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सिद्धान्तोना सार उपरथी जणाय छे के सूत्रकृतांगनो मुख्य उद्देश नवीनसाधुओने विरोधी आचार्याना पाखंडीमतोथी संरक्षित राखवानो अने ते रीते सम्यग्दर्शनमां स्थिर बनावी तेमने परमश्रेयः प्राप्त कराववानो छे. आ हकीकत एकंदर साची छे, परन्तु सर्वोग पूर्ण नथी; ए आपणे आ पुस्तकनी शरुआतमा आपेली विषयसूची उपरथी जोई शकीए छीए. ग्रन्थनी शरुआतमां चिरोधीमतोतुं निराकरण आपवामां आवेलं छे अने तेनो तेज विषय फरीथी अधिक विस्तार साथे बीना श्रुतस्कंधना प्रथम अध्ययनमा चर्चवामां आवेलो छे. प्रथम श्रुतस्कंधमां आनी पछी पवित्र जीवन गाळवा संबंधी, साधुना परिषहो संबंधी, जेमा खास करीने तेमना मार्गमां वताववामां आवतां प्रलोभनो तथा असाधुजनो तरफथी मळतां शारीरिक कष्टो संबंधी तथा धर्मना आदर्शभूत महावीरनी स्तुतिविषयक अध्ययनो आवेलां छे, तेनी पछी बीजा पण तेवान विषयोपर अध्ययनो छे. बीजो श्रुतस्कंध जे लगभग संपूर्ण गद्यमांज लखाएलो छे तेमां पण आवाज प्रकारना विषयोनुं निरूपण करेलुं छे, परन्तु तेना विविध भागो वच्चे कोई पण देखीतो संबंध जोवामां आवतो नथी. आ उपरथी ते श्रुतस्कंध अनुपूर्तिरूपे गणी शकाय अने
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