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जैनतत्वज्ञानमां स्याद्वादनो बराबर शो अर्थ छे ते जाणवानो दावो हुं करी शकतो नयी. पण हुं मानुं हुं के स्याद्वाद मानवबुद्धिनं एकांगीपणुंज सूचित करे छे. अमुकदृष्टिए जोतां एक वस्तु एक रीते दीसे छे, बीजी दृष्टिए ते बीजी रीते देखाय छे, जन्मान्धो जेम हाथीने तपासे तेवी आपणी आ दुनियामां स्थिति छे.
आ वर्णन यथार्थ नथी एम कोण कही शके ? आपणी आवी स्थिति छे एटलं जेने गळे उतर्यु तेज आ जगतमां यथाथ: ज्ञानी माणसनुं ज्ञान एक पक्षी छे एटलं जे समज्यो तेज माणसोमां सर्वज्ञ. वास्तविक संपूर्ण सत्य जे कोई जाणतो हशे ते परमात्माने आपणे हजु ओळखी शक्या नथी.
आ ज्ञानमांथीज अहिंसा उद्भवेली छे, ज्यां सुधी हुं सर्वज्ञ न होउं त्यां सुधी बीजा उपर अधिकार चलाववानो मने शो अधिकार ? मारुं सत्य मारा पूरतुंज छे. बीजाने तेनो साक्षात्कार न थाय त्यां सुधी म्हारे धीरज ज राखवी जोईए. आवी वृत्ति: तेज अहिंसावृत्ति.
कुदरती रीते ज माणसनुं जीवन दुःखमय छे. जन्म-मराव्याधिथी माणस हेरान थाय ज छे. पण माणसे पोतानी मेळे
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