओ ॥ १७ ॥ अने रोगो, जन्म, पुण्य, रहेलो नयी तर्पः संयमः नृतं ब्रह्मे शौच मृदुत्ववाँकिञ्चनत्वार्निं मुक्तिः । क्षमै यदुक्तो जयत्येव धर्मः स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ १८ ॥ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८०) भावार्थ-तप १ संयम २ सत्य ३ ब्रह्मचर्य ४ अचौर्यता ५ निरभिमानता ६ सरळता ७ अपरिग्रहता - निर्लोमता ९ अने क्षमा १० ए दश प्रकारनो यतिधर्म जेमनो कहेलो जयवंतो क्त्तें छे. एवो ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ १८ ॥ अहो विष्टपाधारभूता धरित्री निरालम्बनाधारमुक्ता यदास्ते । अचिन्त्यैव यद्धर्मशक्तिः परा सा स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ १९ ॥ भावार्थ-अहो इति आश्चर्ये जगत्ने आधारभूत आ गृथ्वी आलम्बन अने आधार विना रही छे ते पण जेमना कहेला दश प्रकारना यति धर्मनीन अचिन्त्य शक्ति छे. एवो ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ १९ ॥ न चाऽम्भोधिराप्लावयेद् भूतधात्री समाश्वासयत्येव कालेऽम्बुवाहः । यदुद्भूतसद्धर्मसाम्राज्यवश्यः स एकः परात्मा गति जिनेन्द्रः ॥ २०॥ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८१) भावार्थ-जे प्रमुथी उत्पन्न थयेला दश प्रकार सद्धमना साम्राज्यने वश थएलो आ समुद्र पृथ्वीने डुबावतो नथी. तेमन वर्षा पण वखतो वखत वर्षीने लोकोने धीरज आप्या करे छे एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ॥२०॥ न तिर्यग् ज्वलत्येव यज्ज्वालजिव्हो यदृषं न वाति प्रचण्डो नभस्वान् । स जागर्ति यद्धर्मराजमभावः स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ २१ ॥ भावार्थ-जे भगवंतना कहेला दश प्रकार धर्मराजाना जाग्रत प्रतापथी अग्नि तिरछो ज्वलित थतो नथी. अने प्रचण्ड वायु पण उंचो वातो नथी एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ॥ २१ ॥ इसौ पुष्पदन्तौ जगत्यत्र विश्वो पकाराय दिष्टयोदयेते वहन्तौ । उरीकृत्य यत्तुर्यलोकोत्तमाज्ञां स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ २२॥ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८२) भावार्थ-जे चारे लोकमां उत्तम एवा लोकोत्तर भगवान्नी (परम परमात्मानी ) आज्ञाने अंगीकार करीने आ चन्द्र अने सूर्य पण आ दुनीयाने उपकार करवा माटे खुशीथी उदय थया करे छे. एवो ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ॥ २२ ॥ अवत्येव पातालजम्बालपाताद् विधायाऽपि सर्वज्ञलक्ष्मीनिवासान् । यदाज्ञाविधित्साश्रितानङ्गभाजः स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ २३ ॥ भावार्थ-जे भगवन्तनी आज्ञा करवानी इच्छाने आश्रित यएला भव्य प्राणिओ छे तेमने सर्वज्ञलक्ष्मीना घररूप बनावी, नरक निगोदादिक कादवमां पडतांथी बचाव करे छे एवो ते एकन जिनेंद्र परमात्मा अमारा कल्याण माटे थाओ ॥ २३॥ सुपर्वद्रुचिन्तामणीकामधेनु प्रभावा नृणां नैव दूरे भवन्ति । चतुर्थे यदुत्थे शिवे भक्तिभाजां .... स एका परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ २४ ॥ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८३) भावार्थ-जे प्रमुथी प्रकट थएला चोथा लोकोत्तर मोक्षमार्गमा जे पुरुषो भक्तिवाळा थया छे तेमनाथी कल्पवृक्ष, चिन्तामणिरत्न अने कामधेनुना प्रभावो पण वेगळा रहेता नयी. एवो ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ २४॥ कलिव्यालवन्ग्रिहव्याधिचौर व्यथावारणव्याघ्रवीथ्यादिविघ्नाः । यदाज्ञाजुषां युग्मिनां जातु न स्युः स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ २५ ॥ भावार्थ-जे परम प्रमुनी आज्ञाने सेवन करनारा स्त्री पुरुषो छे तेमने क्लेश, सर्पभय, अग्निभय, ग्रहपीडा, रोग, चोरभय, हस्ति वाघनी श्रेणीनो भय इत्यादि दुष्ट विघ्नो कदी पण थतां नथी एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे याओ ॥२५॥ अवन्धस्तथैकः स्थितो वा क्षयीवा ऽप्यसद्वा मतो ये डैः सर्वथाऽऽत्मा । न तेषां विमूढात्मनां गोचरो यः स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ २६ ॥ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८४) भावार्थ-जे अज्ञानिओए आत्माने एकान्तपणे कर्मना बन्धयी रहित, वेदांतिओनी पेठे। एकान्तपणे एकज, स्थिर, अने बौद्धनी पेठे विनाशी-स्वप्नवत् असत् माने छे ते जड पुरुषो विवक्षाथीतो ए सर्वे गुणोवालो आत्मा छे पण एकांतपणाथी नहीं एम कथन करवावाला ने सत्य प्रभुने नथी ओळखी शक्या एवो ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥२६॥ न वा दुःखगर्भे न वा मोहगमें स्थिता ज्ञानगर्भे तु वैराग्यगर्भे । यदाज्ञानिलीना ययुजन्मपारं ___ स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ २७ ॥ भावार्थ-जे पुरुषो सत्य प्रमुनी आजाने वश थया छे ते संसार-समुद्रथी पारने पम प्राप्त थया छे. ते प्रमुनी आज्ञा दुःखगर्भवैराग्यमां के मोहगर्मवैराग्यमा रहेली नथी पण ते ज्ञानगर्भवैराग्यतत्त्वमांज रहेली छे एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ २७ ॥ विहायाऽऽश्रवं संवरं संश्रयैव । यदामा पराऽभाजि यनिर्विशेषैः । Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८५) स्वकस्तैरकार्येव मोक्षो भवो वा स एकः परात्मा गतिमे जिनेन्द्रः ॥ २८ ॥ भावार्थ हे जीव ! आश्रवने त्यागी संवरनो आश्रय ले, एवा सामान्य वैराग्यवाळा पुरुषो होवा छतां पण जे परम प्रमुनी आज्ञाना सेवनथी पोतानो भव ( जन्म ) मोक्षरूप बनाव्यो छे अर्थात् जीवनमुक्तरूप थया छे एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ २८ ॥ शुभध्याननीरैरुरीकृत्य शौचं सदाचारदिव्यांशुकैर्भूषिताङ्गाः । बुधाः केचिदईन्ति यं देहगेहे स एकः परात्मा गतिमे जिनेन्द्रः ॥ २९ ॥ भावार्थ-केटलाक महापुरुषो धर्मध्यानरूप जलयी शौच अंगीकार करीने अने सदाचाररूप दिव्य वस्त्रोथी भूषित थएला, पोताना शरीररूप मन्दिरमा जे परमात्माना स्वरूपनी पूना करे छे. ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ॥ २९ ॥ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८६) दयासूनृतोऽस्तैयैनिःसङ्गमुद्रा तपोज्ञानशील गुरूपास्तिमुख्यैः । मुमैरष्टभिर्योऽय॑ते धाम्नि धन्यैः स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ ३० ॥ भावार्थ-क्ष्या १ सत्यवचन २ पारका धनथी दूर रहेवू ३ परिग्रहथी मुक्त ४ इच्छानो रोध ५ तत्त्वनो बोध ६ ब्रह्मवत ७ गुरुनी सेवा ८ ए आठ गुणनी प्राप्तिरूप पुष्पोथी पोतानी ज्ञानज्योतिमा पुण्यवंत पुरुषो जे परमात्माने पूजी आठ कर्मनो क्षय करी रह्या छे ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ ३० ॥ महाधिनेशो महाज्ञामहेन्द्रो महाशान्तिभर्ता महासिद्धसेनः । महाज्ञानवान् पावनीमूर्तिरर्हन् स एकः परात्मा गति जिनेन्द्रः ॥ ३१ ॥ भावाथ-जे अर्हन् भगवान् महान्योतिरूप ऋद्धिना स्वामी छे, महाज्ञा करवामां महेन्द्र छे, महाशान्तरसथी भरेला छे, परम सिद्धोनी सेनावाळा छे, आ ठेकाणे सिद्धसेन एवँ कविए Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८७) पोतार्नु नाम पण सुचव्युं छे, महाज्ञानवान् छे, अने जेमनी मूर्ति जगत्ने पवित्र करवावाळी छे ते एंकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ ३१ ॥ महाब्रह्मयोनिमहासत्त्वमूर्ति महाहंसराजो महादेवदेवः । महामोहजेता महावीरनेता स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः॥ ३२ ॥ भावार्थ-जे महाब्रह्मज्ञाननी उत्पत्तिना कारणरूप, जे महाधैर्यनी मूर्तिरूप, सर्व जीवोनो पण जे महाराजा, महादेवोनो पण जे देव, जे महामोहने जीतवावाळो अने जे महावीरोनो पण अग्रेसर छे ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ ३२ ॥ इतिश्री सिद्धसेनसूरिविरचिता परमात्मस्तुति द्वात्रिंशिका समाप्ता । Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८८) आ उपर लखेली बत्रीशीमां सर्वज्ञनी स्तुतिद्वारा परमात्माना स्वरूपनुं वर्णन करी बतावेल छे. तेवा योग्य परमात्माना कथन करेला यथार्थ तत्त्वोने ग्रहण करवा विचारी पुरुषो प्रेराय ते स्वभाविक छे पण यद्वातद्वा पुरुषोना कहेला यद्वातद्वा तत्त्वोने विचार कर्या वार केवी रीते मानी शकाय ? कां छे केश्रुतिविभिन्ना स्मृतयो विभिन्ना नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम्। धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः॥ भावार्थ वेदनी श्रुतिओ भिन्न भिन्न कथन थएली छे, म स्मृतिओना मत पण मळता नथी, न तो कोई तेवो ऋषि . यएलो छे के जेनुं वचन प्रमाणिक थएवं छे, धर्मनो तत्त्व न जाणे कई गुफामां मुकी गया छे, छेवटनो रस्तो एन छे के महापुरुषो गया होय ते मार्गे चाल्या जर्बु।। ___सज्जनो ! जैनधर्मवाळाओने आ श्लोकमां करेली उदासीनता रहेती नथी, केमके-सूक्ष्ममा सूक्ष्म तत्त्वोनो परस्पर विरोधरहित विचार एकन सर्वज्ञ पुरुषना मुखथी प्रकट थएलो अने सर्व विचारी पुरुषोने अक्षरे अक्षर मान्य थएलो छे आम होवा छतां पण जणाक्वामां आव्यु छे के Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८९) पुराणं मानवो धर्मः सानो वेदश्चिकित्सितः । आज्ञासिद्धानि चत्वारि न हन्तव्यानि हेतुभिः । भावार्थ-१८ पुराण, मनुनो कहेलो धम, अंगोनी साधे वेदो, अने वैद्यक आ च्यार शास्त्रोमां जे प्रमाणे कहेलुं होय ते प्रमाणे मानी ले, पण कोईए तर्क करीने तेनुं खंडन करवू नहीं. विचार करो के प्रत्यक्ष विरुद्ध बाबतमां पंडितो तर्क कर्या वगर रहे खरा के ? पुराणोमां केटली पोल छे ते तो दयानन्दसरस्वतीना मंडले ( आर्यसमाजे ) जगत्मां प्रसिद्ध करीने मुंकी छे. वेदोनी मान्यताने लईने थती हिंसानो अणगमो जैन अने बौद्धोने तो प्रथमथीन थएलो जगजाहेर छे, ते सिवाय भागवत धर्मवाला, कबीरदास, तुकाराम, विगेरे अनेक महापुरुषोए पण वेदोथी थती हिंसानो अणगमो जाहेर करेलो छे. तेमन दयानन्दसरस्वतीजीने पण हिंसक श्रुतिओनी अरुचितो पुरेपुरी थएली हती पण सत्य क्यां छे तेनुं शोधन न करता केवल बापदादाना कुवामा पडीने डूबी मरवू कबूल राखी बधा वेदोनो अर्थ चालती रूदिप्रमाणे फेरवी जूदोन प्रकार करीने बताव्यो, तो ते आजकालना अल्पज्ञ पुरुषोनो करेलो वेदोनो अर्थ सत्यतत्त्वोना जिज्ञासुओने Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९०) मान्य थाय खरो के ? तथा 'न हन्तव्यानि हतुभिः' ए वाक्यथी तो हिंसाथी थतो अत्याचार तेमज ब्रह्मा विष्णु अने शिवजीना नामथी लखी मुकेला अनाचार अने परस्परविरुद्ध लखाएला असत्य विचारोनेन मनाववा कोशीस करेली होय एम प्रत्यक्षपणे सिद्ध थाय छे, एटलाज माटे कोई महात्मा कही गया छ के-- अस्ति वक्तव्यता काचित् तेनेदं न विचार्यते । निर्दोष काश्चनं चेत् स्यात् परीक्षायां बिभेति का ?॥ भावार्थ-वेद पुराणादिकमां घणी गरबड थएली छे तेथीन विचार करवानी ना पाडी रह्या छे, ए पण एक जातनो हठन छे. जेनुं सोनू निर्दोष छे ते शं परीक्षा कराववाथी कदी डरे खरो के ? सत्य होय ते तो न्यायी पुरुषोना आगळ सत्यज प्रगट थाय. उदाहरण तरीके अमोए आ चोपडीमां दाखल करेला जैनधर्मविषयक लेखोना लेखकमहाशयोज बश छे. बीजा उदाहरणोनी जरूरज शी छे ? वेदपुराणोमां लखेला बधाए सृष्टिना कर्ता साचान छे तो अमारा करेला आ नव प्रश्नोना खुलाशा न्यायपूर्वक युक्तियुक्त कोई प्रकट करशे तो घणा लोकोने विचार करवानी तक मळशे. Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९१) १ अनादिना एकज परमात्माए आ जगत्नी रचना करी त्यारे तो जगत्नी आदि अने परमात्मानी अनादि थाय के नहीं। __ २ परमात्मा अनादिनो छे तो ते पहेला केटला कालसुधी वेशी रह्या पछी रचना करवानी उपाधिमां पड्या हशे ? ___३ आ पृथ्वी अने आकाश बनता पहेलां परमात्मा प्रोते कया ठेकाणे रहेला हशे वारु ? ४ वळी कहो छो के-- परमात्मा तो निरंजन निराकार छे, तो तेने पग, पेट, माथु होय खरुं के ? ५ कहेशो न होय, तो पछी वेदनीज श्रुतिओमा परमात्माना पेट, पग अने माथाना क्रमथी नरक, मर्त्य अने स्वर्ग ए त्रण जगत्नी उत्पत्ति केम लखी हशे ? ___६ अने ते त्रणे लोकनी उत्पत्तिनी श्रुतिओ झूठी लखी हशे के साची ? ___७ जीवो अने परमाणुओ तो लोकोमा अनादि मनाय छे तो ते सृष्टिनी रचना पहेलां हतां के नहीं ? कदाच कहेशो के जीवो अने परमाणुओ सृष्टिनी रचना पूर्वे हतां तो पछी परमात्माए कई वस्तुनी रचना करी ? Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९२) ९ जो जीवो अने परमाणुओ प्रथम न हतां तो निरंजन निराकार परमात्मा आ प्रत्यक्ष देखाता जीवो अने परमाणुओ क्या स्थानमाथी लावीने आपणा प्रत्यक्षमा सुक्या हशे ? जो कहेशो के बनाव्या वगर कोई चीज बनती जोई ?, हा, वर्षाऋतुमां करोडो चीनो थाय छे त्यां कयो ईश्वर बनाववा आक्तो जोयो ? तथा पहेलवेलो कोई बनावनार जोइए एम जो कहेशो तो परमात्मानो पण कोई बनावनार केम न जोइए ? अमारा समनवा प्रमाणे आ सृष्टि अनादिकाळना प्रवाहथी चालती आवेली छे छतां जो कोई कर्ता मानवामां आवे तो ते कर्ताना संबंधे असंख्य दूषणोनी जाळ उभी थाय छे ते घणुंन अनिष्ट थाय छे, अने ते अनेक दूषणो बतावनारां अनेक पुस्तको जैनधर्मावलंबिओना तरफथी प्रगट थई गएलां छे, तेथी आ विषयने वधारे न लंबावतां मात्र वाचकोने विचार करवानी खातर आ नव प्रश्नोनो उल्लेख करी फॉर्मने पूर्ण करूं छु. सुज्ञेषु किं बहुना । Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ opan m. डॉ. हर्मनजेकोबीनी जैनसूत्रोनी प्रस्तावना. (प्रथम भाग.) [ अनुवादक-शाह अंबालाल चतुरभाई, बी. ए. ] 'x x x x x अत्यार सुधीनी आपणी सधळी चर्चा जैनोना पवित्रग्रंथोमांथी उपलब्ध थती परंपरागत कथाओनी प्रमाणिकता उपरज चालेली छे. परन्तु एक अतिशयविशाल-- ज्ञानवाला अने कुशलविचारक विद्वाने ए प्रमाणिकताना संबंधमांज शंका करेली छे. ए विद्वान् ते मी. बाथ (Barth) छे. १ उपरना भागमा जनोना अन्तिमतीर्थकर जे महावीर थया छे तेमनी उत्पत्तिको संवन्ध बौद्धोथी भिन्न टराबत्रा प्रयत्न करेलो छे ते प्रायः वासुदेव नरहर उपाध्ोना लेखनी साथे मळता जेबो होवाथी छोडी दई मात्र जेनोना पवित्रग्रंथोनी चर्चानो पाठलो भाग अक्षरशः अगोए लीधेलो छे, माटे जेओने पूर्वनो भाग जोवानी इच्छा थाय तेमणे जैनसा हित्यसंशोधक विमासिकना भाग १ नो अंक बीजो जोई लेवो. Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ qatil Reyue de l'Histoire des Religions Vol. III. P. 90 मां नातपुत्त नामनी एक तिहासिक व्यक्तिनो स्वीकार करे छे खरो, परन्तु जैनोना पवित्रग्रन्थो, छेक ई० स. नी पांचमी सदीमां-एटले के ए संप्रदायनी स्थापना । यया पछी लगभग एक हजार जेटला वर्षों व्यतीत थयां बाद, लखाएला होवाथी तेना आधारे कोई पण सबळ अनुमान करी. शकवाना संबंधमां ते मोटी शंका धरावे छे. जैनधर्मना संबंधमां तेनो एवो अभिप्राय छे के ए संपदायना ते प्राचीन कालथी लई पुस्तको लखाता सुधीना समय सुधीना, स्वसंवेदित अने सतत एवा अस्तित्वनो-अर्थात् तेना खास खास सिद्धांतो अने नोंधोनी निरंतर परंपरानो-हनी सुधी निर्णयात्मक रीते निकाल थयो नथी. वली ते जणावे छे के 'घणी शदियो सुधी तो जैनो, तेमना जेवा बीजा अनेकसंन्यासीवर्गो के जे फक्त अप्रसिद्ध अने अस्थिररूपे पोतानो जीवन गाळता हता तेओथी भिन्नरूपे ओळखायाज नहोता ' तेथी मि. बार्थना अभिप्राय मुजब जैनोनी सांप्रदायिकपरंपराओ ते मात्र बौद्धपरंपराओना अनुकरणरूपे, तेमणे पोताना अस्पष्ट अने अनिश्चित स्मरणोमांथी उपजावी काढेली छे. Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) मी. बार्थनो आ मत एवा अनुमान उपर स्थिर थएलो - मालुम पडे छे के, जैनो पोतानुं पवित्र ज्ञान एक पेढीथी बीजी पेढीने आपवामां घणाज बेदरकार रह्या हता, अने तेम रहेवामां कारण एछे के, ते घणी शदीओ सुधी मात्र एक नानो अने अनुपयोगी संप्रदाय हतो. मि. बार्थनी आ दलीलमां हुं काई प्रकार वज़न जोई शकतो नथी. हुं अहीं ए प्रश्न पूहुं हुं केजे धर्म पोताना थोडाक अनुयायिओ वडे एक मोटा प्रदेश उपर पथराएलो होय ते धर्म पोताना मौलिकसिद्धांतो अने परंपराओने वधारे सुरक्षित राखी शके छे, के जे धर्मने एक मोटा जनसमूहनी धार्मिक जरूरीआतो पूरी पाडवानी होय छे ते ? ए बेमांनी कई बाबत वधारे संभवित छे ? जो के एकंदररीले आ प्रकारनी हेत्वाभासात्मक तर्कपद्धतिथी आवा प्रश्ननो निर्णय थवो तो अशक्यज छे उपर्युक्त वे पक्षोना प्रथम पक्षमां याहुदी तथा पारसी ओनुं उदाहरण रजु करी शकाय छे अने बीजा पक्षमां - रोमन कॅथोलिक धर्मनो दाखलो आपी शकाय छे. परन्तु जैनो संबंधी प्रस्तुत प्रश्नना वादविवादनो निर्णय करवामां आवी जातना सामान्य सिद्धांतो उपर आधार राखवानी कांई आवश्यकता नथी. कारण के तेओने ( जैनोने ) पोताना सिद्धांतोनुं एटलं बधुं स्पष्ट ज्ञान हतुं के तेओए घणीज नजीवी बाबतमां मतभेद धरावनार . Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) पुरुषोने पण निन्हवरूपे जाहेर करी, पोताना श्रद्धालुओना विशाल समुदायमाथी तेमने जूदा करी दीधा हता. आ कथननी सत्यताना प्रमाण तरीके डॉ. ल्यूमने ( Dr. Leumonn ) प्रकट करेली श्वेतांबर संप्रदायनी सात निन्हवो विषेनी परंपरा छे अथा दिगंबरो जे श्वेतांबरोथी महावीरनिर्वाण पछी प्रायः बीजी अथवा त्रीजी शताब्दिमां जुदा पड्या हता, तेओ कांई तेमना प्रतिस्पर्द्धिओ (श्वेतांबरो) थी तात्त्विक सिद्धांतोमां मोटो मतभेद. घरावता नथी छतां पण आचारविषयक तेमना केटलाक भिन्न नियमोने लीधे, श्वेतांबरोए तेमने पाखंडियोना नामे वगोव्या छे. आ सघळी हकीकत उपरथी आ बाबत स्पष्ट रीते सिद्ध थाय छे के जैनागमो ( नुं हालनुं स्वरूप ) नक्की थया पहेला पण जैनधर्म एवा अव्यवस्थित अथवा अनिर्दिष्ट स्वरूपमां विद्यमान न हतो, के जेथी, तेनाथी अत्यंतभिन्न एवा अन्यधर्मो (दर्शनो)ना सिद्धांतो द्वारा तेनुं असल स्वरूप परिवर्तित अगर कलुषित थयुं हतुं, एम मानवाने आपणने कारण मळे. परन्तु आयी विरुद्ध उपर्युक्त प्रमाणो एम तो सिद्ध करी आपे छे खरां के तेमनी सूक्ष्ममां सूक्ष्म मान्यता पण सुनिश्चित स्वरूपवाळी हती. See Indische Studien, XVI. Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) जेवी रीते जैनोना धार्मिक सिद्धान्तोनी बाबतो आ रूपे सिद्व थई शके छे तेत्रीन रीते तेमनी ऐतिहासिकपरंपराविषयक बाबतो पण सिद्ध थई शके तेत्री छे. वंशपरंपरायी चालती आवती जे विविधगच्छोनी विस्तारयुक्त गुर्वावलिओ मळी आवे छे तथा जैन आगमग्रंथोमां जे स्थविरावलिओ उपलब्ध थाय छे ते स्पष्ट बताकी आपे छे के जैनो पोताना धर्मनो इतिहास राखवामां केटलो बधो रस धरावता हता. हुं एम कांई चोक्कप्त नयी कहेतो के आवी गुर्वावलिओ पाछलथी पण जोडी कढाती नथी के अपूर्ण पट्टावलिओने पूर्ण, एटले हिंदुओना शब्दमां कहिये तो 'पक्की' बनावी शकाती नथी, कारण के दरेक संप्रदायने, पोतानो संप्रदाय एक प्रतिष्ठित आप्तपुरुषथी प्रमाणीक रीते उतरी आवेलो छे, एम बताववा खातर पोतानी गुरु परंपराना नामो उपजावी काढवानी स्वाभाविक रीतेज जरूर पडे छे. परन्तु कल्पसूत्रमा जे एक, . स्थविरो, गणो अने शाखाओनी विस्तृत नामावली आपेली छे तेने कल्पी काढवामां जैनोने कोई पण प्रकारनुं प्रयोजन होय तेम हुं मानी शकतो नथी. कल्पसूत्रमा जेटली विगतो आपेली छे-तेटली पण 9 See Dr. Klatt, Ind. Aut. Vol. XI. ___ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (0) विगतोनुं ज्ञान त्यार पछीना जैनोने रह्यं न हतुं. तेम तेथी अधिक जाणवान तेओए क्यारे डोळ पण कर्यो न हतो. गुरुपरंपरानो नोयोग्य बधो व्यवहार चलाववा माटे कल्पसूत्रमां आपेली संक्षिप्त स्थविरावलि पर्याप्तज हती. तेम छतां पण तेमां आवेली. विस्तृत स्थविरावल के जेमां पण केटलांक तो एकलां नामोज जोवामां आवे छे ते ए बाबत स्पष्ट रीते जणावे छे के जैनो पोताना प्राचीन धर्माचार्यो स्थविरोनी यादगिरी राखवामां केटलो. धो रस धरावता हता. ते स्थविरावलीमां आलेखेला युगो तथा बनावोनी यथार्थ माहिती तेना पछी थोडीकन शदीओमां नष्ट थई गई हती. परन्तु मात्र आटलं सिद्ध करी बताववायी के जैनो तेमना आगमोतुं स्वरूप नक्की थया पहेला पण पोताना धर्म तथा संप्रदायने सतत चालु राखवा माटे, तेमज अन्यदर्शनीयसिद्धांतोना संमिश्रणयोगे उत्पन्न थती भ्रष्टताथी तेने बचावी सुरक्षित राखवा माटे योग्य गुणसंपन्न हता; आपणे आ विषयमां कृतकार्य थई शकता नथी. आपणे ए पण बतावी देवं जरूरतुं छे के तेओमां जे जे बाबत करी शकवानुं सामर्थ्य हतुं ते सघलं तेमणे संपूर्ण रीते कर्तुं हतुं आ चर्चा उपरथी आपणे स्वाभाविक रीतेज वर्तमान जैनसाहित्यना कालनी चर्चा उपर आवी जईए छीए. आ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयमां जो आपणे आटलं सिद्ध करी शकीए के जैनसाहित्य अथवा तो छेवटे ते पैकी जे केटलांक सौथी प्राचीन ग्रंथो छे, ते जैनपुस्तकारोहणना समयथी घणी सदीओ पहेलां रचाएला हता तो ते द्वारा आपणे जैनोना अंतिमतीर्थकर अने प्राचीनमा प्राचीन ग्रंथो ए बन्ने वच्चेना गाळाने, जो के सर्वथा दूर नहीं करी शकीए तो पण घणे अंशे अल्प करी आपवा समर्थ थई शकीशं. सर्वसम्मत संप्रदायनी अनुसार जनसिद्धांत वलमिनी सभामां देवर्द्धिगणिना अध्यक्षपणा नीचे निश्चित करवामां आव्यो हतो. आ बनाव वीरनिर्वाण पछी ९८० ( अथवा ९९३) मा वर्षे एटले इ० स० ४५४ ( अगर ४६७ ) मां' बन्यो हतो. एम कल्पसूत्र [६ १४८ ] उपरथी जणाय छे. संप्रदाय एवो छे के ज्यारे देवर्द्धिगणिए सिद्धांतने नष्ट थई जवाना जोखममां जोयो . स्यारे तेमणे तेने पुस्तकाधिरूढ कराव्यो. तेनी पहेला आचार्यों क्षुल्लकोने सिद्धांत शिखक्ती वखते लिखितग्रंथोनो बिलकुल उपयोग करता न होता. देवर्धिगणिना समय पछी ज लिखितपुस्तकोनो उपयोग शरू थयो.आ हकीकत तद्दन साची छे कारण १ संभवित न लागतुं होवा छतां ए शक्य छे के सिद्धांतनिर्णयनो समय आ करतां ६० वर्ष पछी एटले इ. स. ५१४ ( अथवा ५२७ ) होवो जोईए. जुओ कल्पसूत्र, उपोद्घात पृ. १७. Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के प्राचीन समयमा पुस्तकोनो बिलकुल उपयोग थतो नहतो एम आपणने बीनी हकीकतो उपरथी पण जणाई आवे छे. ब्राह्मणो तो लिखितपुस्तक करतां पोतानी स्मरणशक्ति उपरज विशेष आधार राखता हता. अने निःसन्देहरीते जैनोए तेमन बौद्धोए तेमनीज आ प्रथानं अनुकरण कयु हतुं परन्तु अत्यारे जैनयतिओ पोताना शिष्योने शास्त्र शीखवती वखते लिखित पुस्तकोनो उपयोग अवश्य करे छे. आ उपरथी आपणे मानवू पडे छे के शिक्षणपद्धतिमां थएलो आ फेरफार देवर्द्धिगणिने आभारी छे, एम बतावनारो वृद्धसंप्रदाय तद्दन साचो छे. कारण के आ बनाव बहुज महत्वनो होवाथी मुली शकाय तेम नथी. प्रत्येक आचार्यने अथवा तो छेवटे प्रत्येक उपाश्रयने आ पवित्र आगमोनी नकलो पूरी पाडवा. माटे देवर्द्धिगणिने सिद्धांतना पुस्तकोनी खरेखर घणी मोटी संख्या तैयार कराववी पडी हशे. हवे देवर्द्धिगणिए सिद्धांतने पुस्तकारूढ कराव्यो एवो जे लेखी संप्रदाय मळे छे तेनो भावार्थ प्रायः उपर प्रमाणेनो ज होवो जोईए कारण के एतो भाग्येन मानी शकाय तेQ छे के तेनी पहेलां जैनसाधुओ जे काई कंत्य करता हशे तेने सर्वथा नज लखता होय. ब्राह्मणो वेदनुं अध्ययन करावधामा लिखित ___ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९ ) पुस्तकोनो उपयोग करता नयी छतां पण तेमनी पासे तेवां पुस्तको तो जरूर जोवामां आवे छे. तेओ ( ब्राह्मणो ) आ पुस्तकोने खानगी उपयोग माटे एटले के गुरुनी स्मरणशक्तिने मदत करवा माटे राखे छे. मारूं दृढ मानवुं छे के जैनो पण आज पद्धतिने अनुसरता हशे वल्के ते ओ (जैनो) ब्राह्मगोथी पण वधारे आ पद्धतिनुं अनुकरण करता हो, केमके ब्राह्मगोनी माफक तेओनुं एवं मानवं तो हतुं ज नहीं के लिखित पुस्तको अविश्वस्य छे. तेओ तो मात्र जे एक प्रचलित रिवाज हतो, के आगमनुं ज्ञान मौखिक - तेज एक पेढी द्वारा बीजी पेढीनें अपावुं जोईए. तेने लई - नेज लिखित ग्रन्थोनो विशेष उपयोग करवामां संकोचाता हता. हुं अहीं एम प्रतिपादन करवा इच्छतो नथी के जैनोना पवित्र आगमो असली ज छुटा छवाया पण आवी रीते पुस्तकोमां लखेलाज हता. अने एम न कहेवानुं खास कारण बीजूं कांई नहीं परन्तु बौद्ध भिक्षुओ पासे लिखितपुस्तको न हतां एम जे कहेवाय छे तेज छे. बौद्ध भिक्षुओ पासे आवा पुस्तकौ नहतां तेना प्रमाण तरीके एवं कहेवामां आवे छे के तेमना सूत्रोमां, ज्यारे प्रत्येक जंगमवस्तुथी लईने नानामां नानी अने क्षुद्रमां क्षुद्र एवी घरमा वापरखा लायक वासणो जेवी चीजोनो पण कोईनें Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) कोई रीतिए उल्लेख थएलो अवश्य जडे छे. 'त्यारे लिखितपुस्तकोनो क्याए पण बिलकुल उल्लेख थएलो जोवामां आवतो नथी. आ कथन, मारा मानवा प्रमाणे, ज्यांसुधी जैनयतिओ भ्रमणशील जीवन गुजारता हता त्यां सुधी तेमने पण लागु पडे तेवू छे परन्तु ज्यारथी तेओ पोताना ताबाना अथवा पोताना माटे बनावेला उपाश्रयोमा रहेवा लाग्या त्यारथी तेओ पोताना हस्तलिखित स्तको पण अत्यारनी माफक राखवा लाग्या हता. आ दृष्टिए जोतां, देवर्द्धिगणिनो जैनआगमसाहित्य साथेनो संबध साधारण रीते जेम मनाय छे, तेनाथी कोई विलक्षण प्रकारनो होय तेम जणाय छे. तेमणे वस्तुतः तेमनी पहेलां अस्तित्त्व धरावता हस्तलिखित ग्रन्थोने सिद्धांतना आकारमा गोठवी दीधा हता. अने तेम करती वखते जे जे सूत्रो-आगमोना हस्तलिखितग्रन्थो उपलब्ध थया नहोता ते सपळा तेमणे विद्वान् आचार्योना मुखेथी लखी लीधा हता. वळी, आवी रीते धार्मिकशिक्षणपद्धतिमां दाखल थएला आ नवा फेरफारने लीधे पुस्तको एक अत्यावश्यक साधनरूप १ Sacred Books of the East, Vol. XIII., Introduction P. XXXIII. Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थई पडेलां होवाथी प्रत्येक उपाश्रयने ए आगमग्रन्थोनी नकलो पूरी पाडवा माटे तेनी घणी नकलो कराववामां आवी हशे. आ रीते जोतां देवर्द्धिगणीनी सिद्धान्तनी आवृत्ति ते तेमनी पहेलां अस्तित्व धरावता पवित्र सिद्धांतग्रंथोनो लगभग प्राचीनन आकारमां निर्णीत करेलो एक नवो पाठ मात्र छे. आ आवृत्तिकारे, संभव छे के, प्राचीन सिद्धांतमां कोईक कोईक उमेरा कर्या हशे. परन्तु आटला उपरथी संपूर्ण सिद्धांत नवो बनाववामां आव्यो छे एम तो खरे खर नन कही शकाय. आ अन्तिमआवृत्तिमा निर्णीत थएला पाठनी पूर्वेनो सिद्धांतपाठ पण केवळ यतिओनी स्मरणशक्तिना आधारे ज लखवामां आवता पाठ जेवो अव्यवस्थित नहोतो परंतु ते पाठ हस्तलिखितप्रतिओ साथे मेळवेलो हतो. आटलं विवेचन कर्या बाद हवे आपणे जैनोना पवित्र आगमोनी रचनानो समयविषयक विचार करीए. संपूर्ण आगमशास्त्र प्रथम तीर्थकरनुं न प्ररूपेठं छे ए जातना जैनोना विचारनुं तो निराकरण करवा खातरज हुं अहीं सूचन करूंछु. सिद्धांतना मुख्यग्रन्थोनो समय नक्की करवा माटे आपणे आना करतां वधारे सारां प्रमाणो-परावाओ एकत्र करवा जोईए. छूटक अने असंबद्ध सत्रालापको गमे त्यारे आगमग्रन्थोमां दाखल थई गया होय तथा Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) देवर्द्धिगणीए पण भले तेने पोतानी आवृत्तिमांस्वीकारी लीधा.होय. पण तेटला उपरथी आपणे कोई प्रकार- सबल अनुमान काढी शकीए नहीं हुं म्लेच्छ अथवा अनार्य जातिओनी' जे यादिओ ए सूत्रोमां मळी आवे छे ते उपर वधारे वजन मुकी शकतो नथी. तेमज साते निन्हवो के जेमांनो छेल्लो वीरनिर्वाण पछी ५८४ वर्षे थयो' हतो. तेना उल्लेख उपरथी पण कांई अनुमान काढी शकाय नहीं. आवा प्रकारनी विगतोना संबन्धमां जो एम मानवामां आवे के जे आचार्यो पोतानी शिष्यपरंपराने पेढी दरपेढीए लिखित या कथितरूपे सिद्धांतपाठ सोंपता गया हता, तेओए ते ( विगतो) ने सिद्धांतनी टीका टिप्पणीरूपे अगर तो मूल सुद्धांमां पण दाखल करी दीधी हती तो तेमां कोई अस्वाभाविकता जेवू नथी. परन्तु सिद्धान्तमा एक महत्ववाळी बाबत ए जणाय छे के तेमां कोई पण स्थळे ग्रीकलोकोना खगोळशास्त्रनी गन्ध सरखी १ अनार्यजातिओमांनो 'आरव' शब्द ते बेनरना धारवा प्रमाणे कदाच 'आरव' वाचक बने, परन्तु मारा मानवा प्रमाणे ते शब्द 'तामिलो' नो वाचक छे, कारण के तामिलोनी भाषाने द्रविडीयन लोको अरवमु कहे छे. . २ See Weber Indische Studien XVI, P. 237. Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३ ) जोवामां आवती नथी. कारण के जैनज्योतिषशास्त्र ते, वास्तविकमां एक अर्थरहित अने अश्रद्धेय कल्पनामात्र छे. तेथी आपणे एम अनुमान करी शकीए छीए छे के जैनज्योतिषशास्त्रकारोने ग्रीकजातिना खगोळशास्त्रनी सहेज पण माहिती होत तो तेवं असंबद्ध तेओ जरूर न लखत हिंदुस्थानमां ग्रीकनुं आ शास्त्र ई. स. नी त्रीजी अगर चोथी शताब्दिमां दाखल थयुं हतुं एम मनाय छे, आ उपरथी आपणे ए रहस्य काढी शकीए छीए के जैनोना पवित्र आगमो ते समयनी पहेलां रचायां हतां. - जैन आगमोनी रचनाना समयनिर्णय माटे बीजुं प्रमाण ते तेनी भाषाविषयक छे. परन्तु, कमनसीबे हजी सुधी ए प्रश्ननुं स्पष्ट निराकरण थयुं नथी के जैनागमो जे भाषामा अत्यारे आपणने उपलब्ध थाय छे तेज तेनी मूलभाषा छे. अर्थात् जे भाषामां सौथी प्रथम तेनी संकलना थई हती तेज भाषामां अत्यारे आपणने उपलब्ध थाय छे, के पाछळथी पेढी दरपेढीए ते ते काळनी रूढ ( प्रचलित ) भाषानुसार तेमां उच्चारणपरिवर्तन थतां थतां छेक देवर्द्धिगणिना नवीन संस्करणवखतनी चालु भाषाना उच्चारण पर्यन्तनी भाषाथी मिश्रित थएला आजे मळे छे! आ बे विकल्पोमांनो मने तो बीजोज विकल्प स्वीकरणीय लागे Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) छे. कारण के ए आगमोनी प्राचीन भाषाने चालु भाषानी रूढिमां फेरववानो वहिवट ठेठ देवर्द्धिगणि सुधी चालु रह्योहतो. अने अन्ते देवर्द्धिगणीना संस्करणेज ते वहिवटनो अन्त आण्यो हतो, एम मानवाने आपणने कारणो मळे छे. जैनप्राकृतभाषामां स्वरूपसंगत वर्णविन्यासनो जे अभाव दृष्टिगोचर थाय छे तेनु कारण जे लोकभाषामां (Varnacular Language) ते पवित्र आगमो हमेशां उच्चाराई रह्या हता, ते भाषामां निरन्तर यतुं रहेलु क्रमिक परिवर्तनन छे. जैनसूत्रोनी सघळी प्रतिओमां एक शब्द एकन रीते लखेलो जोवामां आवतो नथी. आ वर्णविन्यासविषयक विभिन्नतानां मुख्य कारणोमांचें एक कारण तो वे स्वरो वच्चे आवता असंयुक्तव्यंजननो प्रकृतिभाव .(तदवस्थ राखवा रूप), लोप के मृदुकरण थवा रूप छे, अने बीजुं कारण वे संयुक्तव्यंजनोनी पूर्वेना ए अने ओने तदवस्थ एटले कायम राखवा रूप अथवा तेने क्रमथी इ अने उ ना रूपमा परिवर्तित करवा ( लघूकरण) रूप छे, ए तो अशक्यज छे के एकज शब्दना एकज समयमा एकथी वधारे शुद्ध गणवा लायक उच्चारो होई शके. उदाहरण तरीके-भूत, भूय, उदग, • उदय अने उअय, लोभ, लोह, इत्यादि. आपणे आ प्रकारनी १ ई एम नथी कहेतो के कोई पण शब्दना एक काळमां बे रूपोज़ ___ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) भुदी जुदी लेखनपद्धतिओने तिहासिक लेखनपद्धतिओ मानवी जोईए. एटले के देवर्द्धिगणीवाळा सिद्धान्तसंस्करणमां साहायभूत भनेली बधी हस्तलिखितप्रतिओमां जेजे भिन्न भिन्न लेखनपद्धतिओ मळी आवती हती ते बधी प्रमाणिक मानवामां आवी हती अने. तेथी ते सघळी पद्धतिओने ए सूत्रनी नकलोमां साचवी राखवामां भावी हती. आ विचार जो युक्तियुक्त जणातो होय तो आपणे सहुथी प्राचीन अने रूढिबहिष्कृतलेखनपद्धतिने आगमरचनाना आदिसमयनी अथवा तो तेना निकटसमयनी उच्चारसूचक मानी शकीए. अने सहुथी अर्वाचीन लेखनशैलिने सिद्धान्तना अन्तिमसंस्करणना समयनी अगर तेनी नजीकना समयनी उच्चारदर्शक मानी शकिए. वळी सहुथी प्राचीनरूपमा उपलब्ध थती जैन न होई शके. बब्बे रूपो बाळा घणाज शब्दो थया हशे. परन्तु प्रायः प्रत्येक शब्दना बब्बे प्रण त्रण रूपो एक साथे प्रचलित रहेवानी बाबतमा मने जरूर शंका रहे छे. १ कोई अहीं एवी दलील कर्या करे छे के आवी आर्ष एटले रूढि- . बहिष्कृतलेखनपद्धतिना अस्तित्वन कारण मात्र संस्कृतभाषानी असर छे. परन्तु जैनोनुं प्राकृतभाषानुं ज्ञान हमेशां एटलुं बधुं संगीन रघु हतुं के जेथी तेमने पोताना आगमोने समजवा माटे संस्कृतनी सहायता लेवीज पडती नहोती के जेथी तेनी तेना उपर असर पडे, परन्तु आधी उलटुं Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) प्राकृतभाषाने, पाली तथा हाल सेतुबंध विगेरेनी (पाछला समयनी) प्राकृत साथे जो आपणे सरखावीशं तो आपणने स्पष्ट जणाशे के जैनप्राकृत ए पाछलनी प्राकृत करतां पालीने वधारे मळती आवे छे. आ उपरथी आपणे एवा निर्णय उपर आवी शकीए छीए के कालगणनानी दृष्टिए पण जैनोना आगमो त्यार पछीना समयमां थएला प्राकृतग्रंथकारोना ग्रंथो करतां दक्षिणना बौद्धसूत्रो [ ना रचनासमय ] साथे वधारे समीपता धरावे छे. .... परन्तु आपणे जैन आगमोनी रचनाना समयनी मर्यादा, तेमां प्रयोजाएला छंदोनी मददथी, आधी पण वधारे निश्चित रीते आंकी शकीए तेम छीए. हुं आचारांग अने सूत्रकृतांगसूत्रना प्रथमस्कंधोने सिद्धांतना सहुथी प्राचीन भाग तरीके मार्नुछु. अने मारा आ अनुमानना प्रमाण तरीके हु आ बे ग्रन्थोनी (स्कन्धोनी) शली बतावीश. सूत्रकृतांगसूत्र, आलुं प्रथम अध्ययन, वैतालीयवृत्तमां रचाएल छे, आ वृत्त धम्मपद आदि दक्षिणना अन्य बौद्ध ग्रंथोमां जैनोना संस्कृतग्रंथोनी प्रतिओमां प्राकृतशब्दो जेवा लग्वेला घणा शब्दो मळी आवे छे. उपर प्रमाणे मानतां पण केटलीक जोडनीओ तो एवी मळी आवे छे के जेने संस्कृतीकरणनी दृष्टिए पण समजावी शकाय तेम नथी. उ. त. दारयने बदले मळतुं दारग एबुं रूप लईए. आ शब्दनुं संस्कृतप्रतिरूप 'दारक ' थाय छे. परन्तु · दारग ' एथतुं नथी. ___ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) पण वपराएलो जोवामां आवे छे. परन्तु पालीसूत्रोना पयोमा प्रयोजालो वैतालीयवृत्त ते सूत्रकृतांगसूत्रना पद्योमां मळी आवता वैतालीयवृत्ती दृष्टिए जोतां, वृत्तना विकासक्रमना प्राचीन स्वरूपनो द्योतक छे. आ बातमां हूं अहीं वधारे न लखतां थोडा ज समयमा जर्मन ओरिअन्टल सोसाइटीना जर्नलमां ' वेदनी पछीना काळना छंदो' ('Post Vedic Metres' ) ए मयाला नीचे प्रकट थनारा मारा लेखमा विस्तृतरीते चर्चवा इच्छु. संस्कृतसाहित्यना सामान्य वैतालीय ( वृत्तना ) श्लोको, के जेमांना केटलाक ललितविस्तरामां पण मळी आवे छे, तेनी साथे मुकाबलो करी जोतां, सूत्रकृतांगनो वैतालीयवृत्त तेथी वधारे प्राचीन रूपंनो जणाय छे. वळी ए बाबत पण अहीं लक्ष्यमां लेवा लायक छे के प्राचीनपाली साहित्यमां आर्यावृत्तमां गुंथेला पद्यो मळी आवतां नयी. धम्मपदमां तो ते सर्वथा नथीज. तेम अन्य बौद्धग्रन्थमां पण तेवां पद्यो मारा जोवामां आव्यां नथी. परन्तु आचारांग अने सूत्रकृतांग सूत्रोमां तो एक एक संपूर्ण अध्ययन आर्यावृत्तमां लखेलं मळी आवे छे. आ आर्यावृत्त, सामान्य [ रीते ओळखाता ] आर्यावृत्तथी स्पष्ट रीते प्राचीन तथा तेनो जनकस्वरूप देखाय छे. सामान्य आर्यावृत्त ते, सिद्धांतना वधारे अर्वाचीनभागोमां तथा प्राकृत अने संस्कृत भाषाना ब्राह्मण 2 Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) ग्रन्थोमां अने ललितविस्तरादि जेवा उत्तरना बौद्धप्रन्थोमां पण नजरे पडे छे. प्राचीनजैनग्रन्थोमा प्रयोनाएलो त्रिष्टुभ् छंद पण पालीग्रन्थोमां मळी आवता ते छंद करतां अर्वाचीनरूपनो अने ललितविस्तरामांना करतां प्राचीनरूपनो छे. अन्ते, ललितविस्तरादि ग्रन्थोमां जोवामां आवता आ शिवायना बीजा अनेकप्रकारना कृत्रिमवृत्तो-जेमांनो एक पण वृत्त जैनसिद्धान्तमां जडी आवतो नथी ते उपरथी एम सिद्ध थतुं होय तेम जणाय छे के आ प्रकारना अर्वाचीनग्रन्थोनी रचनाना समयपूर्वे जैनोनी साहित्यविषयक अभिरुचि निश्चित थएली हती. आ सघळी बाबतो उपरथी आपणे एवो निर्णय करी शकीए छीए के, जैनोना सहुथी प्राचीन साहित्यनी समयमर्यादा पालीसाहित्य अने ललितविस्तरा ए उभयना रचनाकाळनी वच्चे निश्चित थाय छे. पालीपिटकोनु पुस्तकाधिरोहण ( अर्थात् पुस्तकरूपे लखाण ) वट्टगामणि जेणे ई. स. पूर्वे ८८ वर्षे पोतार्नु राज्यशासन शरु कर्यु हतुं. तेना समयमां थयुं हतुं. जो के आ समयथी केटलीक शदीओ पूर्वे पण ते पिटको अस्तित्व तो धरावतां हतांज. आ विषयनी चर्चा करतां छेवटे प्रो. मेक्समूलरे नीचे प्रमाणेना विचारो जणाव्या छे. 'तेटला माटे, मारा विचार प्रमाणे, अत्यारे तो आपणे बौद्धसूत्रोना अर्वाचीनमां अर्वाचीन रचना-समय तरीके ई. स. Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९) पूर्वे ३७७ मा वर्षने निर्णीत करी, संतोष मानवो जोईए-के जे समये द्वितीय संगति मळी हती ' त्यार बाद पण ए पालीसूत्रोमां उमेरा तथा फेरफारो थया होय ए असंभवित नथी. परन्तु आपणी प्रस्तुत दलील धम्मपदना कोई एकाद फकरा के भागने आधारे उभी थएली न होई, तेमां तथा अन्य पालीग्रन्थोमां मळी आवता विविध छन्दो उपरथी तारवी कढाता छन्दःशास्त्रना नियमोना पाया उपर स्थापित करवामां आवेली छे. तेथी ए ग्रन्थोमां दाखल थएला उमेरा या फेरफारोथी अमारा ए निर्णयने के समस्तजैनसिद्धांतसाहित्य ई. स. पूर्वे चोथी शताब्दि बाद रचाएलं छे, तेने कोई पण प्रकारनी हानि पहोंची शकती नथी. आपणे उपर जोई गया के जैनसिद्धांतनो सौथी प्राचीन विभाग ललितविस्तरानी गाथाओथी अधिक जूनो छे. आ ग्रंथ ( ललितविस्तरा ) ना विषयमां एवं कहेवाय छे के तेनो ई. स. ६५ मां चीनीभाषामा अनुवाद थयो हतो. आ उपरथी वर्तमान जैनसाहित्यनी उत्पत्तिनो समय ई. स. नी शरुआत पहेलां मानवो जोईए. वळी दक्षिण अने उत्तरना पद्यात्मक बौद्ध १ Sacred Books of the East, Vol X, P.' XXXII. Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) ग्रन्थोनी छंद अने भाषाशैली विषयक विशिष्टताओना प्राचीनतम पद्यात्मक जैनसिद्धांतोमां मळी आवता अल्प या अधिकांश साम्यद्वारा, आपणे जो आ वे सीमाओ वच्चे आवेला प्रस्तुत विवादास्पद समयना कालविषयक अंतरनो विचार करीए छीए तो जैनसाहित्यनी शरुआतनो समय उत्तरना बौद्धसाहित्यना समय करतां पालीसाहित्यना समयनी अधिक समीप ठरे छे. वळी आ प्रकारना अनुमानने श्वेताम्बरसंप्रदायनी एक 'परंपरागत कथाद्वारा समर्थन पण मळे छे. परंपरी एवी छे के जे वखते भद्रबाहु युगप्रधान हता ते वखते बार वर्षनो एक दीर्घ दुष्काळ पड्यो हतो. ते दुष्काळना अन्ते पाटलीपुत्रमा संघ भेगो थयो हतो. अने तेणे सघळां अंगो एकत्र को हतां. आ भद्रबाहुना अवसाननी तारीख श्वेताम्बरोना कथन प्रमाणे वीर पछी १७० वर्षे छे, अने दिगम्बरोना कथन प्रमाणे ते १६२ वर्षे छे. आ उपरथी तेओ चंद्रगुप्त, के जे श्वेताम्बरोना उल्लेखानुसार वी. नि. पछी १५५ मा वर्षे गादीए आव्यो हतो, तेना समयमां थया हता. प्रो. मेक्समूलरे चंद्रगुप्तनो समय ई. स. . १ परिशिष्ट ९५५. Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) पूर्वे ३१६-२९ १ जणावेलो छे, तथा वेस्टरगार्ड (Westergaard) अने केर्न ( Kern ) वधारे संभवित रीते ते समय ई. स. पूर्वे ३२० जणावे छे. आ बन्ने वच्चे जे अल्प तफावत छे ते महत्वनो नथी. लगभग आ हिसाबे जैनसिद्धान्तनो रचनासमय ई. स. पूर्वे चोथी सदीना अन्तमां अगर तो त्रीजी शदीनी शरुआतमां आवे छे. साथे साथे ए पण लक्ष्यमा राखवानुं छे, के उपरोक्त संप्रदाय-परंपरानो भावार्थ ए छे के पाटलिपुत्रना संघे भद्रबाहुनी साहाय्य सिवायज अगिआर अंगो एकटां को हता. भद्रबाहुने दिगम्बरो अने श्वेताम्बरो बन्ने सरखी रीते पोताना आचार्य माने छे, तेम छतां श्वेताम्बरो पोताना स्थविरोनी यादिने भद्रबाहुना नामथी आगळ नहीं चलावतां, तेमना समकालीन स्थविर संभूतिविजयना नामथी आगळ लंबावे छे. ए उपरथी एम फलित थाय छे के पाटलिपुत्रना संघे एकत्र करेलां अंगो मात्र श्वेताम्बरोनाज सिद्धांतो मनाया हशे. पण आखी जैनसमाजना नहीं. आवी वस्तुस्थिति होवाथी, आपणे सिद्धांतरचनाना काळने जो युगप्रधान श्रीस्थूलभद्रना समयमां एटले ई. स. पूर्वे त्रीनी शताब्दिना प्रथमभागमां स्थिर करीए तो ते खोटुं नहीं गणाय. 9 Geschiedenis van het Buddhisme in Indien ii, p. 266 note. Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) आपणी उपरोक्त तपासनुं परिणाम जो प्रमाणिकताने पात्र जनतुं होय, अने ते बनवुज जोईए कारण के तेना बाधक प्रमागोनो अभाव छे-तो वर्तमान जैनसाहित्यनी उत्पत्तिनो समय ई. स. पूर्वे लगभग ३०० वर्ष पहेलां अथवा ए धर्मनी उत्पत्ति प्रछी लगभग बे शताब्दी पहेलां मूकी शकाय नहीं परन्तु आ उपरथी एम तोखास कांई मानी लेवानी जरूर नथीज के जैनो पासे पोताना अन्तिमतीर्थकर अने सिद्धांतरचनाना आ समय वच्चेना अन्तराळमां, एक अनिश्चित अने असंकलित धार्मिक तथा पौराणिक परंपरा उपरांत खास आधार राखवा योग्य वधारे सुदृढ धर्मसाहित्य हतुंज नहीं. कारण के एम जो मानवामां आवे तो पछी जैनपरंपरानी विश्वसनीयताना विषयमां ने विरोधदर्शक प्रमाणो मी. बार्थे रन्जु करेलां छे ते वास्तविकमां पायाविनानां छे एम कही शकाय नहीं. तथापि एक बाबत अहीं ध्यानमा लेवा लायक छे, अने ते ए छे के श्वेताम्बरो अने दिगम्बरोए बन्नेनुं एम कहेवु छे के अंगो सिवाय पहेलांना कालमां तेनाथी पण वधारे प्राचीन एवां चौद पूर्वो हतां अने ते पूर्वोनुं ज्ञान क्रमथी नष्ट यतुं थतुं अंते सर्वथा नष्ट थई गयुं हतुं. चौद पूर्वोना विषयमा श्वेताम्बरोनी मान्यता आ Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) प्रमाणे छे-- चौद पूर्वी ए दृष्टिवादनामना बारमा अंगमां समाएलां हतां अने ते महावीर निर्वाण पछी १००० वर्ष व्यतीत थया पहेलां नष्ट थयां हतां. जो के आ कथन प्रमाणे चौद पूर्वो तो सर्वथा नष्ट थई गयां छे तोपण दृष्टिवाद अने तेमां अन्तर्गत थलां चौद पूर्वोना विषयोनी विस्तृतसूचि अद्यावधि समवायांगनामना चोथा अंगमां तथा नन्दीसूत्रमां आपेली जोवामां आवे छे.' आ दृष्टिवादमां आवेलां पूर्वो ते खास मल पूर्वोज हतां के जेम हुं मानुं छं तेना साररूप हतां, तेनो आपणे निश्चय करी शकता नथी. गमे तेम हो परन्तु तेमां समाएला विषयोना संबंधमां एक घणी विस्तृतपरंपरा तो अवश्य जोवामां आवे छे. खरेखर आपणे कोई पण नष्ट थई गएला एवा अतिप्राचीन ग्रन्थ या ग्रन्यसमूहना विषयमां मळी आवती परंपराने साची मानी लेवामां वणीज सावधानी राखवानी जरूर छे. कारणके आवा प्रकारनी प्राचीन परंपरा, घणीक वखते केटलाक ग्रन्थकारोद्वारा पोताना सिद्धांतोनी प्रमाणीकताना पुरावा रूपे कल्पी काढवामां आवी होय है. परन्तु प्रस्तुत बाबतमां, पूर्वोना विषयमां मळी आवती आटली बधी सामान्य अने प्राचीन परंपरानी सत्यताना विषयमां शंका करवाने आप १ See Weber, Indische Studien, XVI p. 341. Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) गने कोई कारण जणातुं नयी कारण के अंगोनी प्रमाणिकता ते कांई पूर्वोने लईने मानवामां आवती नथी. अंगो तो जगतना निर्माणना समकालीन (एटले अनादीज) मनाय छे. तेथी जो पूर्वो संबंधी आ परंपराने मात्र एक कूटलेख रूपेज मानीए तो तेनो कांई पण अर्थ थई शके नहीं परन्तु तेने जो सत्यरूपे मानी लईए तो जैनसाहित्यना विकासविषयक आपणा विचारो साथे ते बराबर बंध बेसती आवी जाय छे. ' पूर्व ' ए नामज ए वातनी पूरेपूरी साक्षी आपे छे के तेनुं स्थान पाछळथी बीजा एक नवा सिद्धांते लीधुं हतुं. अर्थात् पूर्वनो अर्थ पहेलानुं एवो थाय छे.' अने आ दृष्टिए ज्यारे आपणे विचारीए छीए त्यारे निःसंदेहरीते प्रतीत थाय छे के जे समये पाटलीपुत्रना संघे अंगसाहित्य एकत्र कर्यु हतुं, तेज समयथी पूर्वानुं ज्ञान व्युच्छिन्न थतुं चाल्युं हतुं, एवी जे हकीकत कहेवाय छे ते तद्दन वास्तविक छे. उदाहरण तरीके भद्रबाहु पछी चौदमांथी दशन पूर्वोतुं ज्ञान अव १ 'पूर्व' शब्दनो अर्थ जैनाचार्योए नीचे मुजब समजावेलो ---- तीर्थकरे पोतेज प्रथम पोताना गणधरनामे प्रसिद्ध शिष्योने पूर्वोनुं ज्ञान • आप्यु हतुं, त्यार पछी गणधरोए अंगोनी रचना करी. आ कथन, पहेलाज तीर्थकरे अंगो प्ररूपेलां छे एवा आग्रह साथे जेटले अंशे ऐक्य धरावतुं नथी - तेटले अंशे ते खरेखर सत्यगर्भित लेखावा योग्य छे. Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) शिष्ट रह्यं हतुं एवं जे कथन छे ते आपी शकाय छे. आ उपरथी खात्री थशे के चौदपूर्वविषयक प्रचलितपरंपरानो अमे जे एवो खुलासो करेलो छे के पूर्वो ते सौथी प्राचीन सिद्धांतग्रन्थो हता, अने तेना पछी तेनुं स्थान एक नवा सिद्धांते लीधुं हतुं, ते युक्तिसंगत छे. परन्तु आटलो खुलासो आप्या बाद आ प्रश्न उभो थाय छे के-आवी रीते प्राचीनसिद्धांतनो त्याग करवामां तथा नवा सिद्धान्तनुं निरूपण करवामां शुं प्रयोजन उपस्थित थयु हशे ? आ विषयमा मात्र कल्पना शिवाय अन्य कोई गति नथी. अने तदनुसार मारो स्वतंत्र अभिप्राय आ प्रमाणे छे- आपणे जाणीए छीए के दृष्टिवाद नामना बारमा अंगमां चौद पूर्वो आवेलां हतां तथा ते पूर्वोमां मुख्यत्वे करीने दृष्टिओनुं एटले जैन अने जैनेतर दर्शनोना तात्विकविचारो-अभिप्रायोजें वर्णन करेलु हतुं. आ उपरथी आपणे एम कल्पी शकीए छीए के तेमां महावीर अने तेमना प्रतिस्पर्द्धिधर्मसंस्थापकोनी वच्चे थएला वादोन वर्णन आवेलं हशे. मारा आ अनुमानना समर्थनमा प्रत्येक पूर्वना नामना अन्ते जे 'प्रवाद' ए शब्द मुकवामां आव्यो छे ते आपी शकाय छे. आ उपरांत ए पण एक वात ध्यानमा राखवानी छे, के महावीर कोई एक नवा धर्मना संस्थापक न हता, परन्तु जेम में सिद्ध करेलुं छे, तेओ एक प्राचीनधर्मना सुधारक मात्र न Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) हता. तेथी पण ए घणुंज संभवित छे के महावीरने पोताना प्रतिपक्षिओना अभिप्रायोनुं मजबुत रीते खंडन करवुं पड्युं हशे ; अने जाते स्वीकारेला अगर सुधारेला एवा पोताना सिद्धांतोनुं घणुंज समर्थन करवुं पड्युं हशे . आम कहेवानुं कारण ए छे के प्रत्येक धर्मसंस्थापकने यथार्थमा पोताना नवा सिद्धांतोनुं प्रतिपादन करवा पूरतोज प्रयत्न करवानी आवश्यकता रहे छे. तेने एक सुधारकना जेटलो प्रवादी बनी जवाना जोखमने उपाडवानी आवश्यकता रहेती नथी. हवे वखत जतां ज्यारे महावीरना ते प्रतिस्पर्धिओ आ जगत्मांथी अदृश्य थई गया हता, तथा तेओद्वारा स्थापित थरला संप्रदायो पण नामशेष थई गया हता त्यारे महावीरना ए प्रवादो, के जे तेमना गणधरो स्मरणमा राख्या हता तथा तेओद्वारा पाछलनी शिष्यपरंपराने पण जे सोंपवामां आव्या हता, ते पाछळना लोकोमां महत्ववाळा न मनाया होय ए स्वाभाविक छे. ए कोण कही शके एम छे के जे एक जमानामां आ प्रकारना दार्शनिकोना तत्त्वज्ञानविषयक विविध प्रवादो अने कलहो व्यावहारिक उपयोगितावाळा जाया होय तेज प्रवादो अने कलहो, सर्वथा परिवर्तित थएला एवा अन्यजमानामां पण तेवा ज उपयोगी सिद्धांतो तरीके -मनाई शके ? आज विचारानुसार नवा जमानाना जैनसमाजने श्रोतानी सामयिकपरिस्थितिने अनुकूल आवे तेवा एक नवा Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) सिद्धांतनी जरूर जणाई हशे अने तेने परिणामे, मारुं मानवु छे के, नवा सिद्धांतनी रचना अने जूना सिद्धांतनी (पूर्वोना ज्ञाननी) उपेक्षा थवा पामी हशे. ___प्रो. बेबर दृष्टिवाद अंगने नष्ट थवामां एवं कारण जणावे छे के श्वेताम्बरसमाज ज्यारे एक समये एवी अवस्थाए आवी पहोंच्यो हतो के जे वखते तेने पोताना ( प्रचलित) विचारो अने ते ग्रन्थमा ( दृष्टिवादमां ) आलेखित विचारोनी वच्चे अत्यंत अनुपेक्षणीय अंतर स्पष्ट देखावा लाग्युं, त्यारे ए चौद पूर्वोवाळु दृष्टिवाद अंग उपेक्षाने पात्र थयुं हतुं. परन्तु प्रो. बेबरनी आ कल्पनानी विरुद्ध श्वेताम्बरोनी माफक दिगम्बरो पण पोताना पूर्वी अने ते उपरांत अंगो सुद्धांने व्युच्छिन्न थएलां जणावता होवाथी, हुं तेमना मतने मळतो थई शकतो नथी. तेमन निर्वाणनी तुरतज पछीनी वे शताब्दीमां जैनसमाजे एटली बधी झडपथी प्रगति करी लीधी होय के जेथी ते समाजना बन्ने मुख्य संप्रदायोने पोताना पूर्वसिद्धांतनो त्याग करवा जेटली आवश्यकता जणाई होय, एम पण मानी बेस, तद्दन असंभवित लागे छे, बीजी ए पण बाबत लक्षमा राखवा योग्य छे, के जैनधर्ममां १ Indische Studien, XVI, p. 248. Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८) वे संप्रदायो थथा पछी तेना तत्त्वज्ञानमा बिलकुल फेरफार थयो . नहोतो-अर्थात् ते तद्दन स्थिरज रह्यं हतुं. आनुं प्रमाण मात्र एज छे के आ बन्ने संप्रदायोना तत्त्वज्ञानमां कोई विशेष उल्लेखयोग्य भेद नजरे पडतो नथी. आचारशास्त्रना विषयमा अलबत आ बन्ने संप्रदायोमा केटलाक भिन्न भिन्न विचारो जोवामां आवे छे, परंतु अत्यारे पण ज्यारे श्वेताम्बरोमां लांबा समयथी, तेमना वर्तमानसिद्धांतसमूहमां विहित थएला घणाक आचारोनुं पालन बंध थएलं होवा छतां पण तेओ तेना तरफ उपेक्षा धरावता नथी त्यारे तेवाज कारणने लईने ते वखते अस्तित्व भोगवता एवा तेमना पूर्वात्मकसिद्धांतसमूहना विषयमां श्वेताम्बरोए तेटला बधा आवेशमा आवी जई पोताना पूर्वसाहित्यनो सर्वथा त्याग सुधां करी नांख्यो हतो एम मानवं युक्तिसंगत जणातुं नथी. आ उपरांत नवासिद्धांतनो जे समय आपणे उपर निर्णीत को छे, ते समय पछी पण लांबा वखत सुधी पूर्वो विद्यमान हतां एम मानवामां आवे छे. परंतु आखरे ज्यारे पूर्वोना प्रवादमय साहित्य करतां नवा सिद्धान्त द्वारा जैनतत्त्वो वधारे स्पष्टरीते प्रकाशित थता देखावा लाग्यां अने वधारे व्यवस्थासर लोको समक्ष मूकावा लाग्यां त्यारे पूर्वो स्वाभाविक रीतेज, नहीं के तेमनी बुद्धिपूर्वक कराएली . उपेक्षाने लीधे अदृष्ट थयां हतां. Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २९) आपणी प्रस्तुत चर्चा जे आ स्थले समाप्त थाय ढ़े ते उपरथी हुं धारूं छु के आटली बाबतो प्रकट रीते सिद्ध बंध त्छे जैनधर्मनी उत्क्रांति (प्रगति कोई एण समये कोई पण) अत्यत असाधारण एवा बनावोथी जबरदस्त अटकाव पामेली नथी. बीजू ए के आपणे आ उक्रांतिनी शरुआतनी अवस्था उपरांत तेती सबळी विविध अवस्थाओनो पत्तो मेळवी शकीए छीए, अने त्रीजु ए के जैनधर्म ए निर्विवादरीते स्वतंत्र मनाता एवा कोई पण धर्मनी माफक स्वतंत्ररीते उत्पन्न थएलो छे-परन्तु कोई अन्यधर्म अने खास करीने बौद्धधर्मनी शाखारूपे बिलकुल प्रवर्तलो नथी. आ विषयनी विशेष विगतोना संशोधननु कार्य भावि शोधखोळ उपर निर्भर छे तेम छतां मने आशा छे, के हुं जैनधर्मनी स्वतंत्रताना संबंधमां तथा तेना पवित्रग्रन्थो ( आगमो) ने, ते धर्मना प्राचीन इतिहासने प्रकट करवामां केटलाक लेखी साधनोरूपे स्वीकारवाना विषयमां, अत्यार सुधी जे केटलाक विद्वानोना मनमां अमुक संदेहो स्थान पामी रह्या छे, तेने दूर करवा सफल थयो छु. Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०) (द्वितीय भाग.) जैनसूत्रोना मारा भाषांतरना प्रथम भागने प्रकट थए दश वर्ष थयां. ते दरम्यान केटलाक उत्तमविद्वानोद्वारा जैनधर्म अने तेना इतिहास विषयक आपणा ज्ञानमा घणो अने महत्वनो वधारो थयो छे. हिंदुस्थानना विद्वानोए संस्कृत अने गुजरातीमां लखेली सारी टीकाओ साथे सूत्रग्रन्थोनी साधारण आवृतिओ बहार पाडी छे. प्रो. ल्यूमने अने प्रो. होनले आ सत्रग्रंथोमांना वे सूत्रोनी गुण-दोषना विवेचनवाली आवृत्तिओ पण प्रकट करी छे अने तेमांए प्रो. होर्नले तो पोतानी आवृत्ति साथे मूळर्नु काळजीपूर्वक करेलं भाषांतर अने पुरतां उदाहरणो पण आप्यां छे. प्रो. बेबरे पोते तैयार करेला वर्लिनना हस्तलेखोना विस्तृत . १ दस् , औपपातिक सूत्र,-Abhandlungen fur die kunde . des Morgenlondes नामनी ग्रन्थमाला, पुस्तक ८; दशवकालिक सूत्र अने नियुक्ति, जर्नल आफ धी ओरिएन्टल सोसायटी, पु. ४५. २ उवासगदसाओ ( बिब्लिओथिका इन्डिका ) भाग १ मूळ अने टीका, कलकत्ता १८९०, भाग २, इंग्रेजी भाषान्तर, १८८८. Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) सूचिपत्रमा संपूर्ण जैनसाहित्यनुं साधारण अवलोकन कर्तुं छे. तेमज तेमणे जैनसूत्रो उपर एक अतिविद्वत्तापूर्ण मोटो निबंध पण प्रकट कर्यो छे'. प्रो. ल्युमने वळी जैनवाजन्य अने शास्त्रना विकाशं सारु अध्ययन कर्यु छे, तथा केटलीक जैनकथाओ अने तेना ब्राह्मण अने बौद्धकथाओ साथेना संबन्धनी तपासणी पण करी छे". श्वेताम्बर संप्रदायना जुना इतिहासनी माहिती आपनारो एक महत्वनो ग्रन्थ में पण संपादित कर्यो छे, तथा तेमना केटलाक गच्छोनो इतिहास होर्नल अने क्लाद्वारा जाहिरमां आव्यो छे. आमांनो छेल्लो विद्वान् ( क्लाट ) जे अत्यारे आपणी वच्चे मौजूद नथी, तेणे सघळा जैनलेखको अने औतिहासिक ३ बर्लिन १८८८ अने १८९२. ४ Indische Studion पु. १६, पृ. २११ आदि. इ. ए. मां अनुवाद तथा जुदा पुस्तकरूपे, मुंबई १८९३. Actes du VI Congres International des Orientalistes, section Arienne पृ. ४५९ तथा Wienerzeitschrift fur die Kunde des Morgenlandes पु. ५ अने ६, वळी जर्नल आफ थी जर्मन ओरिएन्टल सोसायटी पु. ४८. ६ हेमचंद्राचार्यरचित परिशिष्टपर्व, कलकत्ता. Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२) पुरुषोनो एक जीवनचरित्रात्मक महान् नामकोप (Onomosticon) तैयार कर्यो छे अने जेना केटलाक नमुना प्रकट पण थया छे. होफ्रेट बुल्हरे सर्वविद्याविशारद एवा प्रसिद्धविद्वान् हेमचंद्रनुं विस्तृत जीवनचरित्र लज्युं छ. वळी तेमणे घणाक जुना शिलालेखोना अर्थो पण प्रसिद्ध कर्या छे. डॉ. फुहररे मथुरामांथी खोदी काढेला कोतरकामोनुं विवेचन कर्यु छे. अने मि. लेवीस राइसे श्रवण वेल्गोलमांना घणाक महत्वना शिलालेखो बहार पाड्या छे. एम्. ए. बार्थे जैनधर्मविषयक आपणा ज्ञाननी समालोचना करी छे.” बुल्हरे पण एक नानो निबन्ध लखी तेवी __७ Denkschriften der philos-histor. Classe der Kaiserl. Akademie der Weisgens Chaften, Vol. XXXVII, p. 171 ff. c Wiener Zeitschrift fur die Kunde des Morgenlandes, Vols. II. and III. Epigraphia Indica, Vols. I and II. ९ बेंगलोर १८८९. १० The Religions of India. Bulletin des. Riligions de l'Iande, 1889-94. Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) आलोचना प्रकट करी छे.” अने छेवटे भांडारकरे संपूर्ण जैनधर्मनी एक महत्वनी अने घणी उपयोगी रूपरेखा आलेखी प्रसिद्धिमा मुकी छे." आ रीते, आपणा जैनधर्मविषयक ज्ञानमां थएला वधाराओए (जेमांना मात्र खास नोंधवा लायक ग्रन्थोनो ज में अहीं उल्लेख को छे ) आ आखा विषय उपर एटलं बधुं अजवाळू पाडयुं छे के जेथी हवे मात्र कल्पनाने आ विषयमा घणोज थोडो अवकाश रहेशे. अने ऐतिहासिक तेमज भाषाविज्ञानात्मक साची पद्धति, ते साहित्यना सबळा भागोने लागु पाडी शकाशे, तेम छतां हनी केटलाक मुख्य प्रश्नोना खुलासा करवा बाकी रह्या छे, तथा जे निराकरणो आ अगाउ थई गयां छे ते हनी बधा विद्वानोने मान्य थयां नथी, तेथी आ सुअवसरनो लाभ लई आनंदपूर्वक हुँ अहीं केटलाक विवादग्रस्त मुद्दाओनुं स्पष्टीकरण करवा इच्छु छु. आ मुद्दाओना खुलाशाओ माटे आज पुस्तकमा भाषांतरित थएला सूत्रोमांथी वणी किंमती सहायता मळी शके तेम छे. 99 Uber die Indische Secte der Jaina, Wien 1881.. १२ रीपोर्ट सन १८८३-८४. :.... Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) ए बात तो हवे सर्वसम्मत थई चुकी छे के नातपुत्त (ज्ञातपुत्र) जे साधारण रीते महावीर अथवा वर्द्धमानना नामे ओळखाय छे ते बुद्धना समकालीन हता. निगंठो ( निग्रंथो ) जे हालमां "जैन अथवा आर्हतना नामथी वधारे प्रसिद्ध छे, तेओ ज्यारे बौद्ध धर्म स्थपाई रह्यो हतो त्यारे एक महत्वशाली संप्रदायतरीके क्यारनाए प्रसिद्ध थई चूक्या हता. परंतु हनी ए प्रश्ननुं निराकरण थवं बाकी रह्युं छे के ए प्राचीननिग्रंथोनो धर्म, ते खास करीने वर्तमान जैनोना आगमो अने बीजा ग्रन्थोमां जे वर्णवेलो छे तेज़ हतो, के सिद्धांतो पुस्तकारूढ थया त्यां सुधीना समयमां यो रूपांतरित थई गयो हतो ! आ प्रश्ननुं निराकरण करवा माटे, अत्यार सुधीमां प्रकट थला बधा बौद्ध ग्रन्थोमां, जेमने आपणे सौथी जुना समजीए छीए तेमांथी जैन निग्गन्ठो, तेमना सिद्धान्तो अने तेमना धार्मिक १३ निगंठ ए स्पष्टरूपे मूळरूपज होय एम जणाय हे. कारण के "अशोकना शिलालेखोमां, पालीमा अने केटलीक वखते जैन ग्रंथोमां पण एज रूपे मळी आवे छे, पण आ त्रणे बोलीओना स्वरशास्त्राना नियमो प्रमाणे तो तेनुं वधारे वास्तविकरूप 'निग्गन्थ ' एवं थयुं जोईए अने आवुं रूप जैनग्रन्थोमां स्वीकारेलं पण मळी आवे छे. Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) आचारोना विषयमा जेटलां प्रमाणो जडी आवे ते बघांनो उहापोह करवो जोईए. ___ अंगुत्तरनिकाय ३,७४ मां वैशालीना लिच्छविओमांनो अभय नामे विद्वान् राजकुमार निग्गन्ठोना केटलाक सिद्धांतोतुं नीचे प्रमाणे वर्णन करे छे:--" भदन्त ! निगन्ठ नातपुत्त जे सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी छे, जे संपूर्ण ज्ञान अने दर्शनथी संपन्न होवानो ( आ आगळ जणावेला शब्दोमां ) दावो करे छे के “ चालतां, उठतां, ऊंघतां अने जागतां हुं सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी छ." ते जुना कर्मोनो तपस्यावडे नाश थवानुं प्ररूपे छे अने संवरद्वारा नवां कर्मोने रोकवानो उपदेश आपे छे. ज्यारे कर्मनो क्षय थाय १४ आ नामना, स्पष्टरीते बे पुरुषो मळी आवे छे. बीजो अभय श्रेणिकनो पुत्र हतो अने जैनोनो सहायक हतो. तेनो जैनोना सूत्रो तेमज कथाओमा उल्लेख थएलो छे. मज्झिमनिकायना ५ मा (अभयकुमार) सुत्तमां एवं वर्णन छे के निगण्ठ नातपुत्ते तेने बुद्धनी साथे वाद करवा मोकल्यो हतो. प्रश्न एवो चालाकी भरेलो तैयार करवामां आव्यो हतो के बुद्ध तेनो गमे तेवा हकार अगर नकारमा जवाव आपे पण ते स्वावरोधवाळा न्यायशास्त्रप्रसिद्ध दोषमां सपडाया विना रहेज नहीं. परंतु आ युक्ति सफल थई नहीं अने परिणाम तेथी ठलटुं ए आव्युं के अभय बुद्धा- . नुयायी थई गयो. आ वर्णनमां नातपुत्तना सिद्धांत उपर प्रकाश पाडे एवं कांई तत्त्व नथी. Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) छे त्यारे दुःखनो क्षय थाय छे. ज्यारे दुःखनो क्षय थाय छे त्यारे वेदनानो अंत आवे छे. ज्यारे वेदना मटशे त्यारे सर्व दुःखनो क्षय थशे. आ रीते ज्यारे पापनो पूरो ध्वंस थशे त्यारे मनुष्य वास्तविक मुक्ति मेळवशे." आ विचारोनुं जैनप्रतिविम्ब उत्तराध्ययनना २९ मा अध्यथनमा मळी शके छ:-" तपथी मनुष्य कर्मने छेदी शके छे २७.' योगना त्यागथी अयोगपणुं प्राप्त थाय छे; कर्म रोकवाथी ते नवीन कर्मने ग्रहण करी शकतो नथी अने पूर्व ग्रहण करेलां कर्मोनो क्षय करे छे. ३७." आ प्रकारनी प्रवृत्तिनी बे अन्तिम दशाओ ( सूत्र ७१ अने ७२ मां ) वर्णवामां आवेली छे. अने वळी अध्ययन ३२, गाथा ५, ७ मां आवती नीचेनी हकीकत वांचीए छीए:'जन्म अने मरण कारण कर्म छे अने जन्म अने मरण एज दुःख कहेवाय छे.' आ उपरांत बीजी पण उपरना अर्थने मळती ३४, ४७, ६०, ७३, ८६, अने ९९ मी गाथाओनो संक्षिप्त अर्थ नीचे प्रमाणे हे-'परन्तु जे मनुष्य इंद्रियोना विषयोथी अने मानसिक लागणीओथी [ आनो अर्थ बौद्धतत्वज्ञाननी वेदनाना अर्य साथे घणोज मळतो आवे छे ] उदासीन रहे छे Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) तेने शोक स्पर्श करी शकतो नथी. जो के ते संसारमा मौजुद छे तोपण ते दुःखपरंपराथी, जेम कमलनुं पान पाणीथी अलिप्त रहे छे, तेम ते मनुष्य पण अखिन्न रहे छे.' . ___ आ सिवाय बौद्धग्रन्थमां, नातपुत्त सर्वज्ञान अने सर्वदर्शन प्राप्त करवानो दावो करे छे, ए प्रकारनुं जे कथन छे तेने स्पष्ट करवा माटे प्रमाण आपवानी जरूर नथी. कारण के आ तो जैनधर्मनुं खास एक मौलिक मन्तव्यज छे. निगन्ठोना सिद्धांतविषयक बीजी वधारे माहिती महावग्ग ६, ३१, ( S. B. E. पु. १७, पृ. १०८) आदिमांथी मळी आवे छे. ए स्थळे सीहर्नु एक वृत्तान्त आपेलं छे. ते सीह लिच्छविओनो सेनापति हतो अने नातपुत्तनो उपासक हतो. ते बुद्धने मळवा इच्छतो हतो परन्तु नातपुत्त क्रियावादी होई बुद्ध अक्रियावादी हतो तेथी तेनी पासे जवानी तेने ना कहेवामां आवती हती. परन्तु ते तेनी आज्ञाने उलंघी पोतानी मेळे बुद्ध १५ सीह ' नुं नाम भगवती [ कलकत्ता आवृत्ति, पृ. १२६७ जुओ होर्नलनी उवासगदसाओ, परिशिष्ट पृ. १० ] मां महावीरना एक शिष्य तरीके पण आवेलुं छे, परन्तु ते साधु होवाथी महावग्गमा आवता आ नाम साथे तेनी एकता बतावी शकाय तेम नथी. Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८ ) पासे गयो अने बुद्धनी मुलाखातना परिणामे ते तेनो अनुयायी बन्यो. आ वृत्तांतमां निगंठोने जे क्रियावादी जणाववामां आव्या छे, ते बाबत आ पुस्तकमां अनुवादित सूत्रोना उल्लेखथी सुसिद्ध थाय छे: - सूत्रकृतांग १,१२,२१, (पृ. ३१९ ) मां जणावे छे के ' तीर्थकर - अर्हन्ने क्रियावाद प्ररूपवानो - उपदेशवानो अधिकार छे' आचारांगसूत्र १,१,१, ४ ( भाग १, पृ. २) मां पण आ विचार, आ प्रमाणे दर्शाववामां आव्यो छे:- ' ते आत्माने माने छे, जगतूने माने छे, फळने माने छे, कर्मने माने छे, ( एटले के- ते आपणांज करेला छे अने जे आ प्रमाणेना विचारोथी स्पष्ट जणाय ले. ) ते कर्म में कर्यु छे; ते बीजा पासे करावीश; ते हुं बीजाने करवा दईश. ' इत्यादि. ---- महावीरना जे बीजा शिष्यने बुद्धे पोतानो अनुयायी बनावी वो हतो तेनुं नाम उपाली हतुं, मझिमनिकायना ५६ मा प्रकरणमा जणाव्या प्रमाणे तेणे बुद्धनी साथ, ए बाबतनो वाद कर्यो हतो के* निगंठ नातपुत्त कहे छे तेम कायिक पाप मोटुं छे, के बुद्ध माने छे तेम मानसिक पाप मोटुं छे ? ए संवादना प्रारंभमां उपालि कहे छे के मारा गुरु साधारणरीते कर्म अथवा कृत्य Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३९ ) माटे दण्ड (शिक्षा) शब्दनो उपयोग करे छे. ' जो के आ उल्लेख साचो छे परन्तु संपूर्णरूपे नहीं. कारण के जैनसूत्रोमा कर्म अर्थमा पण ' कर्म ' शब्दनो तेटलोज उपयोग थएलो छे. अने दण्ड शब्दनो पण तेटलोज थलो छे सूत्रकृतांग २, २ (बृ.३१७) मां १३ प्रकारना पाप कर्मनुं वर्णन करेलुं छे नेमां पांच स्यलमां 'दण्डसमादान' शब्द आवेलो छे अने बाकीनां स्थलमा 'किरिया - थान' शब्द आवेलो छे. निगंठ उपाली विशेषमां जणावे छे के कायिक, वाचिक अने मानसिक एम ऋण प्रकारनो दंड छे. उपालीनुं आ कथन, स्थानांगसूत्रना बीजा प्रकरणमा ( जुओ इन्डि. एन्टि पु. ९, पृ० १५९ ) जणावेला जैनसिद्धांतनी साथै पूर्ण मळतं आवे छे. उपालीनुं बीजुं कथन के, जेमां ते निगठोने मानसिक पापो करतां कायिक पापोने वधारे महत्व आपनारा जणावे छे, ते कथन जैनसिद्धांत साथै बराबर मळतुं आवे छे. सूत्रकृतांग २,४ ( पृ० ३९८ ) मां एवा एक प्रश्ननी चर्चा करवामां आवी छे के अजाणपणे कराएला कृत्यनुं पाप लागे छे के नहीं, त्यां आगळ स्पष्टरीते जणावेलुं छे के निश्चितरीते तेवुं पाप लागे छे. ( सरखावो पृ. ३९९ टिप्पण ६ ) वळी तेज सूत्रना ६ ठा Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्ययनमां (पृ० ४१४ ) बौद्धोना ए मन्तव्य के 'अमुक कर्म पापयुक्त छे के पापरहित छे तेनो निर्णय ते कर्म आचरनार मनुष्यना आशय उपर आधार राखे छे, खूब खंडन अने उपहास करवामां आव्यो छे. ___ अंगुत्तरनिकाय ३,७०,३ मां निर्गठ श्रावकोना आचारोनुं वर्णन आपेलुं छे. ते भागनुं नीचे प्रमाणे भाषान्तर आपुं . 'हे विशाखा, निगन्ठ नामे ओळखातो श्रमणोनो एक संप्रदाय छे. तेओ श्रावकोने आ प्रमाणे उपदेश आपे छे. “ हे भद्र ! अहिंथी पूर्वदिशा तरफ एक योजनप्रमाणभूमिथी बहार रहेता जीवतां प्राणिओनी हिंसाथी तमारे विरमवृं, , तेवीज रीते दक्षिण, पश्चिम अने उत्तरदिशा तरफनी योजनप्रमाणभूमीथी बहार रहेता प्राणिओनी हिंसाथी विरमg" आरीते तेओ केटलांक जीवतां प्राणिओने बचाववानो उपदेश आपी दयानो उपदेश करे छे; अने एज रीते वळी तेओ केटलांक जीवतां प्राणिओने न बचाववानो बोध करी क्रूरता शिखवाडे छे. ' ए समजावq कटिन नथी, के आ शब्दो जैनोना दिग्विरतिव्रतने उद्देशीने कहेला छे के, जे व्रतमां श्रावकने अमुक हद बहार मुसाफरी के व्यापार विगेरे नहिं करवा संबंधिनो नियम उपदेशवामां आव्यो छे. आ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) व्रतनुं पालन करनार मनुष्य, अलबत, पोते छूटी राखेली भूमी बहारना प्राणिनी हिंसा तो नन करी शके एतो स्पष्टज छे. परन्तु आवा एक निर्दोष नियमने विरोधीसंप्रदाये केवा विकृतरूपमा आलेख्युं छे ? पण एमां ए आश्चर्य जेवू कशुं नथी. कारण के कोई पण धार्मिक संप्रदाय पासेथी, तेना विरोधीमतना सिद्धांतोनुं यथार्थ अने प्रमाणिक आलेखन मेळववानी आपणे आशा नज राखवी जोईए. तेओ स्वाभाविक रीते, ते सिद्धांतोनुं आलेखन एवाज रूपमां करशे के जेथी तेमां देखाई आवता दोषो वधारे मोटा प्रमाणमां बतावी शकाय. जैनो पण आ बाबतमां बौद्धो करतां लेशमात्र उतरे तेम नथी. तेमणे पण बौद्धोना सिद्धांतोने आजप्रमाणे विकृतरूपमां आलेख्या छे. बौद्धोना ए मन्तव्यनु के- पाप ए तेना आचरनारने आशय उपर आधार राखे छे, तेनुं जैनोए, आ पुस्तकना पृ० ४१४ उपर, केवू असत्य निरूपण कयु छे ते जोवा जेवू छ. ए ठेकाणे जैनोए बौद्धोना एक १ पाप ए आशय उपर आधार राखे छे, ते मात्र मनवाळा पंचेन्द्रियजीवोने आश्रित कही शकाय पण निगोदादिकथी लईने असंज्ञिपंचेन्द्रिय सुधीना जीवोने मन होतुं नथी अने ते कायिक पापथीज उंचा आवी शकता नथी, तेथी कायिकपापनो पण दरजो ओछो न गणी शकाय माटे जैनोनुं करेलं ते एकांतपक्षनुं खंडन अयुक्त नथी. संग्राहक. Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) महान् सिद्धांतने मिथ्याकल्पित अने मूर्खतापूर्ण उदाहरण साये मेळवी उपहासपात्र बनावी दीधो छे. अगुत्तरनिकायनो एक उल्लेख जेनी थोडीक चर्चा आ उपर करवामां आवी छे तेमां वळी आगळ चलावतां जणाववामां आव्युं छे के-' उपोसथना दिवसोमां तेओ (निगंठो) श्रावकोने आ प्रमाणे उपदेश आपे छे के-'भद्र, तमारे सबळां वस्त्रो काढी नांखवां जोईए अने कहे जोईए के-९ कोईनो नथी अने मारुं कोई नथी." अहिं विचारवानुं छे के-तेना माता पिता तेने पोतानो पुत्र तरीके माने छे अने ते पण तेमने पोताना माता पिता माने छे. तेनो पुत्र अगर तेनी पत्नी, तेने पिता अगर पतिरूपे माने छे. अने ते पण तेमने पोताना पुत्र अगर पत्नी तरीके माने छे. तेना गुलामो अने नोकरो तेने पोतानो मालिक या शेठ माने छे अने ते पण तेमने तेओ पोताना गुलामो अगर नोकरो छे, तेम माने छे. आ कारणथी ( निगन्ठो ) तेमने ( श्रावकोने) उक्त रीते बोलवावें कही तेमनी पासेथी असत्य भाषण करावे छे. वळी ए रात्री व्यतीत थया बाद तेओ ते ते वस्तुओनो उपभोग करे छे जे सर्व ( तेमना माटे ) अदत्तादान रूप छे आथी हुँ तेमने अदत्तादान लेवाना पण दोषी तरीके मानु छ.' al Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४३ ) आ वर्णन उपरथी समजाय छे के निग्रंथ - - उपासकना उपो-सथना दिवसोवाळा नियमो साधुजीवनना नियमो जेवाज होवा जोईए. गृहस्थ अने साधुजीवनना नियमोनुं भिन्नत्व बीजा दिवसोमां रहेतुं हतुं. परन्तु आ वर्णन जैनोना पोसहत्रतना नियमो साथे पूरेपूरुं मळतं आवतुं नथी. प्रो. भांडारकर, तत्वार्थसारदीपिकाना आधारे पोसहत्रतनुं स्वरूप नीचे प्रमाणे आपे छे; अने आ वर्णन बीजा तेवा वर्णनो साथे बराबर संगत थाय छे. भांडारकर लखे छे के ८ पोसह एटले दरेक पक्षनी अष्टमी अने चतुर्दशीना पवित्र दिवसे उपवास करो अथवा एकाशन करवुं, अथवा एकज ग्रास खावो. ते दिवसोमां यतिनी माफक वैराग्य धारण करी स्नान, लेपन, आभरण, स्त्रीसंगमन, सुंगधी धूप-दीप इत्यादिनो त्याग करवो '. जो के वर्त्तमानजैनोनुं ए पोसहवत - पालन बौद्धो करतां घणुं सखत छे, ए वात खरी छे; तो पण ते निगन्ठ-नियमो के जेमनुं वर्णन उपर आपवामां आव्युं छे, तेना करतां घणुं शिथिल होय तेम जणाय छे. मारा जाणवा प्रमाणे जैनगृहस्थ, पोसहम कपडानो त्याग करतो नथी, पण बाकीना आभूषणो अने बीजा विलासोनो त्याग करे छे तेमज दीक्षा ग्रहण करती वखते जेम Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (88) साधु ने त्यागना सूत्रो बोलवां पडे छे तेम तेने बोलवां पडतां नथी. आ उपरथी एम जणाय छे के कां तो बौद्धोनुं आ वर्णन मूलभरेलुं अगर असत्यमूलक होय अने कां तो जैनोए पोताना नियमोमां कांइक शिथिलता दाखल करी होय. दीघनिकाय १, २, ३८ ( ब्रह्मजालसूत्र ) मां आवता निगण्ठविषयक उल्लेख उपरनी पोतानी टीकामां एक ठेकाणे बुद्धघोष लखे छे के - ' निगण्ठो आत्मा वर्णरहित छे एम माने छे; अने आजीविको आत्माना वर्णनी अनुसार समस्त मानवजातिना ६ विभागो पाडे छे. परन्तु मृत्यु पछी पण आत्मानुं अस्तित्व धरावे छे अने ते बधा रोगोथी मुक्त ( अरोगो) होय छे, ए बाबतमां निगण्ठो अने आजीविको बन्ने समानमतवाळा छे.' छेवटना शब्दोनो अर्थ गमे तेम हो, परन्तु तेनी उपरनुं वर्णन तो आ पुस्तकना पृ. १७२ उपर आपेला जैनोना आत्मस्वरूपना वर्णन साथै बराबर मळतुं आवे छे. एक बीजा फकरामां (I. C. P. 168 ) बुद्धघोष जणावे छे के -निगंठ नातपुत्त थंड पाणीने सचेतन माने छे ( सो फिर सीतोदके सत्त सञ्जी होति ) अने तेथी ते तेनो उपयोग करता नथी. जैनोनुं आ मंतव्य अत्यंत प्रसिद्ध होवाथी तेनी साबिति आपवा माटे सूत्रो Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मांथी अवतरणो आपवानी आवश्यकताने हुँ निरर्थक मा छु. पालीग्रन्थोमांथी प्राचीननिगंठोना मंतव्यो संबंधी जे काई माहिती हुँ एकत्र करी शक्यो छु, लगभग ते बधी उपर आपी दीधी छे. जो के आपणे इच्छिए तेना करतां ते घणी अल्पप्रमाणमां छे, तो पण तेथी तेनी किंमत विलकुल ओछी गणाय तेम नथी. प्राचीननिगन्ठोना मंतव्यो अने आचारोना संबंधमां उल्लेखो आपणे एकत्र कर्यो छे ते सघलां एक अपवादने बाद करतां वर्तमान जैनमंतव्यो भने आचारो साथे मळतां आवे छे. अने तेमांना केटलाक तो जैनोना खास मौलिक विचारो छे. आ उपरथी आपणने एम संदेह करवानुं जराए कारण नथी जडतु के, आ बौद्धग्रन्थोमांनी नोंधो अने जैनसिद्धांतोनी रचना वच्चना अंतर्वर्ती कालमां जैनसिद्धांतोमां झाझो फेरफार थयो होय. में जाणी जोईनेज निगण्ठ नातपुत्तना मतविषयक एक प्रधान प्रकार- विवेचन कर आ स्थले मुलतबी राख्युं छे. कारण के ए फकरामां आपेली बाबत उपरथी आपणने एक नवीज पद्धतिए तपास करवानी जरूरत रहे छे. आ फकरो दीघनिकायना सामनफलसुत्तमा आपेलो छे. १ सुमङ्गलविलासिनी [ पालीटेक्स्ट सोसायटी ] पृ. ११९, Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुं तेनुं अहीं सुमंगलविलासिनीनामे बुद्धघोषवाळी टीकाना अनुसारे भाषांतर आपुंछ-' महाराज ! अहियां एक निगन्ठ चारे दिशाना नियमनथी सुरक्षितछे. ( चातुयामसंवरसंवुतो ) हे महाराज केवी रीते निगन्ठ चारे दिशाना संवरथी रक्षित छे ? महाराज आ निगन्ठ सघरों (थंडु ) पाणी वापरता नथी. सर्व दुष्ट कर्म करता नथी. अने सबळा दुष्कर्मोना विरमनवडे ते सर्वपापोथी मुक्त छे. अने सर्वप्रकारना दुष्कर्मोथी, सघळां पापकर्मोथी निवृत्ति अनुभवे छे. आ प्रमाणे हे महाराज निगंठ चारे दिशाना संवरथी संवृत छे, अने महाराज ! आ प्रमाणे संवृत होवाथी ते निगन्ठ नातपुत्तनो आत्मा मोटी योग्यतावाळो, संयत अने सुस्थित छे.' अलबत, आ जैनधर्मनुं यथार्थ तेमज संपूर्ण वर्णन नथी. परन्तु तेमां जैनधर्मनुं विरोधी तत्त्व पण नथी. आना शब्दो जैनसूत्रोना शब्दो जेवाज छे. में बीजे स्थले जणाव्युं छे 9 shtatea Pali sept suttasai, aturan (Gogerly) अने बर्नफ ( Burnoul )नां जे भाषांतरो आपेलां छे ते तेमणे टीकानी सहायता लीधा विना करेलां होवाथी दुर्लक्ष्य करवा जेवां छे. बुद्धघोषनुं वर्णन परंपरागत हतुं के कल्पित हतुं ते सन्दिग्ध छे. _ २ जुओ इन्डि एन्टि भा. ९ पृ. १५८ मां प्रकट थएलो मारो n Mahavir and his Predecessors नामनो निबंध । Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) तेम 'चातुयामसंवरसंवतो' ए वाक्य मात्र टीकाकारेज नहीं परन्तु मूळ ग्रन्थकारे पण खोटी रीते समजेलं छे. कारणके-पालीशब्द 'चातुयाम ' ते प्राकृतशब्द ' चातुग्गाम' नी बराबर थाय छे. अने आ प्राकृतशब्दनो एक प्रसिद्ध जैनपारिभाषिक शब्द छे जे महावीरना ( पंचमहब्बय) पांच महाव्रतोथी भिन्न एवा पार्श्वनाथना चार व्रतोनो वाचक छे. आथी आ स्थले बौद्धोए जे सिद्धांत वास्तविकमां महावीरना पुरोगामी पार्श्वनाथने लागु पडे छे तेने, महावीर उपर आरोपित करवामां भूल करेली छे, एम हुं धाएं छु. आ उपरथी एम सूचित थाय छे के बौद्धोए आ शब्दने निगन्ठोना धर्मवर्णनमां लीधेलो होवाथी तेमणे ते पार्श्वनाथना अनुयायिओना मुखेथी सांभल्यो हशे. अने बीजी ए पण कल्पना थई शके के महावीरना संशोधितमतो जो बुद्धना समयमा सर्वसामान्यरीते स्वीकाराया होत तो पार्थनाथना अनुयायिओ पण ते वखते ते शब्दनो उपयोग नहीं करता होत. बौद्धोनी आ भूलद्वारा हुँ जैनोनी ए परंपराने सत्य स्थापित करी शकुंटूं के महावीरना समयमां पण पार्श्वनाथना शिष्यो विद्यमान हता. आ पद्धतिए तपास करवानी शरुआत करतां पहेला हूं Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८) बौद्धोनी एक बीजी पण अर्थपूर्ण भूल तरफ वाचकनु ध्यान खेंचवा मांगुं छु. बौद्धो नातपुत्तने अग्गिवेसन अर्थात् अग्निवैश्यायन कहे छे परन्तु जैनोना मतानुसार ते काश्यप हता; अने पोताना तीर्थकरो संबंधि आवी बाबतोमां जैनोनुंज कहेg विश्वासपात्र मानवं जोईए. वळी महावीरनो एक मुख्यशिष्य जे सुवर्मा नासे हतो अने जेने सूत्रोमां महावीरना धर्मना मुख्य उपदेशक तरीके बतावेलो छे ते पोते अग्निवैश्यायन हतो; अने तेणे जैनधर्मनो प्रसार करवामां मुख्य भाग भजवेलो होवाथी बहारना बीजा माणसो शिष्यने गुरु समजी लेवानी भूल करी होय अने तेथी करीने शिष्य गोत्र गुरुने लगाडी देवामां आव्युं होय ते वगं संभक्ति छे. आ रीतनी बौद्धोए करेली बेवडी भूल महावीरनी पूर्व पार्श्वनामना तीर्थकरनी तथा महावीरना मुख्य शिष्य सुधर्मानी हयातीनी साक्षी आपे छे. पार्श्व ए ऐतिहासिक पुरुष हता ते वात तो वधी रीते संभावित लागे छे. केशी' के जे महावीरना समयमा पार्श्वना संप्रदायनो एक नेता होय तेम देखाय छे, तेनो तथा अन्य पण तेवा अनुया १ राजप्रश्नीमां केशीगणधरने राजा पएसी साथे संवाद थयो हतो अने त्यार बाद राजाने तेणे पोतानो धर्मानुयायी बनाव्यो हतो. Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४९) विधोना जैनसूत्रोमा घणे ठेकाणे उल्लेखो थएला छे अने ते उल्लेखो एवी सरळ रीते थएला छे के जेथी करीने तेनी सत्यासत्यताना संबंधमां शंका उठाववाने कारण मळतुं नथी. उत्तराध्ययनना २३ मा अध्ययनमा जुना अने नवा संप्रदायनो परस्पर मेळ केवी रीते थई गयो हतो ते बतावनारी एक कथा आ विषयमा घणीज अगत्यनी छे. केशी अने गौतम के जेओ बन्ने जैनधर्मना बे संप्रदायोना प्रतिनिधि तथा नेता हता, तेओ पोताना शिष्यपरिवार सहित एक वखते श्रावस्तिपासेना उद्यानमां भेगा मळे छे अने महाव्रतोनी संख्याविषयक तथा सचेलकाचेलक अवस्थाविषयक तेमना धार्मिकमतभेदो वधारे विवेचन का शिवाय मात्र सहन समजावीने दूर करवामां आवे छे. अने त्वराथी मौलिक नीतिविषयकविचारोना संबंधमां प्रत्येक पक्ष दृष्टांतो द्वारा एक बीजाना विचारो समनी समजावी निःशंक बनी संपूर्ण एकमत याय छे, बन्ने संप्रदायो वच्चे काइक मतभेद जेवू जोवामां आवे छे, परन्तु परस्पर द्वेष या वैर बिलकुल जोवातुं नथी. जो के प्राचीन संप्रदायना अनुयायिओने 'पंचमहाव्रत प्रतिपादनार ' महावीरना धर्मनो स्वीकार करवो पच्यो हतो, ए वात खरी छे; तोपण तेओ पोतानी केटलीक जुनी रूढिओने पण वळगी रह्या हता. खास करीने वस्त्र वापरवाना विषयमां के जे रूढिनो महावीरे त्याग Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) कर्या हतो, तेम आपणे मानवं जोईए. आ कल्पनानुसार आपणे श्वेताम्बर अने दिगंबर संप्रदायरूपी बे फिरकानी उत्पत्तिनुं मूळकारण पण बतावी शकीए छीए, के जेना संबंधमां श्वेताम्बर अने दिगम्बर बन्ने संप्रदायमां भिन्न भिन्न अने परस्परविरोधी दंतकथाओ प्रचलित छे.' आ भेद देखीती रीतेज काइ आकस्मिक थयो नहतो; परन्तु असलनो एक मतभेद [ उदाहरण तरीके जेवो के श्वेताम्बरमतना केटलाक गच्छोनी वच्चे अत्यारे ए हयाती धरावे छे. ] काले करीने विभागना रूपमा परिणत थयो अने आखरे तेणे एक महान् धर्मभेदनुं रूप लीधुं. बौद्धग्रन्थोमां मळी आवता उल्लेखो, नातपुत्तनी पूर्वे पण निम्रन्थोनी हयाती हती, ए प्रकारना आपणा विचारने दृढ करे छे. ज्यारे बौद्धधर्मनो प्रादुर्भाव थयो त्यारे निम्रन्थोनो संप्रदाय एक मोटा संप्रदायरूपे गणातो होवो जोईए. ए निर्ग्रन्थोमांना केटलाकने बौद्धपिटकोमां, बुद्धना अने तेना शिष्योना विरोधी तरीके अने वळी केटलाकने तेना अनुयायी थएला तरीके वर्णवेला छे, के 1. १ श्वेताम्बर अने दिगम्बर संप्रदायोनी उत्पत्तिना संबंधमां जर्मन भोरिएन्टल :सोसायटीना जर्नलना ३८ मा भागमा प्रकट थएलो मारो निबंध जूनो.. Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) ने उपरयी आपणे उपर प्रमाणे अनुमान करी शकीए छीए. एथी उलटुं ए ग्रन्थोमां कोई पण स्थले एवो उल्लेख के सूचन सरखं पण थएलु जोवामां नथी आवतुं के निर्ग्रन्योनो संप्रदाय ए एक नवीन संप्रदाय छे. आ उपरथी आपणे अनुमान करी शकीए छीए के निग्रन्यो बुद्धना जन्म पहेलां घणा लांबा काळ्थी अस्तित्व धरावता हशे. आ अनुमानने बीजी एक बाबतद्वारा पण टेको मळे छे. बुद्ध अने महावीरना समकालीन एवा मंखलि गोशाले मनुष्य जातिनी छ वर्गामां वहेचणी करी हती बुद्धघोषना कहेवा मुजब आ छ वर्गमांना त्रीजा वर्गमां निम्रन्थोनो समावेश करवामां भाव्यो हतो. हवे विचारीए के निर्ग्रन्थो जो तेज अरसामाह्यातीमा आल्या होत तो तेमनी गणना एक खास एटले के मनुष्यजातिना एक स्वतंत्र-पेटाविभाग तरीके कदापि न करवामां आवी होत. १ दीघनिकाय, सामफलसुत्त २०. २ सुमंगलविलासिनी पृ. १६२ मां बुद्धघोष स्पष्ट जणावे छे के मोशाले पोताना शिष्यो जे चतुर्थवर्गना हता तेना करतां निम्रन्थोने हलकी प्रतिना गण्या छे. गोशाले तो भिक्षुओने तेथीए हलका प्रकारना गण्या छे के जे बाबत टपर बुद्धघोषे लक्ष्य आप्यु नथी. ते उपरथी स्पष्ट जणाय छे के आ भिक्षुओने बौद्धसाधुओ करतां ते भिक मानतो हतो. Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) जरूर तेणे निम्रन्थोने एक महत्वना अने साथ मारा मानवा प्रमाणे प्राचीन बौद्धो मानता हता तेम एक प्राचीन संप्रदायरूपे लख्या हशे. मारा उपरोक्त छेल्ला मतनी पुष्टिमां नीचे मुजबनी दलील पण छे. मन्झिमनिकाय, ३५ मां बुद्ध अने सन्चक नामना एक निर्ग्रन्यपुत्र वचे थएला वादनुं वर्णन आपेलुं छे. सन्चक वादमा नातपुत्तने हराव्यानी बडाई मारतो होवाथी ते निर्ग्रन्थ होय तेम लागतो नथी. अने बीजें ए के जे सिद्धान्तोनुं ते समर्थन करवा मथे छे ते सिद्धान्तो जैनोना नथी. आ उपरथी ए विचारवा जेवू छे के एक प्रसिद्धवादी के जेनो पिता निर्ग्रन्थ हतो अने जे पोते बुद्धनो समकालीन हतो, तेना पुरावा उपरथी निर्ग्रन्थोनो संप्रदाय बुद्धना समयमा स्थापित थयो हतो तेंम भाग्येज मानी शकाय. हवे आपणे जे जे जेनेतर पाखंडी मतावलंबिओ सामे जैनोए पोतानो तात्त्विकविरोध बताव्यो छे, अने ते संबंधे जे उल्लेखों तेओए कर्या छे, ते तपासीए, अने तेनी साथे बौद्धोना उल्लेखो सरखावीए. सूत्रकृतांग २,१,५५ (पृ. ३८८ ) अने २१ (पृ. ३४३) मां घणे अंशे परस्पर मळता आवता एवा ने जडवादी सिद्धांतोनो उल्लेख छे. पहेला सूत्रमा जे लोको आत्माने एक अने अभिन्न माने छे तेमना एक अभिप्रायनुं वर्णन छे, अने al Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) बीजासूत्रमा पंचभूतने नित्य अने बधू तेनुज बनेटु छे तेम माननार एक सिद्धांतनुं वर्णन आपेटु छे. बन्ने मतना अनुयायिओ जीवतां प्राणीनी हिंसा करवामां पाप मानता नथी. आवान प्रकारनो मत सामञफलसुत्तमां पूरणकस्सप अने अजितकेशकंबलीनो होवानु बताव्युं छे. पूरणकस्सप पुण्यअगर पाप जेवी कोई वस्तुने मानतो नथी, अने अजितकेसकंबलीनो एवो सिद्धान्त छे के अनुभवातीत मंतव्य के जे लोकोमा प्रचलित छे तेने मळतुं कोई तत्त्वज नथी. आ उपरान्त ते एम माने छे के 'माणस ( पुरिसो) चार भूतोनो बनेलो छे; ज्यारे ते मरी जाय छे त्यारे पृथ्वी पृथ्वीमां, पाणी पाणीमां, अग्नि अग्निमां, वायु वायुमां अने ज्ञानेन्द्रियो हवामां' ( अथवा आकाशमां ) विलीन थई जाय छे. ठाठडीने उपाडनार, चार पुरुषो मुडदाने स्मशानभूमिमां लई जाय के त्यारे कल्पांत करे छे; कपोतरंगनां हाडकां बाकी रहे छे अने वीजा सघळां ( पदार्थो) बळीने भस्मीभूत थई जाय छे. आ छेल्लं सूत्र थोडा फेरफार साथे सूत्रकृतांगना पृ० ३४० उपर आवे छे:-' अन्यजनो मुहदाने बाळवा माटे लई जाय छे. १ आकाशने बौद्धग्रंथोमां पांचमा तत्त्व तरीके मान्युं नथी, परन्तु नयंथोमां ते मान्युं छे. जुओ भागळ पृ. ३४३ अने पृ. २३५ गाथा १५. आ मात्र एक शाद्विकभेद छे नही के तात्त्विक. Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) न्यारे अग्नि तेने बाळी नांखे छे त्यारे मात्र कपोतरंगनां हाडकां बाकी रहे छे अने चार उपाडनारा ठाठडीने लई गाम तरफ पाछा वळे छे.' जडवादना बीजा सिद्धान्त (पृ० ३४३, २२, अने पृ० २३७ ) ना संबन्धमां एक बीजी शाखानो पण उल्लेख थएलो छे. ते मतमां पांच भूत उपरान्त छठे तत्त्व नित्यात्मा मनाय छे. आ मत ते अत्यारे वैशेषिकनामना दर्शनथी जे प्रसिद्धिमा आवेलुं छे तेनुं प्राचीन अथवा लोकप्रसिद्ध रूप छे. बौद्धग्रंथमा आ दर्शनना संस्थापक तरीके पकुवकन्चायन निर्दिष्ट थएलो छे. तेनो मत एवो हतो के आलुं विश्व सात वस्तुन ( पदार्थोनू ) बनेलं छे. अने ते सर्वे पदार्थो नित्य निर्विकार अने परस्पर स्वतंत्र छे. ते पदार्थो चार भूत, सुख, दुःख अने आत्मा ए प्रमाणे छे. आ सर्वेनी एक बीना उपर कोई असर थती नहीं १ हुं आ स्थले बन्ने मूळसूत्रोने साम सामे मुकुं छु जेथी करीने रोमनी बच्चे साम्य वधार स्पष्ट रीते समजी शकाय:-- आसन्दि पञ्चमां पुरिसा मतमादाय ) आदहणाए, परेहि निजई; गच्छन्ति याव अाहना (अगणिज्झीमेत सरीरे कवोतवण्णाई पदानि पञआपेन्ति, कापोतकानि (अठीनि आसन्दि अहीनि भवन्ति भस्संन्ता हुँतियो ) पञ्चमा पुरिसा गामं पञ्चा गच्छन्ति Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) होवायी कोई पण पदार्थनो वास्तविक नाश थतो नथी. मारे कहेवू जोईए के सुख अने दुःखने नित्य मानवा छतां पण ते बन्नेनी आत्मा उपर कोई असर थती न मानवी ते मारा अभिप्राय प्रमाणे तो अज्ञानता भरेलं छे. परन्तु बौद्धोए कदाच असल सिद्धांतोनुं असत्य आलेखन कर्यु होय तो ते पण संभवित छे. पकुधकच्चायनना विचारो अवश्य करीने अक्रियावादमा अंतर्गत थाय छे. अने आ बाबतमां ते वैशेषिकदर्शन के जे क्रियावादी छे तेनाथी भिन्न पडे छे. आ बन्ने वादो बौद्ध तेमन जैमसाहित्यमा आवता होवाथी तेमनी विशेष व्याख्या करवी अहीं अस्थाने नहीं गणाय.जे सिद्धांत आत्माने क्रियाशील अने क्रियालिप्त (क्रियाथी जेना उपर असर थाय तेवो) माने छे ते क्रियावादी कहेवाय छे. आवर्गमां जैनधर्म, ब्राह्मणधर्मो पैकी वैशेषिक अने न्या-: यदर्शनो (आ बे दर्शनोना स्पष्ट उल्लेखो बौद्ध अने जैनधर्मशास्त्रोमां थएला नथी.) तथा बीजां पण एवां केटलांक दर्शनों के जेनां नाम अत्यारे उपलब्ध थई शकतां नथी परन्तु जेनी हयातीनी माहिती आपणे आपणा आ ग्रंथोमांथी मेळवी शकीए छीए, ते. सर्वेनो-समावेश थाय छे. अक्रियावाद ते सिद्धान्त कहेवाय छे, जेमां आत्मानुं नास्तित्व अगर निष्क्रियत्व अथवा कर्मालिप्तत्व प्रतिपादन करवामां आवे छे. आ वर्गमां सघळा जडवादी मतो; Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्राह्मणधर्मो पैकी वेदान्त, सांख्य अने योगदर्शनो, तथा बौद्धधर्मनो अंतर्भाव थाय छे. बौद्धधर्मना क्षणिकवाद तथा शून्यवादनो उल्लेख सूत्रकृतांग १,१४,४ थी अने ७ मी गाथामां थएलो छे. साथे ए पण जणावयूँ जोईए के वेदान्तिओ अथवा तेमना मन्तव्योनो पण सिद्धांतोमा घणे स्थळे उल्लेख आवे छे. सूत्रकृतांगना भीजा पुस्तकना पहेला अध्ययनमां पृ. ३४४ उपर, त्रीजा पाखंड मत तरीके वेदान्तनुं वर्णन थए© छे. छठा अध्ययनमां, पृ. ४१७ उपर, तेनुं फरीथी वर्णन आलु छे. परन्तु बौद्धोए गणावेला छ तीथिकोमा आ मतनो कोई पण आचार्य नहीं होवाथी आपणे ते उपर आ स्थळे ध्यान देता नथी.' सूत्रकृतांगना बीजा भागना प्रथम अध्ययनमां, चोथा पाखंड मत तरीके दैववाद ( Fatalism ) नुं वर्णन आवेलुं छे. सामञफलसुत्तमां आ मतनुं मक्खली गोसाल नीचे प्रमाणे प्रतिपादन करे छे–'महाराज ! जीवात्माओनी अपवित्रतामां कोई १ एक बात याद राखवा जेवी छे के वेदान्तिओ पण बुद्धना प्रतिसद्धि तरीके काम बजावता अने तेओ वैदिकधर्मना तत्त्वज्ञोमा आगळ पडता होवाथी आपणे एम अनुमान करवू जोईए के बुद्धधर्मनी असरवाळा लोकोथी विद्वान् ब्राह्मणो दूरज रहेता. Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) । हेतु अगर पहेलां हयाती धरावतुं एवं कांई कारण नयी, ते अनन्यकृत छे. तेमज ते पहेला हयाती धरावती कोई बीजी वस्तुथी उत्पन्न थएली नथी. ( तेवीज रीते) जीवात्माओनी पवित्रतामां पण कोई कारण अगर पूर्वे हयाती धरावतो कोई हेतु नथी ते अनन्यकृत छे. तेमज तेनु कोई उपादान कारण नथी. आनी उत्पत्ति व्यक्तिओना कोई आचारनुं परिणाम नथी. तेमज पारकाना कार्योनी पण तेना उपर असर नथी. तेम मनुष्यप्रयत्ननुं पण ते फळ नथी. जेने उत्पन्न करवामां, पुरुषनी शक्ति, प्रयत्न, बल, धैर्य, अगर सामर्थ्य एमांगें कोई कारणभूत यतुं नयी. सर्वे सत्त्व, सर्वे प्राणिओ, सर्वे भूतो, अने सर्वे जीवो, पछी ते पशु, अगर वनस्पति गमे ते हो पण तेमनामांना कोईमां आंतरबल, शक्ति । १ मूळमां सव्वे सत्ता, सम्वे पाणा, सध्धे भूता, सव्वे जीवा, एवो पाठ छे. जैनसूत्रोमां पण आज क्रमथी अनेक ठेकाणे ए पाठ भावे छे. अने ए पाठन संक्षेपमां all classes of living beings. सचेतनप्राणीओना बधा वर्गो' एवं भाषांतर करेलं छे. बुद्धघोषनी टीकार्नु भाषांतर, होर्नले, उवासगदसाओना परिशिष्ट नं. २ जाना पान १६ उपर नीचे प्रमाणे आप्यु छे ' सब्वे सता-एटले ऊंट, बळद, गधेडा, अने तेवा बीजा बधा पशुओ. सव्वे पाणा-एटले एकेन्द्रिय, द्रीन्द्रिय आदि चेतनावान प्राणिओ, सव्वे भूता-एटले अंडज अने गर्भज जीवो. अने सब्वे जीवा-एटले हांगर, जव, घऊ इत्यादि (वानस्पतिक ) जीवो. Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तथा सामर्थ्य नयी; परन्तु आ दरेक जीव पोतानी स्वभावनियतिने. वश थई, छ प्रकारमांनी कोई पण जातिमा रही सुख दुःख भोगवे छे. इत्यादि ' आ सिद्धांतोतुं सूत्रकृतांगमां (I. C.) आपेढुं वर्णन जो के थोडा शब्दोमां छे, छतां पण सरखा भावार्थवाळु छे; अलबत ते स्थळे आ सिद्धांतो मक्खलीपुत्र गोशालना छे एम स्पष्ट कहेवामां आव्यु नथी. जैनो प्रधानतया चार दर्शनोनो उल्लेख करे छे:-क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद अने वैनयिकवाद. आमांथी अज्ञानिकोना मतोनुं मूळमा स्पष्ट कथन करेलु देखातुं नथी. आ सवळा दर्शनोना विषयमा टीकाकारे जे समजुती आपेली छे, अने जे में पृ. ८३ नी २ नंबरनी टीपमां नोंघेली छे, ते घणीज अस्पष्ट अने मेरसमजुती उत्पन्न करे तेवी छे. परन्तु ए अज्ञेयवादनो यथार्थ ख्याल आपणने बौद्धग्रन्थोथी आवी शके तेम छे. सामञफलसुत्तमा जणाव्या प्रमाणे ते मत सञ्जयनेलहिपुत्रनो हतो; अने त्यां नीचे प्रमाणे तेनुं वर्णन करेलुं छे:'महाराज ! जो मने तमे पूछशो के जीवनी कोई भावी अवस्था छे ! तो हुँ जबाब आपीश के जो हुँ भावी अवस्था अनुभवी शकुं, तो पछी हुं ते अवस्थान स्वरूप समजावी शकुं. जो मने पूछशो के शं ते अवस्था आ प्रकारनी छे ? तो (हुं कहीश के) Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९ ) Ri ते मारो विषय नथी. शुं ते ते प्रकारनी छे ! ते मारो विषय नयी. शुं ते आ बन्नेयी भिन्न छे ? ते पण मारो विषय नथी. नयी एम नथी ? ते पण मारो विषय नथी ' इत्यादि. आज रीते मृत्यु पछी तथागतनी हयाती रहे छे के नहीं ? रहे छे अने नथी रहेती ? रहे छे एम ए नथी ? अने नथी रहेती एम ए नथी ? आवा प्रश्नो जो कोई पूछे तो तेनो पण ते एज रीते जबाब आपे छे. आ उपरथी स्पष्ट छे के अज्ञेयवादीओ कोई पण वस्तुना अस्तित्व अने नास्तित्वना संबंधमां सर्वे प्रकारनी निरूपणपद्ध तिओ तपासता हता अने जो ते वस्तु अनुभवातीत मालुम पड़ती तो तेओ सर्वे कथननी रीतिओनो इनकार करता हता. बुद्ध अने महावीरना समयमां प्रचलित एवा अन्य तात्त्विकविचारोना विषयमां जैन तथा बौद्ध ग्रन्थोमां मळी आवती नोवो गमे तेली जूज होय, तो पण ते नामांकितकालना इतिहासकारने अतिमहत्वनी छे. कारण के आ नोंधोद्वारा ते कालना धार्मिक सुधारकने केवा प्रकारना पाया उपर तथा कया साधनोनी मददयी पोतानो मत उभो करवो पड्यो हतो ते जणाई आवे छे. एक बाजुए आ बधा पाखंडी मतोमां मळी आवती परस्परनी केटलीक साम्यता अने बीजी बाजुए जैन अगर बौद्धोनी जणाती विशिष्टता Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) उपरथी स्पष्टीते अनुमान करी शकाय छे के बुद्ध अने महावीरे केटलाक विचारो तो आ पाखंडिओना मतोमांथी लीधा हता, अने केटलाक तेओनी साथे चालता तेमना सतत वादविवादनी असरथी उपजावी कढाया हता. मारुं एम धारदुं छे के सञ्जयना अज्ञेयवादनी विरुद्ध महावीरे पोतानो स्याद्वादनो मत स्थाप्यो हतो. अज्ञानवाद जणावे छे के जे वस्तु आपणा अनुभवनी पछे तेना संबंधमां अस्तित्व अगर नास्तित्व अथवा युगपत् अस्तित्व अने नास्तित्व विधान, अगर निषेध करी शकाय नहीं. तेज रीते पण तेथी उलटी दिशाए दोडतो स्याद्वाद एम प्रतिपादन करे छे के-एक दृष्टिए ( अपेक्षाए) कोई पुरुष वस्तुना अस्तित्वविधान करी शके ( स्याद् अस्ति ), तेम बीजी दृष्टिए तेनो निषेध करी शके ( स्याद् नास्ति ); अने तेवीज रीते भिन्न भिन्न कालमां ते वस्तुना अस्तित्व तथा नास्तित्वनुं विधान करी शके (स्याद् अस्ति नास्ति), परन्तु जो एकज काळमां अने एकज .. १ पोताना मौलिक विचारोथी बंधारण थएला एक शुद्ध धर्मने पछिलथी बीजा पाखंडिओना विचारो लईने भने नवीन उपजावी काडवाथी शुद्ध बनावी शकाय खरो के ? जो तेमज बनतुं होय तो बधाए धर्मों शुद्धज- बन्या होत, पण तेम देखातुं नथी. माटे आ अनुमान विचार बेवु लागे छे, संग्राहक. Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दृष्टिए कोई मनुष्य वस्तुना अस्तित्वतुं तथा नास्तित्व- विधान करवा इच्छतो होय तेणे एम कहेवू जोईए के ते वस्तु विषये कांई कही शकाय नहीं. (स्याद् अवक्तव्यः ). ते प्रमाणे केटलाक संयोगोमां अस्तित्वनुं विधान करवू अशक्य छे. (स्याद् अस्ति अवक्तव्यः ); केटलाक प्रसंगे नास्तित्व- विधान करवू अशक्य छे (स्याद् नास्ति अवक्तव्यः); अने केटलीक वखते बन्नेनुं विधान करवू अशक्य होय छे. (स्याद् अस्ति नास्ति अवक्तव्यः).' आ वाद ते जैनोनो प्रसिद्ध सप्तभंगी नय छे. शुं कोई पण तत्त्ववेत्ता पोताना भयंकर प्रतिस्पर्द्धिने चूप करावाना प्रयोजन सिवाय, जेने प्रमाणनी जरूर नथी, एवी उघाडी बाबतोनी व्याख्या करवानी इच्छा करे खरो ? एम लागे छे के अज्ञेयवादिओना सूक्ष्मविवादोए प्रायः तेमना घणा खरा समकालीन मनुष्योने गुंचवणमा नांख्या हशे अगर ममाव्या हशे, अने तेथी करीने ते सर्वेने अज्ञानवादनी भूल मुलामणीमांथी बहार निकाळवा माटे स्याद्वादनो सिद्धांत एक क्षेम मार्ग तरीके देखायो हशे. आ शास्त्रनी मददथी विरोधिओ उपर आक्रमण करनार अज्ञानवादिओ पोतानाज सामे थई जता हता. आपणे नथी कही शकता के अज्ञेयवादना १ भांडारकर रिपोर्ट सन् १८८३-४ पृ. ९५. Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केटला अनुयायिओ, आ सप्तभंगीनयना सत्यनी प्रतीति पामी महावीरना धर्ममां आवी गया हशे ? अज्ञेयवादनी बुद्धना उपर पण केटली बधी असर थई हती ते आपणे पालीग्रंथोमां निरूपित बुद्धना निर्वाणविषयक सिद्धान्तमा जोई शकीए छीए. आ प्रकारना निश्चयात्मक वाक्यो तरफ प्रथम ध्यान प्रो. ओल्डनबर्गे खेच्यु हत, आ वाक्यो निःशंकपणे जणावे छे के मृत्यु बाद तथागत ( अर्थात् मुक्तात्मा अथवा जेने वास्तवमा व्यक्तित्वनो हेतु कही शकाय ते ) हयाती धरावे छे के नहीं, एका प्रश्ननो उत्तर आपवा बुद्ध चोक्खी ना पाडता हता. जो तेमना समयना लोकोना सांभळवामां आवा विचारो बिलकुल न आव्या होत अने आवी केटलीक बाबतो के ने मनुष्यना मनथी अतीत होई ते घणी महत्वनी गणाय छे तेना संबंधमां, तेवा प्रकारना उत्तरोथी ते लोकोने सन्तोष न वळतो होत. तो तेओ, तेवा कोई धार्मिक सुधारक के ने ब्राह्मणधर्ममां तर्कसिद्धनिरूपित सघली बाबतोना संबन्धमां पोतानो स्पष्ट मभिप्राय न आपे, तेना उपदेशोने आदरपूर्वक सांभळे ए असंभवित छे. परन्तु वस्तुस्थिति जोतां एम लागे छे के अज्ञेयवादे बौद्धोना निर्वाणना सिद्धांतने झीलवा माटे भूमि तैयार करी राखी Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) हती.' एक बाबत खास नोंव लेवा जेवी छे:-संयुतनिकाय जेनुं भाषान्तर प्रो. ओल्डनबर्गे करेलुं छे, तेमां एक ठेकाणे पसेनदि राजा अने खेमा नामनी आर्या वचे थलो संवाद आवे छे. तेमां राजाए मृत्यु बाद तथागत हयाती धरावे छे के नहीं ए संबंधमां प्रश्नो पूछेला छे, जे सूत्रोमां आ प्रश्नो पूछेलां छे तेमां सामञ्ञफलसुत्त-के जेनुं भाषांतर उपर आपेलुं छे, तेमां जेवा शब्दो संजय वापरे छे तेवाज शब्दो वापरेला छे. बुद्धना समयना अज्ञेयवादनी असर बुद्ध उपर थई हती 1 १ निर्वाणना स्वरूपकथनसंबंधमां बुद्धे जे मौन धारण कर्यु हतुं ते तेमना वखतमां भले डहापण भरेलुं गणायुं होय, परन्तु ते संप्रदायना विकासने माटे तो तेमां घणा परिणामो समाएला हता. कारण के बौद्धमतना अनुयायिओने, ब्राह्मणदार्शनिको जेवा दूधमांची पोरा काढनारा तर्कशास्त्रीओनी विरुद्ध पोताना मतने टकावी राखवानो होवाथी, आ महान् प्रश्न के जेना विषयमा तेमना धर्मसंस्थापके कांई पण निश्चयात्मक कथन कर्यु नहोतुं ते उपर वधारे स्पष्ट विचारो जणाववानी फरज पडी हती. आ रीते पोताना गुरुए अधुरा राखेला महेलने पूर्ण करवा माटे सामग्री भेगी करवाना उद्देशथी बुद्धनिर्वाण पछी तरतज बौद्धधर्म पुष्कल संप्रदायोना रूपमा विभक्त थई गयो हतो. आश्चर्य पामवानी जरूर नथी के सिलोन जे ब्राह्मणविद्याविषयक केन्द्रथी घणुं दूर आवे छे त्यां भा निर्वाणनो सिद्धान्त असलरूपमां अखंडित रही शक्यो थे. बौद्धोना + Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) तेवा प्रकारना, मारा अनुमाननी पुष्टिमां, हुं महावग्ग १, २३, अने २४, मां आपेली एक परंपरागत कथा अत्रे रजु करूं हूं. ते कथामां एम जणावेलुं छे के बुद्धना सौथी वधारे प्रख्यात एवा सारिपुत्त अने मोग्गलान नामना वे शिष्यो, तेमना अनुयायी यया पहेला संजयना शिष्यो हता अने पछीयी तेओए पोताना जूना गुरुना मतना २५० शिष्योने पण बौद्धमार्गी बनाव्या हता. आ हकीकत बुद्धे बोधि प्राप्त कर्यु त्यार पछी तरतज बनी हती. आधी ए संभावित छे के पोताना नवा मतना प्रारंभकालमा बुद्धे शिष्यो मेळववा माटे ते वखते प्रचलित एवा बीजा म़तो तरफ सर्वप्रकारनी योग्य वर्त्तणुक राखवानी कोशीश करी हशे . महावीरना सिद्धान्तोना विकास उपर मारी मान्यतानुसार मक्खलीपुत्त गोसालनी मोटी असर थएली छे. भगवती १९, १ मां आपेलो तेना जीवननो इतिहास, होर्नले पोताना उपासगदसाओना भाषांतरने अन्ते, एक परिशिष्टमां संक्षेपमां भाषांतरित करेलो छे. तेमां ए प्रमाणे नोंघेलुं छे के, गोशाल महावीरनी साये तेमना शिष्यतरीके श्रमणधर्म पाळतो थको छ वर्ष सुधी रह्यो हतो. परन्तु पछी ते तेमनाथी जूदो यई गयो अने पोतानो नवो धर्म स्थापी जिन तरीके आजीविकोनो नायक कहेवढावा Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५). लाग्यो. परन्तु धौद्धप्रन्योमा वेना संबन्धमां एवी नोंध मळी आने छे के ते नन्द वच्छ अने किस संकिचनो उत्तराधिकारी हतो. अने, तेनो संप्रदाय साधुवर्गमा चिरस्थापित ( लांबा वखत पूर्वे स्थापित थएलो एवो) मनातो होई अचेलक परिव्राजकना नामे प्रसिद्ध हतो. जैनोनी ए हकीकत के महावीर अने गोसाल ए बोए केटलाक वखत सुधी साथे तपश्चर्या करी हती, तेमा शंका करवानुं कोई कारण नथी. परन्तु तेओ बन्ने बच्चे जे संबंध बताववामां आवे छे ते वास्तवमां तेनाथी जूदा प्रकारनो होय तेम लागे छे, मारूं एवं मानवु छे, अने मारा आ अभिप्रायना पक्षमा हुँ हमणांज केटलीक दलीलो आपीश-के महावीर अने गोसाल ए बन्ने पोताना संप्रदायोने एक करवाना अने एकने बीजामा मेळवी देवाना इरादाथी परस्पर सहचारी बन्या हता, अने लांबा बखत सुधी आ बन्ने आचार्यो साथे रह्या हता. ए बाबत उपरथी चोकस अनुमान थाय छे के ते बन्नेना मतोनी बच्चे केटलुक साम्य होवून जोईए. आगळ पृ. २६ उपरनी टीपमां में जणाव्युं छे के 'सब्बे सत्ता, सव्वे पाणा, सव्वे भूता, सव्वे जीवा ' ना स्वरूपर्नु वर्णन गोसाल तेमज जैनोनी वच्चे समान छे. अने टीकामां जणावेल एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रियादि वर्गरूपे प्राणिओना विभागो के जे जैनग्रन्योमा घणाज साधारण छे, तेवा विभागोनो गोसाले Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण उपयोग कयों छे. चमत्कारी अने लगभग असत्याभासरूप छ लेश्यानो नैनसिद्धान्त,-जेने पहेलीन वखत दृष्टिगोचर कर्यानुं मान प्रो० ल्यूमनने घटे छे.-गोसाले करेला सघळी मनुष्यजातिमाटेना छ वर्गोना विभाग साथे संपूर्ण रीते मळतो आवे छे. परन्तु आ नाबतना संबंधमां मारुं एवं मानवू छे के जैनोए मूळ आ विचार आजीविको पासेथी लीधो हतो, अने पाछळ्थी पोताना बीजा बधा सिद्धान्तोनी साथे ते संगत बने तेवी रीते तेमां फेरफार को हतो. आचारविषयक सघळा नियमोना संबंधमां जेटला प्रमाणो उपलब्ध थाय छे ते उपरथी लगभग सिद्ध थाय छे के महावीरे अधिक कठोर नियमो गोसालाना लीधा हता. कारण के उत्तराध्ययन २३, १३ (पृ. १२१) मां जणाव्या प्रमाणे पार्श्वना धर्ममा निम्रन्थोने नीचे अने उपरना भागमा एकैक वस्त्र पेहरवानी छूट हती, परन्तु वर्द्धमानना धर्ममां कपडानो स्पष्ट निषेध करवामां आव्यो हतो. नग्नसाधु माटे जैनसूत्रोमां अनेकस्थळे ... १ गोशालानी पासेथी छलेश्यानो विचार लइने पाछलथी बधा सिद्धांतनी साथे संगत करी देवानुं भने अचेलकना विषयने लेवानुं लख्यु ते पण विचारवा जेवू छे. केम के बीजाओना विचारो लईने बधा सिद्धांतोनी साथे संगत करवानुं आज सुधी कोई पण मतवाळाथी बनी शक्युं नथी अने तेम बनें पंण नहीं एम ममा मानधुं छे. . संग्राहक. Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६७ ) मळी आवतो शब्द ' अचेलक' 'छे जेनो शब्दार्थ ' वस्त्ररहित ' एवो थाय छे. बौद्धो अचेलको अने निर्ग्रन्योने भिन्न भिन्न माने छे. उदाहरण तरीके 'धम्मपद' उपरनी बुद्धघोषकृतटीकामां केटलाक भिक्षुओना संबंधमां जणावेलं छे के, तेओ अचेलको करता निर्ग्रन्थोने वधारे पसंद करता हता. कारण के अचेलको तद्दन नग्न रहे छे ( सव्वसो अपटिच्छन्ना ) परन्तु निर्ग्रन्थो कोई जातनुं ट्रंकुं आवरण राखे छे; जेने ते भिक्षुओ खोटी रीते 'लज्जानी खातर" मानता हता. अचेलकशब्दद्वारा बौद्धो मक्खली गोशाल अने तेनी पूर्वे थई गएला किस संकिञ्च अने नन्द वच्छना अनुयायि १ बीजो एक शब्द ' जिनकल्पिक ' छे जेनो अर्थ ' जिन जेवो आचार पाळनार' थई शके श्वेताम्बरो कहे छे के जिनकल्पने बदले प्राचीनकालमा ज स्थविरकल्प स्थिर करवामां आव्यो हतो जेनी अंदर बख राखवानी छूट आपवामां आवी हती. २ जुओ फुसबोलनी आवृत्ति, पृ. ३९८ ३ मूळमां आवेला 'सेसकं पुरिमसमप्पिता व परिच्छादेन्ति' ए शब्दो बराबर स्पष्ट थता नथी, परन्तु तेमां जोवामां आवतो विरोध निःशंकरीते एन भावार्थ सूचवे छे. पालीशब्द ' सेसक ' ते मारा धांवा प्रमाणे संस्कृत ' शिक्षक ' नुं रूप छे. आ जो खरुं होय तो उपरना शब्दोनुं भाषांतर नीचे प्रमाणे थई शके ' तेओ ( शरीरना) आगला भाग उपर( कपडे ) पहेरी गुह्यांगने ढांके छे. ' Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६८) सोने सूचवे छ; अने तेओना धार्मिक आचारोनुं वर्णन मन्झिमनिकायमा संग्रहित राख्युं छे, तेमां ते स्थले निगन्ठपुत्त साधकजेनी ओळखाण आपणने उपर थई गएली छे, ते-कायभावना एटले शारीरिक पवित्रतानो अचेलकोना आचारने उद्देशीने अर्थ समजावे छे. सचकना वर्णनमांनी केटलीक विगतो टीकाना अभावे नहीं समजी शकाय तेवी दुर्बोध छे. परन्तु केटलीक तो तदन स्पष्ट छे बने ते केटलाक प्रसिद्ध जैनआचारो साथे संपूर्ण सादृश्य धरावे. छे. दाखला तरीके अचेलको पण जैनसाधुओनी माफक भोजनन आमंत्रण स्वीकारता नथी, तेओने माटे अभिहित अथवा. उदिस्सकत अन्न लेवानो निषेध छे. आ बन्ने शब्दो जैनोना अभ्याहृत अने औदेशिक शब्दो ( जुओ पृ० १३२ टिप्पण) समान होय तेम दरेक रीते संभक्ति छे. वळी तेओने मांस अने मदिरा लेवानी छूट नथी. 'केटलाक मात्र एकज घरे भिक्षा लेवा जाय छे अने मात्र एकन ग्रास खोराक ले छे. केटलाक वघारेमां बधारे सात घेर भिक्षा माटे जाय छे. केटलाक एकज वार आपेढुं अन्न लईने रहेछ, केटलाक वधारेमां वधारे सात वार सुधी आपेलु लईने रहे छे' आ प्रकारनाज जैनसाधुओना केटलाक आचारो कल्पसूत्रनी समाचारीमां वर्णवेला छे. (२६, भाग १, पृ. ३०० भने आ ग्रन्थना पृ. १७६; गाथाओ १५ अने १९) नीचे Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६९) वर्णवेलो अचेलकोनो आचार अने जैनोनो आचार बराबर एकन छे एम स्पष्ट जणाय छे. 'केटलाक हमेश एकज वखत भोजन करे छे अने केटलाक बे दिवसमा एकन वखत भोजन करे छ. इत्यादि, अने ए रीते वधताक्रमे केटलाक ठेठ एक पखवाडीए एकवार भोजन ले छे'. अचेलकोना आवा बधा नियमो अने जैनोना नियमो या तो लगभग एकज छे अगर तो अतिशय मळता छे, अने आ प्रकारनुं साम्य जोवामां आवतो होवा छतां, तया सच्चक एक निगन्ठपुत्त गणातो होवाना लीधे तेमना धार्मिक आचारोथी ते परिचित होवा छतां, कायभावनाना आदर्श तरीके निग्रन्थोनो उल्लेख करतो नयी ते खरेखर आश्चर्यजनक लागे छे परन्तु आ आश्चर्यजनक बाबतने नीचेनी कल्पनाद्वारा आफ्णे सहेलाईथी समजावी शकीए छीए, अने ते एवी रीते के बौद्धअन्योमा बहुधा जे असलना प्राचीन निर्मन्थोनी बाबतना उल्लेखो मळी आवे छे, ते (निर्ग्रन्यो ) जैनसमाजना जे एक वर्ग महावीरना उअनतोनो स्वीकार को हतो तेओ नहीं, परन्तु १ आ प्रकारना उपवासोने जैनो चउत्थभस, छछमस इत्यादि नामो मापे छे. (जुओ उ. त. ल्युमन संपादित औपपातिकसूत्र ३० I. A), भने आ उपवास करनारा साधुओ अनुक्रमे वउत्यभक्तिय, मरिया इत्यादिनामोधी ओलाय ले (जुओ दा. त. कल्पसूत्र समाचारी २१.) merammer HIMALA al Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) महावीरना मतना विरोधी न बनतां जेओ ते संयुक्तसंप्रदायमां रहीने पण पोताना प्राचीनसंप्रदायना केटलाक खास आचारोने वळगी रह्या हता ते प्रकारना पार्थना अनुयायिओ हता. आ प्रकारना केटलाक कठोर नियमो के जे प्राचीनधर्मना अंगभूत भनाता न हता अने जेमने महावीरेज दाखल करेला हता, ते संभवितरीते तेमणे गोशालाना अचेलक अथवा आजीविकनामे प्रसिद्ध अनुयायिओना लीधा हता. अने आनुं कारण ते तेओए (महावीरे ) जे छ वर्ष सुधी गोसालनी सार्थ अत्यंत निकट सहचर तरीके रही तपश्चर्या करी हती ते छे. आ प्रमाणे आजीविकोना केटलाक धार्मिक विचारो अने आचारोनो स्वीकार करवामां महावीरनो आशय गोसाल अने तेना अनुयायिओने पोताना पक्षमा लेवानो होय एम लागे छे, अने केटलाक समयसुधी तो आ उद्देश सफल पण थयो होय. परन्तु आखरे बन्ने नेताओनी बच्चे मतभेद थयो हतो, के जेतुं कारण घणुं करीने ए प्रश्न हतो के आ संयुक्तसंप्रदायनो नेता कोण बने. गोसालना साथे थएला आ टुंक समयना संबंधथी स्पष्ट रीते महावीरनी पदवी घणी सुस्थित बनी हती. परन्तु गोसाले जैन हकीकतो अनुसार पोतानी प्रतिष्ठा गुमावी हती. अने आखरे तेना शोकपूर्ण अवसानथी तेना संप्रदायना भावीने सखत फटको लाग्यो. Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) आपणे जो के ते बधुं साबित न करी शकिए परन्तु महावीरे अन्यसंप्रदायोमाथी घणुं लीधुं छे ए वात निःसंशय छे. जैनधर्म यथार्थमां एक संस्थितिरूप दर्शन नहीं होवाथी तेमां नवा मतो तथा सिद्धान्तोना उमेरा घणा सहेलाईथी थई शके तेम हतुं. जे जे संप्रदाय अगर तो तेना भागो महावीरनी सफल कार्यदक्षताने' लईने जैनधर्ममा आवता गया ते सबळा संप्रदायोना केटलाक प्रीतिपात्र विचारो तेमज तेमना प्रियगुरुओ, जेओने तेओ चक्रवत्ती अथवा तीर्थकरना नामे ओळखता हता, ते सबळां दाखल थई गयां होय तो तेमां नवाई नयी. अलबत आ एक मात्र मारुं अनुमान छे. परन्तु आ अनुमाननी मददयी आपणे जैनोनी आचार्यों साधुओ विषयक विलक्षण परंपरानु उत्पत्तिकारण समजी शकीए छीए. प्रत्यक्षप्रमाणनो ज्यां सर्वथा अभाव होय त्यां आपणने अनुमानो उपरज आधार राखवो पडे छे, १ खरेखर महावीर तेमना पोताना मार्गमां एक महान व्यक्ति हो, तेमज तेमना समकालीन पुरुषोमां ते एक उत्तमप्रकारना नेता पण हशे, तेमां शक नथी. तेमनी तीर्थकरपदप्राप्तिमां जेटले अंशे, तेमणे पोताना मतनो प्रसार करवाधी संपादित करेलो तेमनो यश कारणभूत थयो छे. तेटले बधे अंशे तेमनुं पवित्रजीवन कारणभूत नहोतुं थयु. Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७२ ) अने जे अनुमानोमां पण जे अनुमान विशेष सत्य - सांभळतां खरुं लागे एवं - होय ते स्वीकारवा योग्य बने छे. फक्त आ बाबतने छोडीने बाकीनी जे जे बाबतो आ प्रस्तावनाना प्रारंभना पानाओमां में मारी कल्पनानुरूपे रजु करेली छे ते सघळी आना करता वधारे प्रमाणभूत छे, ए हुं अत्रे खास जणावी दऊं हुं. ए नवा विचारोमा मारा कोई पण कथनथी जैनपरंपरागत कथन केने लेखी पुरावा ओना अभावमां आपणने एक मात्र ते ज मार्गदर्शक बने छे. - तेने आघात पहोचतो नथी अने बीजूं, मारी एके कल्पना पण एवी नयी के जे ते समयनी परिस्थिति अनुसार असंभवित लागे. जैनधर्मना प्राचीन इतिहासनी रचनामां मुख्य स्थान रोकनार जे ए एक हकीकत छे के, महावीरना समयमा पार्श्वनाथना शिष्यो हयाती वरावता हता अने जेनो निर्देश, बताबती परंपरा पण विद्यमान होई वेनी सत्यता पण अत्यारना सळा विद्वानो एके अवाजे स्वीकारे छे, तेनोज में अहिं उपयोग कर्या छे. A • हवे आ रीते जो जैनधर्म ए एक प्राचीनकालयी चालतो आवतो धर्म होय अने महावीर तेमज बुद्ध करतां वधारे जुनो होय तो तेना तत्त्वज्ञानाना स्वरूपमा पण कांइक प्राचीनताना Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) चिन्हो देखावां जोईए. आई एक चिन्ह ए धर्ममा खास मळी आवे छे, अने ते तेनो, सघळी वस्तु चैतन्ययुक्त छे, एम बतावतो सचेतनवाद छे. ते वाद जणावे छे के मात्र वनस्पतिमांग नहीं परन्तु पृथ्वी, पाणी, अग्नि, अने वायुना कणोमां पण आत्मतत्त्व रहेढुं छे. मानवजातिशास्त्र ( Ethnology ) आपमने एम शीखवे छे के जंगलीलोकोनी तत्त्वज्ञानविषयक संपळी मान्यताओ सचेतनवादमूळक होय छे. आ सचेतनवाद : जेम जेम जनसंस्कृति वधती जाय छे, तेम तेम शुद्ध मनुष्यत्त्व रूपमांज मात्र परिणत थतो जाय छे. आथी करीने जो जैनधर्मर्नु नीतिशास्त्र मोटे भागे आ प्राचीन सचेतनवाद-मूलक होय तो जैनधर्मनी पहेल कहेली उत्पत्तिना समये ते सचेतनवादनो सिद्धान्त हिन्दुस्थाननी प्रजाना मोटा भागोमां विस्तृतरूपे विद्यमान होवो जोईए. आ परिस्थिति अति प्राचीन समयनी होई शके के जे वखते हिन्दुस्तानना मनुष्योना मन उपर उंचा प्रकारनी धार्मिक मान्यताओए अने पूजानी पद्धतिओए असर करी नहोती. जनधर्मनी प्राचीनतानुं बीजु चिन्ह ते तेनी वेदान्त अने सांख्य जेवां वे सौथी प्राचीन ब्राह्मणदर्शनोनी साये रहेली सिद्धान्तविषयक समानता छे. ते प्राचीनकालमा तत्त्वज्ञानना Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) ( Metaphysics ) विकासक्रममां गुणनामना पदार्थनो जेवो जोईए तेवो खुल्लो अने स्पष्ट ख्याल थई चूक्यो नहोतो; परन्तु ते पदार्थ द्रव्यपदार्थमांथी उत्क्रान्त थई रह्यो हतो एम लागे छे. जे जे वस्तुने आपणे गुण तरीके ओळखीए छीए ते, ते वखते भूलथी वारंवार द्रव्य तरीके मनाई जती अने केटलीक वखते द्रव्य साथे तेनुं मिश्रण पण थई जतुं. वेदान्तमां परब्रह्मने शुद्धसत्ता, ज्ञान, अने आनन्दरूप स्वाभाविकगुणथी संपन्न नहीं, परन्तु सत्, चित्, अने आनन्दस्वरूपज मानवामां आव्युं छे. सांख्यमां पुरुष अथवा आत्माना स्वभावनुं वर्णन करती वखते तेने ज्ञान अथवा तेजोरूप बताववामां आव्यो छे. अने जो के-सत्त्व, रजस्, अने तमस् , ए त्रण पदार्थाने गुणरूपे गणाव्या छे खरा, परन्तु गुण जे लक्षण आपणे स्वीकारीए छीए ते अनुसार ते गुणो थई शकता नथी. . प्रो० गाना जणाव्या प्रमाणे वास्तवमां ते मूळप्रकृतिना अवयवोज छे. आ ज प्रकारना सिद्धान्तने लईने सामान्यरीते जैनोना प्राचीनसूत्रोमां द्रव्य अने तेना पर्यायोनो ज मात्र उल्लेख करेलो होय छे. सूत्रोमां गुणपदार्थनो ज्यारे कोईक न ठेकाणे उल्लेख भएलो मळी आवे छे. त्यारे पाछळमा बीजा बधा ग्रंथोमां Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) ते नियमित रीते वर्णवेलो होय छे. आ उपरथी एम स्पष्ट जणाय छे के ते पाछळना कालमां स्वीकारवामां आव्यो होवो जोईए, अने तेनुं कारण न्याय वैशेषिक दर्शनोना तत्त्वज्ञान अने साहित्यनी जे असर धीमे धीमे भारतवर्षना वैज्ञानिकविचारो उपर थती हती तेज होवू जोईए. पर्याय एटले विकाश अगर अवस्थांतरनी मान्यतामां गुण जेवा स्वतंत्रपदार्थने स्थान ज मळी शके तेम नथी. कारण के द्रव्य दरेककाळमां तेना पर्यायना रूपमा ज रहे छे, अने तेथी करीने पर्याय गुणात्मकज होय छे; अर्थात् पर्यायोनी अंदर गुणोनो समावेश थई न जाय छे. अने आज विचार प्राचीनसूत्रोमां लीधेलो होय तेम जणाय छे. अन्य एक उदाहरण, जैनोए जे अद्रव्यत्वयुक्त पदार्थ उपर द्रव्यत्वनो आरोप करी, वास्तविकरीते जे वस्तु गुणना वर्गमां आवी जाय छे तेवी 'धर्म' अने ' अधर्म' एबे वस्तुओ, विषयक छे आ के वस्तुओने जैनोए द्रव्य तरीके वर्णवी छे के जेनी साथे जीवनो संबंध रहेलो होय छे'. आ द्रव्योने आकाशनी साथेन संपूर्ण .१ आ कल्पना मूळ वैदिक हिंदुओनी हती, तेम ओल्डनबर्ग पोताना Die Religion des veda नामना पुस्तकना ५. ३१७ उपर जणाव्युं छे. Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) लोकव्यापी मानेला छे. वैशेषिको पण आकाशने द्रव्य माने छे. मोते समयमां द्रव्य अने गुण ए बन्ने पदार्थोनें भिन्न भिन्न वर्गीकरण थयुं होत अने बन्ने अन्योन्याश्रित मनाता होत, के नेम वैशेषिको माने छे, (गुणाश्रयं द्रव्यं अने द्रव्यांतर्वी गुणः) तो.उपर जणावेल गोटाळा भरेला विचारो जनोए कदापि स्वीकार्या नहीं होत. । उपरोक्त विवेचन उपरथी स्पष्ट जोई शकाय छे के वैशेषिक दर्शन साथे जैनोना केटलाक विचारो मळता आवता होवायी जैनधर्मनी उत्पत्ति तेना पछी थई छे, एवो जे मत डॉ. भांडारकरे' उपस्थित करेलो छे तेनी साथे हु संमत थई शकुं तेम नयी. 'वैशेषिकदर्शनना स्वरूपर्नु संक्षिप्त वर्णन नीचे प्रमाणे आपी शकाय के संस्कृतमाषा बोलनार तथा समझनार बधा माणसोए मनन करेला सर्वसाधारण विचारोनी जे पद्धतिसर ज्यवस्था अने तेनुं जे तात्त्विक प्रतिपादन-निरूपण, एज वैशेषिकदर्शन छे. मा प्रकारच् पदार्थविज्ञानशास्त्र प्राप्त करवानें काम तो घणा प्राचीन काळयी शुरु थयुं हशे अने कणादना सूत्रोमां जेवू ए शास्त्र संपूर्णरूपे प्रतिपादित थयुं छे तेवू तैयार थता पहेलां १ जुओ मनो रिपोर्ट, सन १८८३-८४, पृ. १०१. Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) मनुष्योने घणी शदीओ सुधी धीरजथी मानसिक परिश्रम उठावो पड्यो हशे; तेमन तत्त्वज्ञानविषयक सतत चर्चाओ चलाववी पड़ी हशे. आथी वैशेषिकदर्शननी आदि अने अन्तिम स्थापनानी वञ्चना काळमां जो वैशेषिक विचारो लई लेवानो खोटो या खरो आरोप जैनो उपर मुंकवामां आवे तो ते कदाच तेम संभवि शके. खलं. आ स्थळे बीनी एक बाबतनो उल्लेख करवो अस्थाने नहीं गणाय, अने ते ए छे के जे मुद्दाओ हुँ अत्रे चर्चवा इच्छु छु ते मुद्दाओने लईने डॉ० भाण्डारकरनो एवो मत थएलो छे के — जैनोना विचारो ते एक बाजु सांख्य अने वेदान्तदर्शन अने बीजी बाज वैशेषिकदर्शन एम बे पक्षनी वच्चेना समन्वयना आकारना छे. ' परन्तु प्रस्तुत चर्चाने माटे तो ते बन्ने प्रकारना विचारो सरखा छे:-एटले के साक्षात् लेवू अगर वे प्रकारना विरुद्ध विचारोनुं तडजोड करवू ए एकन छे. उपरोक्त मुद्दाओं नीचे प्रमाणे छे: (१) जैनदर्शन अने वैशेषिकदर्शन ए बन्ने क्रियावादी छे. अर्थात् ते बनेनुं मानवं छे के आत्मा उपर कर्म, कषायो तथा वासनादिनी साक्षात् असर थाय छे. ( २ ) बन्ने दर्शनो असल्कार्यना सिद्धान्तने माने छे. एटले के तेमना मते कार्य ते Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७८) तेना उपादान कारणथी भिन्न छे. परन्तु वेदान्त अने सांख्य बन्ने सत्कार्यवादने माने छे. अर्थात् कार्य कारणने मिन्न माने छे. (३) ए बन्ने दर्शनोमां गुण अने द्रव्यनो पृथक् विभाग थएलो छे. ए छेल्ली बाबत तो आपणे उपर चर्चा गया छीए, तेथी हवे आपणे प्रथम बे मुद्दाओना संबंघमां विचार करवानो रह्यो छे. (१) अने ( २ ) मां जे मन्तव्यो निरूपण करेलु छे, ते व्यवहारिक ज्ञान-साधारण बुद्धिना विचारो छे. ( अर्थात् सहु कोई समनी शके तेवा छे.) कारण के आपणा उपर वासनाओनी. साक्षात् असर याय छेन, तेमज कारणथी कार्य भिन्न छे ते पण आपणा अनुभवनी बहारनी वात नथी. उ. त. बीन अने वृक्ष ए पन्ने परस्पर भिन्न छे, एम दरेक विवेकी माणस जाणे छे; अने ते मात्र सामान्य अनुभवनो विषय छे तेम पण लाग्या विना नहीं रहे. आवा विचारोने अमुकदर्शनना खास लक्षणरूपे मानी शकायन नहीं; अने एक बीना मतोमां आवा विचारो समानरूपे जोवामां आवे ते ते उपरथी ते, एक बीजाना मतमाथी लीधेला छे तेम पण कही शकाय नहीं. परन्तु जो बे भिन्न दर्शनोमां परस्पर विपरीते विचारदर्शी एकज सिद्धान्त आव्यो होय तो ते बाबत अवश्य विचारणीय होय छे. आवो सिद्धान्त मूळ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७९) तो ते एकन दर्शनमाथी उत्पन्न भएलो होय छे अने ते तेमां सुप्रतिष्ठित थया पछीज अन्यद्वारा स्वीकृत थाय छे. दिग् अने आकाश ए बन्ने भिन्न द्रव्यो छे, ए जातनो वैशेषिकोनो खास स्वतंत्र तर्कसिद्ध सिद्धान्त छे. ते जैनदर्शनमां बिलकुल देखातो नथी. वेदान्त अने सांख्य जेवा अधिक प्राचीन दर्शनोमां तथा जैनदर्शनमा आकाश अने दिक् वच्चे बिलकुल भेद करवामां आव्यो नयी. ए दर्शनोमा एकळु आकाशज बन्नेनुं प्रयोजन सारे छे. - वैशेषिक अने जैनदर्शननी वच्चे मूल सिद्धान्तोमां भेदसूचक एवां केटलाक उदाहरणो नीचे प्रमाणे छे. पहेलाना मते आत्माओ अनंत अने सर्वव्यापी ( विमु ) छे. परन्तु बीजाना (भैनोना) मते तेओ मर्यादित परिमाणवाळा छे. वैशेषिको धर्म अने अधर्मने आत्माना गुणो माने छे. परन्तु उपर जणाव्युं तेम जैनो ते बन्नेने एक जातना द्रव्यो माने छे. एक बाबतमां, एक विरुद्ध वैशेषिक विचार अने तद्भिन्न जैनसिद्धान्त वच्चे केटलुक सादृश्य नोवामा आवे छे. वैशेषिकमतमां चार प्रकारना शरीरो मानेला छे पार्थिव शरीर जेवू के मनुष्य पशुआदिनू, जलात्मकशरीर जेम वरुणनी सृष्टिमां छे, अग्नियशरीर जेम अग्निनी सृष्टिमां छे, अने वायवीयशरीर जेम वायुनी सृष्टिमां मळी आवे छे. आ Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विचित्र विचार साथै सहक्षता धरावनारो जैनदर्शनमां पण एक विचार छे. जैनो पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, अने वायुकाय, एम चार काय माने छे. आ चार ४ मौलिक पदार्थों के जे मूळ तत्त्वो छे अथवा तो तेना पण सूक्ष्म भागो छे. तेनी अंदर एकएक विशिष्ट आत्मा रहेलो छे एम तेओ माने छे. आ जड-चैतन्यवादनो सिद्धांत उपर जणाव्या प्रमाणे असल सचेतनवादन परिणाम छे. वैशेषिकोनो एतद्विषयकविचार जो के मूळ एकन विचारप्रवाहमांधी उत्पन्न थएलो छे खरो, परन्तु तेमणे ते विचार लौकिकपुराणोना अनुरूपे गोठवेलो छे. आ बन्नेमां जैनमत वधारे प्राचीन छे अने ते वैशेषिक दर्शनना चार प्रकारना शरीरवाला मतना करतां पण तत्त्वज्ञानना वधारे पुरातन विकासक्रमना समयनो छे. मारा अभिप्राय मुजब वैशेषिक अने जैनदर्शननी बच्चे एवो कोई पण संबंधन न हतो के जेथी एक दर्शने बीजामाथी विचारो लीधा छे, एम स्थापित करी शकाय. छतां पण हु एम कबूल करूं छु के ए बे दर्शनो बच्चे केटलुक विचारसादृश्य अवश्य रहेढुं छे. वेदान्त अने सांख्यना मूळ तत्त्वभूत विचारो जैनविचारोथी तद्दन विरुद्ध छ; अने तेथी करीने जैनो पोताना सिद्धान्तने कोई पण आंच आव्या दीघा सिवाय तेमना विचारो स्वीकारी शकेज नहीं परन्तु वैशेषिक ए एवा प्रकारचें दर्शन छे के नेयी जैनसिद्धान्त Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८१) पोताना मतने आघात पहोंचाड्या सिवाय केटलीक हद सुधी तेनी साथे संमत थई शके छे. अने आधीन न्याय-वैशेषिकदर्शन उपरना ग्रन्थकारोमां जैनोनां पण नामो जोवामां आवे तो तेमा नवाई पामवा जेवू नथी. जैनो तो आनाथी पण आगळ वधीने त्यां सुधी जणावे छे के वैशेषिकदर्शन स्थापनार तेमना मतनोज एक कौशिक्गोत्रीय छडुल्लुय रोहगुत्त नामनो निन्हव हतो. जेणे वि. सं. ५४४ (ई. स. ४८८ ) मां त्रैराशिकमत नामनो छठो नैन्हविक संप्रदाय स्थाप्यो हतो. आ दर्शन- जे वर्णन आवश्यकसूत्र VV. 77-88 मां आपेलुं छे ते वांचवाथी जणाय छे के ते सबलु वर्णन कणादना वैशेषिक दर्शनमाथी लीधेलं छे. कारण के तेमां ( सात नहीं पण) छ पदार्थो अने तेना पेटाभेदोन वर्णन आपेलुं छे, अने आ उपरान्त गुणना वर्गमां (२४ नहीं परन्तु) १७ वस्तुओनुं वर्णन करवामां आवेलुं छे; ने वैशेषिकदर्शन १,१ मां आपेली हकीकत साथे बराबर मळी रहे छे. मारुं मानवं छे के जैनो अनेक बीजी बाबतोनी माफक, हिंदुस्तानना प्रत्येक प्रसिद्ध पुरुषने पोताना धर्मना इतिहास साथै जोडी देवानी बाबतमां पोताने घटे तेना करतां अधिक माननो हक्क करे छे, उपरोक्त जैनदन्तकथाने असत्य मानवामां मारा Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८२) कारणो नीचे मुजब छे:-वैशेषिकदर्शन वास्तवमां एक आस्तिक ब्राह्मणदर्शन मनाय छे. अने ते मुख्यत्वे करीने स्वधर्मचुस्त हिंदुओद्वारा विकसित थयुं छे. आम होवाथी तेमणे सूत्रकारर्नु जे नाम तथा काश्यप एवं जे गोत्र बताव्युं छे ते संबंधमां तेओ असत्यालाप करे छे, एवी शंका करवानू जराए कारण जणातुं नथी. अने बीजुं ए के समग्रब्राह्मणसाहित्यमां एवो स्याए उल्लेख मळी आवतो नथी के वैशेषिकदर्शनना कर्ता- खलं नाग रोहगुत्त हतुं तथा तेनुं गोत्र कौशिक हतुं तेमज रोहगुत्त अने कणाद ए बन्ने नामो एकज व्यक्तिना होय तेम पण मानी शकाय नहीं, कारण के तेओना गोत्र स्पष्ट भिन्न भिन्न जोवामां आवे छे. — कणादनो अनुयायी ते काणाद' ए शब्द, व्युत्पत्तिशास्त्रना अनुसारे काकभक्षक एटले घुवड वाचक छे; अने एथी ते दर्शन- उपहासात्मक नाम औलूक्यदर्शन' पडेलुं छे. रोहगुत्तनुं बीजुं नाम छडुल्लुय छे, जेर्नु संस्कृतरूप षडुलूक थाय छे. तेमां धुवड अने घणुं करीने काणादोनुं सूचन थाय छे ए खरुं छे, १ जुओ कल्पसूत्रनी मारी आवृत्तिनु पृ. ११९. .. २ अक्षरशः छ घुवड़ आ शब्दनो पहेलो ' छ ' शब्द वैशेषिकदर्शनना छ पदार्थोनो सूचक छे. Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८३) परन्तु उलूकशब्द जैनोए रोहगुत्तना गोत्रने अर्थात् कौशिकने' उद्देशीने लखेलो होय तेम जणाय छे. कौशिक शब्दनो अर्थ पण धुवडज थाय छे. परन्तु आ बाबतमां जैनोनी दन्तकथा करतां सर्वब्राह्मणसंमत परंपरा वधारे पसंद करवा लायक होवाथी, आपणे जैनोना परंपरागत कथनने एवी रीते समजावी शकीए के रोहगुत्ते आ वैशेषिकदर्शनने नवु प्ररूप्युं न होतुं परन्तु पोताना नैन्हविकविचारोने समर्थित करवा वैशेषिकमतनो मात्र अंगीकार को हतो. आ भागमां भाषांतरित करेला उत्तराध्ययन अने सूत्रकृतांग सूत्रना विषयमा प्रो० बेबरे Indische Studien, Vol. XVI p. 259 ff. अने Vol. XVII p. 43 ff. मां जे लख्युं छे ते उपरान्त मारे कांइ विशेष उमेरवानुं नथी. आ बन्नेमां, सूत्रकृतांग ए बीजूं अंग गणाय छे अने जैनआगमोमां अंगोने प्रथम-प्रधान-स्थान आपवामां आवे छे; तेथी ते उत्तराध्ययनसूत्र के जे प्रथम मूळसुत्र गणातुं होई सिद्धान्तमां तेने छेल्लुं स्थान मळेलु छे, तेना करतां वधारे प्राचीन छे. चोथा अंगमां आपेला १ भाग १ पृ. २९०, परन्तु प्रो० ल्युमने I. C. P. 121. उपर भाषान्तर करेली एक दन्तकथामां तेनुं गोत्र 'छऊल्लू' तरीके लख्युं छे. Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८४) सिद्धान्तोना सार उपरथी जणाय छे के सूत्रकृतांगनो मुख्य उद्देश नवीनसाधुओने विरोधी आचार्याना पाखंडीमतोथी संरक्षित राखवानो अने ते रीते सम्यग्दर्शनमां स्थिर बनावी तेमने परमश्रेयः प्राप्त कराववानो छे. आ हकीकत एकंदर साची छे, परन्तु सर्वोग पूर्ण नथी; ए आपणे आ पुस्तकनी शरुआतमा आपेली विषयसूची उपरथी जोई शकीए छीए. ग्रन्थनी शरुआतमां चिरोधीमतोतुं निराकरण आपवामां आवेलं छे अने तेनो तेज विषय फरीथी अधिक विस्तार साथे बीना श्रुतस्कंधना प्रथम अध्ययनमा चर्चवामां आवेलो छे. प्रथम श्रुतस्कंधमां आनी पछी पवित्र जीवन गाळवा संबंधी, साधुना परिषहो संबंधी, जेमा खास करीने तेमना मार्गमां वताववामां आवतां प्रलोभनो तथा असाधुजनो तरफथी मळतां शारीरिक कष्टो संबंधी तथा धर्मना आदर्शभूत महावीरनी स्तुतिविषयक अध्ययनो आवेलां छे, तेनी पछी बीजा पण तेवान विषयोपर अध्ययनो छे. बीजो श्रुतस्कंध जे लगभग संपूर्ण गद्यमांज लखाएलो छे तेमां पण आवाज प्रकारना विषयोनुं निरूपण करेलुं छे, परन्तु तेना विविध भागो वच्चे कोई पण देखीतो संबंध जोवामां आवतो नथी. आ उपरथी ते श्रुतस्कंध अनुपूर्तिरूपे गणी शकाय अने Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८५) तेथी ते पाछळना काळमां प्रथम स्कंधमां थलो एक उमेरो छे. प्रथम स्कंन्धनो उद्देश स्पष्ट रीते जुवानसाधुओने मार्ग बताववानो छे'. तेनी रचनाशैली पण आज प्रयोजनने उपकारक थाय तेवी राखवामां आवी छे. तेमां घणा छंदोनो पण उपयोग करवामां आव्यो छे, जेयी तेमां कवित्वनो पण समावेश यएलो छे एम मानवं जोईए. आमांथी केटलीक गाथाओनुं रूप कृत्रिम लागे छे अने ते उपरथी ए ग्रन्थ एकज कर्त्तानो रचेलो होय तेम आपणे मानी शकीए छीए. बीजो स्कंध प्रथम स्कंधमां चर्चेला विषयो उपर लखेला निबंधोनो एक समूह होय एम जणाय छे. उत्तराध्ययन अने सूत्रकृतांग बन्ने सूत्रोनो उद्देश तथा तेमां चर्चाला केटलाक विषयो परस्पर समान छे, परन्तु सूत्रकृतांगना मूळभाग करतां उत्तराध्ययन वधारे लांबु छे तेमज ते सूत्रनी योजना पण वधारे कुशळतापूर्वक करवामां आवी छे. तेनो मुख्य आशय नवीन साधुने तेनी मुख्य फरजोनो बोध आपवानो तथा विधि अने उदाहरणो द्वारा यतिजीवननी प्रशंसा करवानो, तेना दीक्षाकाळ दरम्यान आवता विघ्नो सामे चेतवणी आपवानो १ पुराणी परंपरा अनुसार दीक्षा लीधा पछी चार वर्ष वीत्या बाद सूत्रकृतांगनुं अध्ययन कराववामां आवतुं हतं. Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८६) तथा केटलुक तात्त्विक ज्ञान आपवानो पण छे. पाखंडी मतोनुं घणाक ठेकाणे सूचनमात्र करवामां आव्युं छे परन्तु तेमने विस्तृतरीते चर्चवामां आव्या नथी. ते दिशामांथी आवता विघ्नो जेम जेम वखत जवा मांड्यो तेम तेम स्पष्ट रीते ओछा थता गया अने जैनधर्मनी संस्थाओ सुदृढरीते स्थिर थती गई. नवीनसाधुओने जीवाजीवर्नु बराबर ज्ञानवधारे उपयोगी मनातुं होय तेम लागे छे. कारण के आ विषय उपर एक मोटुं अध्ययन आ ग्रंथना अन्ते आपवामां आव्युं छे. जो के आ आखा ग्रन्थमां आवेला जुदा जुदा बधा अध्ययनोनी पसंदगी तथा गोठवणीमां कांइक योजना जेवी देखाय छे खरी परन्तु ते सघळां अध्ययनो एकज करीना रचेलां छे के लेखी अगर मौखिक परंपरागत साहित्यमांथी चूंटी काढेलां छे ए एक विचारणीय बाबत छे. कारण के आवा प्रकारचें साहित्य जैनसंप्रदायमां, तेमज अन्य संप्रदायोमां पण धर्मशास्त्रग्रन्थोनी रचनानी पूर्वे वर्तमान होवू ज जोइए मारुं एम मानवू छे के आ अध्ययनो प्राचीनपरंपरागतसाहित्यमांथीन उद्धत करी लीधेलां छे, कारण के तेनी वर्णनशैली तथा भाषाशैली परस्पर भिन्न होय तेम स्पष्ट जणाई आवे छे. अने ते बाबत एकन कर्तानी कल्पनासाथे संगत थई शकती Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८७) नथी. अने आम मानवानुं बीजं कारण ए छे के वर्तमानसिद्धान्तोमा घणा ग्रंथो आज प्रकारे उत्पन्न थया छे एम मान्या विना छुटको नथी. कया समयमां आ प्रस्तुतग्रंथो रचवामां आव्या अथवा तो वर्तमानस्वरूपमा मुकवामां आव्या ते प्रश्ननो संतोषदायक निर्णय करी शकाय तेम नथी. परंतु आ ग्रंथनो वांचनार स्वाभाविकरीतेज आ बाबतमां भाषांतरकारनो अभिप्राय जाणवानी आशा राखतो होवाथी, हुं अत्यन्तसंकोचपूर्वक मारो मत जाहेर करूं धूं के, सिद्धान्तग्रंथोना घणाखरा भागो, प्रकरणो तथा आलापको खरेखर जुनां छे. अंगोनुं आलेखन प्राचीनकाळमां (परंपरानुसार भद्रबाहुना समयमां) थयुं हतुं; सिद्धांतना अन्य ग्रंथो कालक्रमे णुं करीने ई. स. पूर्वनी पहेली शताब्दिमां संग्रहित थया हता. परन्तु देवर्द्धिगणिए सिद्धांतोनी आ छेल्ली आवृत्ति तैयार करी ( वि. सं. ९८० ई. स. ९२४ ) त्यांसुधी तेमां उमेराओ तथा फेरफारो थता गया हता. उत्तराध्ययन अने सूत्रकृतांगर्नु भाषान्तर, में, मने मळेली सौथी प्राचीन टीकाओमां स्वीकारेला मूळना आधारे करेलुं छे. आ मूळ हस्तलिखित अन्यप्रतिओ तथा मुद्रितप्रतिओना मुळथी थोडेक अंशेज भिन्न छे. में एकत्रित करेली केटलीक हस्त Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (<<) लिखित प्रतिओ उपरथी एक स्वतंत्र मूळ तैयार करी लीधुं हतुं के जे मने मुद्रितमूळ साथे मेळवी जोवामां त्रणं उपयोगी यई पडयुं छे. उत्तराध्ययन सूत्रनी कलकत्तावाळी आवृत्ति ( संवत् १९३६ ई. १८७९ ) मां गुजराती विवरण उपरांत खरतरगच्छीय लक्ष्मीकीर्तिगणिना शिष्य लक्ष्मीवल्लभनी रचेली सूत्रदीपिका आपेली छे. आ टीकाथी वधारे प्राचीन देवेन्द्रनी टीका छे अने तेज टीका उपर में मुख्य आधार राख्यो छे. ए टीका सं. ११७९ एटले ई. स. ११२३ मां रचाई छे अने ते प्रकटरीते शान्त्याचार्यनी बृहद्वृत्तिना सारांशरूपे छे. शांत्याचार्यवाळी वृत्ति में वापरी नथी. मारी पासे स्ट्रेस्सबर्ग युनिवर्सिटी लाइब्रेरीनी मालिकीनी अवचूरिनी पण एक सुंदर प्राचीन हस्तलिखित प्रति छे. आ ग्रंथ पण +पष्टरीते शान्त्याचार्यनी वृत्तिनो संक्षेप मात्र छे. कारणके लगभग ए तेने अक्षरशः मळतो आवतो जणाय छे. सूत्रकृतांगनी मुंबईवाळी आवृत्ति (सं. १९३६, ई. स. १८८०) मां त्रण टीकाओ आपेली छे. ( १ ) शीलांकनी टीका, जेमां भद्रबाहुनी निर्युक्ति पण आवेली छे. आ टीका सर्वे विद्यमानटीका ओमां सौथी प्राचीन छे. परन्तु आना पहेला पण बीजी टीकाओ एली हती. कारणके शीलांक केटलेक स्थळे प्राचीनंटीकाकारोनो उल्लेख करे छे. शीलांक नवमी शताब्दिना Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८९) पश्चार्द्धमां थई गया होय एम जणाय छे, कारणके तेमणे आचारांगसूत्रनी टीका शक वर्ष ७९८ एटले ई. स. ८७६ मां समाप्त करी हती एम कहेवाय छे. (२) ए टीकामांथी हर्षकुशले करेलो संक्षेप जेनुं नाम दीपिका छे, ते संवत् १५८३ अथवा ई. स. १५२७ मां रचेलो छे. मारी पासे दीपिकानी एक प्रति छे जेनो में उपयोग कर्यो छे. ( ३ ) पार्श्वचंद्रनो बालावबोध-एटले गुजराती टीका. माहितीना मुख्यग्रंथतरीके में साधारण रीते शीलांकनीज टीका वापरी छे. ज्यारे शीलांक अने हर्षकुल बन्ने मळता आवे छे त्यारे टिप्पणमां में तेमने बताववा — टीकाकारो' एम लख्युं छे. ज्यारे शीलांकनो अमुक टीकांश हर्षकुले पडतो मुकेलो होय छे त्यारे हुं मात्र शीलांकज नाम आपुं हूं; अने ज्यारे कोई उपयोगनी असल हकिकत हर्षकुलन आपे छे त्यारे त्यां आगळ में तेनुज नाम आपेलं छे. मारे आ स्थले खास जणावी देवू जोईए के मारी एक हस्तलिखित प्रतिमां हासियामां तथा बे बे लीटीओनी बच्चे केटलीक संस्कृत नोटो आपेली छे के जेनी मददथी हुँ केटलीक वखते मूळनो खास अर्थ निश्चित करी शक्यो डूं. बोन नबर १८९४ एच्. जेकोबी. Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मसंबन्धि तुलनात्मकशास्त्रमा जैनधर्मनुं महत्व तथा दरजो. (डॉ. ओ. परटोल्ड एम्. ए. पी. एच्. डी. साहेबे धूलिया मुकामे ता. २१-८-२१ ना रोजे आपेलुं भाषण.') विषय-धर्मसंबंधी तुलनात्मकशास्त्रमा जैनधर्मनो दरज्जो अने महत्व. . धर्मोनी सरखामणीना विज्ञानमां जैनधर्मवाळाने कयुं स्थान आपी शकाय अने तेना विज्ञानमा केटलुं महत्व छे ए बताक्वानो मारो प्रयत्न छे. आ विषयमा प्रवेश करतां पहेलां सामान्यथी धर्मनी सरखामणीनुं विज्ञान एटले शुं ? अने ते विज्ञानना हेतु कया कया ? ए विषयर्नु थोड़े विवेचन करूं छु. अने तेना माटे सामान्यथी धर्मना विकासन ऐतिहासिक दृष्टिथी स्यूल स्वरूप कहुं छु. धर्मोनी सरखामणीनुं विज्ञान ए शास्त्र नवीनन छे अने ते १ आ भाषण मूल इंग्लिश उपरथी मराठी अनुवाद करावी धूलियाना श्रीसंघ तरफथी छपावेल छे तेनुं गुजराती भाषांतर छे. Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९१ ) शास्त्रना उत्पादक संस्कृतना मोटा पण्डित प्रो. मेक्समूलर साहेब हता. तोपण ए शास्त्र ख्रिस्तीना १८ मा शकमां ईश्वरविज्ञाननामक अंग्रेजी तत्त्वविवेचनपद्धतिमां अने जर्मनीना धार्मिकतत्त्वविज्ञानमां बीजरूपथी जोवामां आवे छे, परन्तु ते बीजरूप विचारोने प्रो. मेक्समूलरे पद्धतिसर स्वरूप आपेलुं अने ते शास्त्र मानवज्ञानमां एक स्वतन्त्र शास्त्र तरीके तेओए बनावीने मुंकी दीधुं. मेक्समूलर साहेबना पछी घणा विद्वानोए अने विशेष करीने यूरोपियन विद्यापीठमांना प्राचीन विद्याविशारदोए आ शात्रने वृद्धिंगत कर्यु. आ विद्वान् लोको पैकी हालंडदेशमांना लायडन विद्यापीठना माजी प्रो. टीले - एओनुं काम विशेष महत्वनुं होईने तेओए आ सर्वधर्मविज्ञाननी पुनर्घटनाज करी छे अने धर्मविज्ञानना सोपपत्तिक ( पद्धतिसर ) संशोधननो खरो पायो नांखेलो छे, यूरोपखंडमांना विद्यापीठमां प्राचीन विद्याना एक भाग तरीके मानीने धर्मविज्ञानशास्त्रनो अभ्यास शुरु थतां ग्रेटवीटनमां शरुआतथीज तेने स्वतंत्र शास्त्र तरीके समजवामां आवतुं गयुं छे. ते देशमां आ शास्त्रनी वृद्धि माटे वे गृहस्थोए वे स्वतन्त्र संस्थाओ पण स्थापन करेली छे. ते संस्था एटले इंग्लांडमांनी हिर्बिटनी व्याख्यानमाला अने कॉटलंडमांनी गिर्फर्डनी व्याख्यानमाला छे. Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९२) आ शास्त्रनो हेतु विविध प्रकारनो थएलो छे. जगतमांना सर्वधर्मानु सविस्तरपणे ज्ञान ग्रहण करवू अथवा तेओनुं वर्गीकरण करवू भने ते उपरथी सामान्यथी धर्मोमांचें मुख्य अने खरं तत्त्व शुं छे ते शोधी काढवं, ते प्रमाणे आ तत्त्वानुसार धर्मनी योग्य ज्याख्या ठरावीने हालमां धर्म तरीके प्रसिद्ध थएला मतोमा खरो धर्म कयो अने केवळ नाममात्रनो कयो ए बताववो अने सामान्यपणे धर्मना विकासनो काल कयो ए ठराववो एवो आ शास्त्रनो उद्देश थएलो छे. आ मुख्य उद्देशने पकडीने बीजा जे अनेक प्रश्नो उत्पन्न थाय छे अने ते प्रश्नोना उत्तरो आ शास्त्रवडे आपवा पडे छे, अने धर्मना सविस्तर ज्ञान- ध्येय नोडवानुं काम सुगम थाय एटला माटे बीजी पण घणी शोधो ते शास्त्रवाळाओने करवी पडे छे. __ आ धर्मविज्ञानना शास्त्रमांनो एक अत्यन्त महत्वनो प्रश्न एटले बन्ने पक्ष तरफथी मर्यादा ठराववी ए छे. वधारे सहेली माषामां कहेवू होय तो धर्मनामने यथार्थ योग्य बाबतोना अत्युच्च अने अत्यन्त कनिष्ठ स्वरूपो निश्चित करवा ए आ शास्त्रमांनो बहु महत्वनो प्रश्न छे. हवे धर्मना अत्युच्च स्वरूप विषये विचार करतां निःसंशयपणे Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९३ ) एवं जोवामां आवे छे, के ऐतिहासिक कालमां पण छेवट कोई पण मनुष्यजाति धर्मविहीन हती एम देखातुं नथी तेथी धर्मनुं कनिष्ठ स्वरूप ठराव एटकुंज काम प्रथम बाकी रहे छे. ए काम प्रथम प्रो० मॅटेट नामना अंग्रेज विद्वाने घणीज सारी रीते करी मुकेलुं छे. आ पण्डितना मतथी कनिष्ठ धर्मनुं स्वरूप आस्ट्रेलियादेशमांना सहआतना लोकोना टॅबू अने मान ए शब्दोमां दृष्टिगोचर थाय छे. आ बे शब्दोना निषेध अने स्फूर्ति एवा अनुक्रमे अथ होईने पेहला उपरथी धार्मिकबन्धनोनो अने बीजा उपरथी दैविकशक्ति अने इन्द्रजालविद्यानो बोध थाय छे. आ प्रमाणे धर्मकल्पनानुं कनिष्ठ स्वरूप समजाया पछी तेनो ( धर्मनो) उच्चतम स्वरूप ठराववानो बाकी रहे छे अने ते काम बहुज कठीन छे. केमके पोत पोताने ' अत्युच्च ' एवं समजनारा अनेक धर्मो हाल विद्यमान छे, पण धर्म कल्पनानुं उच्चपणुं अगर उदात्तपणं, ए बेनो धर्मनी उच्चतम मर्यादानी साथै कई पण संबन्ध नथी. तेथी करीने खरेखर कयो धर्म अत्युच्च छे ए ठरावखं जो के सर्वथा अशक्य नथी तो पण बहु कठिन छे ए वात खरी छे.. मारो पोतानो मत तो एवो छे के मनुष्यप्राणीनी सामान्य Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९४) सुधारणाने अनुसरी धर्मसुधारणाना पण नानाप्रकारनां पगथीयां छे. धर्मनी अत्युच्च मर्यादा उपरथी धर्मकल्पनानी वृद्धि, धर्मन स्वरूप नष्ट न थाय एवी रीते क्या सुधी थई शके छे ते आपणे जाणवू जोईए, आ प्रश्ननो विचार करवो होय तो पण सामान्यथी धर्मना इतिहास तरफ नजर नांखवी जोईए. एम करतां प्राचीनकालथी अत्यार सुधीना सर्वे धर्मोनो समग्र इतिहास जोवोज जोईए एम नथी पण वर्तमानमा प्रचलित धर्मोमां जेमनु स्वरूप घणी सारी रीते वृद्धिंगत थयुं छे एवा जातिविशिष्ट धर्मोनुं सिंहावलोकन करीए तो पण आपणुं काम थवा जेवू छे. आवी उच्च पायरी सुधी जेओनी धर्मकल्पनानो विकास थयो छे एवी निःसंशय बे जातिओ तो छे ज, अने ते सॅमेटिक' अने आर्य ए छे. धर्मविकासना इतिहास माटे अने धर्मकल्पनानी उच्चतम मर्यादा समनी लेवी होय तो आपणने आ बे जातिनो इतिहास कंडक थोडो सविस्तर जोवो जोईए. .xxxx ___आर्यलोकोनी आ देशमा वसति थया पहेला अहियां अनेक जातना लोको वसता हता एमां संशय नथी. आ लोकोनो अव ... १ ख्रिस्ती, याहूदीन, मुसलमीन, आरव विगेरे. Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९५) शेष भिल्ल, संताळ, तोड, इत्यादि पहाडी लोकोना स्वरूपथी आज पण ओळखाय छे. आ लोकोना मूळधर्मनो पत्तो लागतो नथी तोपण आजनो चालतो लौकिकसंप्रदाय अने प्राचीन धर्मशास्त्र आ बेनी सरखामणीवाळा मनुष्यशास्त्रना अने प्राचीन रहेला संप्रदायना साहाय्यथी सूक्ष्म विचार करीए तो ते धर्मनी कांईक बाबतो ओळखी शकाय तेम छे. आ विचार उपरथी एम देखाई आवे छे के आर्यपूर्वकालना हिन्दुस्थानमा छेवट बे विशिष्टजातिओना धर्म हता. आ बन्ने वर्ग जीवदेवस्वरूपना ( animistic ) हता के एक वर्ग जीवद्देवस्वरूपनो थईने बीजो जडदेवस्वरूपनो (Fetshistic) हतो. ए यथार्थ कही शकाय नहीं पण तेनो प्रादुर्भाव केवी रीते थयो ए कही शकाय तेम छे. तेमांथी एक जे स्वभावथी जडदेवस्वरूप होवानो संभव छे तेनो प्रादुर्भाव कांइक गूढ कारगथी उत्पन्न थएलो, क्षोभावस्थामां उत्कट भक्तिना अन्तपर्यन्त उन्मादमां अथवा आनन्दातिरेकमां मग्न थवाथी उत्पन्न थयो. जीवदेवना स्वरूपवाळो जे बीजो वर्ग हतो तेमां वैराग्य अने तपस्विवृत्तिनो संबन्ध हतो. आ बे तत्त्वना संबन्धथी मूळ आर्यधर्मनो. विकास थए अनेक पन्थ किंवा घणुंकरीने अनेक जुदा जुदा Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९६) धर्मन उत्पन्न थया, अने ते बधामां तात्त्विकविज्ञान, कर्मकांडपणु, भक्ति अने वैराग्य आदि बधाए विभागो अवश्य तरीके जोवामां आवे छे. आ बघाए पन्थोनी वृद्धि थएथी उपर कहेला अनार्यधर्मो शिवाय ख्रिस्ती अने मुसलमानी धर्मोनो पण तेना उपर असर थवानुं संभवित छे. अत्यारसुधीनुं विवेचन प्रस्तुत विषयना संबन्धथी केवल प्रस्ताविक तथा उपोद्घातना रूपन छे. हवे आगळ यूरोपियन पद्धतिथी एटले चिकित्सकपद्धतिथी जैनधर्मनो विचार करवानो छे. आ विवेचन कदाच कोईने शुष्क अने रसहीन लागशे पण तेमां अशास्त्रीय अगर पूर्वनी समजथी दूषित एवं कई पण देखाशे नहीं एवी मारी खात्री छे. ख्रिस्तीशकनी पूर्वे ८ मा शकमां ब्राह्मणोना कर्मकांडपणानो द्वेष करवा माटे आ देशमां शरु थएल धर्मविचारोमांथी जैनधर्म उत्पन्न थयो एम मानवानी साधारण प्रवृत्ति छे. ते वखते ब्राह्मणोना कर्मकांडमांनो कोई पण विधिविधान धर्मनामने छाजे एवो नहतो. जैनधर्मनी उत्पत्तिना संबन्धनो आ मत सामान्यथी यूरोपियन पण्डितोमा प्रचलित छे अने ओछावत्ता मतभेदथी जैनधर्मीलोको पण तेने मान्य • करे छे, परन्तु आ मतभेदतुं मूळ जैनसंप्रदायमा घणा प्राचीनका लथी जोवामां आवतुं होवाथीन जैनधर्मनी उत्पत्तिना संबन्धे Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९७) अमारा यूरोपियन पण्डितोनो ए मत भूल भरेलो छे, ए कल्पना मारा मनमा उत्पन्न थई. . आ विचारने अधिक स्पष्ट करवा सारु आ विषयन। संबन्धे अनेक मतो एकत्र कहेवानी जरूर छे. यूरोपीय पण्डितो पैकी जुनीशाखाना विद्वान् लोको एQ मानता हता के महावीर ए गौतमबुद्ध करतां जराक उमरथी मोटा समकालीन हता, अने तेमणेज जैनधर्मनी स्थापना करी. परन्तु आजकालमां आ मत भूल भरेलो छे एम सिद्ध थएलो छे. हालमां यूरोपीय पण्डितोमां प्रचलित थएलो आ विषयनो मत एवो छे के, जैनधर्मनो संस्थापक पार्श्वनाथ होईने महावीर ए एक ते धर्मनी जागृति करनार पुरुष हतो, पण खुद जैनधर्मिओना परंपरागतनो मत एथी जूदो छे. तेओना मत प्रमाणे जैनधर्म अनादि होईने ते धर्मने जे अनेक व्यक्तिओ तरफथी जागृति मळी छे तेज चौवीश तीर्थकरो अथवा जिनो छे. आ जैनोनो परंपरागत मत लक्ष्यमा राखवा नेवो होईने तेने निःसंशय असल इतिहासनो आधार मळे छे, अने मने एम पण जणाई आव्युं छे के हिंदुस्थानमांना प्रत्येक प्रत्येक सांप्रदायिकमतोने अतिहासिक आधार होय छे ज. हवे जैनधर्मना संबन्धे आ मतने कयो आधार छे ए कहेवू अत्यारे घणुं कठिन Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९८) छे, कारण के आ संवन्धनो शोध में हमण ज शरु को छे. तोपण जैनधर्म अने नीति ए विषय उपरना हेस्टिंग्स साहेबना विस्तृतविवेचनवाळा ग्रन्थमां अने प्रो. जेकोबीना निबन्धमा जे एक विधान जोवामां आवे छे तेना उपरथी प्रस्तुतविषयना शोधनी योग्य दिशा समजी शकाय तेम छे. आ निबन्धमा " जैनधर्मे पोताना काईक मतो प्राचीन जीवदेवना स्वरूपवाळा धर्ममाथी लीधेला होवा जोईए” एटुं कहेलु होवाथी प्रत्येक भागी तो शुं पण वनस्पति अने खनिज पदार्थो पण जीवस्वरूप ज छे. एवो जे जैनधर्मनो तत्त्व छे तेनी साथे ते मळतो होवाना कारणथी ते घणो महत्त्वनो छे. आ कारणथी जैनधर्म ए अत्यन्त प्राचीन छे ( कोई पण धर्म अनादिनो छे एम कोई पण विचारी पंडित कहेता नथी ) एम मने भासमान थवाथी तेज वातने हुं शीघ्रपणे शास्त्रीयदृष्टिथी सिद्ध करवानो डुं. आ धर्मनु मूळ हिंदुस्थानमां आर्य पूर्वकालना प्राचीन लोको सुधी पहोंचीने आगळ जतां ते धर्मे आर्यधर्ममांथी जेटलं जेटलं अत्युत्तम अथवा छेवट जे आपणाथी सारूं देखायु ते बधुंए ग्रहण कर्यु अने आर्यधर्मना ब्राह्मणीयपंथना बराबर तेमणे पोतानी वृद्धि करी लीधी. जैनोना निर्ग्रन्थोनो उल्लेख वेदोमां Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९९) पण छे ते उपरथी आ मारा कयननी प्रतीति बरो, परन्तु जनधर्मनी उत्पत्तिना संबंधे पहेला कहेलो ते मत ग्रहण करीए किंवा अत्यारे कहेलो आ मारो नवीन मत ग्रहण करीए तो पण तेना उपरथी ते धर्म विषे आगळ हं जे अनुमानो बताववानो छु तेमां कोई पण प्रकारथी फरक पडवानो नथी. लोकोने-धर्म आ संबन्धथी जैनधर्मनो विचार महावीरना . पछी ते धर्मने जे स्वरूप प्राप्त थयुं ते उपरथी न करवो पडे छे, अथवा श्वेताम्बर अने दिगम्बर ए बे महत्वना पन्थो उपरथी तेनुं जे प्रचलित स्वरूप देखाय छे तेना उपरथी करवो पडे छे. एम कहेवू अधिक शोभापात्र गणाशे. धर्मनी सरखामणीवाळा शास्त्रनी दृष्टिथी सुद्धा विचार करीए तो पण आ प्रचलित स्वरूपनोज करवो जोईए कारण के तेज तेनुं निश्चित अने निर्विवाद स्वरूप होय छे. जैनधर्मनुं वर्तमानकालीन स्वरूप मूल अनार्यलोकोनी प्रवृत्ति थया पछी झांखा चिन्हवाळु देखाई रघु छे पण तेज स्वरूप आर्यधर्मनो ऊंचामां ऊंची आदर्श छे. जैनधर्मनुं मुख्य काम एटले तेणे धर्मना मूळ उपर फटको मारनारा ब्राह्मणोनो नास्तिकवाद अगर जेने अज्ञेयवाद पण कहेवामां आवे छे Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०० ) तेने, अने महावीरनी सुधारणा पहेलां ब्राह्मणधर्मना विधिविधानमां जे केवल अत्याचार थलो हतो तेने पाछो हठान्यो ते हतुं. महावीरना सुवारा पछी बौद्धधर्म जेटलो जो के जैनधर्मनो विस्तार थयो नथी तो पण बौद्धधर्म करतां तेनुंज महत्व हिन्दु - स्थानवाळाने वधारे छे. कारण ते जैनधर्मथी इतर आर्यधर्मपत्योमां पण तेनी प्रतिक्रिया (जैनधर्मवाळानी क्रिया ) शह थवाथी तेना संबन्धे प्रत्यक्ष नहीं पण परोक्षरीते हिन्दुस्तानमांना आर्यधर्मना पाछला विचारोनो वधारो थवाथी बचाव थतो गयो. पण जैनधर्मनुं खरुं महत्व कहिए तो धर्मना जुदा जुदा अंगोनी यथाप्रमाण वहेंचणी थवाने लीधे कोई पण इतर धर्मनो प्रमाणथी अधिक क्वारो न थतां तेओना अंतरंगने जे पूर्णावस्था आवी हती ते तेटलामांज रही हती. आ एक लक्षणथी सामान्यरीते हिन्दुस्थानमांना सर्व धर्मोनी अने विशेषथी जैनधर्मनी इतर धर्मथी अने विशेषथी सेमेटिक धर्म पासेयी अने तेमां पण तेना ख्रिस्ती धर्म पाथी भिन्नता बतावी शकाय तेम छे तेनो थोडो घणो खुलाशो करूं लुं. प्रत्येक धर्मना भावनोद्दीपक कथा पुराणो, बुद्धिवर्द्धक तत्त्वविज्ञान, अने आचारवर्द्धके कर्मकाण्ड, १ याहुदी आरब विगेरेना धर्मो . Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०१) एवां त्रण मुख्य अंगो होय छे, घणाखरा धर्मोमां विधिविधानस्वरूप जे कर्मकांड-तेनोज सर्व धर्मो उपर प्रचार थईने इतर अंगो गौणपणे थईने रहेलां होय छे, अने तेमनामां भावनोदीपक कथापुराणो अंग मात्र लोकप्रिय होय छे. बौद्धिक एटले तत्त्वज्ञान स्वरूपना अंगोनी अभिवृद्धि ए आर्य धर्मोना स्वरूपर्नु मुख्य लक्षण होय छे, पण ए त्रणे अंगोनी एकला जैनधर्ममांज सरखापणाथी वहेंचणी करेली होवाथी प्राचीन ब्राह्मणधर्म अने बौद्धधर्म एमां बौधिक अंगोनुं विना कारण मोटापणुं बतावेलु छे.' वीजा इतर धर्मना प्रमाणमां जैनधर्मने कयुं स्थान आपी शकाय एनो निश्चय करवा माटे हवे आपणे तेना अंतरंगनो थोडो अधिक विचार करीए. जैनधर्मनो संपूर्णपणे विचार करवो ए एक में नाना सरखा व्याख्यानमां थई शके नहीं अने तेवो प्रयत्न करवानो मारो उद्देश पण नथी. तेनो स्वरूप बधाओने ( आपणने) मालुम छे एवो विचार करीने हुं आगळ चालु छ. जगतमांना सर्वे धर्मोमां जैनधर्मने कयु स्थान आपी शकाय ए समजवा माटे अवश्य रहेली ते धर्ममांनी मुख्य मुख्य वातोनोज केवल उल्लेख करीने सर्वे धर्मोनी सरखामणीना विज्ञानमां जैनधर्मने ते बधा धर्मोथी विशेष महत्व केम प्राप्त थयुं छे तेज हुं बताववानो छु. ___ Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२) देवविषयोना संबन्धे जैनधर्मनो प्रमाण तरीके मानेलो मत एज तेनामां पहेली मोटी महत्वनी बात छे. आ दृष्टिथी विचार करी जोतां जैनधर्म एटले मनुष्योत्सारी ( नरथी नारायण सुधी चढेलो) धर्म ठरे छे. वैदिक धर्म अने ब्राह्मणधर्म ए पण मनुष्योसारी छे खरा, पण ते वास्तोमां पण ते जैनधर्मथी केवळ औपाचारिकन छे. कारण के तेओमां देव एटले कोई मनुष्यातीत प्राणी छे, अने तेने आपणा मंत्रोथी वश करीने आपणी इष्ट प्राप्ति करी लेवाय छे एबुं मानी लीधेलुं छे. पण खरं मनुष्योत्सारी पणं जैनधर्ममा अने बौद्धधर्ममांज देखाई आवे छे. आगल जातां मात्र बौद्धधर्मनुं ईश्वरविषयकमत मूळ कल्पनाथी घणो जुदो बनी गयो छे. शिवाय आ बावतमां मूल बौद्धमत पण घणोज आगळ गएलो होवाने लीधे मूळमांज ते अनीश्वरवादी हतो के केम ? एवो संशय उत्पन्न थई जाय छे. जैनोनी देवविषयक कल्पना विचारी मनुष्योना मनमा स्वाभाविक रीते आवी शके तेवी छे. तेओना मतमां देव ए परमात्मा छे पण ईश्वर नथी एटले जगत्नो स्रष्टा अने नियन्ता नथी पण ते पूर्णावस्थाने पहोंचेलो जीवज होईने अपूर्णावस्थावाळानी पेठे जगत्मां पाछो आववानो अशक्य होवाने लीधे Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३) पूज्य, वन्दनीय थयो छे. जैनोनी देव विषयक कल्पना सुप्रसिद्ध जर्मन महातत्त्वज्ञ नित्से ( जेओने हु अनेकवावतोमा पोताना अध्यात्मगुरु तरीके मार्नु ळु एम मने कबूल कर जोईए) एमनो सुपरमेंन एटले मनुष्यातीत कोटीनी कल्पना साथे आ बात मळती आवे छे, अने आज बाबतमा मने जैनधर्मनो अत्युदात्त स्वरूप देखावा लाग्यो छे, असे जे लोको जैनधर्मने अनीश्वरवादी समजीने तेमना धर्मत्व उपर हल्ला करीने चढाई करवानुं धारे छे तेमनी साथे हुं जोरथी विरोध करवाने तैयार हूं. आ बावतमां मारो मत एवो छे, के बौधिक विषयोनी उत्तम परिपुष्टि करवाने माटे अवश्य तेटलाज उच्चतम ध्येयने जैनधर्मवाळाए हाथे धर्यो छे. देवनी कल्पना धर्मवाळाओने अवश्य होवाने लीधे पोताना धर्मपणाने कायम राखवाने माटे धर्मना मुख्य लक्षणो तेमणे आपणामांथी जावा दीधेलांज नथी. आ बधां कारणोने लीधे जैनधर्मने आर्यधर्मोनीज नहीं पण एकन्दर सर्व धर्मोनी परममर्यादावाळो समनीए तोपण कोई प्रकारनी हरकत आवे तेम नथी. आ परमतत्त्वनी सीमावाळा स्वरूपना मूळथीज धर्मोनी ६. सरखामणीना विज्ञानमां जैनधर्मने मोटुं महत्व प्राप्त थएवं छे. १ ध्यान करवाने योग्य देवनी मूर्तिने. Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०४ ) आ प्रमाणे आपणे जोईए तो धर्मनी उपरनी हद ( मर्यादा ) माळी गई, अने तेना उपरथी मनुष्यविषयकना बीजा विचारो अथवा भावनाओना संबंधे निर्णय करवामां फावी शकीशु. पछी ते विचारो के भावनाओ धर्मनामने छाजे तेम होय के नहीं पण धर्मनी सरखामणीना विज्ञानमां जैनधर्मनुं एटलुंज एक महत्व नथी परन्तु आ दृष्टिथी जोतां जैनोनुं तत्त्वज्ञान, नीतिज्ञान, अने तर्कविद्या पण देखीए तो तेटलांज महत्ववाळां छे. आ विषयनो एथी सविस्तर विचार करवाने मने आज वखत - नथी. तोपण जैनधर्मना श्रेष्ठपणानां हजु कांईक थोडां लक्षणो कहेवां जोईएज. अनन्तसंख्यानी उत्पत्ति तेमना लोकप्रकाश नामना ग्रन्थमां कहेली छे ते हालना गणितशास्त्रनी उत्पत्ति साथै अअत्यन्त मंळती आवे छे तेमज दिक अने काल एमना अभिन्नत्वनो जे प्रश्न ईन्स्टीननी उत्पत्तिथी आ तरफना शास्त्रज्ञोमां वादनो विषय थई रहेलो छे तेनो पण निवेडो जैनतत्त्वज्ञानमां करेलो होवाथी तेना निर्णयनी तैयारी तेमनामां करीने मुंकेली छे. • हवे जैनोना नीतिशास्त्रनी बेज बातोनो हुं अहिंया उल्लेख करूं छं. तेमना शास्त्रमां ते विषयनो बहु पूर्णताथी विचार करेलो छे तेमांथी पहेली बात ए छे, के जगत्मांना सर्व प्राणिओने सुख Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०५) समाधानीथी एकत्र केवी रीते रहेतां आवे ? ए प्रश्न छे. आ प्रश्नना आगळ अनेक नीतिवेत्ताओने हाथज टेकवा पड्या छे. कारण ते विषयनो संपूर्ण निर्णय आज सुधी कोई पण करी शकेलो नथी, पण आ प्रश्ननो निर्णय जैनशास्त्रमा बहुन शरल रीते अने तेटलाज पूर्णविचारथी निर्णय करीने मुकेलो छे. बीजाओने दुःख न देवं अगर अहिंसा आ वातनो जैनशास्त्रमा केवल तात्त्विकविधियीन नहीं पण ख्रिस्तीधर्ममां तत्सदृश दश आज्ञाओ करतां अधिक निश्चयथी अने कडकपणाथी तेनो आचार कहेलो छे, अने तेटलीज सुलभताथी तथा पूर्णताथी जेनो खुलाशो जैनधर्ममां करेलो छे एवो बीजो प्रश्न एटले-स्त्री पुरुषोना पवित्रपणानो छे. आ प्रश्न खलं जोतां केवल नीतिशास्त्रनोज नथी पण जीवनशास्त्र अने समाजशास्त्रमा पण तेनो घणो संबन्ध आवे छे. x x x x x x x जैनधर्मने सामान्यपणाथी सर्वधर्मनी अने विशेषयी आर्यधर्मनी परमहदवाळो मानवो जोईए, आ बात में पहेलांज कहेली छे. आ उपरथी धर्मना विशिष्ट विषयोनुं साम्यावस्थान जैनधर्ममां सारी रीते राखेखें होवाथी तेनुं बंधारण मनुष्यने केन्द्रस्थान सम Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०६) जीने करेलुं छे, अने 'बौधिक विषयोने पण बाजु उपर न मूकतां तेमना धर्मपणाने बाध न आवे एवी जुगतिथी तेमणे तेनो विकास करेलो छे. 'आ बावतमां जैनधर्मनी बाजू घणी मजबूत रचाएली छे. ख्रिस्तीधर्मर्नु बंधारण वायवलना पाया उपरथी थरलं होबाथी तेमां बौधिक प्रश्नोनो विशेष उहापोह के विवेचन थएवं नथी. कारण, के मनुष्यनी भावना उपरन कार्य करवानो तेमनो उद्देश थएलो हतो. आगळ पण तेमां आरिस्टॉटलनान विज्ञानमांना तत्वोनो स्वीकार करेलो छे, अने हजु पण तेज तत्त्वोने ते धर्म एटले रोमन कॅथोलिकपंथी वळगीनेज रहेलो होवाथी ते तत्त्वोनी हालनी शास्त्रीयवृद्धिनी साथे सरखामणी करी शकाय नहीं. भावनानी दृष्टिथी जोतां ख्रिस्ती धर्मे बीना कोई पण धर्मोने पाछा पाडेला छे ए बात धणा भागे खरी छे पण मारा मत प्रमाणे हालनी शास्त्रीयदृष्टिना माणसोने हालना धर्मस्वरूपमां भावना उपर विशेष भार मुंकवो इष्ट लागतो नथी, कारण के धर्मने पण भौतिक शास्त्रोनी गतिथी चालतां आवड जोईए, एवी रीते तेमना समजुती थएली छे. १ तात्त्विकविचारोने. २ तात्त्विकविषयोनी बाबतमां. Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०७ ) कम सारांश कवानो ए छे के उच्च धर्मतो अने ज्ञाननी पद्धति ए बन्नेनी दृष्टिथी जोनां जैनधर्म ए धर्मनी सरखामणीवाळा शास्त्रमां घणोज आगळ पहोंचेलो छे एम तो मानकुंज पडे छे, अने द्रव्योतुं ज्ञान करी लेवाने माटे मां जोडी दीघेला स्वाद्वादनुंज एक वर्त्तमानपद्धति नुंज स्वरूप जुओ एटले बस छे. धर्मना विचारांमां जैनधर्म ए एक निःसंशयपणे परमहदवाळी छे, अने ते केवळ स्याद्वादनी दृष्टिथी सवर्मोनुं एकीकरण करवाने माटेज नहीं पण विशेषपणाथी धर्मोना लक्षणो समजवाने माटे अने तेना अनुसारथी सामान्यपणे धर्मनी उपपत्ति संगठ ( गोठती ) करी लेवाने माट तेनी काळजीपूर्वक अभ्यास करवानी खास जरूर छे. Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०८ ) इटालियन विद्वान् डॉ. एल. पी. टेसीटोरी पोताना एक व्याख्यानमां कहे छे के–“ जैनदर्शन बहुतही ऊंची पंक्तिका है, इसके मुख्य तत्त्व विज्ञानशास्त्र के आधार पर रचे हुए हैं ऐसा मेरा अनुमान ही नहीं पूर्ण अनुभव है. ज्यों ज्यौं पदार्थविज्ञान आगे ढ़ता जाता है जैनधर्म सिद्धांतोंको सिद्ध करता है. x X X जैनसाहित्यना संबन्धमा जर्मनीना डॉ. हर्टल पोताना लेमां जणावे छे "Now what would Sanscrit poetry be without this large Sanscrit Literature of the Jainas! The more I learn to know it, the more my admiration rises." Jain Shasan, Vol. I. No. 21. अर्थात –“ जैनोना महान् संस्कृतसाहित्यने अलग पाडवामां आवे तो संस्कृतकवितानी शी दशा थाय ? आ विषयमां मने नेम जेम अधिक जाणवानुं मळे छे तेम तेम मारा आनंदयुक्त आश्चर्यमा वधारो थतो जाय छे. " " "जैनशासन पु. १ अंक २१ 17 Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनदर्शन और जैनधर्म। ( मूल लेखक-मिस्टर हर्बर्टवारन साहेब.) . मि. लालनना गुजराती अनुवाद उपरथी हिन्दी अनुवादक कन्हैयालाल गार्गीय, ब्यावर. जैनदर्शनमें जैनतत्त्वज्ञानका और जैनधर्ममें जैन नीति, जैनियोंके चरित्र और उनकी धर्मक्रियाका वृत्तान्त हो सकता है। जैनियोंकी श्रद्धाको भी जैनधर्ममें ले सकते हैं। हिन्दुस्तानकी जातियोंमें जैनियोंकी भी एक जाति है। जो न्यूनाधिक सब देशमें फैली हई है। परन्तु उनका मुख्य निवास उत्तर, पश्चिम दिल्ली, बम्बई और अहमदाबादमें है। यह एक प्रतिष्ठित जाति गिनी जाती है। परन्तु इनकी संख्या घटती जाती है इस लिये वर्तमानमें वे अनुमान पन्द्रह लाखके अन्दर हैं । साधारणतः यह धनवान लोग हैं और जिन थोड़ेसे मनुष्योंसे मुझे लन्दनमें मिलनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है वे बहुत अच्छे और कुलीन गृहस्थ हैं। पश्चिमी देशोंमें जैनसिद्धान्त उचितरूपमें नहीं पहुंचे, और Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०) जो पहुंचे हैं वे समझाये नहीं गये और अशुद्धरूपमें दर्शाये गये हैं। जैनियोंका मुख्यसिद्धान्त “ प्राणीमात्रको कष्ट नहीं देना " है। और इस सिद्धान्तका मूल विश्वके प्रमाणिक ज्ञान पर निर्भर है। जब मनुष्य अपना और विश्वका ज्ञान प्राप्त कर लेता है तब वह लोगोंके माने हुए विचारोंको माननेके लिये बाध्य नहीं होता है यही नहीं किन्तु वह अपने स्वीकृतमन्तव्योंको समझानेके लिये दूसरे मनुष्योंके वास्ते उक्त ज्ञानका द्वार बन जाता है। ज्यां ज्यों मनुष्य अपना तथा अन्यलोगोंका जितना जितना ज्ञान प्राप्त करता जाता है उतना ही उसमें प्रेमभाव बढ़ता जाता है। " प्राणीमात्रको कष्ट नहीं देना" यह सिद्धान्त प्रेम ही पर निर्धारित है और ज्यों ज्यों मनुष्यमें प्रेम उत्पन्न होता है त्यों त्यों यह सिद्धान्त उसको मन, वचन, और कायासे अन्यलोगोंको कष्ट पहुंचानेसे रोकता है। जैनी, विकाश ( Development ) के विचार की प्रतिष्ठा करते हैं। और मानते हैं कि सनीव प्राणी अपनी पूर्णदशा तक विकाश कर सकता है । ज्ञान और चरित्रकी पूर्ति अथवा पूर्ण योग्यता इसीमें है कि किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकारसे कष्ट नहीं पहुंचाना, ( तथा किसी प्रकारका अज्ञान नहीं Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १११ ) रखना ) उनका लक्ष्य किसी प्रकारसे सर्वसत्तासे कम नहीं, किन्तु आशावादी ( Oppimistic ) है | वह आत्माको अनन्त बलसाली तथा आनन्दयुक्त मानते हैं 1 विश्व | संसारज्ञान यह है कि संसार अनादिकालसे है, और रहेगा भी । अस्तु, इसका आदिकाल खोजना निरर्थक है । अमुक २ वस्तु नित्य होती रहती हैं और मिटती रहती हैं तथापि भिन्न भिन्न वस्तुओं की उत्पत्ति और नाशकी अवस्था होने पर भी संसार नित्य हैं । जब कोई वस्तु प्रगट होनी होती है तो वह वस्तु कोई दूसरी वस्तुमेंसे निकल कर प्रगट होती है अर्थात् जब पक्षी जन्मता है तो जिस अण्डे में वह था वह नाश होजाता है, परन्तु जिस पदार्थ से वह अण्डा तथा वह पक्षी बना था वह द्रव्य सर्वदा उपस्थित रहा है- अण्डेका तथा पक्षीका सिद्धान्त प्रत्येक पदार्थ के लिये सत्य है । केवल ऐक्य है । यह अवस्था में परि न होता है, परन्तु पदार्थ ज्योंका त्यों रहता है । जिस द्रव्यमें से वस्तुएं बनती हैं वह किसी न किसी दशा में और किसी न किसी स्थान पर रहता ही है और रहे हीगा । अतिपूर्वकालमें किसी भी समय वा कोई भी काल में दृष्टि करनेसे उस Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११२ ) कालको जगत्का आदिकाल मानना उचित नहीं । जिस पदार्थका यह जगत बना है उसी पदार्थका बनता आ रहा है । अस्तु, अति प्राचीनकालमें जाने, तथा उस कालको जगत्‌का आदिकाल माननेके स्थानमें हम अभीके जगत्को ही आदि समझने लगें तो ठीक होगा. इसीको आदि गिन करके दूर दूर तक सब दिशाओंमें आगे पीछे ज्योति फैलावें ( अर्थात् जैनधर्मके सिद्धान्तोंको विस्तृतरूपसे प्रचार करें ) जिस प्रकार समुद्र के किनारे पर खड़ा हुआ मनुष्य अपनी दृष्टिके विस्तारको सीमाबद्ध नहीं कर सकता इसी प्रकार हम देश तथा कालका अन्त कभी नहीं पा सकेंगे । समुद्रमें जहाज कहीं भी हो परन्तु वहांसे दृष्टि सीमाबद्ध हो सकती है वैसे ही देश अथवा कालके किसी भागको आदिरूपमें गिन लो परन्तु उसकी पहिली सीढ़ी क्या या कहां समझनी ? यह प्रश्न हमेशां उठे हीगा + संसार किसका बना हुआ है ? | दो मुख्य वस्तुओंका । अर्थात् पदाथ और द्रव्यसे विश्व बना हुआ है चैतन्य और जड़ ( सचराचर ) जीव | जैनशास्त्र इन दो पदार्थोको मानता है अर्थात अनन्त पदार्थ और जड़ जीव । निस्सन्देह इन दोनों की स्थिति देश तथा कालमें है 1 Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काल तो साधारणतया सत्य गिना जाता है परन्तु देश' तो सत्य ही है और जो सत्य है सो अवश्य स्थित है। चार पदार्थ अर्थात् आकाश (देश) काल, जीव और अवैतन्य परमाणु, यह कोई किसीके पैदा किये हुए हों यह आवश्यक नहीं क्योंकि पदार्थोंका स्वभाव है कि वे स्वयं स्थित रहे। वे अनादिकालसे थे, हैं, और रहेंगे । ईसाईधर्ममें यह विचार एक जीवके लिये मानते हैं परन्तु जैन प्रत्येक जीवके लिये यह विचार स्वीकार करता है अर्थात् आप, मैं, कुत्ता, बिल्ली इत्यादि सर्व प्राणी नित्य हैं। यदि वर्तमानकालकी रसायनिकशोधकी दृष्टिसे जद्रव्य अन्तिमपरमाणुको आप न गिने परन्तु वह अधिकतरसूक्ष्मपरमा-- णुओंका बना हुआ है । अस्तु, इसके लिये हमको जडद्रव्यका अतिसूक्ष्म अन्तिमभाग, या कोई दूसरा शब्दव्यवहार करना चाहिये। जीव और जड़। अब अपने जीवके सम्बन्धमें जो हम अभीके संसारसे शोध करना आरम्भ करें तो पहिली ध्यान देने योग्य बात यह Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११४) है कि हम देहधारी संसारी जीव शरीर तथा आत्मासे बने हुए हैं अर्थात् जड़ और चैतन्य मिश्रित हैं। अपने चारों और जो हम सब जीव देखते हैं जैसे मनुष्य, बिल्ली, कुत्ते, वोडे, वृक्ष यह सब शरीरसहित आत्मा दोनों एक हैं तो भी परस्पर भिन्न हैं। मेरा शरीर है सो मैं स्वयम् नहीं हूं यह भेद जानना अत्यन्त आवश्यक है, यह शरीर नहीं किन्तु आत्मा है. जिसे बुद्धिमान व्यक्ति ( Consience, Santienty entity ) कहता है। आत्मा ही सब कुछ जानता है शरीर कुछ नहीं जानता। जलाका जीवन ज्ञानसहित, विचारसहित और प्रामाणिक है और जिस परिणाममें विचार सत्य होते हैं वहीं तक जीवन भी सत्य है। आत्मद्रव्य। वस्तुद्रव्य अपने मूलगुणोंसे भिन्न कभी नहीं रह सकती अर्थात् हम गुणको द्रव्यसे यथार्थमें पृथक् नहीं कर सकते. विचाररूपमें ऐसा अवश्य सम्भव है । हम देखते हैं कि मरते मय शरीर अपनी सुधि खो देता है. अस्तु, यह सिद्ध होता है Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११९) कि विवेक और सुधि शरीरके गुण नहीं हैं अर्थात् जीते हुए शरीरके साथ कोई सत्य वस्तु होनी चाहिये कि जिसके गुण उसके साथ रहते हैं इस वस्तुको जीव कहते हैं जीवके पर्यायवाची अनेक शब्द हैं यथा आत्मा, अहं, स्वयं ( Self, Spirit, age, soul ). शरीररहित या शरीरसहित जीव । जब जीव पूर्णतया पवित्र होता है तो वह कोई प्रकारके भी शरीर बिना रह सकता है । सूक्ष्मातिसूक्ष्म शरीर भी नहीं हो तो भी ठहर सकता है। परन्तु वह किसी प्रकारकी स्थिति धारण करे तब तक सजीव प्राणी दो वस्तुओं अर्थात् जड़ और आत्मासे मिलकर बना है। यह समय आवे तब तक आत्मा और स्थूलशरीर भिन्न होनेका यह अर्थ नहीं कि आत्मा जड़शरीरसे मुक्त होजाय, जीव जिस प्रकार स्थूल शरीरको छोड़ जाता है वैसे ही मरती समय वह अन्य दो शरीरोंसे नहीं छूट सकता परन्तु वे शरीर उसकी नई अवस्थामें उसके साथ ही रहते हैं इनमेंसे एकमें उत्तेजक शक्ति होती है जिससे फिर सजीव प्राणी स्वयं अपना नवीन शरीर पैदा करता है। Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११६ ) जीवको होती हुई भ्रांति । संसारी देहधारी जीव सामान्यरूपसे अनेक बलप्रवाहों ( अर्थात् शक्तियों) का केन्द्र होता है । ये शक्तियें आत्माका गुण नहीं हैं परन्तु उनके साथ आत्माका अत्यन्त सूक्ष्मरूपसे सम्बन्ध है और वह उनको अपने समझ लेता है और मानता है कि मैं उनका बना हुआ हूं । इस मिथ्याभावमेंसे वह जागृत हो अर्थात् अपने आपको जाने वहां तक उसको इस अवस्थामें पड़ा रहना पड़ता है । बलप्रवाहशक्ति अर्थात् कर्म । हमारे आसपास चारों ओर जो समस्त फेरफार दृष्टिगत होते हैं उनका कारण यही है । यह अन्तर केवल स्थूलशरीरमात्र ही हैं यही नहीं, परन्तु सद्गुण, दुर्गुण आदिका भी प्रभाव पड़ता है । आत्माका स्वभाव कैसा है । आत्मा स्वभाविकतया दैवी है और शुद्धदशामें समानभांतिसे ज्ञानवान् वीर्यवान् तथा चारित्रवान् है । पापी आत्माके समान जगत् में कुछ नहीं है जो मनुष्य पाप करता है तो अपने में 1 Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थित इन अस्वाभाविक शक्तियोंके कारण करता है क्योंकि वे सन्देहवश दुष्कर्मोको अपने गुण समझ लेता हैं। मनुष्य अज्ञानता अथवा दुर्बुद्धिके कारण पापकर्म करता है परन्तु आत्मा तो स्वभावसे ही सर्वज्ञ है. अस्तु, उसके सब विचार सत्य ही होते हैं। मेरे ध्यानमें पापकर्म करते समय कोई मनुष्य यह नहीं जानता होगा कि मैं पाप करता हूं। यदि विचार करता होगा तो यही कि मैं भला करता हूं अन्यथा ऐसा कदापि नहीं करता, अस्तु. यह दोष उसकी दुर्बुद्धिका ही रहा। ऐसे ही यदि कोई मनुष्य कपट करता है तो प्रसंगवश वह उसे भी अच्छा ही समझ कर करता है । परन्तु समय पड़ने पर जब वह समझ लेता है कि यह कर्म बुरा है तब वह उसे छोड़नेका प्रयत्न करता है और अन्तमें शुद्ध इच्छा होने पर छोड़ भी सकता है। कर्मोका मूल। ऊपर लिखित अस्वभाविकवलप्रवाह कर्मोके मूल अर्थात् जड़ हैं और वे अत्यन्तसूक्ष्म होती हैं उनको यह कर्म अपनेमें मिला देते है और उसके परिणामका अनुभव आत्माको करना पड़ता है । अस्तु, कतिपय परिणाम उत्तम तथा कितनोंका बुरा Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११८) होता है। अर्थात् कुछ सुखकर तथा कुछ दुःखके कारण होजाते हैं। कर्मोंके स्वभाव । ___ इस प्रकारके अस्वाभाविक कर्मोंका स्वभाव आत्माके . कितने ही गुणोंको ढंक देता है इससे समझमें आ जायगा कि क्यों कुछ मनुष्य दूसरे मनुष्योंसे अधिक अज्ञानी, दुःखी, सुखहीन, अल्पायु तथा निर्बल अथवा विशेष सुखी, सुन्दर स्वरूप, दीर्घायु तथा सबल होते हैं कुछ उच्चवर्णमें उत्पन्न होते हैं और कुछ नीचवर्णमें। इत्यादि जहां तक विचार करें यह कर्मका ही फल ज्ञात होगा। कर्मको रोकनेते भविष्य परिणाम । अब ज्यों २ इन कर्मोको ग्रहण करके अपने साथ मिलानेकी क्रिया बन्द की जाती है और ज्यों ज्यों पूर्वजन्मान्तरोंमें एकत्रित किया कर्मोका समूह अपनेसे दूर किया जाता है त्यों २ मनुष्यके अज्ञान, क्रूरता, दुःख, दुर्बलतामें कमी होती जाती है और इस प्रकारसे वे सत्य चरित्रवान बन जाते हैं। Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस प्रकार अपने विचारशक्तिका केन्द्र यदि हम वर्तमान बुग तथा विश्वको मानले तो हमारे चारों ओर यावत् जीते हुए प्राणी जो हम देखते हैं वे सब आत्मा तथा जड़ पदार्थके मिश्रितरूपमें दिखाई देंगे। शाश्वत जीवन । यदि संसारको हम यह समझे कि यह नित्य है तो इसके प्रत्येक व्यक्तिगत जीव जन्म ( जन्मान्तर ) पहिले ही विश्वमें विद्यमान थे और यह दैहिक शरीर या जीवनके अन्तमें भी जीते रहेंगे । अर्थात् जितने जीव अभी इस कालमें हैं वे अनादिकालसे अनन्तकाल तक रहेंगे। हम नहीं कह सकते कि ये कब हुए थे और कब नाश हो जायगे । जीवनके पूर्व यह अपना जीवन नहीं था त्यों ही अन्तमें भी जीवन नहीं होगा क्योंकि कोई ऐसा जीवन नहीं कि जिसके पहिले जीवन नहीं हुआ है, न कोई ऐसा है कि जिसके अन्तमें जीवन नहीं हो। अस्तु, कोई जीवन ऐसा नहीं है कि जिसके पश्चात् जन्म मरण : न हो. अस्तु, यह सिद्ध हुआ कि आत्मा अनादि तथा । अनन्त है। Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२० ) देहमुक्त हुए उपरान्त जीवन । शरीररहित आकृतिमें अन्तिमजीवन भी होता है । इस स्थितिके पीछे पहिलेकी भांति मनुष्यको जन्म मरण ऐसा नहीं होता । भूतकाल के विषय में यह विचार होता है कि ऐसा कोई समय नहीं था जब कि यह आत्मा शरीररहित आकृतिमें रहा हो। साथ ही यह भी निर्णय नहीं है कि शारीरिक जीवन इस पृथ्वी पर ही रहा हो । जीवनकी ऐसी स्थितियें हैं कि यदि पृथ्वी परके जीवोंसे विशेषसूक्ष्मतरजातके शरीर होते हैं तो उनको साधारण बोलीमें देवशरीर कहते हैं और इस श्रेणीमेंके जीव शुभ तथा अशुभ दोनों प्रकारके होते हैं ( अर्थात् देव और दैत्य दोनों होते हैं ) तथा अन्यभाषामें स्वर्गनिवासी और नर्कवासी होते हैं । 1 चार प्रकार के जीव । जैनी मानते हैं कि जीव ४ प्रकारके ही होते हैं अर्थात् मनुष्य, तिर्यञ्च, नारक (दैत्य ) और देव ( देवता ). तिर्यञ्चमें केवल, वनस्पति ही नहीं परन्तु मनुष्ययोनिके अतिरिक्त अन्य सब योनिये यथा पक्षी, मछली, पशु इत्यादि सबका समावेश होता है । Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२१) जीवके शरीरोंकी जाति । जीते प्राणीके शरीरको मनुष्यके अथवा पशुके रूपको हम जानते हैं परन्तु स्वर्ग अथवा नर्कमें प्राणीके शरीर अत्यन्तसूक्ष्म होते हैं । ऐसा विचारमें आता है, और स्वर्गमें दुःखसे सुखकी मात्रा बहुत अधिक है परन्तु नर्कमें तो दुःख ही दुःख है सुख नामको भी नहीं। जैनोपदेश। मेरे विचारमें जैनियोंके यहां एकसे दूसरा विशेष उच्च करते करते १६ स्वर्ग (श्वेताम्बरोंके १२ तथा दिगम्बरोंके १६) और एकसे दूसरा अधिक नीचा करते करते ७ प्रकारके नर्कक उपदेश दिया गया है । तथापि जीवनकी इन चारों स्थितियोंमें जीव शरीरकी शक्ति शद्ध आत्मा नहीं है। उसका कोई न कोई प्रकारका जड़ शरीर होता ही है। स्थूल या सूक्ष्म पञ्चमी स्थिति। . परन्तु इन चारों जीवनकी स्थितियोंके पश्चात् एक अन्तिम पांचवीं विशुद्धतम शरीररहित स्थिति है जो यदि एकवार प्राप्त al Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२२) होगई तो सदा बनी ही रहती है. इन चारोंमेंसे प्रत्येक रूपकी अवधि मर्यादित है अर्थात् आयु नियमित है कि जिसका अन्त कभी न कभी आता ही है यद्यपि यह काल स्वर्ग नर्कमें तो विशेष होता है तथापि अन्त तो है ही, परन्तु उस विशुद्ध शरीररहित स्थितिमें जीवनकी लम्बाई अमर्यादित है कि जिसका अन्त कभी नहीं आता और यह स्थिति तब ही प्राप्त होती है जब हमारी विकाशपानेकी स्थिति पूर्णदशा पर पहुंचती है और यह दशा ही जीवनका लक्ष्य ( अर्थात् Gool है ) और प्रत्येक व्यक्तिको यह प्राप्त हो सकती है और क्रम २ से विकाश पाते २ वहां तक पहुंचती है। इस अन्तिम स्थितिके प्राप्त होनेके लिये यदि कोई जीवन उपयोगी है तो वह मनुष्यजीवन है। चार दुर्लभता। मुझे यहां याद आता है कि चार बातें दुर्लभ हैं ( १ ) मानुष्यजीवन प्राप्त होना दुर्लभ है. ( २ ) मनुष्यजीवन प्राप्त होने पर सत्य उपदेश प्राप्त होना. ( ३ ) सत्य उपदेश मिलने पर उस पर श्रद्धा होना. और ( ४ ) श्रद्धा होने पर उस पर मनन करके उसके अनुसार चलना यह चारों बातें दुर्लभ हैं। Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२३) जिस स्थितिमें हमने जन्म लिया है वह कोई अकस्मात हमको नहीं मिली है। पूर्व जन्ममें जैसी करणी करी हो वैसा . ही पाश्चात्य जीवन प्राप्त होता है । अलबत्ता उपदेश ऐसा है कि.. जितने ही हम भले या बुरे होते हैं उतना ही हमको सुख या दुःख मिलता है । ईसाई लोग भी यही मानते हैं तथापि जहां के . लोग यह मानते हैं कि नारकीजीवन सदैव नित्य रहता है वहां जैनी यह मानते हैं ति नर्कके जीवनका भी कभी न कभी अन्त आजाता है। यह उपदेश कहांसे लिया गया है ? जिस भांति ईसाई ( खीष्टीय ) ईसाके अनुगामी है उसी भांति जैनी महावीर जिनेश्वरके माननेवाले हैं। महावीरनिन ईसाके पूर्व छठवीं शताब्दीमें उत्पन्न हुए थे. उनका जन्म भारतमें हुआ था और अपनी आयुके पिछले ३० वर्ष इन्होंने उपदेश देनेमें व्यतीत किये. उनको जन्मके साथ २ ही अवधिज्ञान विश्वदर्शन तथा विश्वश्रवण आदि लब्धिये प्राप्त हुई थीं । तत्पश्चात् उनको वह परमज्ञान प्राप्त होगया जिससे दूसरेके हृदयका भाव जान सकते थे. ४२ वर्षकी आयु होने पर तपश्चर्या तथा अपने ज्ञान विकाश होनेसे वे सर्वज्ञ होगये Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२४) थे और जब तक आप सर्वज्ञ नहीं हुए थे तब तक उपदेश करना नहीं प्रारम्भ किया था ( इस प्रकार अर्थात् जैनी एक सर्वज्ञ महात्माके उपदेशको मानने वाले हैं तथा उनके ही अनुगामी हैं ऐसी परम्परा है ) जिस भांति वाइबिल ख्रीष्टके उपदेशोंका संग्रह है उसी भांति जैनशास्त्र महावीरके उपदेशोंका भण्डार है। जिनदेवके लक्षण। देव अर्थात् धर्मनियंताके कैसे लक्षण होने चाहिये इस विषयमें जैनियोंका दृढ़ विश्वास है कि धर्मनेता ( Religions lender ) सर्वज्ञ होना चाहिये अन्यथा वह लोगोंके जीवनके लिये धर्मशास्त्र तथा नियम ( Code of rules of ) बनाने योग्य नहीं है, यह बात भली भांति प्रगट है क्योंकि यदि -सर्वज्ञ न हो तो कुछ ऐसा होगा जो कुछ कम जाने और जिस वार्ताको वह न जाने उसको करने या न करने की शिक्षा हमको दें तो सम्भव है कि हम लोग उसकी सीख कर उनसे ' अधिक रूपमें उस कार्यको करने योग्य होजाय । ... और उसको निद्रा भी न आनी चाहिये ताकि उसके जानकी सर्वज्ञतामें कोई भी प्रकारका Discontinuity विक्षेप Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२५) हो. यया क्रोध, भय, लोभ आदि द्वारा और उसमें यह गुण भी होना चाहिये कि उस पर चाहे कुछ भी किया जाय परन्तु क्रोध न आवे, किन्तु सबको क्षमा करे विरोधी चाहे कितना ही दुष्ट क्यों न हो। इसके उपरान्त अन्य लक्षण भी श्रीजिनेश्वरके बतलाये हैं. मैंने इस निबन्धके प्रारम्भमें कहा था कि सब उपदेशोंका सार इस महावाक्यमें है कि “ अहिंसा परमो धर्मः " अर्थात् 'किसीको कष्ट नहीं देना ' यही सबसे बड़ा धर्म कर समाप्तम् । Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाचकवर्गने सूचना. अमोए प्रसिद्धिमा मूकेला लेखो शिवाय बीजा पण घणा 'जेनेतर विद्वानो जैन तत्त्वोनो बारीक दृष्टिथी अभ्यास करी पोतपोताना अभिप्रायो प्रसिद्धिमा मूकवाने बाहर आवेला छे अने तेओना लेखो थोडाज वखतमा जिज्ञासुजनोने मळवानो संभव पण छे. __जुवो-जैन पत्र पु० २० मुं. अंक १८ मो ता. ३० मी एप्रील सने १९२२ ॥ संवत् १९७८ वैशाख सुदि ३ पृ. २१४॥ जैन साहित्यनी योजना. दुनियाना विद्वान पुरुषोना हाथे जैन साहित्यर्नु संशोधन अने स्पर्धा. " जैन साहित्यना रसिक जैनेतर विद्वानोना अनुभवनो लाभ लेवाने आचार्यश्री विजयधर्मसूरिए घणाने नोतर्या हता जाणीने सतोष थशे के तेना परिणामे नीचेना साक्षरोए साथेन जणावेल विषय उपर पोतानो खास निबंध लखवाने कबूलात आपी दीधी. Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२७) एटलुंज नहीं पण धणाए तो पोते कबूलेला निबंधो अत्यार अगाउ मोकली आप्या छे आवा निबंध लखवा बहार आवेल साक्षरो तथा निबंधो अत्यार सुधीमां नीचे मुजब नक्की थया छे. १ चैनोनो कर्मसिद्धांत. लखनार डो. टी. टा. डेगोन-होलेंड ॥ २ जैनमत धर्म छे या तत्त्वज्ञान लखनार डो. ओ. पेर्टोल्ड. पी. एच. डी. ३ जैनमतमा ईश्वरनी मान्यता. ले. डो. ओ. पेर्टोल्ड. पी. एच. डी. ४ हेमचंद्राचार्यनी विद्वत्ता. ले. डो. जोन नावेल बरलीन तथा श्रीयुत ए. जे. सुनावाला, भावनगर. ५ जैनमतमां अहिंसानो सिद्धांत. ले० श्रीयुत बाहुबलीनाथ. तंजोर. ६ जनमतमां द्रव्यनुं स्वरूप. ले. डो. हेलमुथवान नोसनेप. वरलिन, ७ बौद्धसाहित्यमां जैनमत. ले. विमलचरण ला. एम. ए. कलकत्ता. ८ तीर्थकर भगवाननुं जीवन. ले. प्रो. हीरालाल आर. कापडीया. मुंबाई. Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२८ ) ९ जैनज्योतिष. ले. डो. डबल्यु किरफल. बोन जर्मनी. १० जैनकानुन ले. श्रीयुत जे. एल. जैनी दील्ही तथा पी. जोस. एव्यस बनेलवी बोन जर्मनी. ११ जैनसाहित्यनी युरोपद्वारा खोज. ले. डो. जोह. नोवेल. बरलीन. १२ प्राचीन जैनसाहित्य. ले. डो. डबल्यु. शुबिंग, हैमवर्ग. १३ युरोपमां जैनधर्मना प्रचारक एवरेट. वेबर ले. फिनहेनरिश्व . जर्मनी. १४ जैन साहित्य अने कौटिल्य अर्थशास्त्र. ले. डो. जे. जोली, जर्मनी. १५ जैनधर्ममां मारो अभ्यास. ले. डो. हर्मनजेकोबी बोन. जर्मनी. १६ भारतनुं प्राचीन तत्त्वज्ञान अने तेनी साथे जैनधर्मनो संबंध. ले. डो. हर्मन जेकोबी. बोन जर्मनी. १७ भारतीय साहित्यमां जैनोनुं स्थान. ले. डो. विन्टरनेझ प्रेता. १८ बुद्ध अने महावीर ले. प्रो. एर्नस्त ल्युमेन. बेडन. १९ खारवेल शिलालेख. ले. डो. स्टेनकौनौ नावें. २० जैन गृहस्थोनो धर्म. ले. डॉ. आर. शामशास्त्री. महीसुर. Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२९) २१ संयुक्तप्रांत अने बिहारमा शेष प्राचीन वस्तुओ. ले. राव बहादुर हीरालाल डीपूटी कमीशनर अमरावती. २२ अन्यन्यायो साथे जैनन्यायनी तुलना. ले. हरिसत्यभट्टाचार्य एम. ए. हुगली. २३ गुजरात अने जैनोनी मध्यकालीन राज्यनीति. ले. श्रीयुत कन्हैयालाल मुन्शी एडवोकेट मुंबाई. २४ जैनशिक्षण अने विद्या; ले. नरेंद्रनाथ लॉ. एम. ए. कलकत्ता. २६ जननीतिशास्त्र. ले. प्रो. ए. जे. विजरी. वडोदरा. २५ जैनोनी ईश्वरमान्यता. ले. श्री. ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी मुंबाई. ___ आ उपरांत महामहोपाध्याय हरप्रसादशास्त्री ढाका । श्रीयुत विधुशेखर भट्टाचार्य शांतिनिकेतन, भोलपुर । श्रीयुत बनारसीदास एम. ए. लाहोर, श्रीयुत पूर्णचंद्र नाहार एम. ए. कलकत्ता । विगेरे विद्वानोए पण निबंधो लखी मोकलवानुं वचन आप्यु छे परंतु तेमणे हजु विषयनां नामो लखी मोकळ्यां नथी." आ बधा लेखक महाशयोना लेखो प्रसिद्धि आव्या पछी Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३० ) पण्डित पुरुषो जैनमतना स्वरूपने बणा प्रकाश स्वरूपथी जोई शकशे तेमां शक नथी. तेमां पण पांच सात लेखो तो मैनोना खास मौलिक सिद्धान्त स्वरूपनाज छे एवी अमारी समन थएली छे. वाचक वर्ग पण तेवा स्वरूपथी जोई शकशे एवी अमारी धारणा छे. इत्य ं विस्तरेण. संग्राहकमुनिश्री अमर विजयजी. महाराज. } Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ पुस्तक छपाववामां साहाय्य आपनार सद्गृहस्थोना नाम. भरुच. नाम. रु. नाम रु. ५०१ शा. डाह्याभाई दलपतभाई. १५ शा. नगीनदास झवेरचंद तोलाट. ५ शा. फूलचंद वखतचंद. शा. नाथामाई वखतचंद. चोपडी ७ खेडा. वडोदरा. २०१ शा. ईश्वरलाल गुलाबचंद. १०१ श्री जैनशाला संघ तरफथी. डभोई. मीयागाम. १०१ शा. छोटालाल छगनलाल । ७५ शा. कस्तुरचंद भगवानदास वनमाली. काजी. Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) सीनोर. रु. नाम: २५ शा. नाथाभाई नरोत्तमदास. २५ बाई हरकोर, हस्ते त्रिभोव नदास पीतांबरदास. १५ शा. चंपकलाल छगनलाल. १५ शा. हिंमतलाल. जी. मास्तर ( जैनजोतिषी ) मुंबई. १० शा. गरबड दलपतराम. १० शा. नाथाभाई नंदलाल. ७ शा. नरोत्तमदास शंकरलाल. १ शा. भोगीलाल मगनलाल. ५ शा. छगनलाल करमचंद. ५ बाई मंछा (शा. लल्लु नर शीनी विधवा) ५ शा छोटालाल हरगोविंददास. ५ शा. नंदलाल मोहनलाल. १ शा. नानचंद हरगोविंद. चोपडी. नाम. १५ शा. मोतीचंद धर्मचंद. ११ शा. मोतीचंद वजेचंद. ११ शा. नाथाभाई शंकर. १० शा. नाथाभाई गरबड. १० शा. लल्लुभाई नरोत्तमदास. ७ शा त्रिभोवनदास पीतांबरदास. ७ शा. वजेचंद लल्लुभाई. ७ शा. मोतीलाल शामजी. ५ शा. कालीदास हीराचंद. ५ शा मूलचंद बहे चरदास. ५ शा. गुलाबचंद डाह्याभाई. ५ शा. गरबड शिवलाल. ५ पार्वतीबेन हस्ते नानचंद शंकर ५ शा. त्रिभोवनदास हरगोविंद ( लिलोड ) १ शा. कीलाभाई केसूर. Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम. | चोपडी. नाम. ५ शा. हरिलाल नेमचंद. ५ शा. छगनलाल मोतीचंद. ५ शा. नंदलाल लखमीचंद. ५ शा. हिंमतलाल चुनीलाल. ५ शा. फूलचंद शिवलाल. ५ शा. छगनलाल शंकरलाल. ५ शा. मगनलाल लल्लुभाई. ५ शा. नाथाभाई शंकर. ५ बाई देवकोर ( शा. छोटा- ५ शा. चुनीलाल कालीदास. लाल माणेकलालनी मातुश्री)। ५ शा. मोहनलाल भगवान्दास. ३ बेन चोकस ( शा. नरोत्तम ५ शा. नंदलाल चुनीलाल. हीराचंदनी दिकरी) ५ शा. नाथाभाई नंदलाल. ३ शा. मगनलाल दीपचंद, ५ शा. वाडीलाल सखीदास. ३ शा. फूलचंद जगजीवनदास. ५ शा. शंकरलाल पीतांबरदास. ३ शा. ईश्वरलाल लालचंद. ५ शा. नगीनदास मोतीचंद. ३ शा. चुनीलाल वजेचंद. ५ शा. धारशीभाई कचराभाई. २ शा. मोतीलाल पीतांबरदास. ५ शा. चुनीलाल नरोत्तमदास. २ शा. नरोत्तमदास दीपचंद. | ४ शा. मगनलाल लालचंद. २ शा. चीमनलाल लखमीचंद, ४ शा. छोटालाल गिरधर. २ शा. मगनलाल चुनीलाल. ३ शा. चुनीलाल भवानीदास. २ शा. छोटालाल नानचंद. ३ शा. फोगटलाल पीतांबरदास. २ शा. चंदुलाल मोहनलाल. ३ शा. खीमचंद लल्लु. Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रु. नाम. । चोपडी. नाम. २ शा. कस्तुरचंद अमीचंद. ३ शा. गोरधनदास वीरचंद. २ शा. फूलचंद शिवलाल (मा- ३ शा. मूलचंद लखमीचंद लपुरवाळा) (साढली) २ शा. हेमचंद रणछोड (मांडवा) ३ शा. गुलाबचंद लखमीचंद , २ शा. छोटालाल पीतांबरदास. ३ शा. गरबड नाथाभाई. ४ शा. लल्लुभाई मगनलाल ३ शा. छोटालाल हरिलाल. डभोईवाळा. ३ शा. धर्मचंद भवानीदास. २ शा. त्रिभोवनदास देवचंद ३ शा. लल्लुभाई पीतांबरदास. (साढली ). ३ शा. हरगोविंद नरोत्तमदास. २ शा. छीताभाई पानाचंद. २०१ २ शा. दलपतभाई लालचंद. २ शा. नाथाभाई हरिलाल. २ शा. मरोत्तमदास हीराचंद. २ शा. मगनलाल रगनाथ. २ शा. छगनलाल कपूरचंद. २ मालसर लाइब्रेरी. १ शा. चुनीलाल नाथाभाई. Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपरोक्त महाशयोए आ पुस्तक छपाववामां अमूल्य साहाय्य आपीने परोपकारवृत्ति दर्शावी छे माटे तेमनुं कृत्य अनुमोदनाने पात्र छे. बीजा पण सद्गृहस्थो आ मार्गर्नु अनुकरण करशे तो विशाल जैनसाहित्यने खीलववामां वार नहीं लागे. .. आ पुस्तकनी किंमत केवल नाममात्रनी रुपियो पोणो राखवामां आवी छे, उत्पन्ननी रकम ज्ञानखातामांज जवानी छे. ॥ इति शम् ॥ Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्र. प्रस्तावना. पृष्ट * ७ ओळी ४ अशुद्ध जनोना मनधर्म तत्त्वन जनआचार्योम शुद्ध जैनोना जैनधर्म तत्त्वना जैनआचार्यो दर्शन कहे जैनीयोमां मेरी गबरमेंट ac mu no कहे जनीयोमा १९ २१ २१ १४ ४ ११ भेरी गवनमेंट जनी जेनी मोती मोतीलालनी पुरुषार्थ २२ २२ २३ टीपभां १२ १५ ७ पुरुषाथ धैय प्रयोने अंगो Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ट ओळी २३ ११ २४ १४ २६ . २६ १८ पथ अशुद्ध निभत्सना निर्भर्त्सना जनोनी जैनोनी जनधर्म जैनधर्म जनोए जैनोए ग्रंथ जनाचार्य जैनाचार्य जनशास्त्रोंसे जैनशास्त्रोंसे प्रथसमुदाय ग्रन्थसमुदाय पूर्ण जनदर्शन जैनदर्शन जनमत जैनमत जनादिदशनोका जैनादिदर्शनोका م م ३१ م दशन दर्शन दार्शनिकोके जैनमत ३२ १ दाशनीकोके ३२ २ जनमत यथाथ मति ४३३ ज्यार यथार्थ ता ज्यारे ___ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्ध . . . . . . ग्रंथो प्रमाण निग्रंथो जैनधर्म जैनआगमो जैनोना पदार्थ पृष्ट ओळी अशुद्ध ४३ ९ प्रयो ४३ ११ माण ४५ ११ निग्रयो ४६ १० जनधर्म ४७ ६. जनो ४७८ जनआगमो १७. जनोना पदाथ प्रथम भाग. १२ ७ जनधर्म १२नी नोट ४ जनोना २६ १३ सार्वभौम ३२ १५ दिग्दशन ४१ ९ स्वयंभ ४७ ३ लोकाना ४९ २ श्रष्ठ ४९ . चतन्य जैनधर्म जनोना सार्वभौम दिग्दर्शन स्वयंभ लोकोना चैतम्य Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 일본 ४९ ४९ ४९ ५२ ५३ ५७ ५८ ६१ ओळी ९ ७१ ७१ o of १२ ८ २ ५ १४ ८ ६१ ९ ६२ १७ ૨ ३ ६३ १३ ६४ १० ६ ६ ८ १ २ अशुद्ध जनयति महावीर जनोए वत्तवुं क्युं क्यु क्यु अथ आश्वष संस्थापको क्युं जनोना जनोना पाखड ग्रन्थो o औत्तरीय जटली शुद्ध जैनयति महावीरे "जैनोए वर्तषु अर्थ आश्चर्य धर्मसंस्थापको कर्यु जैनोना जनोना पार्दिष्ट ग्रन्थोनुं छे, तेमां पण औत्तरीय नेटली Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्ध तत्वादर्श हमारेही दर्शन यथार्थ यथार्थ पृष्ट ओळी अशुद्ध ८१८ तत्वादस ९१ १० हमारही ९२ ५ . दशन १०७ यथाथ १२६ १० यथाय १४० १ वदका १४४ तात्पय - ३ . अय ३ धम भाग बीजो. वेदका मार्गमा मागमां १५३ तात्पर्य अर्थ धर्म बाथ वार्थ ७ १० १०८ जनसिद्धांत .स्तको संबध सत्रालापको शली जैनसिद्धांत पुस्तको संबंध सूत्रालापको १६ १२ शैली Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ट २३ २५ ओळी ७ १९ अशुद्ध मल शुद्ध मूल . प्राचीन जैनधर्मनी चीन जनधर्मनी १०७ सव वर्तन ११० ज्यां १११ १४ वन ११२ १५ पदाथ पदार्थ १२९८ जननीति जैननीति आ प्रमाणे केटलेक ठेकाणे छापती वखते टाइप उन जवाने लोधे अक्षरो, काना मात्रा अने रेफ विगेरेनी अशुद्धिओ थवा पामी छे, माटे वाचकोने सुधारी वांववा भलामण करीए छीए, Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IN Por Favate & Personal use only ww.jainelibrary.org